सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे।
(2) वृत्यानुप्रास अलंकार
जब काव्य में एक या अनेक वर्णों की एक से अधिक बार आवृत्ति (कम से कम तीन या तीन से अधिक बार आयें) होती है तो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :-
1. रघुनंद आनंद कंद कौसल चंद दशरथ नंदनम्।
प्रस्तुत पद में ’अंद (न्द)’ वर्णों का पाँच जगह प्रयोग हुआ है, इसलिए यहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार है।अन्य उदाहरण भी देखें--
2-बिघन बिदारण बिरद बर, बारन बदन बिकास।
बर दे बहु बाढ़े बिसद,बाणी बुद्धि बिलास।।
3-कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है।
कहे पद्माकर परागन में पौनहू में
पानन में पीक में पलासन पगंत है।।
द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में
देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगरयो बसंत है।।
जब काव्य में एक ही उच्चारण स्थान वाले वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है तबश्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है। यह अनुप्रास सहृदय काव्य रसिकों को सुनने में अत्यंत प्रिय लगता है, इसलिए भी इसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं। उदाहरण:-
1-तुलसिदास सीदत निसदिन देखत तुम्हारि निठुराई।
प्रस्तुत पद में दन्त्य वर्णों का पास-पास अनेक बार प्रयोग हुआ है, अतएव यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार है।अन्य उदाहरण भी देखें--
2-तेही निसि सीता पहिं जाई।
त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई॥
3-दिनान्त था थे दिननाथ डूबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
जब काव्य में एक शब्द या एक वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती हैऔर उनके अर्थ एक ही रहते हैं परन्तु अन्य पद के साथ अन्वय करते ही अभिप्राय भिन्न रूप में प्रकट होते है तब वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।लाट देश(आधुनिक दक्षिण गुजरात) के लोगों को अधिक प्रिय होने के कारण इसे लाटानुप्रास अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण:-
1-वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे।
अन्य उदाहरण भी देखें--
2-पूत सपूत तो क्यों धन संचै।
पूत कपूत तो क्यों धन संचै।।
3- राम हृदय जाके नहि, बिपति सुमंगल ताहि।
राम हृदय जाके, नहि बिपति सुमंगल ताहि।।
4-तीरथ व्रत साधन कहा, जो निसिदिन हरिगान।
तीरथ व्रत साधन कहा, बिन निसिदिन हरिगान।।
5-मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी।
(5) अन्त्यानुप्रास अलंकार
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
3-धीरज धरम मित्र अरु नारी।
आपदकाल परखिए चारी।।
4-गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
नयन अमिय दृग दोष बिभंजन।।
कई बार कई अनुप्रास एक साथ होते हैं।जैसे:-