संत समाज मुद मंगलमय है, जो जग में चलता-फिरता तीर्थराज प्रयाग है।
ध्यान रहे साधु समाज नहीं संत समाज,साधु वह जो भगवान को प्राप्त करने का साधन करता है भगवान को अभी प्राप्त नहीं किया है, संत वह जो भगवान को प्राप्त कर चुका है। कहीं- कहीं साधु - संत पर्याय भी होते है।मूलतः दोनों भगवद्भक्त ही है।
मुद= मानसिक आनन्द।
मंगल= बाहरी आनन्द,प्रसिद्ध उत्सव आदि का आनन्द।
जंगम तीरथराजू=तीर्थ राज प्रयाग जंगम है अचल है जहाँ पर जाने के बाद मुद-मंगल मिलता है लेकिन संत समाज चल है जो लोगों के पास जा जाकर उन्हें सभी प्रकार का आनन्द देता है लोगों का कल्याण करता है। तीर्थराज प्रयाग की जो-जो विशेषताएं है वे सभी संत समागम में हैं।गोस्वामी तुलसीदासजी ने कितना सुंदर चित्रण सांग रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया है --
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। (गंगा)
सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥ ( सरस्वती)
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी।
करम कथा रबिनंदनि बरनी॥ (यमुना)
हरि हर कथा बिराजति बेनी। (त्रिबेनी)
हरि हर कथा बिराजति बेनी। (त्रिबेनी)
सुनत सकल मुद मंगल देनी॥ (मुद मंगल )
बटु बिस्वास अचल निज धरमा।( अक्षय वट)
तीरथराज समाज सुकरमा॥ (तीर्थ राज प्रयाग)
अतः ऐसे संतो का हमे हमेशा आदर-सम्मान करना चाहिए और इनके सत्सङ्ग से तीर्थराज प्रयाग सा सारा आनन्द-कल्याण प्राप्त चाहिए।जय श्रीराम जय हनुमान।
।।धन्यवाद।।
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