शुक्रवार, 24 जून 2022

√।।जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना पर सत्सङ्ग का प्रभाव।।।

  
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥  (1)मति-बुद्धि-सुमति(2)कीरति-कीर्ति-यश,(3)गति-सद्गति-मुक्ति,(4)भूति-विभूति-गौरवपूर्ण स्वरुप(ऐश्वर्य) और(5) भलाई-कल्याण-सौभाग्य इन पाँच अति महत्वपूर्ण चीजों की या यों कहें संसार में सर्वस्व की प्राप्ति कैसे और किसके प्रभाव से हो सकती है ----
 जानते है रामचरितमानस की इन पंक्तियों के आधार पर:-
जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।।
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
हम तो मनुष्य है यहाँ तो जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।अर्थात सबकी बात ही कह दी गयी है- इन सभी को जानने के बाद हम मूल प्रश्न का जबाब स्वयं ही पा जायेगे देखते है--
1-(अ)जलचर -जड़- मैनाक पर सत्सङ्ग का प्रभाव
पुराणों के अनुसार इन्द्र से भयभीत मैनाक की रक्षा पवनदेव ने उसे समुद्र अर्थात जल को सौप कर किया था ।अब पवनदेव और समुद्रदेव के सत्सङ्ग के प्रभाव से उसने जब  हनुमानजी माता सीता  की खोज में बिना विश्राम किए आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिए निवेदन किया। उसकी बातें सुनकर हनुमानजी ने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया । इस प्रकार सत्सङ्ग के प्रभाव से मैनाक पर प्रभु कृपा हुई।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥

1-(आ)जलचर-चेतन 
मकरी पर हनुमानजी के संग से,ग्राह पर गजेन्द्र के संग से,राघवमत्स्य पर कौशल्याजी के संग से प्रभु कृपा हुई।
और तो और सेतु बन्द के समय का दृश्य देखें  जब सभी जलचर कृत कृत्य हो गए-----
देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा।
प्रगट भए सब जलचर बृन्दा।।
2-(अ)थलचर-जड़-बृक्ष वन,पर्वत,तृण आदि पर
श्रीरामजी के संग का प्रभाव तो देखते ही बनता है--
बृक्ष- सब तरु फरे रामहित लागी।
              रितु अरु कुरितु काल गति त्यागी।।
वन- मंगल रूप भयउ बन तबते।
      कीन्ह निवास रमापति जबसे।।
भूमि वन पंथ पहाड़-
धन्य भूमि बन पंथ पहारा।जहँ जहँ नाथ पाऊँ तुम्ह धारा।।
गुरु अगस्त्य के संग से विंध्याचल को परम पद मिला-
परसि चरन रज अचर सुखारी।भये परम पद के अधिकारी।।
2-(आ)थलचर-चेतन-शबरी,कोल-किरात,भील,पशु,वानर,मानव-विभीषण, शुक आदि पर सत्सङ्ग का प्रभाव अद्भुत है-- 
मतंग ऋषि के संग से शबरी का कल्याण और सद्गति सब जानते ही हैं।
श्री राम जी के संग से कोल-किरात वन्दनीय हो गये--
करि केहरि कपि कोल कुरंगा।बिगत बैर बिचरहिं सब संगा।।
धन्य बिहग मृग काननचारी।सफल जनम भये तुम्हहि निहारी।।
सुग्रीव,विभीषण, शुक को संसार जानता ही है कि सत्संग के प्रभाव से इन्हे कितनी कीर्ति आदि की प्राप्ति हुई।
3-नभचर(अ) जड़ की बात करें
 मेघ, वायु आदि पर  भक्तराज श्रीभरतजी के संग का प्रभाव है--- कि
किएँ जाहिं छाया जलद सुखद बहइ बर बात।
तस मगु भयउ न राम कहँ जस भा भरतहि जात॥

