सोमवार, 11 मई 2020

।।मनुजा।।daughter hindi poem

दोहा:-मातु चरन रज शीश धरि,विनवउँ पवन कुमार।
         मेरी यह मनुजा कथा, गूँजे सब संसार।।1।।
             ।।  कविता ।।
श्रद्धा विश्वास से बन जाये सत काव्य। 
सत चित आंनद का फैले सर्वत्र राज्य।।
भूमिजा जग जननी गंगा पाप हारिणी। 
दुर्गा  दुर्गमांगी दानव दुर्गति कारिणी।।1।।
नारी श्रद्धा दया माया ममता मन घोलें।
बेटी मंजरी परिवार बाग़ खिले हौले-हौले।।
बेटा राम पितु पन हित परन कुटी में सोले।
रावन बेटा भाँति-भाँति कुकर्म द्वार खोले।।2।।
भूमिजा अनुजा मनुजा तनुजा हैं हमारी बेटी।
बेटी-बहन सहन करना रीति बहुत है मोटी।।
इन्सान वही जग में जिनकी नियत न खोटी।
मानव वही मानव जो मानव छोटी छोटी।।3।।
तृन समान पर धन-धान मान त्यागिनी।
पितु गृह कबहु कबहु ससुराल वासिनी।।
जीवन-ज्वाला नित नव-नव रुप धारिणी।
कविता-कामिनी मह मुहुर्मुहुः रस वारिणी।।4।।
महाभारत-रामायण में भी नारियाँ हैं।
अबला निर्बला नहीं सबला शक्तियॉं हैं।।
आज-कल भी कमतर नहीं बेटियाँ हैं।
काल के गाल पर लिखती ये पक्तियाँ हैं।।5।।
माता सा न हुवा कोई नर पूजित।
बहना सा न हुवा कोई नर रंक्षित।।
कन्या सा न हुवा कोई नर वंदित।
बिटिया सा न हुवा कोई नर मुंचित।।6।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
बेटी ही है यहाँ परम सनेही।।
त्याग-तपस्या की है गेही।
सम्बन्ध धरा पर यह है अति नेही।।7।।
बेटी है हमारे घर-बगिया की अद्भुत प्रसून।
मान है मर्यादा है आभा है प्रभा है हर जून।।
नाक है स्थान हर पल हर भोजन ज्यो नून।
बिनु  बेटी परिवार है ज्यो रजनी बिनु मून।।8।।
मनुजा वही जो पायी मनुज से जन्म है।
तनुजा वही जो तन का अभिन्न अंग है।।
अनुजा वही जो मौन करे अग्रज रंग है।
अग्रजा वही जो अनुज को रखे चंग है।।9।।
बेटी बहन माता पिता भाई बेटा पावन।
पत्नी प्रेमिका प्रेयशी प्रियतमा मन भावन।।
हृदय के उद्गार हैं ये बसन्त सा सदा सुहावन।
सम्बन्ध और मर्यादा हैं यहाँ भदाव -सावन।।10।।
इन्सान-हैवान मानव-दानव एक ही है।
भेद भाषा का समझ का अद्भुत ही है।।
सब भाँति सब बात नियति की सद है।
नियति नारी  गति मति प्रकृति एक है।।11।।
नारी पर रख कुदृष्टि सब कुछ खो देते हैं।
सु दृष्टि जिनकी इन पर वे सब पा लेते हहैं।।
को रोना का का रोना जो इनसे ज्ञान लेते हैं।
आइसोलेसन प्रकृतिप्रदत्त को जो मान  देते है।।12।।

दोहा:-कभी कहीं कुछ किंपुरुष,कर के कुत्सित कर्म।
        कायनात कर कलंकित,कालिख पोते धर्म।।2।।
                 ।।इति।।

