निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भगवान राम सुग्रीवजी से कहते हैं कि जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते। अर्थात् सरल मन मनुष्य ही मुझे पाता है। इस संदर्भ में मुझे एक सच्चे भक्त की कहानी, श्री राजेश्वरानंदजी रामायणी के द्वारा कही हुई याद आ रही है,इस कथा में भगवान की बड़ी विलक्षण महिमा है,
असल में भगवान का मिलना उतना कठिन नहीं है, जितना व्यक्ति का निर्मल होना,सरल होना ।सुंदर सरल स्वभाव सबसे कठिन है, इतना सरल की सरलता से विश्वास कर ले ।आइए हम आदरणीय गुरु श्रेष्ठ राजेश्वरानंदजी रामायणी की इस कथा का आनंद लेते हैं और निर्मल मन जन सो मोहि पावा को , सरल के अर्थ एवं भाव दोनों के साथ हृदयंगम करते हैं।
एक व्यक्ति था खाता खूब था और काम कुछ ना करे, कैसे
करें इतना ज्यादा खा लेता कि जहां खाए वही लुढ़क जाए,घर वाले परेशान हो गए । एक दिन घर वालों ने कहा जाओ घर से ,निकल जाओ खाते दो-तीन शेर हो और काम कुछ नहीं करते, तो वह भक्त निकल गया घर से ,बिचारा अब जाए कहां तो एक महात्मा दिखे मंदिर के बाहर, महात्मा बढ़िया मोटे ताजे तंदुरुस्त थे सोचा ए खूब खाते होंगे तभी तो बढ़िया हैं वह महात्मा जी के पास आया तब तक महात्मा जी के दो चार शिष्य और आ गए वह भी बढ़िया हट्टे कट्टे थे, अब तो यह सरल भक्त गदगद हो गया | महात्मा जी के चरणों में गिर गया कहा गुरु जी मुझे अपना चेला बना लीजिए महात्मा ने कहा ठीक है बन जाओ तुम भी, यही रहो भजन करो भक्त ने कहा गुरु जी भोजन महात्मा जी ने कहा हां भोजन वह तो बढ़िया दोनों टाइम पंगत में बैठकर पावो प्रेम से । भक्त ने कहा गुरु जी दो टाइम बस, महात्मा जी ने कहा अरे भाई चार टाइम पंगत चलती है, तुम चारों में बैठ कर खाओ कोई दिक्कत नहीं है । भक्त ने कहा गुरु जी काम क्या करना पड़ेगा ? गुरुजी मुस्कुराए बोले बेटा केवल भगवान की आरती पूजा पाठ में शाम सुबह खड़े रहना है और कोई काम नहीं है ।
अब तो भक्त प्रसन्न हो गया कि काम कुछ करना नहीं और
खाना पेट भर,खाने लगा ,रहने लगा अब उसे क्या पता कि मुसीबत यहां भी आ पड़ेगी ।
एक दिन मंदिर में सुबह से चूल्हे आदि कुछ नहीं सुलगे,
भंडारे में सब बर्तन ऐसे ही पड़े हुए हैं, वह सीधा भक्त,अब तो घबरा गया, सीधे महात्माजी के पास पहुंचा कहा गुरु जी क्या बात है- आज भंडार में कुछ नहीं बन रहा ?
