मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

श्री पार्वती पति वन्दे।

रे मन पा सदाआनन्देश्री पार्वती पति वन्दे। जिन्ह मन अजिर वास शंकर तू बन बन्दे।
सत कोटि काम छबि आनन नव अरविन्दे।
भरे नित नवआनन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।1
जुग भुज शोभे सुजन सम विकट भुजंगे।
हर कष्ट हरे हर हरका बोलो हर हर गंगे।
मन्मथ मथ चिर दुःख हर हर सुख भर दे।
हैं सत चित आनन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।2
नन्दी संग बाटे भंग भंग सब विपदा कर दे।
मातु पिता भ्राता वन्धु का पल पल सुख दे।
हेअखिलेश्वर ओंकारेश्वर मन सत्यम दे दे।
हो मिलन ब्रह्मानन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।3
करतल गत हो सब सदगुन तव भक्तन के।
जन मन मधुप रस ले सतत पाद पद्मन के।
प्रकृति पुरुष प्रेम रस डूबतरै भव सागर के।
पावे सब परमानन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।4

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

अन्तर

खेल मेल झमेल की इस दुनियाँ
चारों ओर कहानी हैं।
मद मस्त पवन के काम कलेवर
छाती हरदम रवानी हैं।।
अन्तर जग सब भूतों में निहित
अपनी अपनी जुबानी हैं।
पशुपति परिवार अद्भुत विचार
हमने देखी सुनी मानी है।।
रामायण महाभारत युगांतकारी
अन्तर कहते पल पल हैं।
मानव मन मद मोह मोहित महा
अपना पराया हर थल है।।
मौसम सा बदले मिजाज नर नाहर
जैकाल गली मे भारी हैं।
पर पर पड़ते भारी सब ज्ञान झारी
दुनिया अपनों से हारी है।।1।।
फितरत में अन्तर की व्यथा कथा
हम हर कण मे देखते हैं।
मन मयूर नाचे वहाँ आँसू बहाये जहां
करतब सब यहाँ करते है।।
स्थान मान धन धान जन जान सान
सत असत को जानते हैं।
अब तब यहाँ वहाँ घर बाहर शहर में
है अन्तर जो जो मानते हैं।।
मन माने जहाँ नहीं है अन्तर वहाँ
सादगी को जगत सम्मानते हैं।
ताल तलैया नदी नाला सागर महासागर
बिच भेद लोग पहचानते हैं।।
बैल नंदी का रूप पर स्थान नहीं ले सकता
अच्छी छबि जेहन जगाते हैं।
तभी तो अन्तर मिटाने  की खेल जो खेलते
निरंतर अन्तर ही बनाते हैं।।2।।
अंतर है जहाँ में यत्र तत्र सर्वत्र आचारे ।
हो जाता अनचाहे जड़ इसकी व्यवहारे।।
अकाल कुसुम अंतर भेदन  इस संसारे ।
सद शिक्षा दे यहाँ अंतरगत भी सुख सारे।।

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

विश्वास

मैंने दो दो रूप सौ सौ बार देखा है।
अमित रूप यहाँ बार बार पेखा है।।
आस विश्वास जग जीवन रेखा है।   कसमेवादे प्यार बफा कर्म लेखा है।।
घात प्रतिघात आघात व्याघात है।
सर्पेंट सुथरा घात विश्वासघात है।।
अपनापन बनाना इक संघात है।
आस्तीन साप दो कुल ले जात है।।
रिश्तों का होता कत्ल हर थल है।
तात मात भ्रात वन्धु सखा आस है।।
रिश्ता बना तार तार करना घात है।
चीर हरन जहाँ करते अभिजात है।।
श्री हत होते बनते श्री हर जनाब ।
लूटते ही लूट जाते टूट जाते शाब।।
गिर नजर  से गये कर काम खराब।
हुवे हैं दोस्त शराब शबाब व कबाब।।
नियत खोट कपट जेहन होता कैसे।
विष रस भरा कनक घट होता जैसे।।
खा जाये धोखा बड़े बड़े जब इनसे। 
तो बचे कैसे घिरे माया मोह मद से।।

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

हनुमान वन्दना

रामदूत अंजनि सपूत इष्ट देव महावीर।
पवनपूत केसरीसूत हे गुनागार सतवीर।।
बल बुध्दि विद्या धाम कंचन वरन शरीर।
कुल कष्टनिवारक मंगलकारक सुधीर।।
मान दायक धर्मात्मन तू प्रेमाब्ध हनुमान।
रामबल्लभ अभिष्ट दायक देते धनधान।।  सतयुग द्वापर त्रेता कलि युगे जन जान।
अरि मर्दन मित वर्धन प्रहार मुष्टि प्रमान।।
हे हित मित जग दुःख भंजन आर्त सखा।
कर कृपा नित नव नव वर वरदान लखा।।
हे बज्र तनु गदा धारी असुरन बल मखा।
मार मार धर धर झट कर घात जो रखा।।
महाबल दशानन दर्पहा कृपाधाम किंकर।
संजीवनी सा जीवन रक्षक कारक दुष्कर।।
हे मेरे अजीज करु पद्म पाद वन्दन सत्वर।
हर हर हार हरदम इस टूवर किंकर कर ।।

