गुरुवार, 9 जुलाई 2020

।।जिन्दगी।। life hindi poem

भाग-दौड़ है जिन्दगी,
सरस राग,
विराग की भावना 
राग की स्थापना।
आज में जीना
कल का त्यागना।।
अति को छोड़ना
सम्बन्ध जोड़ना।
सहज सदा रहना
सहन तो करना।।
आशा निज से पर से
पूरी भी अधूरी भी सही।
निराशा कहीं से
मिले स्वीकारो भी सही।।
पी पी को गले लगा
भेद को पहचानो तो सही।
आशा को गले लगा
निराशा को भगाओ तो सही।।
पी माँ का 
ढूध को पिलाता है।
पी गाड़ी का
राह को बनाता है।।
पी अपमान घूट
जीवन को सहज बनाता।
पी मान का घूट
जीवन को सदा उलझाता।।
पी कालकूट यहाँ।
बन जा सहज सरल शंकर।
पी अमृत इस जहाँ
न बन कभी कहीं प्रलयंकर।।
पी जीवन पथ-गरल
जीवन होगा पग-पग सरल।
पी राग-विराग-अनल
हो जाय सब सदा विमल।।
शब्दों के साथ
अपनापन का नित हाथ।
बिन शब्द नवा माथ
सबको अपना बना हाथों-हाथ।।
पत्ते से भी
तो जड़ से भी।
निज से भी
तो पर से भी।।
समान रहे
बैर भाव त्यागकर।
साथ-साथ रहे
सब कुछ भूलाकर।।
बन जाओ
जो भी बनाना पड़े।
हट जाओ
जहां से हटना पड़े।।
डट जाओ
जहाँ भी डटना पड़े।
सट जाओ
जहाँ बजी सटना पड़े।।
अंधा बनो
देखकर अनदेखा करो।
बहरा बनो
सुन कर अनसुना बनो।।
गूँगा बनो
बनते रहो जो-जो बनो।
साधु बनो
बनना है सद गृहस्थ बनो।
जिंदगी सहज है
जिंदगी असहज है।
जिंदगी अमृत है
जिंदगी माहुर है।।
पी पी कर जी
सब जीवन का है।
पिला पिला कर जी
सब इसी धरा का है।।
रुकना 
रुक-रुक कर चलना।
थकना
थक-थक कर सम्हलना।।
सावन सा
जीवन में फुहारे हैं।
वसंत सा
जीवन में बहारे हैं।।
रुकती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।
कटती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।।
कट रही जिन्दगी
कह देते सहज सब आज।
बनी रही जिंदगी
कट जाय सहज सब साज।।
जिंदगी है जीना
सिखाते यहाँ जीव हैं।
सरबस है पीना
पिलाते जहाँ शिव हैं।।
आशा अमर धन
जीवन के महा समर में।
रख आश विश्वाश
जीवन जीतेंगे हर रन में।।







सोमवार, 6 जुलाई 2020

।।बादल।।cloud hindi poem

हे बादल!गरज गरज तू बरस बरस।
नव जीवन प्रकृति-पुरुष का तू सर्वस।
धन-धान्य धरती धरती पा तेरा रस।
जल जीवन तू जन जीवन रस।।
प्रकृति नटी पल पल छिन छिन है सज रही।
तू धरती का पालक यह जन जन से कह रही।
नर-बादल छाए हुए हैं जो उन्हें मान है दे रही।
नर नरत्व मत छोड़ मेरे बादल से तू सिख सही।।
बादल तेरा गर्जन-तर्जन आशा-बीज धरा का।
तेरा हर दर्शन बहु रुप दिखाता है जन-मन का।
तू भूमि गगन तू वायु अनल तू प्राण हर प्राणी का।
तू मेघ नहीं तू दूत सही इस धरती के हर नर-नारी का।।
नीरद तू मानव जीवन दाता सुख-शान्ति भ्राता।
अद्भुतं तेरी माया अद्भुत तेरी काया जन त्राता।
सावन-भादो माह बिन कौन जहां है रह पाता।
इंद्र-धनुष की अद्भुत छठा तू ही है हमें दिखाता।।
महाकाल महाबली महारस महि मह महकाता।
मन-मयूर मतवाला हर जगत में तेरा गुन गाता।
हे नर-अम्बुद!वारिद से तू सहज सरल सिख पाता।
कथनी-करनी की तरनी तू सहज आज चढ़ जाता।।
जो गरजते हैं ओ बरसते नहीं है पुरानी रीति।
गरजते हैं बरसते हैं तोड़ कर सर्वदा भय-भीति।
नव नव बादल दिखाते आज यहाँ नव नव नीति।
नाश त्याग विकास का हाथ पकड़ कर नव प्रीति।।