शनिवार, 9 मई 2020

।।सिक्का।।coin hindi poem

श्री गजानन पद पंकज, वंदन बारंबार।
मिटाये आपदा सहस सूर्य ज्यो अंधकार।।1।।
इष्ट देव हनुमान पद, सतत सरल मम नमन।
हर हर जन का दुःख सद, कै सुवास जग चमन।।2।।
 कृष्णम वंदे जगत गुरुं,जगत सुत हित रत नित।
कंस मुर बध सुख वर्धनं, भर आनन्द सत चित।।3।।
पद रज  उड़ि मस्तक चढ़े, पूजित सर्व समाज।
सिक्का जिनका जम गया, वे सबके सिर ताज।।4।।
सभी देवों का सिक्का, मानते हम सर्वत्र।
दानव भी कमतर नहीं, चलाते अस्त्रशस्त्र।।5।।
हर आकार के सिक्के, कभी हमारे भाग।
आज कहाँ हैं मिल रहे,छोटे बड़के आग।।6।।
एक दो तीन पाँच दसं, बीस और पच्चीस।
पच्चास की वह अठन्नी, सोलह आने पीस।।7।।
सोलह आने हो सही,कहाँ गयीं वह बात।
छोटे सिक्कों की कथा, गयीं रात की बात।।8।।
ताँबे के धुसर सिक्के, होते यहाँ पूजित।
महाराजा महारानी छबि, से थे अखंडित।।9।।
जब चाहा तब तब चला, अपना सिक्का नूतन।
सोना चाँदी प्रतिमा,पूजे जहाँ हर जन।।10।।
ईदगाह बाल हमीद, पाया पैसा तीन।
दादी हित लिया चिमटा,बनाया छबि नवीन।।11
कंकन किंकिनि नुपुर सी,सिक्कों की हर खनक।
मन मोह ले हर जन की,दे दे थोड़ी भनक।।12।।
गोली जू टिकता नहीं, सिक्कें पर यह अन्य।
जमाने पर निज सिक्का, जमा हो रहे धन्य।।13।।
वाणी वाणी कृपा न, काटती जगत फंद।
जमा वाणी सिक्का जग,जन बनते सुखवंत।।14।।
इस धरा पर दस दिसि देख,सिक्का जादू फेक।
धनी रूप गुन अवगुन के,न निकले मीन मेक।।15।।
सतयुग से इस कलियुग तक,पूजित सिक्का वान।
विश्व पटल पर हर समय,दिखते बहुत महान।।16।।
मैं तुम सिक्का बन जाते ,जाते जहाँ उछाल।
दूजा चिल्लर बना हमें, हो रहे हैं निहाल।।17।।
चिल्लर हैं आम मानव,कुछ के गाल गुलाब।
जी तोड़ परिश्रम पर के,पर हो मालामाल।18।।
जाति जाति भांति कुनवे,कैसे होवे एक।
उच्च वर्ग हर जाति का, हमे बनाव अनेक।।19।।
उत्तम मध्यम निम्न लघु, हम है वर्ग प्रकार।
उत्तम का सद बद सिक्का,ही होता साकार।।20।।
जमाने उपर जमाने, सिक्का निज आज कल।
मनुज हो रहा बावला, बना मनुजता विफल।।21।।

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

।।कुशल कौशल।।

मातु पितु चरण कमल रज,मन महु प्रतिपल धारि।
शांडिल्य कुलभूषण पर, रिझै प्रेम मुरारि।।1।। 
हंस बंस अवतंश नर ,सोहै तीनो लोक।
 जगत जननी कृपा रज, हर लें हर का शोक।।2।। 
 जगत तनय बन्दन माँ गिरिजा।कौशल किशोर प्रेरित सिरिजा।। दूधनाथ की अद्भुत कृपा।अक्षयवर है जहां कुलदीपा।।1 ।।सोहे सर तीर महिषमर्दिनी। विंध्यवासिनी जगत बंदिनी।। तिल अवली की पावनी धरा । फैलाती सुख शांति हरा भरा।।2।। अक्षय कुल भूषण श्रेष्ठ बंसा। प्रगटे क्षीर विवेकी हंसा।। तिनके तनय तीन जग  भारी। रामाक्षु गुद्दर कालि तिवारी।।3।।काली कृपा कालिका कला। कुशल किशोर कुलदीपक भला।।आज जनक दुलारी दुलारें।नित राम रस सेवक सवारें।। 4।।राजेश रसराज रसिका का। काय मन बानी जु ध्यानी का।।बहु भाव भवन भव मह भावै।जब राम रसिक बानी गावै।।5।।हम धन्य धन्य हो ही जावै। जब कुल कुशल श्रीचरित गावै।।विंध्यवासिनी विन्ध्येश्वरी।  रखें लाज नित नगरी डगरी।।6।। नहि हैं पावन गौतम नारी। किये है पावन हैं त्रिसिरारी।।अहिल्यापुर बने इक धामा।मम कुशल तह गाव जब रामा।।7।।पांचों अहिल्या मंदोदरी।कन्या तारा कुंती द्रोपदी।।राम कृष्ण संग संग आयीं।अद्भुत जश तिहु लोक पायीं।।8।।बिनववु तिनके पंकज-चरना।जानकि राधे-राधे कहना।।आजु धन्य मम कुल त्रिपुरारी।कुशल गावै जस त्रिसिरारी।।9।।करें पावन अपावन धामा।अरुप रुप लेवे जह विश्रामा।मैं मतिमंदा तू मति धामा।हर हर लो कुशल सब अज्ञाना।।10।। 
गिरिजा करै हनु बन्दन, अवधेश के आँगन।
कुशल रह कौशल किशोर,जग करै नित बंदन।।1।।
जिनकी कृपा लवलेश,मिटै सबहीं कलेश।
इष्ट इष्ट दे अवधेश,दया करै विश्वेश।।2।।

