शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

सुआचरित हो भारती,हे सीता त्रास हरन

                                          पतित पावन जन भावन,हे अंजना नंदन!
                                          प्राण प्रण धन मान हित,स्वीकार हो वंदन!!१!!
                                          केसरी सुत तू रामदूत,लखन के प्राण रक्षक!
                                          संकट मोचक हर जन का,है तू मेरा संरक्षक!!२!!
                                          आप जिसके है संरक्षक,हे पवनसूत हनुमान!
                                          कभी खो न सके वह जन,स्व धन मान सम्मान!!३!!
                                          मानवों का दानवपन, मचा रहा क्रन्दन!
                                          मिटाये कालनेमिसा,हे असुर निकन्दन!!४!!
                                          इस धरा पर नारियो,हो रहा नित चिरहरन!
                                         सुआचरित हो भारती,हे सीता त्रास हरन!!५!!

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

मै ईष्ट देव के चरणों में हूं नत-मस्तक

   
                       मैं ईष्ट देव के चरणों हूं नत-मस्तक,
                       करु प्रार्थना हो हर पल सुखो का दस्तक!!
                       तू एकादश रुद्र पवनतनय बजरंगबली!
                       तेरी ही हुंकार से भक्तो की विपदा टली!
                       हे रामदूत तू ही हो हर राम-भक्त की जान!
                       हे केसरीसुत हनुमान रखो किंकरो का मान!
                       आस लिए जनहित की निहारे जुगल छबि एकटक!!१!!
                       महावीर से हारे सब चाहे हो अतिकाय अकंपन कुंभकरन!
                       सब ओर दिखती आपकी कीर्ति जब हुआ राम-रावन का रन!
                       ज्ञान मान जन धन हेतु जन जन करे तेरा चरण- वन्दन!
                       अंजन सा ज्ञान सिखाये नित अंजनिसुत मारुति नन्दन!
                       है लालसा मन में देखू मैं आपकी चमकती छबि लकलक!!२!!
                       मंगल का व्रत मंगल लावे व्रती बने आपके लायक!
                       बनूं मैं तव चरण पायक हे बल बुद्धि विद्या दायक!
                       अष्ट सिद्धि नव निधि पूरित हो हे कलयुग के नायक!
                       तव सुमिरत भागे भूत पिशाच हे रोग शोक के नाशक!
                       भूलू न किसी पल आपको करे न कभी दिल धकधक!!३!!
                       सुग्रीव विभीषण जाम्बवान यूथपति अंगद बलवान!
                       सबकी सुन सबकी माने सेवक सच हे हनुमान!
                       कल्याण कर  भारत का करे इसे हसता चमन!
                       बने धरा ऐसी कि हो न किसी का चरित्र हनन!
                       जन जन रखे मान सम्मान हर नर-नारी का हर गली हर सङ्क!!४!!
                         





रविवार, 23 दिसंबर 2012

यह कैसा है लोकतन्त्र

यह कैसा है लोकतन्त्र,जिसमे हम है परतन्त्र,
सत्तासीन सफेदपोश, खो देते जब अपना होश!
खोखले वादे दावो से,वोट ले लेते शहर गाँवो से। 
विकास की गंगा की जगह होता विनाश का नृत्य नंगा।
अनाचार-अत्याचार खेल रहा खेल है द्वार-द्वार!
केन्द्र हो या रज्य अंधी गूंगी बहरी हो गयी है सरकार!
होता कभी भजन था सङको पर सार्वजनिक स्थानों पर!
हो गया है सीमित अब यह केवल सुजन मन मानस पर!!
नृत्यादि शोभित थे नृत्यशाला नाट्यशाला व कोठो पर!
नग्न-नृत्य हो रहा अब गली-गली सङ्को व जनस्थानों पर।। 
चिन्ता सुरक्षा की कर रही जहां सबको त्रस्त!
जहां सारी एजेसियां हो रही है पस्त!!
वादो तक सीमित हो जाय जहां जनतन्त्र!
तब सोचना जन-जन को होगा,यह कैसा है लोकतन्त्र !! 

इन्हे बताना क्या

सत्य- असत्य,ईमान- बेईमान का भेद बताना क्या?
जानकर बेईमानी करने व झूठ बोलने वालो को जताना क्या---
ज्ञान-अज्ञान,मान-सम्मान को समझाना क्या?
अज्ञानी बनने,अपमान करने वालो को सुनाना क्या-----
सचरित्र-दुस्चरित्र,कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के बारे में सिखाना क्या?
चरित्र च्युत कर्त्तव्य पतित को इसकी महत्ता बताना क्या---
जब जानकर मानकर गलत को अपनाये,
तब विचार करना ही होगा कि सत लोग ऐसे को कैसे भाये?
छोटे-बङे,अच्छे-भले के अन्तर को कहना क्या----
अरे ये तो सब कहते भी है,सब समझते भी है,
तब इन्हे बताना क्या तब इन्हे बताना क्या?
परहित परोपकार परमार्थ पर सेवा व पुण्य ज्ञान!
दे देवे स्वयं ही सब को सब प्रकार का धन-मान सम्मान!!

हे सिंहवाहिनी- खडगधारिणी तुम्हे नमामि


                हे सिंहवाहिनी-खडगधारिणी तुम्हे नमामि!
                नमामि नमामि शत-शत नमामि!!
                हो मातु-पिता तुम, तुम ही हो जग स्वामिनी!
                दुख निवारिणी देवो के तुम,तुम ही हो संतापहारिणी!!१!!
                दुरगति दूर निवारिणी मां,तुम ही हो भव भय भीति निस्तारिणी!
                महामया देवी भगवती तुम, तुम ही हो ज्ञान संचारिणी!!२!!
                दीनार्त हूं भयत्रस्त हूं,हे सर्व अर्थ की साधिके!
                हर अमंगल दे सुमंगल हे शिवे,हूं शरण में तेरी त्रयम्बके!!३!!
                हे वज्रधारिणी चामुण्डॅ,नमामि तवश्री पद युगले!
                हे जनरंजनी शुम्भ-निशुम्भ निकन्दनी,स्मरामि तव युग नयन कमले!!४!!

             

                

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुझे मालूम नहीं था

मुझे मालूम नहीं था कि हमारा नेतृत्व इतना महान होगा!
चरित्र से गिरकर भी अपनी प्रशंसा में लगा होगा!!
दिल्ली दिल वालो की इतनी भयावनी होगी!
सार्वजनिक वाहनो स्थानो की ऐसी कहानी होगी!!
जहां संरक्षा सुरक्षा का मिशाल होना चाहिए!
वहां पतन-चरित्र हनन की गन्दी कहानी होगी!!
जो थकते कभी न यह कहते कि हमे कब होगा यह स्वीकार!
उन्हीं के इर्द गिर्द हो रही है भारत की प्रतिष्ठा तार- तार!!
प्रतिष्ठा जिन्हें देश की बचानी चहिए!
देश-प्रतिष्ठा को मिट्टी मिलाना उनकी कारगुजारी होगी!!
जिन्हें उदाहरण प्रस्तुत कर आदर्श बनना चाहिए!
उनकी कारस्तानी जन-जन की जुबानी होगी!!

मंगलमूर्तये नमामि

भाल विशाल पै शोभित चंदन,
अखिल विश्व के दुख निकन्दन!
शंकर सुवन पार्वती नन्दन,
मंगलमूरत हे गज आनन!!