रविवार, 5 जुलाई 2020

।।यहाँ-वहाँ की।।from here & there hindi poem

हमअब बात करें,
आज और कल की।
अपने भविष्य की।
भूत की वर्तमान की।।
घर वार,सरकार की।
अपनों की,परायों की।
जन-जन की जहां की।
हर थल की,यहाँ-वहाँ की।।
समाज की परिवार की।
राज राज की देश की।
स्वदेश की स्वदेशी की।
कथनी-करनी की।।
शुरू करें
जीवन से जीवन की।
सबके लिए सबकी।
अबके लिए अबकी।
तबके लिए तबकी।।
कथा मानव की।
सुख-दुःख की।
दिन-रात की।
सत और तम की।
सतयुग देखा नहीं।
त्रेता राम-रावन सही।
द्वापर की जाने मही।
कल की बखाने बही।।
युगों-युगों की गाथा।
है सब मानव गाता।
सुधी जन आज बताता।
पंडित कल को रिझाता।।
हम तो निज को भाते हैं।
निज पर ही इठलाते हैं।
पर पर पर रौब जमाते हैं।
औरों को खूब लुभाते हैं।।
संवेदना विहीन संववेदना अब।
कोरोना त्रस्त मन रोता कब।
शक्ति को हम पूजे जब।
भक्ति भगवान भवन तब।।
विचार तो आज-कल झाड़-फुस सा।
बरसती मेढ़क-कुकुरमुत्ते सा।
सकुन अपसकुन राज सा।
दुलारा दमदार दामाद सा।।
जो कल था ओ कल होगा।
जो आज है वह भी कल होगा।
कल आज आज कल होगा।
जगत रीति होगा जग प्रीति होगा। ।
सावन मन भावन ही होगा।
जब मानव मन पावन होगा।
दुःख-राका का जावन होगा।
सुख-दिवा का आवन होगा।।
कल काम आज आराम।
आज काम कल आराम।
तो फिर कब होंगे सब काम।
छोड़ दो फिर सब राम के नाम।।
राम-श्याम कल काल आज तिलक भाल।
मानवता की अद्भुत ढाल।
आज-कल के हैं मिसाल।
थर्ड आई हैं संसार ताल- जाल।।
तब जाति कर्म आधारित।
अब जाति जन्म धारित।
तब कर्म कर्म का मर्म।
बनाता सब युग धर्म।।
अब जन्म का सब काम।
काम का नाम हुवा तमाम।
रिश्ते नाते करते आराम।
नहीं हमें अपने से विश्राम।।






सोमवार, 15 जून 2020

। । आओ हम विचारे । । come we think hindi poem

आओ हम विचारे कुछ आज ,सूर्य-चन्द्र सा करते काज। 
          दिन-रात सिखे-सिखाये साज ,देश बनाये जग सिर ताज।। १।।
          श्री की चाह जह राह आज ,तह येन-केन मन-बंचक राज।
          छोड़ जग मर्यादा मान लाज,मृगमरीचिका पर करते नाज।। २ । ।
          निज आन मान मर्यादा मर्यादा, पर पर का सब बकवास । 
          आज निज का निज जन ही ,करने को आतुर है सर्वनास । । ३ । ।
          विश्व के दिग्गज महा नायक,विकसित बड़े-बड़े जो देश । 
          कथनी-करनी है मयूर सी,भोजन विषधर सुन्दर वेश । । 4 ।  । 
          किसकी किसकी गाथा गाये,पड़ोसियो का क्या कहना । 
          निज विस्तार ही जिनको भाये,निजता ही जिनका गहना । । 5। । 
          अस्त्र-शस्त्र आतंक अंक मे,पलते इनके सारे ख्वाब । 
           जैविक कोरोना अंगना मे,संग शराब शबाब कबाब । । 6। । 
          खेल रहे दक्ष रक्षक कामी, फैला घातक रोग सुनामी । 
          अर्थहीन अर्थ अनर्थ कामी,बाम मार्गी ये कु मार्ग गामी । । 7। । 
          दीन-हीन जन मीन बना,  ये मछुवारे हैं जाल बिछाये । 
           सत्ता-धन को शान बना,जग मह नाश का रास रचाये । । 8। । 
           शेष सभी को आज संग हो,हरदम साथ निभाना है। 
          संघे शक्ति कलियुगे हो,दुष्टों को औकात दिखाना है। । 9। ।   


         

         
          

