मानस चर्चा।।जाकी रही भावना जैसी।।
मन्त्रे तीर्थे द्विजे देवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ ।
यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी ॥
अर्थात् मन्त्र में, तीर्थ में, ब्राह्मण में, देवता में, ज्योतिषी में, वैद्य में और गुरु में मतलब सीधा - सच्चा यह है कि जैसी आपकी भावना होगी उसी प्रकार का फल आपको प्राप्त होगा । हमारे यहाँ कहा जाता है कि 'कंकर - कंकर में शंकर हैं।' अर्थात् प्रत्येक कण में भगवान् विद्यमान
हैं। अगर आप पत्थर में भी भगवान् की भावना भाते हो
तो वह आपके लिए भगवान् है। और अगर आपकी भावना ही नहीं है तो चाहे आप चार धाम की यात्रा कर लो। सब व्यर्थ है।
मुगल काल की बात है। बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था। उसी समय वहाँ संगीताचार्य तानसेन पधारे। बादशाह ने उनका यथोचित सम्मान किया और उनसे एक भजन प्रस्तुत करने का आग्रह किया।
संगीताचार्य ने भजन प्रस्तुत किया-
जसुदा बार - बार यों भाखै ।
है कोऊ ब्रज में हितु हमारो, चलत गोपालहिं राखै ॥
उक्त पद का अर्थ बादशाह की समझ में नहीं आया। उन्होंने दरबारियों से इसका अर्थ स्पष्ट करने को कहा। तब तानसेन ही बोले-
'जहाँपनाह' इसका अर्थ है- 'यशोदा बार-बार कहती है, क्या इस ब्रज में हमारा कोई ऐसा हितैषी है, जो गोपाल को मथुरा जाने से रोक सके।
यह सुनकर सर्वप्रथम सभा में उपस्थित अबुल फैजल फैज बोले- 'नहीं, नहीं! शायद आपको इसका अर्थ समझ में नहीं आया। इस पद्य में प्रयुक्त बार-बार का अर्थ 'रोना' है। अर्थात् यशोदा रो-रो कर कहती है। '
बीरबल बोले- 'मेरे विचार से तो बार-बार का अर्थ द्वार-द्वार है।
संयोगवश रहीम कवि भी सभा में उपस्थित थे। वे बोले- 'नहीं, नहीं, बार-बार का अर्थ बाल-बाल अर्थात् 'रोम-रोम' है। '
इतने में वहाँ उपस्थित एक ज्योतिषी महाशय उठ खड़े हुए और जोश से भरकर बोले- मेरी दृष्टि से तो इनमें से एक भी अर्थ ठीक नहीं है। वास्तव में 'बार' का अर्थ 'वार' अर्थात् दिन है, यानी यशोदा प्रतिदिन
कहती हैं । '
उक्त सभी बातें सुनकर बादशाह बड़े ही आश्चर्यचकित हो गए और सोचने लगे बड़ा ताज्जुब है कि एक ही शब्द के हर कोई अलग-अलग अर्थ कर रहा है। और वे बोले, 'यह कैसे सम्भव है कि एक ही शब्द के इतने अर्थ हों । '
यह सुनकर रहीम कवि बोले- 'जहाँपनाह! एक ही शब्द के
अनेक अर्थ होना यह कवि का कौशल है और इसे 'श्लेष' कहते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति किसी शब्द का अर्थ अपनी-अपनी परिस्थिति और चित्तवृत्ति के अनुसार लगाता है। मैं कवि हूँ और किसी भी काव्य का प्रभाव कवि के रोम-रोम पर होता है, इसलिए मैंने इसका अर्थ 'रोम-रोम' लगाया । तानसेन गायक हैं, उन्हें बार-बार राग अलापना पड़ता
है, इसलिए उन्होंने 'बार- बार' अर्थ लगाया। फैजी शायर है और उन्हें करुणा भरी शायरी सुन आँसू बहाने का अभ्यास है, अतः उन्होंने इसका अर्थ रोना लगाया। बीरबल ब्राह्मण हैं। उनको घर-घर घूमना पड़ता है, इसलिए उनके द्वारा 'द्वार-द्वार' अर्थ लगाना स्वाभाविक है। बाकी बचे
ज्योतिषी महोदय, तो उनका तो काम ही है- दिन - तिथि - ग्रह और नक्षत्रों आदि का विचार करना इसलिए उन्होंने इसका अर्थ 'दिन' लगाया।
इसीलिए कहा भी जाता है कि-
'जाकी रही भावना जैसी । '
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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