तो महात्मा जी ने कहा हां तुम्हें नहीं पता क्या ?आज
एकादशी है और इस दिन मंदिर में कुछ नहीं बनता सब
निर्जला व्रत रहते हैं, भक्त ने कहा गुरु जी मैं भी रहूं! महात्मा ने कहा वह तो सबको रहना पड़ेगा क्योंकि ना कुछ बनेगा और ना मिलेगा |
भक्त ने कहा गुरु जी अगर आज हमने एकादशी का व्रत कर लिया तो कल हम द्वादशी देख ही नहीं पाएंगे, आपके इतने चेले हैं उनसे कराओ एकादशी | महात्मा जी भी उदार व्यक्ति थे उन्हें दया आ गई, कहने लगे बेटा यहां मंदिर में तो कुछ बनेगा नहीं हां तुम कच्चा सीधा लेकर नदी के किनारे पेड़ के नीचे बना कर खा लो, बना लो
लोगे, आता है भोजन बनाना ।भक्त ने कहा मरता क्या न करता, बना लेगें । महात्मा जी ने कहा जाओ भंडार में से सामान ले लो उसने ढाई सेर आटा,नमक ,आलू सब बांधा और जाने लगा, गुरु जी ने कहा बेटा अब तुम वैष्णव हो गए हो, भगवान को बिना भोग लगाए मत खाना।वह वहां पहुंचकर नदी से जल भर लाया और जैसे ही भोजन बना उसे गुरु जी की बात याद आ गई ,बिना भगवान को भोग लगाए मत खाना, बिचारा सच्चा सरल भक्त ।बुलाने लगा प्रभु को --
राजा राम आइए प्रभु राम आइए, मेरे भोजन का भोग
लगाइए।
नहीं आए भगवान ! फिर भक्त कहने लगा--
आचमनी अरघा ना आरती यहां यही मेहमानी।
सूखी रोटी पावो प्रेम से पियो नदी का पानी । फिर वही धुन शुरू किया
राजा राम आइए, प्रभु राम आइए, मेरे भोजन का, भोग
लगाइए ।
लेकिन भगवान फिर भी नहीं आए ! तब वह बोला-
पूरी और पकौड़ी भगवन सेवक ने नही बनाई।
और मिठाई तो है ही नहीं, फिर भी भोग लगाओ भाई।
इतने पर भी जब प्रभु ना आए तो वह सच्चा सरल भक्त, एक ऐसी बात बोल दी कि ठाकुर जी प्रसन्न हो गए, उसने कहा-मैं समझ गया भगवान आप क्यों नहीं आ रहे हैं ।
आप सोच रहे होंगे कि यह रुखा सुखा भोजन और नदी का पानी कौन पिए, मंदिर में छप्पन भोग मिलेगा तो इस धोखे में मत रहना प्रभु, वहां से तो जान बचाकर हम ही आए हैं। ध्यान रखना - भूल करोगे यदि तज दोगे भोजन रूखे सूखे। एकादशी आज मंदिर में बैठे रहोगे भूखे ।
राजा राम आइए प्रभु राम आइए मेरे भोजन का भोग
लगाइए ।
इस सरलता से भगवान प्रकट हो गए और वह भी बड़े
कौतुकी अकेले नहीं आए ।
सीता समारोपित वाम भागम ।
सीता जी के साथ प्रकट हुए अब तो भक्त हैरान, दो भगवान को देखकर एक बार उनकी तरफ देखता तो दूसरी तरफ रोटियों की तरफ, भगवान श्रीराम मुस्कुराए बोले क्या हुआ ? भक्त ने कहा कुछ नहीं प्रभु आइए आप आसन ग्रहण कीजिए, आप आज हमारी थोड़ी बहुत तो एकादशी करा ही दोगे,प्रेम से प्रभु को प्रसाद खिलाया स्वयं पाया और बार-बार प्रभु को प्रणाम करे और कहे भगवान आप लगते बड़े सुंदर हो लेकिन बुलाने पर जल्दी आ जाया करो देरी मत किया करो |
प्रभु ने कहा ठीक है ।अब प्रभु अंतर्ध्यान हो गए, यहां जब
दूसरी एकादशी आई भक्त ने कहा गुरु जी वहां तो दो
भगवान आते हैं, इतने सीधा में काम नहीं बनेगा और बढ़वा दो गुरुजी ने सोचा बिचारा भूखा रहा होगा उस बार और बढ़वा दिया आज तीन सेर आटा ,नमक, आलू आदि लिया ,जंगल में प्रसाद बना, भक्त ने पुकारा ।