3-नभचर(आ) चेतन की बात जाननी है तो
कागभुशुण्डिजी से भाग्यशाली कौन जिन पर विप्र और लोमश ऋषि के संग का प्रभाव रहा यही नहीं पंक्षीराज गरुण पर हुवे सत्सङ्ग के प्रभाव को देखें,इन दोनों को अगर छोड़ दे और जटायु तथा सम्पाति पर जो सत्सङ्ग के प्रभाव से ईश्वर कृपा हुई उस पर नजर डाले तो हमें  सहज ही आनन्द प्राप्त होता है।
अगर हम इनको  दूसरे प्रकार से देखें तो हमें और भी आनन्द मिलेगा ही जैसे-जलचर थलचर नभचर जड़ चेतन को क्रम से मिलाते हैं-मति कीरति गति भूति भलाई तो पाते हैं कि यहाँ यथासंख्य क्रमालंकार है
 (1)जहाँ जलचर राघवमत्स्य को माता कौशल्या के संग से मति अर्थात सुमति प्राप्त हुई।
(2) थलचर गजेन्द्र को कीरति मिली और वे अपने गजेन्द्रमोक्ष स्त्रोत्र से अमर हो गये
(3)नभचर जटायु को गति अर्थात सद्गति मिली
(4)जड़ माताअहिल्या जो पत्थर बनी थी उनको भूति मिली अर्थात देवी अहिल्या अपने पति की विभूति को पा गई
(5) चेतन तो असंख्य हैं- उदाहरण के लिए श्री सुग्रीव, जामवन्तजी,हनुमानजी आदि को इतनी भलाई मिली कि स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम परम पिता परमेश्वर श्री राम उनके ऋणी हो गये।
इस प्रकार की पञ्च बिभूति अर्थात संसार में सर्वस्व की प्राप्ति  कैसे?वो सब यही स्पष्ट कर दिया है बाबाजी ने-सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥अर्थात सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है।
और तो और
जो आपन चाहै कल्याना। 
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं। 
तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥
अर्थात अगर हम अपना कल्याण चाहते हैं, पंच विभूति  सुजसु सुमति सुभ गति सुख या दूसरे शब्दों में मति कीरति गति भूति भलाई  चाहते है तो हमें 
सो परनारि लिलार गोसाईं। 
तजउ चउथि के चंद कि नाईं।। 
अर्थात पर स्त्री पर कुदृष्टि डालना छोड़ना ही होगा अन्यथा हमारी क्या गति होगी वह भी देख लें--- 
बुधि बल सील सत्य सब मीना।
बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना।।
कामी पुरुष का रावण के समान ऊपर बतायी गयी सभी विभूतियों सहित सर्वस्व  नाश हो जाता है। अगर हमें सभी विभूतियों को प्राप्त करना है और उन्हें बनाये रखना है तो हमें सत्सङ्ग करना होगा क्योंकि
बिनु सतसंग बिबेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। 
सोई फल सिधि सब साधन फूला
आइये हम प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करें कि हमें उत्तम सत्संग की प्राप्ति हो और हमारे उनकी कृपा  ऊपर सदा बनी रहे ।
                 ।।जय श्रीराम।।




शनिवार, 28 मई 2022

√।।तोता के पर्यायवाची।।

          ।।तोता के पर्यायवाची।।
           (दो सोरठों में पंद्रह पर्याय)
मंजुपाठक मिट्ठू, सुग्गा शुक दाड़िमप्रिय।
प्रियदर्शन पोपट,सुआ सुअटा रक्ततुण्ड।।1।। 
वक्रनक्र पैरेट (Parrot),रक्तचंचु भी हैं  कीर।
तोता के पर्याय ,  जानो  मेरे  तू वीर।।2।।
              ।।धन्यवाद।।

शुक्रवार, 27 मई 2022

√।।मोर के पर्यायवाची।।

           ।।मोर के पर्यायवाची।।
          {दो दोहों में बीस पर्याय}
शिखी शिखण्डी शिखावल,बर्हि हरि सितापांग।
शिवसुतवाहन कलापी, नीलकंठ   सारंग।।1।।
केकी मोर मेहप्रिय, सर्पकाल भुजगारि।
ध्वजी मयूर नर्तकप्रिय,पीकॉक(peacock)पन्नगारि।2।
इन दोनों दोहो के सभी बीस पद मोर के पर्याय हैं।
               ।। धन्यवाद।।   