अवसर

देता रब सब समान सबको,
अवसर दान मिला हमको।
दिन-रात सुबह-शाम हरको,
तप-ताप जप-जाप जगको।।
देखा ईश रूप जग कन कन,
पवन उनचास चले सनसन।
रवि-चन्द्र कान्ति मिले कनकन,
अकूत अर्जन का साधन तन।।
अनगिनत पर भारी अंग अंग,
श्रम साध्य है यहाँ सब रंग।
सर्वांग कर्म पाये संसार संग,
तंग विचार करे नित नव जंग।।
करते कलरव पाते अनुदान,
कुदरत रत सत गाते गान।
आलस्य छोड़ जीतो जहान,
हर अवसर करे तब गुनगान।।
अवसर चुके डोगरी नाचे ताल बेताल,
बिन अवसर वारिश लावे काल पेकाल।
चीटी चिड़िया चुग्गा चुने न हो बेहाल,
क्षण क्षण कण कण को चुन हो भुवाल।।

शनिवार, 31 जनवरी 2015

मन

सोच का मन से सीधा सम्बन्ध है
मन का सोच पर गहरा प्रभाव है।
मन मार सोच-सागर में डूबना
मन मलिन कर मन बोझिल करना है।।
तन-मन,दिल-दिमाग के आइने में
देखना परखना सवारना फितरत है।
जद्दो जहद जबरन जहा में जुर्रत,
ताल-मेल का बैठाना मन की शहादत है।।
चाहे अनचाहे करना करवाना
कभी कभी हमारे मन की कई कसरत है।
मन में लड्डू फूटना या पकाना
सुख शान्ति हेतु जहा की जरुरत भी है।।
मन के हारे हार मन के जीते जीत
हौसला बुलंद जिसका उसका मन है मीत।
बजरंगी सा सीना चीर गाते है गीत
सम विसम असम में जो न होते भयभीत।।
पलायन हल नहीं विचार बल वही
सहसा साहस समझदारी सूझ बूझ सही।
मन मजबूत करे निज कर्म इस मही
हर हाल हल तलाशना जिदारत है सही।।
खिचना बिसय बिकारों का काम
सिचना सदाचारों से मन बगिया भव धाम।
निजात देगे हर हाल सुखधाम
मन मानस मार मारे माधव मनमोहन माम।

रविवार, 25 जनवरी 2015

अपना गणतन्त्र स्वतन्त्र हो गया

पैसठवी वर्षगाठ पे छाछठवा दिवस गणतंत्र हो गया।
इस बिच हमारे देश में महान लोकतंत्र जवा हो गया।।
वीर भगत सावरकर आजाद सुभाषका भाव होगया।
पानी बिजली फ़ोन यूरिया चीनी लोन शोर हो गया।।
हर्षद मेहता जैन वन्धु काला धनका कामन गेम हो गया।
चारा बेचारा टू जी त्रि जी फ़ोर  जी ट्वंटी फ़ोर हो गया।।
गाँधी का अहिंसा सत्याग्रह सत्य चकना चूर हो गया।
आईप़ीएल में सट्टेबाजी शान का सिम्बल हो गया।।
राजनीति में साम दाम दण्ड भेद का भारी मेल हो गया।
आतंक में आकंठ डूबना नियति का अनूठा खेल हो गया।।
पल पल पग पग पावर टावर सोर्स् फ़ोर्स शेर हो गया।
करप्शन हत्या रेप से भारतीय संस्कार ढेर हो गया।।
येन केन प्रकारेन अपना काम बनाना आम हो गया।
दीन दुखियो का यहाँ सारा मारग अब जाम हो गया।।
संविधान आत्मा गणतन्त्र का संशोधन धाम हो गया।
सर्वप्रभुतासम्पन्न देश में योग्य युवा निस काम हो गया।।
अब वापस नव क्रांति से भ्रान्ति मिटाना  इकरार हो गया।
क्षेत्रवाद से उबर भारतीय रहना गौरव गान हो गया।।
बुराई जमीदोज करना सदाचार फैलाना अनिवार्य हो गया।
मुहतोड़ जबाब देना दुश्मनोका अब अपरिहार्य हो गया।।
भेद भाव जाति धर्म भाषा क्षेत्र रूप रंग भंग माग़ हो गया। 
  जय हिन्द को सतत बुलंद रखना युग काम हो गया।।