रविवार, 23 दिसंबर 2012

हे सिंहवाहिनी- खडगधारिणी तुम्हे नमामि


                हे सिंहवाहिनी-खडगधारिणी तुम्हे नमामि!
                नमामि नमामि शत-शत नमामि!!
                हो मातु-पिता तुम, तुम ही हो जग स्वामिनी!
                दुख निवारिणी देवो के तुम,तुम ही हो संतापहारिणी!!१!!
                दुरगति दूर निवारिणी मां,तुम ही हो भव भय भीति निस्तारिणी!
                महामया देवी भगवती तुम, तुम ही हो ज्ञान संचारिणी!!२!!
                दीनार्त हूं भयत्रस्त हूं,हे सर्व अर्थ की साधिके!
                हर अमंगल दे सुमंगल हे शिवे,हूं शरण में तेरी त्रयम्बके!!३!!
                हे वज्रधारिणी चामुण्डॅ,नमामि तवश्री पद युगले!
                हे जनरंजनी शुम्भ-निशुम्भ निकन्दनी,स्मरामि तव युग नयन कमले!!४!!

             

                

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुझे मालूम नहीं था

मुझे मालूम नहीं था कि हमारा नेतृत्व इतना महान होगा!
चरित्र से गिरकर भी अपनी प्रशंसा में लगा होगा!!
दिल्ली दिल वालो की इतनी भयावनी होगी!
सार्वजनिक वाहनो स्थानो की ऐसी कहानी होगी!!
जहां संरक्षा सुरक्षा का मिशाल होना चाहिए!
वहां पतन-चरित्र हनन की गन्दी कहानी होगी!!
जो थकते कभी न यह कहते कि हमे कब होगा यह स्वीकार!
उन्हीं के इर्द गिर्द हो रही है भारत की प्रतिष्ठा तार- तार!!
प्रतिष्ठा जिन्हें देश की बचानी चहिए!
देश-प्रतिष्ठा को मिट्टी मिलाना उनकी कारगुजारी होगी!!
जिन्हें उदाहरण प्रस्तुत कर आदर्श बनना चाहिए!
उनकी कारस्तानी जन-जन की जुबानी होगी!!

मंगलमूर्तये नमामि

भाल विशाल पै शोभित चंदन,
अखिल विश्व के दुख निकन्दन!
शंकर सुवन पार्वती नन्दन,
मंगलमूरत हे गज आनन!!

स्वसोच

कौन हो तुम,सोचो, कंस कृष्ण, राम रावण-----
वजूद सबका है इन जोङो में ,राम-कृष्ण,कंस-रावण में!
हो सकता है, चन्दन सा विष सा,
हमारा वजूद है कैसा? सोचो-----
राधा- कृष्ण,सीता- राम की जोङी,
सती उमा पार्वती ने शंकर से कभी नाता न तोङी!
परिवार भार सा आज का,क्या कहना है आज के समाज का!
पार्वती परिवार,स्वर्ग का द्वार,
जहां पति अवधूत, वेश से भूत,
पुत्र हैं विचित्र- दिखते सचित्र,
तो सेवको का क्या कहना,
सबका है रुप ढंग अपना- अपना!
संभालती सबको सब है मस्त,
नहींहै कोई किसी से पस्त,
चेला रावन महा अपावन,
यद्यपि पिता प्रसिद्ध पावन,
मनन चिन्तन दे समाधान,होना होगा सवधान!!
द्विचित्त विचार है संहारक मारक,
एकचित्त ही है हमारा तारक!
रावन पावन बन जाय,यह मां को नहीं सुहाय,
मां का दुलार मार प्यार,पाकर बार-बार,
पङता है बालक में उसी सा संस्कार!
कंस कृष्ण मामा-भांजा, भांजा देता है मामा को सजा,
कंस मामा शब्द को कर दिया कलंकित,
शकुनि ने भी इसी ओर कर दिया था चित्त!
ऐसे शकुनी-कंस मामा,करते है आज भी करिश्मा,
राम रावन के लिए, तो कृष्ण कंस के लिए,
लेकिन आज नहीं दिखते राम,
रावन तो बनाये गली गली में निज धाम!
कृष्ण की बासुरी शंख बजते नहीं,
दुर्योधन कंस सा अत्याचारी थमते नहीं!
क्यो न अपने अन्दर के राम-कृष्ण को जगाये,
स्व- पर को भूल अपने रावन-कंस को भगाये!
एक मर्यादा सहित संसकारित समाज को बनाये,
पूरे विश्व में भारत के संसकार ज्ञान-मान को बढाये!
जब सजोये ज्ञान-मान बूंद बूंद
बढ जाये खुद ब खुद वजूद,
बन जाये धरा सर्वदा हरा भरा
जब अपनाये राम कृष्ण को खरा-खरा!
हम सबके मन में हमेशा हो यह भाव भरा!
स्वर्ग सी शोभित हो हमारी धरा!!

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

स्वयं के मनन से

जीवन को जीना सदाचरन से,
        मानव बन मानवता का पालन हो तन-मन से!
ज्यो सूर्य करते कर्म अपना,
        अनवरत निज मार्ग चलते नहीं डरते राहु ग्रसन से!!
हर जन हो निमग्न निज कर्म में,
         मिल जाये तब राहत एक दूसरे के जलन से!
करे कर्म निज का तो हो भला सबका,
         आ जाये हम इस मार्ग पर स्वयं के मनन से!!

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

गणपति वंदना



गनपति गनों के नायक प्रथम नाम विनायक!
दो सदबुद्धि जन-जन को तुम हो बुद्धिदायक!!
शुभ्रता की सक्षात मूर्ति सोहैं मूसकासन!
आनन गज पाकर आप कहलाते गजानन!!
बचन पालक भक्त रक्षक कुमार के सहोदर!
उदर रेख त्रय शोभित दिखे आप लम्बोदर!!
विस्मरण न हो भक्तों से तू हे सिन्दूरबदन!
 जन कल्याण हित करुं मैं पद पद्मों का वन्दन!!
 सन्मानते हर गण को पूंजे मां- बाप को!
हरते है विघ्नो को जैसे सूर्य तम को!!
मोदक प्रिय सब भक्त हित बने कल्याण सोधक!
एक दन्त सुमुख गजकर्णक पाते है जब मोदक!!

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

दयामयी मातु शारदे वर दे



                                                     
                                                दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!
हम पर अपनी दया दॄष्टि कर दे-- कर दे!!
तू महासरस्वती बुद्धिदायिनी ज्ञानदायिनी हो,
शुभ्रवसना कमल आसना हंसवाहिनी हो!
बुद्धि देकर मां मेरा तू,विद्या में अनुराग भर दे---
दयामयि मातु शारदे वर दे -वर दे------!!
सुर नर सेवित तू, पूजित वेदों से है,
करती कृपा पुत्रो पर,तू युगो युगो से है!
आज तू अज्ञानियो में ज्ञान का संचार कर दे---
 दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!
कदाचारी स्वेच्छेचारी, है सभी ये बढ रहे,
सदाचारी है आतंक की, बेदियो पर चढ रहे!
दुराचारो का नाश कर, जन-जन में सदाचार भर दे----  
    दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!
है घङी ऐसी की सह पाना अब दुस्वार है,
हताश होकर हम खङे,अब तेरे द्वार है!
राष्ट्र का उद्धार कर मां, ममत्व का संचार कर दे-----
    दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!