शनिवार, 9 मई 2020
।।सिक्का।।coin hindi poem
गुरुवार, 23 जनवरी 2020
।।कुशल कौशल।।
गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019
।। दीपावली की शुभकामना ।।
हर दिन हमारा होवे मनभावना।
दीपावली की यही शुभकामना।।
पकवानों सा पावन-मनभावन।
आपका मन-मोर होवें सुहावन।।
अहि अघ अवगुन नहि मनि गहई।
हरइ गरल दुःख दारिद दहई।।
उत्तम प्रकृत्ति रहे गरलागरल संसार।
दीप ज्योति हर बन हरे सगरो भार।।
मंगलवार, 13 अगस्त 2019
।। विकल्प ।।substitute hindi poem
तलाश आज-कल जीवन में जीवन का।
नहीं पाये कोई मंजिल अपने नव जीवन का।।
बिजली-जीवन जल-जीवन पीने का।
विकल्प में नित नव-नव विकल्प ढूढ़ने का।।1।।
सज गया है चारों तरफ इस धरा पर।
नव महाभारत स्वार्थ-शकुनि शह पर।।
शांति मिले कैसे अशांति क्षण पर।
विकल्प भागलो किसी भी आपदा पर।।2।।
भाग लो नहीं भागलो मंत्र बनालो अब।
आपदा-असुर असुरक्षित हो ही जायें सब।।
विकास-पथ पग चूमे झूम-झूम कब।
विकल्प परिश्रम का सतत बना रहे जब।।3।।
घर भीतर-बाहर दस दिश हैं ताम-झाम।
पग-पग पल-पल हैं उलझे हो बस काम।।
पलायन से बच श्रेष्ठ कर्म करो निज धाम।
विकल्प की तलाश पूरी करेगे ही तब राम।।4।।
सोमवार, 12 अगस्त 2019
।।जानें कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।
आज का श्रम कल को लाजबाब बना दे।
एक बीज संघर्ष कर हरा-भरा तन कर दे।।
जागत-सोवत लक्ष्य कर्म स्वप्न पूर्ण कर दे।
जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।1।।
इस हेतु सूर्य सा दिन- रात चलना सिख ले।
चंद्र से सर्दी-गर्मी अहर्निश सहना सिख ले।।
तपन कैसी भी हो स्वयं को जरा तपा तो दे।
जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।2।।
भूख-प्यास त्याग एकनिष्ठ यती बन जी ले।
पावो लक्ष्य सदा शिव श्रम-कालकूट पी ले।।
कर्म की कमी कतिपय कही कोई कर न दे।
जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।3।।
बाज बन बुद्धि-चोंच तन-पंख नित शोध दे।
मैदाने जंग में अब बार-बार गिरना छोड़ दे।।
मछली की आँख देख तू सब देखना छोड़ दे।
न जाने कौन सा सुबह शाम मनभावन कर दे।।4।।
शुक्रवार, 9 अगस्त 2019
वीणावादिनी
जय जय जय जय मातु शारदे,
रूप छठा पर नव निधि वार दें।
अमल धवल कमल आसन तव,
मन मयूर नाचे कर नव नव रव।।1।।
नित नूतन क्षण-क्षण परिवर्तन।
पावें जन करें जो तेरा आराधन।।
मंद बुद्धि हम पर तेरे आराधक।
वेद धारिणी माँ है मेरा उद्धारक।।2।।
जगत मातु तू जग कल्याणी।
वर दे वर दे मातु वीणावादिनी।।
उन्नत भाल गले नव हार चक्षु विशाल।
माथे मणि मुकुट दे आभा करे निहाल।।3।।
कानन कुण्डल कर स्फटिकमणि माल।
दोउ कर विणा देती शोभा नित हर हाल।।
चतुर्भुजी फल चार दायिनी माँ वर दे।
बुद्धि ज्ञान से मन भर दे हे मातु शारदे।।4।।
आस्तिन का साँप। serpent
अब मैं भी गया हूँ भाँप।
होते है आस्तिन में साँप।।
मीरजाफ़र जयचंद तब।
अपना बन पराये अब।।
पराये हो जायें अपने जब।
अपने हो जायें पराये कब।।
सर्पेन्ट मर्चेन्ट का कमिटमेंट।
अदृश्य है शॉपिंग सेटेलमेंट।।
हर शाख पे चिपके सर्पेन्ट।
खटमल से होते है परमानेंट।।
आस्तिन के साँप
लेते पहले ही भाँप
पहुँच इनकी सब लोक।
है न कहीं इन्हें रोक टोक।।
सबको जानते
सबको मानते
सब हैं इन्हें पहचानते ।
सबका सब सम्हालते।।
रूप है इनके अनेक
हो प्रगट ये एकाएक
करते प्रहार सविवेक।
होते नहीं ये कही चेक।।
बगुला भगत
शोषण सतत
है ठाव ठाव नित कर्म रत।
देव-दानव को नमन शत-शत।।