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

।। दीपावली की शुभकामना ।।

हर दिन हमारा होवे मनभावना।
दीपावली की यही शुभकामना।।
पकवानों सा पावन-मनभावन।
आपका मन-मोर होवें सुहावन।।
अहि अघ अवगुन नहि मनि गहई।
हरइ गरल दुःख दारिद दहई।।
उत्तम प्रकृत्ति रहे गरलागरल संसार।
दीप ज्योति हर बन हरे सगरो भार।।

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

।। विकल्प ।।substitute hindi poem

तलाश आज-कल जीवन में जीवन का।
           नहीं  पाये कोई मंजिल अपने नव जीवन का।।
बिजली-जीवन जल-जीवन पीने का।
          विकल्प में नित नव-नव विकल्प  ढूढ़ने का।।1।।
सज गया है चारों तरफ इस धरा पर।
          नव महाभारत स्वार्थ-शकुनि शह पर।।
शांति मिले कैसे अशांति क्षण पर।
          विकल्प भागलो किसी भी आपदा पर।।2।।
भाग लो नहीं भागलो मंत्र बनालो अब।
          आपदा-असुर असुरक्षित हो ही जायें सब।।
विकास-पथ पग चूमे झूम-झूम कब।
           विकल्प परिश्रम का सतत बना रहे जब।।3।।
घर भीतर-बाहर दस दिश हैं ताम-झाम।
            पग-पग पल-पल हैं उलझे हो बस काम।।
पलायन से बच श्रेष्ठ कर्म करो निज धाम।
           विकल्प की तलाश पूरी करेगे ही तब राम।।4।।

सोमवार, 12 अगस्त 2019

।।जानें कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।

आज का श्रम कल को लाजबाब बना दे।
एक बीज संघर्ष कर हरा-भरा तन कर दे।।
जागत-सोवत लक्ष्य कर्म स्वप्न पूर्ण कर दे।
जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।1।।
इस हेतु सूर्य सा दिन- रात चलना सिख ले।
चंद्र से सर्दी-गर्मी अहर्निश सहना सिख ले।।
तपन कैसी भी हो स्वयं को जरा तपा तो दे।
जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।2।।
भूख-प्यास त्याग एकनिष्ठ यती बन जी ले।
पावो लक्ष्य सदा शिव श्रम-कालकूट पी ले।।
कर्म की कमी कतिपय कही कोई कर न दे।
जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।3।।
बाज बन बुद्धि-चोंच तन-पंख नित शोध दे।
मैदाने जंग में अब बार-बार गिरना छोड़ दे।।
मछली की आँख देख तू सब देखना छोड़ दे।
न जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।4।।

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

वीणावादिनी

जय जय जय जय मातु शारदे,
रूप छठा पर नव निधि वार दें।
अमल धवल कमल आसन तव,
मन मयूर नाचे कर नव नव रव।।1।।
नित नूतन क्षण-क्षण परिवर्तन।
पावें जन करें जो तेरा आराधन।।
मंद बुद्धि हम पर तेरे आराधक।
वेद धारिणी माँ है मेरा उद्धारक।।2।।
जगत मातु तू  जग कल्याणी।
वर दे वर दे मातु वीणावादिनी।।
उन्नत भाल गले नव हार चक्षु विशाल।
माथे मणि मुकुट दे आभा करे निहाल।।3।।
कानन कुण्डल कर स्फटिकमणि माल।
दोउ कर विणा देती शोभा नित हर हाल।।
चतुर्भुजी फल चार दायिनी माँ वर दे।
बुद्धि ज्ञान से मन भर दे हे मातु शारदे।।4।।