शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

हाउस वाइफ house wife hindi poem

हाउस वाइफ
संवेदना सहित सोचें इनकी लाइफ।
नौकरी पेशा हाउस वाइफ
इनकी जिंदगी दुधारी नाइफ।।
लक्ष्मी,सरस्वती पार्वती भी
सीता भी राधा  भी।
नव दुर्गा महा काली भी
ये हैं घर वाली भी।।
ललना वाली चकला वाली
बेलन वाली भी।
भीतर वाली बाहर वाली
परिवार वाली भी।।
निज चिंता चिता बना
पर पर जलने वाली।
घर को परिवार बना
उस पर मरने वाली।।
हानि-लाभ अपना नहीं
जीवन सुख सपना सही।
निज दुख देखना नहीं
परिवार हित मरना मही।।
सूर्य चंद्र सा चलना
धरती सा सब सहना।
शेरनी सा रहना
ममता-प्रेम का गहना।।
पुजारिन हैं पूजा हैं
दिया हैं बाती हैं।
मन्दिर हैं मूर्ति हैं
जीवन हैं ज्योति हैं।।
सुबह से शाम तक
आई हैं माई हैं।
अंधरे से प्रकाश तक
रिश्ते निभाई हैं।।
संभाल कर हर तिनका
मार कर अपना मनका।
कुछ नहीं हैं निजका
सर्व न्यौछावर कर तनका।।
संभालती परिवार
बिना किसी भार।
सँवारती घर-द्वार
होकर तार-तार।।
जब रोटी पकाती
प्यार उड़ेंन जाती।
रखती न थाती
रखती बड़ी छाती।।
परिवार को खिला कर
खुद खाना खाती।
सबकी क्षुदा दूर कर
भूखी भी सो जाती।।
अद्भुत हैं वाइफ
अविस्मरणीय हैं।
सँवारती हैं लाइफ
वंदनीय हैं।।




      








सोमवार, 13 जुलाई 2020

प्रकृति-पुरुष nature & human being hindi poem

 दोहा:-बंदउँ शंकर सुवन,कृपासिन्धु महावीर।
         प्रकृति-पुरुष गाथा,महके हर हर तीर।।
प्रकृति-पुरुष निर्माता,इनकी गाथा कौन कहे।
माया-जीव सब जाने,इन्हें न जाने कौन अहे।।
जगत तनय मेवाती नंदन,निज विचारों में बहे।
छोटे से छोटा है मोटा,निज कर्मों से सब लहे।।1।।
गज केहरि हरि हरि गुन गाहक हर चाल चले।
नर-मादा बचन बध हर जीवन सुबह शाम बने।।
नित नूतन नव रस ताल छ्न्द नव नव नमन करें।
 नद नदी नाद से रसमय सागर जीव जीवन भरें।।2।।
सावन मनभावन प्रकृति धरा का नित श्रृंगार करे।
भाँति भाँति अलौकिक आभा प्रकृति से खूब झरे।।
भादव भार भुवन भरका भर मन मह ललक भरे।
नदी-नाद सब ताल-तलैया उमगत है चहु ओर खरे।।3।।
कनक देह  प्रकृति गज गामिनी मन छोह छरे।
शुक-पिक सारंग मैना मधुर-मधुर स्वर गान करे।
ताल-तलैया नदी-नाल में सफरी बहु तरङ्ग भरे।
मन-मयूर नित नव-नव नाच-नाच नयन नीर धरे।।4।।


रविवार, 12 जुलाई 2020

।। यह हकीकत है।।it is true hindi poem

यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है।
खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।।
ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है।
मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1
यह हकीकत है माया वश इंसान मानवेतर हो जाता है।
प्रकृति-नटी के रुप-जाल नर कठपुतली हो जाता है।।
आशा-रथ सवार निर्बल रथी भी महारथी हो जाता है।
कनक कामी कदाचार करने को कटिबद्ध हो जाता है।।2
यह हकीकत है जहां संघ में सामर्थ्य हर हाल रहता है।
दिखावा में उलझ केवल जन-सामान्य ही तड़पता है।।
असामान्य कायदा-कानून को निज दासी समझता है।
जो नर जैसा होत वैसा ही हर दूसरे को समझता है।।3।।




शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।
जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।
विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।
पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।
काया कंचन मिट्टी को आखिर क्यों इतना मान दिया।
पग-पग पर निज हित रह आखिर क्यों तू जान दिया।।
जनमेजय के नाग यज्ञ ने किसका है कल्याण किया।
शान्ति न माना जिसने उसने मानव को तबाह किया।।2।
आखिर क्यों दिन-रात सूर्य-चन्द्र निज पथ सजे रहें।
दे उपहार हमें सुख-शांति का कर्तव्य पथ पर बने रहें।।
नाकों चना चबाने शांति बनाने कर्म पथ पर अड़े रहें।
अपनी संवेदना को जगा हम शांति हेतु तो खड़े रहें।।3।।
आखिर क्यों हर काल काल शिर पर मंडराता है।
श्वाशों का आना-जाना जीवन राह चलना बताता है।।
जीवन हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन राग सुनाता है।
नित कर्म करो आगे बढ़ो अद्भुत मन्त्र सिखाता है।।4।।
आखिर क्यों मानव मानव ही नहीं रह पाता है।
मद मोह मत्सर मार मानव मन मही मर जाता है।।
सुबह से शाम तक एक सा नित काम पड़ जाता है।
अपनों से परायों सा परायों से अपने सा हो जाता है।।5।
आखिर क्यों कामना हीन भूत भूत बन जाता है।
जन्म कर्म के बन्धन से जन मुक्त नहीं हो पाता है।।
पी कर विष-वारूणी कदम नहीं भू पर रख पाता है।
सत्ता मद में चूर नर मानवता ताक पर रख देता है।।6।।
आखिर क्यों सब पाठ नर दूसरों को ही पढ़ाता है।
निज पर बात आते ही सब पाठ स्वयं भूल जाता है।। प्राणी प्रकृति प्रकृति संग भी खेल खेल जाती है।
दया माया ममता मधुरिमा मन मसोज रह जाती है।।7।।
आखिर क्यों हर जीव-जन्तु हमकों ज्ञान सिखाते हैं।
तोता-मैना कागला हंस बगुले कुत्ते पाठ पढ़ाते हैं।।
औरों की तो बात क्या बैल-गधे सिख दे जाते हैं।
कारण सच कहूँ जब मानव मानव नहीं हो पाते हैं।।8।।

 




गुरुवार, 9 जुलाई 2020

।।जिन्दगी।। life hindi poem

भाग-दौड़ है जिन्दगी,
सरस राग,
विराग की भावना 
राग की स्थापना।
आज में जीना
कल का त्यागना।।
अति को छोड़ना
सम्बन्ध जोड़ना।
सहज सदा रहना
सहन तो करना।।
आशा निज से पर से
पूरी भी अधूरी भी सही।
निराशा कहीं से
मिले स्वीकारो भी सही।।
पी पी को गले लगा
भेद को पहचानो तो सही।
आशा को गले लगा
निराशा को भगाओ तो सही।।
पी माँ का 
ढूध को पिलाता है।
पी गाड़ी का
राह को बनाता है।।
पी अपमान घूट
जीवन को सहज बनाता।
पी मान का घूट
जीवन को सदा उलझाता।।
पी कालकूट यहाँ।
बन जा सहज सरल शंकर।
पी अमृत इस जहाँ
न बन कभी कहीं प्रलयंकर।।
पी जीवन पथ-गरल
जीवन होगा पग-पग सरल।
पी राग-विराग-अनल
हो जाय सब सदा विमल।।
शब्दों के साथ
अपनापन का नित हाथ।
बिन शब्द नवा माथ
सबको अपना बना हाथों-हाथ।।
पत्ते से भी
तो जड़ से भी।
निज से भी
तो पर से भी।।
समान रहे
बैर भाव त्यागकर।
साथ-साथ रहे
सब कुछ भूलाकर।।
बन जाओ
जो भी बनाना पड़े।
हट जाओ
जहां से हटना पड़े।।
डट जाओ
जहाँ भी डटना पड़े।
सट जाओ
जहाँ बजी सटना पड़े।।
अंधा बनो
देखकर अनदेखा करो।
बहरा बनो
सुन कर अनसुना बनो।।
गूँगा बनो
बनते रहो जो-जो बनो।
साधु बनो
बनना है सद गृहस्थ बनो।
जिंदगी सहज है
जिंदगी असहज है।
जिंदगी अमृत है
जिंदगी माहुर है।।
पी पी कर जी
सब जीवन का है।
पिला पिला कर जी
सब इसी धरा का है।।
रुकना 
रुक-रुक कर चलना।
थकना
थक-थक कर सम्हलना।।
सावन सा
जीवन में फुहारे हैं।
वसंत सा
जीवन में बहारे हैं।।
रुकती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।
कटती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।।
कट रही जिन्दगी
कह देते सहज सब आज।
बनी रही जिंदगी
कट जाय सहज सब साज।।
जिंदगी है जीना
सिखाते यहाँ जीव हैं।
सरबस है पीना
पिलाते जहाँ शिव हैं।।
आशा अमर धन
जीवन के महा समर में।
रख आश विश्वाश
जीवन जीतेंगे हर रन में।।







