बुधवार, 6 नवंबर 2024

✓मानस चर्चा।बाली एवं सुग्रीव की माता व अन्य कथा।

मानस चर्चा ।। बाली एवं सुग्रीव की माता व अन्य कथा।।
सखा वचन सुनि हरषे, कृपासिन्धु बल सींव ॥
कारन कवन वसह वन, मोहि कहहु सुग्रीव ॥ 

पूछहि प्रभु हँसि जानहिं ताही। महावीर मर्कट कुलमाही ॥
तव अस्थान प्रथम केहि ठामा। कहु निज मात पिता कर नामा ॥ 
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई।कहुँ आदि से उत्पति गाई ।।
ब्रह्मा नयनन कीच निकारी।ले अंगुरि भुइँ ऊपर डारी ॥
वानर एक प्रगट तह होई।चंचल बहु विरंचि बल सोई ॥
तेहिकर नाम धरा विधि जानी।ऋच्छराज तेहि सम नहिं ज्ञानी ॥
विधि पद नाय कीश अस कहई।आयसु कहा मोहिं प्रभु अहई ॥
विचरहु वन गिरिवन फल खावहु।मारहु निश्वर जे जहँ पावहु ॥
सो ब्रह्मा की आज्ञा पाई ।दक्षिण दिशा गयउ रघुराई ॥
ऋच्छराज तहँ विचरई, महावीर बलवान ॥
निश्वर पावती ते हने, शिरमें कठिन पषान ॥ 
फिरत दीख इक कुंड अनूपा * जल परछाई दीख निज रूपा ॥ 
तब कपि शोच करत मन माहीं * केहि विधि रिपु रहिहहि ह्यां आहीं ॥
ताहि देख कोपा कपि वीरा * सब दिशि फिरा कुण्डके तीरा ॥
जो जो चरित कीन्ह कपि जैसा ।सो सो चरित दीख तह तैसा ॥
गरजा कीश सोइ सो बोला *कूद परा जल माहीं डोला ॥
सो तनु पलट भई सो नारी।अति अनूप गुण रूप अपारी ॥
सुनहु उमा अति कौतुक होई *आइ बहुरि ठाढ़ी भै सोई ॥
सुरपति दृष्टि परी तेहि काला।तेहि तब बिंदु परा तेहि बाला।
मोहे भानु देखि छबि सींवा छूटा बिंदु परा तेहि ग्रीवा ॥
दोहा - इंद्र अंश बालि भयो, महावीर बलधाम ॥
दिनकर सुत दूसर भयो, तेहि सुग्रीवउ नाम ॥ 
पुनि तत्काल सुनहु रघुवीरा।नारी पलट भयो सोइ वीरा।।
तब ऋच्छराज प्रीति मन भयऊ ।हमहिं संग ले विधि पहँ गयऊ ॥
करि प्रणाम सब चरित बखाना * कह अज हरि इच्छा बलवाना ॥
तब विधि हमहिं कहा समुझाई * दक्षिण दिशा जाहु दोउ भाई ॥
किष्किन्धा तुम कर सुस्थाना।रंग भोग बहु विधि सुख नाना ॥
जो प्रभु लोक चराचर स्वामी।सो अवतरहिं नाथ बहु नामी ॥
रघुकुलमणि दशरथ सुत होई * पितु आज्ञा विचरहिं वन सोई ॥
नर लीला करिहैं विधिनाना ।पैहौ दरश होइ कल्याना ॥ ८ 
दोहा-तब हर्षे हम बंधु दोउ, सुनिकै विधिके वैन ॥
* तप जप योग न पावहीं, सो हम देखब नैन ॥ 
विधि पद वंदि चले दोउ भाई।किष्किन्धा में आये धाई ॥
बाली राज कीन्ह सुरत्राता।वन बसि दैत्य हने दोउ भ्राता ॥
मय दानव के सुत दोउ वीरा।मायावी दुंदुभि रणधीरा ॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई।विधिगति अलख जानि नहिं जाई 
आगे की कथा गोस्वामीजी सुनाते हैं 
नाथ बालि अरु मैं दोउ भाई। प्रीति रही कछु वरणि न जाई ॥१॥
मयसुत मायावी तेहि नांऊँ ।आवा सो प्रभु हमरे गांऊँ ॥२॥
।। जय श्री राम जय हनुमान।।


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