रविवार, 22 फ़रवरी 2015

सुन्दर

मन सुन्दर तन सुन्दर जन सुन्दर
ऋतुराज के आगोश में हो जाय जग सुंदर।
सर्वत्र फैला है इस धरा पर सुन्दर
मन अखियाँ से पेखे तो देखे पग पग सुंदर।
शुक सुंदर मैना सुंदर गागर सुंदर
पल पल पलटत भेष निरख है सागर सुंदर।
नर सुंदर नारी सुंदर माया सुंदर
कृपा कटाक्ष सर्वेश्वर के होतेहर पल सुंदर।
बहना सुंदर भाई सुंदर ताई सुंदर
मन माने तब लगे माई का हर रूप  सुंदर।
हर कवि ने देखा नजरों से सुंदर
हर क्षण होवे जिसमे नवीनता वो है सुंदर।
जो है सुंदर वो है इन्द्रिय सुख सागर
गुलाब के काटों में उलझत है गुन आगर।
देखन मिस मृग बिहग तरु बारम्बार
थम जाय कदम सहृदय स्नेह से शत बार।
संध्या परी की रूप राशि पर हर बार
हो जाते मन भृंग यहा अगनित न्यौछावर।
गति अपनी अपनी पाती जीत हार
मौसम में जाने कैसे कहाँ कब छाये बहार।
इन फैक्ट मलय सुंदर मलयानिल सुंदर
पर रस लेने को आतुर इनका हैं बिषधर।
जब सद आवृत से हो जाय हम सरवर
तब सुन्दरतम मानव बन होगे परम सुंदर।।

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