प्रभु राम आइए, सीता राम आइए, मेरे भोजन का भोग
लगाइए ।
जो भक्त ने पुकारा भगवान तुरंत प्रकट हो गए जैसे प्रतीक्षा ही कर रहे थे लेकिन--
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
भगवान श्री राम सीता और लक्ष्मण प्रकट हुए, जो इसने
देखा तीनों को प्रणाम तो कर लिया, लेकिन फिर देखे रोटी
की तरफ फिर इनकी तरफ, फिर माथा में हाथ रखा ।
भगवान ने कहा क्या हुआ ? भक्त ने कहा कुछ नहीं कुछ नहीं, अब जो होगा सो होगा आप तो प्रसाद पावो, भगवान ने कहा बात क्या है- बोला कुछ नहीं पहले दिन हमने सोचा कि एक भगवान आएंगे, तो दो आ गए ,अब दो का इंतजाम किया तो आज तीन आ गए ।
एक बात पूछूं भगवान ,भगवान ने कहा पूंछो उसने कहा यह आपके साथ कौन हैं, भगवान ने कहा यह हमारे भाई हैं छोटे भाई हैं, भक्त ने कहा अच्छा भाई हैं, सगे भाई हैं या ऐसे लाए, जोरे के, भगवान ने कहा नहीं नहीं यह हमारे सगे भाई हैं । भक्त ने कहा अच्छा सगे भाई हैं ठीक है लेकिन नाराज ना होना प्रभु, एक बात कहूं हमने ठाकुर जी के भोग का ठेका लिया है कि ठाकुर जी के खानदान भर का ।
भगवान खिलखिला कर हंसे, सीता जी भी मुस्कुरायी,
लक्ष्मण जी सोचने लगे भगवान अच्छी जगह ले आए हैं।
आते ही क्या स्वागत हो रहा है।
भक्त ने कहा कोई बात नहीं आप हमें अच्छे बहुत लगते हैं। आप प्रसाद पायें, तीनों को पवाया जो बचा खुद पाया।
भगवान जब जाने लगे बोला एक बात बताओ, बोले क्या,
अगली एकादशी को कितने आओगे अभी से बता दो ।
भगवान ने कहा आ जाएंगे और अंतर्ध्यान हो गए अब भक्त परेशान, आश्रम लौटा दिन गुजरे फिर एकादशी आई। महंत जी बोले जाओ उसने कहा जाना ही पड़ेगा यहां तो कुछ नहीं मिलेगा, वहां अलग परेशानी |
गुरुजी ने कहा वहां क्या परेशानी हो गई गुरु जी से बोला
आपने बोला था एक भगवान आएंगे वहां तो दिन प्रतिदिन
बढ़ते ही जाते हैं और आज पता नहीं कितने आएंगे कम से कम तेरह शेर आटा दो और उसी के हिसाब से गुड, आलू ,मिर्च ,मसाला, रामरस ,घी सब दो गुरुजी।
गुरु जी सोचने लगे कि इतने आटे का क्या करेगा खा तो नहीं , पाएगा जरूर बेंचता होगा, हम पीछे से जाकर पता लगाएंगे। गुरुजी ने समान दिला दिया ,बोले जाओ वह गया पूरी गठरी सिर पर लादकर ले गया। रखा पेड़ के नीचे गठरी और समान। आज उसने चतुराई की भोजन बनाया ही नहीं, सोचने लगा,पहले बुला कर देख लूं कितने लोग आएंगे, अब भोजन बिना बनाए लगा पुकारने--
राजा राम आइए ,सीता राम आइए, लक्ष्मण राम आइए,
मेरे भोजन का भोग लगाइए ।
जो प्रार्थना की भक्त ने ,मानो भगवान प्रतीक्षा ही कर रहे थे ।
बैठ बिपिन में भक्त ने, जब कीन्हीं प्रेम पुकार।
तो कांछन में प्रगट भयो, दिव्य राम दरबार ।
राम जी का पूरा का पूरा दरबार ही प्रगट हुआ- श्री सीताराम जी,भरतजी,लक्ष्मणजी, शत्रुघ्नजी, हनुमानजी।
इतने जनों को देखा, चरणों में प्रणाम किया, कहा जय हो, जय हो आपकी, आज तो हद हो गई इतने, हर एकादशी को एक-एक बढ़ते थे आज इतने ।लेकिन मेरी भी एक प्रार्थना सुनो !