सोमवार, 11 मई 2020

।।मनुजा।।daughter hindi poem

दोहा:-मातु चरन रज शीश धरि,विनवउँ पवन कुमार।
         मेरी यह मनुजा कथा, गूँजे सब संसार।।1।।
             ।।  कविता ।।
श्रद्धा विश्वास से बन जाये सत काव्य। 
सत चित आंनद का फैले सर्वत्र राज्य।।
भूमिजा जग जननी गंगा पाप हारिणी। 
दुर्गा  दुर्गमांगी दानव दुर्गति कारिणी।।1।।
नारी श्रद्धा दया माया ममता मन घोलें।
बेटी मंजरी परिवार बाग़ खिले हौले-हौले।।
बेटा राम पितु पन हित परन कुटी में सोले।
रावन बेटा भाँति-भाँति कुकर्म द्वार खोले।।2।।
भूमिजा अनुजा मनुजा तनुजा हैं हमारी बेटी।
बेटी-बहन सहन करना रीति बहुत है मोटी।।
इन्सान वही जग में जिनकी नियत न खोटी।
मानव वही मानव जो मानव छोटी छोटी।।3।।
तृन समान पर धन-धान मान त्यागिनी।
पितु गृह कबहु कबहु ससुराल वासिनी।।
जीवन-ज्वाला नित नव-नव रुप धारिणी।
कविता-कामिनी मह मुहुर्मुहुः रस वारिणी।।4।।
महाभारत-रामायण में भी नारियाँ हैं।
अबला निर्बला नहीं सबला शक्तियॉं हैं।।
आज-कल भी कमतर नहीं बेटियाँ हैं।
काल के गाल पर लिखती ये पक्तियाँ हैं।।5।।
माता सा न हुवा कोई नर पूजित।
बहना सा न हुवा कोई नर रंक्षित।।
कन्या सा न हुवा कोई नर वंदित।
बिटिया सा न हुवा कोई नर मुंचित।।6।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
बेटी ही है यहाँ परम सनेही।।
त्याग-तपस्या की है गेही।
सम्बन्ध धरा पर यह है अति नेही।।7।।
बेटी है हमारे घर-बगिया की अद्भुत प्रसून।
मान है मर्यादा है आभा है प्रभा है हर जून।।
नाक है स्थान हर पल हर भोजन ज्यो नून।
बिनु  बेटी परिवार है ज्यो रजनी बिनु मून।।8।।
मनुजा वही जो पायी मनुज से जन्म है।
तनुजा वही जो तन का अभिन्न अंग है।।
अनुजा वही जो मौन करे अग्रज रंग है।
अग्रजा वही जो अनुज को रखे चंग है।।9।।
बेटी बहन माता पिता भाई बेटा पावन।
पत्नी प्रेमिका प्रेयशी प्रियतमा मन भावन।।
हृदय के उद्गार हैं ये बसन्त सा सदा सुहावन।
सम्बन्ध और मर्यादा हैं यहाँ भदाव -सावन।।10।।
इन्सान-हैवान मानव-दानव एक ही है।
भेद भाषा का समझ का अद्भुत ही है।।
सब भाँति सब बात नियति की सद है।
नियति नारी  गति मति प्रकृति एक है।।11।।
नारी पर रख कुदृष्टि सब कुछ खो देते हैं।
सु दृष्टि जिनकी इन पर वे सब पा लेते हहैं।।
को रोना का का रोना जो इनसे ज्ञान लेते हैं।
आइसोलेसन प्रकृतिप्रदत्त को जो मान  देते है।।12।।

दोहा:-कभी कहीं कुछ किंपुरुष,कर के कुत्सित कर्म।
        कायनात कर कलंकित,कालिख पोते धर्म।।2।।
                 ।।इति।।