बुधवार, 11 मई 2022

।।या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते॥

काकः पद्म वने रतिं न कुरुते हंसो न कूपोदके।
मूर्ख: पंडितसङ्गमे न रमते दासो न सिंहासने।।
दुष्टः सज्जनसङ्गमं न सहते नीचं जनं सेवते।या
कुस्त्री सज्जनसङ्गमे न रमते नीचं जनं सेवते।
या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते॥
              ।। धन्यवाद।।

√मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥

मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
संत समाज  मुद मंगलमय है, जो जग में चलता-फिरता तीर्थराज प्रयाग है।
   ध्यान रहे साधु समाज नहीं संत समाज,साधु वह जो भगवान को प्राप्त करने का साधन करता है भगवान को अभी प्राप्त नहीं किया है, संत वह जो भगवान को प्राप्त कर चुका है। कहीं- कहीं साधु - संत पर्याय भी होते है।मूलतः दोनों भगवद्भक्त ही है।
मुद= मानसिक आनन्द।
मंगल= बाहरी आनन्द,प्रसिद्ध उत्सव आदि का आनन्द।
जंगम तीरथराजू=तीर्थ राज प्रयाग जंगम है अचल है जहाँ पर जाने के बाद मुद-मंगल मिलता है लेकिन संत समाज चल है जो लोगों के पास जा जाकर उन्हें सभी प्रकार का आनन्द देता है लोगों का कल्याण करता है। तीर्थराज प्रयाग की जो-जो विशेषताएं है वे सभी संत समागम में हैं।गोस्वामी तुलसीदासजी ने कितना  सुंदर चित्रण सांग रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया है --
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा(गंगा)
सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥ ( सरस्वती)
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। 
करम कथा रबिनंदनि बरनी॥ (यमुना)
हरि हर कथा बिराजति बेनी।  (त्रिबेनी)
सुनत सकल मुद मंगल देनी॥ (मुद मंगल )
बटु बिस्वास अचल निज धरमा।( अक्षय वट)
तीरथराज समाज सुकरमा॥ (तीर्थ राज प्रयाग)
 अतः ऐसे संतो का हमे हमेशा आदर-सम्मान करना चाहिए और इनके सत्सङ्ग से तीर्थराज प्रयाग सा सारा आनन्द-कल्याण प्राप्त चाहिए।जय श्रीराम जय हनुमान।
                   ।।धन्यवाद।।

√कामदेव के पर्यायवाची

        ।।  कामदेव के पर्यायवाची ।।
         { 6 सोरठों में 58 पर्याय } 
वसंतबंधु झषांक ,झषकेतु रतिनाथ मदन।
रतिनायक रतिकांत , रतिनाह रतिराज मयन।।1।।
अनन्यज अंगहीन , वसंतसखा आत्मजात।
मनोभू मकरध्वज,  मधुसख मनसिज मनजात।।2।।
दर्पक काम मनोज, पुष्पधनु शंबरारि स्मर।
आत्मज अतनु अदेह ,क्यूपिड(cupid)रतिप्रिय रतिवर।।3।
अशरीर  कुसुमबाण ,रतिपति मन्मथ पंचशर।
आत्मभू पुष्पायुध, रतिरमण मार पुष्पशर।।4।।
प्रेमदेव प्रद्युम्न, पुष्पधन्वा पुष्पकेतु
पुष्पेषु पुष्पचाप , मीनकेतन मीनकेतु।।5।।
कुसुमायुध कंदर्प, अनंग अंगज असमशर।।
अनंगी कामदेव, कुसुमधन्वा व कुसुमशर।।6।।
                 ।।। धन्यवाद ।।। 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