बोले क्या ? उसने बोला मैंने भोजन ही नहीं बनाया। वह रखा है समान,अपना बनाओ और पाओ, तो तुम क्यों नहीं बना रहे हो, तो बोला जब हमें मिलना ही नहीं, तो काहे को भोजन बनायें ।
मोते नहीं बनत बनावत भोजन-मोते नहीं बनत बनावत भोजन।आप बनाबहू अपने ,बहुत लोगन संग आयो। बनाओ और पावों।मोते नहीं बनत बनावत भोजन।
यह भोजन मुझसे नहीं बनता आप बनाओ-- और बोला_
प्रथम दिवस भोजन के हित आसन जब मैंने लगाई,
उदर ना मैं भर सक्यो सीय जब सन्मुख आई।
फिर बिनीत आए भाई पर भाई।
निराहार ही रहत आज मोहीं परत दिखाई |
अब तो भूखे ही रहना पड़ेगा-- और बोला_
तुम नहीं तजत सुबान आपनी, हम केते समझाएं ।
श्री हनुमान जी की ओर देखकर बोला--
नर नारिन की कौन कहे, एक बानरहूं संग लाए। मोतें
नहीं बनत बनाए भोजन , इसलिए आप बनाओ । भगवान ने कहा बनाओ भोजन, भक्त नाराज है तो क्या करोगे ।
श्री भरत जी भंडारी बनाने लगे।
चुन के लकड़ी लखनलाल लाने लगे,
श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे ।
पोंछते पूंछ से आञ्जनेय चौका को,
पीछे हाथों से चौका लगाने लगे ।
श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे ।
चौक, चूल्हे इधर-उधर, शत्रुघ्न साग भाजी ,अमनिया कराने लगे ।
श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे ।
भरत जी भंडारे बनाने लगे, लक्ष्मण जी लकडी लाने लगे,
अमनिया शत्रुघ्न जी करने लगे, हनुमान जी चौका साफ
सफाई करने लगे । भक्त पेड़ के नीचे आंख बंद करके बैठा हुआ है, भगवान ने कहा आंख बंद काहे को किए हो खोलो, तो बोला काहे को खोले जब हमें खाने को मिलेगा ही नहीं तो दूसरे को खाते हुए भी तो नहीं देख सकते ।
अब जिस रसोई में सीता मैया बैठी हों वहां बड़े-बड़े सिद्ध
संत प्रकट होने लगे, मैया हमको भी प्रसाद हमको भी प्रसाद मिले । सब प्रगट होने लगे उनकी आवाज सुनी आंख खोली जो देखा इधर भी महात्मा उधर भी सो माथा पीट कर बोला थोड़ा बहुत मिलता भी तो यह नहीं मिलने देंगे ।
पा के संकेत शक्ति ,जत्थे वहां अष्ट सिद्धि नव निधि
आने लगे ।
श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे ।
अब गुरुदेव आए कि कर क्या रहा है चेला, तो देखा कि चेला आंख बंद किए बैठा है और सामने सामग्री रखी है, आंसू आंख से बह रहे हैं ।
गुरु जी ने कहा बेटा भोजन नहीं बनाया वह चरणों में गिर
गया बोला आ गए गुरु जी देखो आपने कितने भगवान लगा दिए मेरे पीछे, मंदिर में तो नहीं हुई पर यहां एकादशी पूरी हो रही है। और गुरु जी को कोई दिखे नहीं तो भगवान से बोला_
हमारे गुरु जी को भी दिखो नहीं तो यह सब हमें झूठा मानेंगे, भगवान बोले उन्हें नहीं दिखेंगे,बोला क्यों हमारे गुरुदेव तो हमसे अधिक योग्य हैं,भगवान बोले तुम्हारे गुरुदेव तुमसे भी योग्य हैं, लेकिन तुम्हारे जैसे सरल नहीं हैं। और हम सरल को मिलते हैं ।गुरुजी ने पूछा क्या कह रहे हैं ,भक्त ने कहा भगवान कहते हैं सरल को मिलते हैं आप सरल नहीं हो ! गुरुजी रोने लगे,गुरुजी सरल तो नहीं थे तरल हो गए, आंसू बरसने लगे और जब तरल होकर रोने लगे, तो भगवान प्रकट हो गए गुरु जी ने दर्शन किए।
गुरु जी ने एक ही बात कही कि हम सदा से एक ही बात
सुनते आए हैं, वह यह कि गुरु के कारण शिष्य कों भगवान मिलते हैं और आज शिष्य के कारण गुरु को भगवान मिले हैं।
तो यह है सरलता, सरल शब्द की महिमा।वास्तव में अगर हम माने तो सरल शब्द के अक्षरों का अर्थ भी है,
स- माने सीता जी |
र-माने रामजी |
ल-माने लक्ष्मण जी ।
ये तीनों जिसके हृदय में बसे हैं वही सरल है ,वही निर्मल है और उसी को ही भगवान मिलते हैं ,इसी आशा से कि हमें भी भगवान मिलेंगे ही हम प्रार्थना करते हैं कि _
अनुज जानकी सहित प्रभु चाप बान धर राम।
मन हिय गगन इंदु इव बसहु सदा निहकाम॥
जय श्री राम जय हनुमान
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