शनिवार, 9 मई 2020

।।सिक्का।।coin hindi poem

श्री गजानन पद पंकज, वंदन बारंबार।
मिटाये आपदा सहस सूर्य ज्यो अंधकार।।1।।
इष्ट देव हनुमान पद, सतत सरल मम नमन।
हर हर जन का दुःख सद, कै सुवास जग चमन।।2।।
 कृष्णम वंदे जगत गुरुं,जगत सुत हित रत नित।
कंस मुर बध सुख वर्धनं, भर आनन्द सत चित।।3।।
पद रज  उड़ि मस्तक चढ़े, पूजित सर्व समाज।
सिक्का जिनका जम गया, वे सबके सिर ताज।।4।।
सभी देवों का सिक्का, मानते हम सर्वत्र।
दानव भी कमतर नहीं, चलाते अस्त्रशस्त्र।।5।।
हर आकार के सिक्के, कभी हमारे भाग।
आज कहाँ हैं मिल रहे,छोटे बड़के आग।।6।।
एक दो तीन पाँच दसं, बीस और पच्चीस।
पच्चास की वह अठन्नी, सोलह आने पीस।।7।।
सोलह आने हो सही,कहाँ गयीं वह बात।
छोटे सिक्कों की कथा, गयीं रात की बात।।8।।
ताँबे के धुसर सिक्के, होते यहाँ पूजित।
महाराजा महारानी छबि, से थे अखंडित।।9।।
जब चाहा तब तब चला, अपना सिक्का नूतन।
सोना चाँदी प्रतिमा,पूजे जहाँ हर जन।।10।।
ईदगाह बाल हमीद, पाया पैसा तीन।
दादी हित लिया चिमटा,बनाया छबि नवीन।।11
कंकन किंकिनि नुपुर सी,सिक्कों की हर खनक।
मन मोह ले हर जन की,दे दे थोड़ी भनक।।12।।
गोली जू टिकता नहीं, सिक्कें पर यह अन्य।
जमाने पर निज सिक्का, जमा हो रहे धन्य।।13।।
वाणी वाणी कृपा न, काटती जगत फंद।
जमा वाणी सिक्का जग,जन बनते सुखवंत।।14।।
इस धरा पर दस दिसि देख,सिक्का जादू फेक।
धनी रूप गुन अवगुन के,न निकले मीन मेक।।15।।
सतयुग से इस कलियुग तक,पूजित सिक्का वान।
विश्व पटल पर हर समय,दिखते बहुत महान।।16।।
मैं तुम सिक्का बन जाते ,जाते जहाँ उछाल।
दूजा चिल्लर बना हमें, हो रहे हैं निहाल।।17।।
चिल्लर हैं आम मानव,कुछ के गाल गुलाब।
जी तोड़ परिश्रम पर के,पर हो मालामाल।18।।
जाति जाति भांति कुनवे,कैसे होवे एक।
उच्च वर्ग हर जाति का, हमे बनाव अनेक।।19।।
उत्तम मध्यम निम्न लघु, हम है वर्ग प्रकार।
उत्तम का सद बद सिक्का,ही होता साकार।।20।।
जमाने उपर जमाने, सिक्का निज आज कल।
मनुज हो रहा बावला, बना मनुजता विफल।।21।।

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

।।कुशल कौशल।।

मातु पितु चरण कमल रज,मन महु प्रतिपल धारि।
शांडिल्य कुलभूषण पर, रिझै प्रेम मुरारि।।1।। 
हंस बंस अवतंश नर ,सोहै तीनो लोक।
 जगत जननी कृपा रज, हर लें हर का शोक।।2।। 
 जगत तनय बन्दन माँ गिरिजा।कौशल किशोर प्रेरित सिरिजा।। दूधनाथ की अद्भुत कृपा।अक्षयवर है जहां कुलदीपा।।1 ।।सोहे सर तीर महिषमर्दिनी। विंध्यवासिनी जगत बंदिनी।। तिल अवली की पावनी धरा । फैलाती सुख शांति हरा भरा।।2।। अक्षय कुल भूषण श्रेष्ठ बंसा। प्रगटे क्षीर विवेकी हंसा।। तिनके तनय तीन जग  भारी। रामाक्षु गुद्दर कालि तिवारी।।3।।काली कृपा कालिका कला। कुशल किशोर कुलदीपक भला।।आज जनक दुलारी दुलारें।नित राम रस सेवक सवारें।। 4।।राजेश रसराज रसिका का। काय मन बानी जु ध्यानी का।।बहु भाव भवन भव मह भावै।जब राम रसिक बानी गावै।।5।।हम धन्य धन्य हो ही जावै। जब कुल कुशल श्रीचरित गावै।।विंध्यवासिनी विन्ध्येश्वरी।  रखें लाज नित नगरी डगरी।।6।। नहि हैं पावन गौतम नारी। किये है पावन हैं त्रिसिरारी।।अहिल्यापुर बने इक धामा।मम कुशल तह गाव जब रामा।।7।।पांचों अहिल्या मंदोदरी।कन्या तारा कुंती द्रोपदी।।राम कृष्ण संग संग आयीं।अद्भुत जश तिहु लोक पायीं।।8।।बिनववु तिनके पंकज-चरना।जानकि राधे-राधे कहना।।आजु धन्य मम कुल त्रिपुरारी।कुशल गावै जस त्रिसिरारी।।9।।करें पावन अपावन धामा।अरुप रुप लेवे जह विश्रामा।मैं मतिमंदा तू मति धामा।हर हर लो कुशल सब अज्ञाना।।10।। 
गिरिजा करै हनु बन्दन, अवधेश के आँगन।
कुशल रह कौशल किशोर,जग करै नित बंदन।।1।।
जिनकी कृपा लवलेश,मिटै सबहीं कलेश।
इष्ट इष्ट दे अवधेश,दया करै विश्वेश।।2।।