मैंने दो दो रूप सौ सौ बार देखा है।
अमित रूप यहाँ बार बार पेखा है।।
आस विश्वास जग जीवन रेखा है। कसमेवादे प्यार बफा कर्म लेखा है।।
घात प्रतिघात आघात व्याघात है।
सर्पेंट सुथरा घात विश्वासघात है।।
अपनापन बनाना इक संघात है।
आस्तीन साप दो कुल ले जात है।।
रिश्तों का होता कत्ल हर थल है।
तात मात भ्रात वन्धु सखा आस है।।
रिश्ता बना तार तार करना घात है।
चीर हरन जहाँ करते अभिजात है।।
श्री हत होते बनते श्री हर जनाब ।
लूटते ही लूट जाते टूट जाते शाब।।
गिर नजर से गये कर काम खराब।
हुवे हैं दोस्त शराब शबाब व कबाब।।
नियत खोट कपट जेहन होता कैसे।
विष रस भरा कनक घट होता जैसे।।
खा जाये धोखा बड़े बड़े जब इनसे।
तो बचे कैसे घिरे माया मोह मद से।।
सोमवार, 2 फ़रवरी 2015
विश्वास
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