सर्बस दान दीन्ह सब काहूँ । जेहिं पावा राखा नहिं ताहूँ ॥
- सबने सर्वस्वदान दिया, जिसने पाया उसने भी नहीं रखा। इस भाँति सम्पत्तिका हेर-फेर अवध में हो गया। किसी समय सोमवती अमावस्या लगी, सब मुनियोंकी इच्छा हुई कि गोदान करें। मुनि सौ थे और एक ही के पास गौ थी। जिसके पास गौ थी उसने किसीको दान दिया, उसने भी दान कर दिया । इस भाँति वह गौ दान होती
गयी । अन्तमें फिर वह उसी मुनिके पास पहुँच गयी जिसकी पहले थी और गोदानका फल सबको हो गया। लालच किसीको नहीं और देनेकी इच्छा सबको। ऐसी अवस्थामें सम्पत्ति घूम-फिरकर जहाँ-की-तहाँ आ जाती है
और सर्वस्व दान के बाद भी सर्वस्व अपना ही रहता है।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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