Who is Brahman,ब्राह्मण कौन राम से परशुराम श्रेष्ठ कैसे मानस चर्चा

।।Who is Brahman,ब्राह्मण कौन? राम से परशुराम श्रेष्ठ कैसे, मानस चर्चा " देव   एकु   गुनु  धनुष हमारें।
नव गुन  परम पुनीत तुम्हारें"॥
     ब्राह्मण और ब्राह्मण के गुणों  को जानने के लिए  हम 
मानस में प्रभु श्रीरामजी ने जो भगवान श्रीपरशुराम जी से कहा उन पंक्तियों पर चर्चा करते हैं जो बहुत ही प्रसिद्ध हैं।
देव   एकु   गुनु  धनुष हमारें।
नव गुन  परम पुनीत तुम्हारें॥
सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। 
छमहु   बिप्र  अपराध  हमारे॥
      हे देव ! हम क्षत्रिय हैं हमारे पास एक ही गुण अर्थात धनुष ही है  धनुष की एक ढोरी/सूत्र की ओर संकेत जो पुनीत है पर ,आप ब्राह्मण हैं आप में परम पवित्र 9 गुण हैं।यहाँ यज्ञोपवीत के नौ सूत्रों की ओर संकेत जो परम पुनीत हैं क्यो, क्योंकि इसके हर सूत्र में एक-एक देवता वास करते हैं और तो और जो तीन  सूत्र/धागें साफ-साफ दिखते हैं वे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं और इनके अंतर निहित 3×3=9 सूत्रों में जो 9 देव वास करते हैं उन्हें देखें-
ओंकारः प्रथमे सूत्रे द्वितीयेअग्निः प्रकीर्तितः।
तृतीये कश्यपश्चैव चतुर्थे सोम एव च।
पञ्चमे पितृदेवाश्च षष्ठे चैव प्रजापतिः।
सप्तमे वासुदेवः स्यादष्टमे रविरेव च।
नवमे सर्व देवास्तु  इत्यादि संयोगात्।।
अतः हम तो सब प्रकार से आपसे हारे हैं। हे विप्र! हमारे अपराधों को क्षमा कीजिए। यहाँ हमें प्रसंगवश 
यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।
और यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।
को भी अपने जीवन मे उतार लेना चाहिए।
आखिर ये नव गुन जो परम पुनीत हैं वे कौन-कौन हैं उनको तो हमें जानना ही चाहिए।आइये इस श्लोक को देखते हैं-
ऋजुस्तपस्वी संतुष्टः शुचिः दान्तो जितेन्द्रियः।
दाता विद्वान दयालुश्च ब्राह्मणो  नवभिर्गुणैः   ।। 
ब्राह्मण
1-ऋजु: = सरल हो ।
2-तपस्वी = तप करनेवाला हो। 
3-संतुष्ट:= मेहनत की कमाई पर  सन्तुष्ट रहनेवाला हो ।
4-शुचिः=शुद्ध,पवित्र,उज्ज्वल, योग्य हो।
5-दान्तो=संयमी, मन को वश में रखने वाला हो।
6-जितेन्द्रियः = इन्द्रियों को वश में रखनेवाला हो।
7-दाता= दान करनेवाला हो।
8-विद्वान= विद्या वान हो, अपने विषय में पारंगत हो, पांडित्य हासिल किया हो। 
9-दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हो।     
  श्रीमद् भगवतगीता  में भी ब्राह्मण के 9 गुण/कर्म इस प्रकार बताए गये हैं-
शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च ।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।
(1)  शमः– शान्तिप्रियता    (2)   दमः– आत्मसंय
 (3)   तपः– तपस्या;  तप- तपस्या-श्रम करना तपस्या करना किसके लिए लक्ष्य प्राप्ति के लिए जो हमारा सबसे ताकतवर पक्ष है तभी तो गोस्वामीजी ने लिखा- तपबल बिप्र सदा बरिआरा। और भी देखें- तप अधार सब सृष्टि भवानी।  (4)शौचं - शुद्धता- पवित्रता-बाहर और भीतर से शुद्ध रहना, (5)  क्षान्तिः– सहिष्णुता (6) आर्जवम्- सत्यनिष्ठा-शरीर, मन आदि में सरलता रखना,(7) ज्ञानं-ज्ञान- वेद शास्त्र आदि का ज्ञान होना,(8) विज्ञानं-विज्ञान- विशेष ज्ञान भी अलग से होना ही चाहिये (9)  आस्तिक्यम्– धार्मिकता-   आस्तिकता - परमात्मा वेद आदि में आस्था रखना यह सब ब्राह्मणों के स्वभाविक कर्म हैं।
 श्लोक में आये "ब्रह्म कर्म स्वभावजम्" के अनुसार ये सब ब्राह्मण के स्वभाव से उत्पन्न   स्वाभाविक कर्म हैं ।  स्वभाव के कर्म हमारे गुण बन जाते हैं। अतः हमें अपने कर्म पथ पर ही रहना है क्योंकि work is worship -कर्म ही पूजा है।
यहाँ हमारे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण गुण की बात भी प्रभु श्रीराम करते है-छमहु   बिप्र  अपराध  हमारे- वह है हमारा दसवाँ और सबसे महत्त्वपूर्ण गुण क्षमा, क्षमा कौन कर सकता है? देखें राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकरजी की पंक्तियों को-
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।