सोमवार, 6 जुलाई 2020

।।बादल।।cloud hindi poem

हे बादल!गरज गरज तू बरस बरस।
नव जीवन प्रकृति-पुरुष का तू सर्वस।
धन-धान्य धरती धरती पा तेरा रस।
जल जीवन तू जन जीवन रस।।
प्रकृति नटी पल पल छिन छिन है सज रही।
तू धरती का पालक यह जन जन से कह रही।
नर-बादल छाए हुए हैं जो उन्हें मान है दे रही।
नर नरत्व मत छोड़ मेरे बादल से तू सिख सही।।
बादल तेरा गर्जन-तर्जन आशा-बीज धरा का।
तेरा हर दर्शन बहु रुप दिखाता है जन-मन का।
तू भूमि गगन तू वायु अनल तू प्राण हर प्राणी का।
तू मेघ नहीं तू दूत सही इस धरती के हर नर-नारी का।।
नीरद तू मानव जीवन दाता सुख-शान्ति भ्राता।
अद्भुतं तेरी माया अद्भुत तेरी काया जन त्राता।
सावन-भादो माह बिन कौन जहां है रह पाता।
इंद्र-धनुष की अद्भुत छठा तू ही है हमें दिखाता।।
महाकाल महाबली महारस महि मह महकाता।
मन-मयूर मतवाला हर जगत में तेरा गुन गाता।
हे नर-अम्बुद!वारिद से तू सहज सरल सिख पाता।
कथनी-करनी की तरनी तू सहज आज चढ़ जाता।।
जो गरजते हैं ओ बरसते नहीं है पुरानी रीति।
गरजते हैं बरसते हैं तोड़ कर सर्वदा भय-भीति।
नव नव बादल दिखाते आज यहाँ नव नव नीति।
नाश त्याग विकास का हाथ पकड़ कर नव प्रीति।।






रविवार, 5 जुलाई 2020

।।यहाँ-वहाँ की।।from here & there hindi poem

हमअब बात करें,
आज और कल की।
अपने भविष्य की।
भूत की वर्तमान की।।
घर वार,सरकार की।
अपनों की,परायों की।
जन-जन की जहां की।
हर थल की,यहाँ-वहाँ की।।
समाज की परिवार की।
राज राज की देश की।
स्वदेश की स्वदेशी की।
कथनी-करनी की।।
शुरू करें
जीवन से जीवन की।
सबके लिए सबकी।
अबके लिए अबकी।
तबके लिए तबकी।।
कथा मानव की।
सुख-दुःख की।
दिन-रात की।
सत और तम की।
सतयुग देखा नहीं।
त्रेता राम-रावन सही।
द्वापर की जाने मही।
कल की बखाने बही।।
युगों-युगों की गाथा।
है सब मानव गाता।
सुधी जन आज बताता।
पंडित कल को रिझाता।।
हम तो निज को भाते हैं।
निज पर ही इठलाते हैं।
पर पर पर रौब जमाते हैं।
औरों को खूब लुभाते हैं।।
संवेदना विहीन संववेदना अब।
कोरोना त्रस्त मन रोता कब।
शक्ति को हम पूजे जब।
भक्ति भगवान भवन तब।।
विचार तो आज-कल झाड़-फुस सा।
बरसती मेढ़क-कुकुरमुत्ते सा।
सकुन अपसकुन राज सा।
दुलारा दमदार दामाद सा।।
जो कल था ओ कल होगा।
जो आज है वह भी कल होगा।
कल आज आज कल होगा।
जगत रीति होगा जग प्रीति होगा। ।
सावन मन भावन ही होगा।
जब मानव मन पावन होगा।
दुःख-राका का जावन होगा।
सुख-दिवा का आवन होगा।।
कल काम आज आराम।
आज काम कल आराम।
तो फिर कब होंगे सब काम।
छोड़ दो फिर सब राम के नाम।।
राम-श्याम कल काल आज तिलक भाल।
मानवता की अद्भुत ढाल।
आज-कल के हैं मिसाल।
थर्ड आई हैं संसार ताल- जाल।।
तब जाति कर्म आधारित।
अब जाति जन्म धारित।
तब कर्म कर्म का मर्म।
बनाता सब युग धर्म।।
अब जन्म का सब काम।
काम का नाम हुवा तमाम।
रिश्ते नाते करते आराम।
नहीं हमें अपने से विश्राम।।