सोमवार, 21 मार्च 2022

√अनुष्टुप्छन्दः/अनुष्टुप छन्द (संस्कृत-हिन्दी में एक साथ)

         ।।अनुष्टुप छन्द।।
संस्कृत में लक्षण:-
श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम्।
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥
हिन्दी में लक्षण :-
हो अनुष्टुप बत्तीसा,चरण आठ वर्ण से।
हो पाँचवाँ सदा छोटा, विषम-सम मार से।।
 अर्थात
अनुष्टुप छन्द बत्तीस वर्णों का वर्णवृत्त छन्द है।इसके चारों चरणों में आठ-आठ वर्ण होते हैं।सभी चरणों का पाँचवां वर्ण हमेशा लघु ही रहता है। विषम चरण अर्थात पहले और तीसरे चरण मगण SSS से समाप्त होतें हैं।
सम चरण अर्थात दूसरे और चौथे चरण रगण SIS से समाप्त होते हैं।अन्य वर्णों के साथ नियम की बाध्यता नहीं होती।
नोट:-  मार= मगण और रगण ,मा विषम चरणों के लिए और र सम चरणों के लिए आया है।
उदाहरण:-संस्कृत में
1-मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।         यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्।।
2-उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
   षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत्।।
3-वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
 मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥
 उदाहरण:-  हिन्दी में
1-राष्ट्रधर्म कहावे क्या, पहले आप जानिये ।
 मेरा देश धरा मेरी, मन से आप मानिये।
2-हो पत्नी तब सीता सी, हो पति जब राम सा।
हो ज्ञान तब गीता सा, हो श्रोता जब पार्थ सा।।
                   ।। धन्यवाद ।।
।। अनुष्टुप छंद।।
अनुष्टुप छंदआठ अक्षरों वाला समवृत्त छंद है।
लक्षण-----
पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थयोः।
गुरु षष्ठं च पादानां शेषेष्वनियमो मतः।।
 या
श्लोके षष्ठं गुरुर्ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् । 
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥


यहाँ ध्यान रखें कि दूसरा लक्षण अधिक
प्रसिद्ध है लेकिन दोनों का हिन्दी अर्थ 
एक ही है जो निम्नलिखित है...और यही
अनुष्टुप छंद की परिभाषा भी है।

परिभाषा:-

       अनुष्टुप छंद में चार चरण होते हैं। 
इन चारों चरणों में पाँचवाँ अक्षर लघु और 
छठा अक्षर गुरु होता है। दूसरे और चौथे
इन दोनों सम चरणों में सातवाँ अक्षर लघु
तथा अन्य में अर्थात् पहले और तीसरे इन 
दोनों विषम चरणों में सातवाँ अक्षर गुरु
होता है । बाकी के अक्षरों के लिए 
लघु-गुरु का कोई नियम निश्चित नहीं है। 
इन लक्षणों से युक्त छंद अनुष्टुप् छन्द 
कहलाता है।

संस्कृत में इस छंद का नाम अनुष्टुभ् भी
है।लेकिन हिन्दी में यह केवल अनुष्टुप के
रूप में ही लिखा-पढ़ा जाता है। 

विशेषः-
उक्त दोनों लक्षण वाले श्लोक 
लक्षण के साथ ही साथ उदाहरण भी हैं।

अलग से भी उदाहरणों को देखते हैं...

उदाहरण –

1.उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
   षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देव सहायकृत्।।

अर्थात् उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और
पराक्रम जहाँ ये छः होते हैं, वहाँ देवता
सहायता करते हैं। यहाँ चार चरण हैं।
प्रत्येक में आठ-आठ अक्षर हैं।
प्रथम चरण का पाँचवाँ अक्षर ‘ह’ और
छठा अक्षर ‘सं’ क्रम से लघु और गुरु हैं।
इसी प्रकार बाकी के तीनों चरणों में
पाँचवाँ और छठा अक्षर क्रमशः लघु
और गुरु हैं। दूसरे और चौथे चरण में
सातवाँ अक्षर (क्र और य) लघु हैं
और पहले तथा तीसरे चरण के
सातवें वर्ण क्रमशः धै और तन् गुरु हैं। 
इस प्रकार उपर्युक्त श्लोक में अनुष्टुप
के सभी लक्षण बिलकुल सही हैं और 
इस श्लोक में अनुष्टुप छंद है।

इसी प्रकार का वर्ण संयोजन हम
सभी अनुष्टुप छंद के श्लोकों/पद्यों 
में पाते हैं।अन्य उदाहरण भी देखें 
और याद कर लेवें

2.पतितैः पतमानैश्च, पादपस्थैश्च मारुतः ।
  कुसुमैः पश्य सौमित्रे ! क्रीडन्निव समन्ततः ॥

3.संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
   देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥

4.ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
   तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥

5.वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
  मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।

6.मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
  यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।

श्रीमद्भगवद्गीता इन प्रसिद्ध श्लोकों को
आप जरूर देखें....और याद करें...
 
7.यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
  अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥ 

8.परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ 

मृत्युंजय मंत्र को भी जरूर देखें.

9.ॐ त्र्यम्बकं यजामहे 
 सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । 
 उर्वारुकमिव बन्धनान् 
 मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

हिन्दी:

हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण
एवं परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।

उदाहरण:

राष्ट्रधर्म कहावे क्या, पहले आप जानिये ।
 मेरा देश धरा मेरी, मन से आप मानिये ।।

यहाँ आप पायेंगे कि इस पद्य के सभी 
चरणों के पांचवें वर्ण लघु हैं और छठें वर्ण 
गुरु हैं। सम चरणों अर्थात् द्वितीय और
चतुर्थ चरणों के सातवें वर्ण लघु हैं और 
विषम चरणों अर्थात् प्रथम एवं तृतीय 
चरणों के सातवें वर्ण गुरु हैं। इसलिए 
इस पद्य में अनुष्टुप छंद है।

।। धन्यवाद ।।


1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच     "कवि कुछ ऐसा करिये गान"  (चर्चा-अंक 4378)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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