  हमें यह भी सदा ध्यान रखना है कि-
देवाधीनाजगत सर्वं , मन्त्राधीनाश्च  देवता:। 
ते मंत्रा: ब्राह्मणाधीना: , तस्माद्  ब्राह्मण देवता:।। 
अर्थात देवताओं के अधीन संसार, मंत्रों के अधीन देवता और ब्राह्मणों के अधीन मंत्र  होते हैं।अतः मन्त्रों को जानने वाले ब्राह्मण देवता ही हैं। तभी तो-
विश्वामित्रजी को वशिष्ठजी से हारने के बाद स्वीकार ही करना पड़ा  कि-
धिग्बलं क्षत्रिय बलं ,  ब्रह्म तेजो बलम बलम् ।
एकेन ब्रह्म दण्डेन  ,   सर्वास्त्राणि   हतानि मे ।। 
इस श्लोक में भी गुण से हारे ; त्याग, तपस्या, गायत्री  के बल से  हारे और आज  हम  उसी को त्यागते जा रहे हैं। यह बात हमें जानना ही चाहिए कि- 
 विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या।
 वेदा: शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् l।
 तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं।
 छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ll
अर्थात ब्राह्मण एक ऐसे वृक्ष के समान हैं जिसका मूल (जड़), सन्ध्या (गायत्री मन्त्र का जाप) करना है, चारों वेद उसकी शाखायें हैं, तथा  वैदिक धर्म के  आचार विचार का पालन करना उसके पत्तों के समान हैं । अतः प्रत्येक ब्राह्मण का यह कर्तव्य है कि वह सन्ध्या रूपी मूल गायत्री मन्त्र'ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्' का नित्य जाप करे जिससे उसका मूल सुरक्षित रहे तो स्वयं ब्राह्मण-वृक्ष सुरक्षित रहेगा इस हेतु सभी ब्राह्मण बंधुओं को रहीम का दोहा
 एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
 रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥ 
को ध्यान में रखते हुवे अपने लिए ही सही गायत्री मंत्र का जाप तो करना ही चाहिये जिससे स्वयं के साथ-साथ,अपनो की,सबकी रक्षा हो। इसके साथ ही साथ हमें भगवान परशुराम को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुवे प्रभु श्रीराम के इस कथन -
 देव   एकु   गुनु  धनुष हमारें।
नव गुन  परम पुनीत तुम्हारें॥
सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। 
छमहु   बिप्र  अपराध  हमारे॥  को  चरितार्थ करना चाहिए। आप सभी को धन्यवाद।
।।जय श्रीराम जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान।।