(सत्रह अक्षरों वाला समवृत्त)
लक्षण -
रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः
शिखरिणी।
परिभाषा=
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में
एक यगण (।ऽऽ), एक मगण
(ऽऽऽ), एक नगण (।।।),
एक सगण (।।ऽ), एक भगण
(ऽ।।), एक लघु (।) एवं एक
गुरु (ऽ) होता है उसे
शिखरिणी छंद कहते हैं।
अब प्रश्न उठता है श्वास का
विराम कहाँ करें तो इसके
उत्तर में आचार्य ने कहा है
कि- रसै: रुद्रैश्छिन्ना अर्थात्
रस एवं रुद्र की संख्या पर
श्वास का विराम अर्थात् यति
होगा। रसै अर्थात् यहाँ पर रस
का प्रयोग पाकशाला में प्रयुक्त
रसों तिक्त, कषाय,
लवण, मधुर, अम्ल एवं कटु
पर करते है। इस प्रकार छः
वर्णों पर प्रथम यति ।
अब द्वितीय यति अर्थात् विराम
'रुद्र' अर्थात् रुद्र भगवान शंकर
का नाम है जिनकी
संख्या 11 मानें गये हैं जो
अलग-अलग धर्मग्रंथों के
अनुसार अलग- अलग हैं ।
शिवपुराण के अनुसार
निम्नलिखित एकादश रुद्र हैं..
कपाली,पिंगल,भीम,विरूपाक्ष,
विलोहित,शास्ता,अजपाद,
अहिर्बुध्न्य,शम्भु,चण्ड और भव।
इस प्रकार
द्वितीय यति पाद के अन्त
17वें अक्षर पर होगा।
इसका तात्पर्य यह है कि
शिखरिणी छन्द के प्रत्येक चरण
के प्रथम छठें अक्षर के बाद
श्वास रुकती है अर्थात्
श्वास लेंगे और द्वितीय 11
अक्षर के बाद अर्थात् चरण
के अन्त में श्वास रुकती है।
इस प्रकार कुल मिलाकर
शिखरिणी छन्द के में कुल
17×4=68 वर्ण होते हैं।
शिखरिणी छन्द का प्रयोग
प्रायः बहुत ही धीर - गम्भीर
भावों को अभिव्यक्त करने के
लिये होता है।
उदाहरण -
। ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ।।। । । ऽ ऽ । । । ऽ
"न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं,
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ।।”
अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै
रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्
अखण्डं पुण्यानां फलमिह च तद्रूपमनघम्
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः॥
हिन्दी:
हिन्दी में भी इस छंद के
लक्षण एवं परिभाषा संस्कृत
की तरह ही हैं।
उदाहरण=
। ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ । । । । । ऽ ऽ ।।। ऽ
“अनूठी आभा से, सरस सुषमा से सुरस से।
बना जो देती थी, वह गुणमयी भू विपिन को।।
निराले फूलों की, विविध दल वाली अनुपम।
जड़ी-बूटी हो बहु फलवती थी विलसती।।”
।। धन्यवाद।।