रविवार, 15 फ़रवरी 2015

अन्तर

खेल मेल झमेल की इस दुनियाँ
चारों ओर कहानी हैं।
मद मस्त पवन के काम कलेवर
छाती हरदम रवानी हैं।।
अन्तर जग सब भूतों में निहित
अपनी अपनी जुबानी हैं।
पशुपति परिवार अद्भुत विचार
हमने देखी सुनी मानी है।।
रामायण महाभारत युगांतकारी
अन्तर कहते पल पल हैं।
मानव मन मद मोह मोहित महा
अपना पराया हर थल है।।
मौसम सा बदले मिजाज नर नाहर
जैकाल गली मे भारी हैं।
पर पर पड़ते भारी सब ज्ञान झारी
दुनिया अपनों से हारी है।।1।।
फितरत में अन्तर की व्यथा कथा
हम हर कण मे देखते हैं।
मन मयूर नाचे वहाँ आँसू बहाये जहां
करतब सब यहाँ करते है।।
स्थान मान धन धान जन जान सान
सत असत को जानते हैं।
अब तब यहाँ वहाँ घर बाहर शहर में
है अन्तर जो जो मानते हैं।।
मन माने जहाँ नहीं है अन्तर वहाँ
सादगी को जगत सम्मानते हैं।
ताल तलैया नदी नाला सागर महासागर
बिच भेद लोग पहचानते हैं।।
बैल नंदी का रूप पर स्थान नहीं ले सकता
अच्छी छबि जेहन जगाते हैं।
तभी तो अन्तर मिटाने  की खेल जो खेलते
निरंतर अन्तर ही बनाते हैं।।2।।
अंतर है जहाँ में यत्र तत्र सर्वत्र आचारे ।
हो जाता अनचाहे जड़ इसकी व्यवहारे।।
अकाल कुसुम अंतर भेदन  इस संसारे ।
सद शिक्षा दे यहाँ अंतरगत भी सुख सारे।।

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