देता रब सब समान सबको,
अवसर दान मिला हमको।
दिन-रात सुबह-शाम हरको,
तप-ताप जप-जाप जगको।।
देखा ईश रूप जग कन कन,
पवन उनचास चले सनसन।
रवि-चन्द्र कान्ति मिले कनकन,
अकूत अर्जन का साधन तन।।
अनगिनत पर भारी अंग अंग,
श्रम साध्य है यहाँ सब रंग।
सर्वांग कर्म पाये संसार संग,
तंग विचार करे नित नव जंग।।
करते कलरव पाते अनुदान,
कुदरत रत सत गाते गान।
आलस्य छोड़ जीतो जहान,
हर अवसर करे तब गुनगान।।
अवसर चुके डोगरी नाचे ताल बेताल,
बिन अवसर वारिश लावे काल पेकाल।
चीटी चिड़िया चुग्गा चुने न हो बेहाल,
क्षण क्षण कण कण को चुन हो भुवाल।।
रविवार, 1 फ़रवरी 2015
अवसर
शनिवार, 31 जनवरी 2015
मन
सोच का मन से सीधा सम्बन्ध है
मन का सोच पर गहरा प्रभाव है।
मन मार सोच-सागर में डूबना
मन मलिन कर मन बोझिल करना है।।
तन-मन,दिल-दिमाग के आइने में
देखना परखना सवारना फितरत है।
जद्दो जहद जबरन जहा में जुर्रत,
ताल-मेल का बैठाना मन की शहादत है।।
चाहे अनचाहे करना करवाना
कभी कभी हमारे मन की कई कसरत है।
मन में लड्डू फूटना या पकाना
सुख शान्ति हेतु जहा की जरुरत भी है।।
मन के हारे हार मन के जीते जीत
हौसला बुलंद जिसका उसका मन है मीत।
बजरंगी सा सीना चीर गाते है गीत
सम विसम असम में जो न होते भयभीत।।
पलायन हल नहीं विचार बल वही
सहसा साहस समझदारी सूझ बूझ सही।
मन मजबूत करे निज कर्म इस मही
हर हाल हल तलाशना जिदारत है सही।।
खिचना बिसय बिकारों का काम
सिचना सदाचारों से मन बगिया भव धाम।
निजात देगे हर हाल सुखधाम
मन मानस मार मारे माधव मनमोहन माम।
रविवार, 25 जनवरी 2015
अपना गणतन्त्र स्वतन्त्र हो गया
पैसठवी वर्षगाठ पे छाछठवा दिवस गणतंत्र हो गया।
इस बिच हमारे देश में महान लोकतंत्र जवा हो गया।।
वीर भगत सावरकर आजाद सुभाषका भाव होगया।
पानी बिजली फ़ोन यूरिया चीनी लोन शोर हो गया।।
हर्षद मेहता जैन वन्धु काला धनका कामन गेम हो गया।
चारा बेचारा टू जी त्रि जी फ़ोर जी ट्वंटी फ़ोर हो गया।।
गाँधी का अहिंसा सत्याग्रह सत्य चकना चूर हो गया।
आईप़ीएल में सट्टेबाजी शान का सिम्बल हो गया।।
राजनीति में साम दाम दण्ड भेद का भारी मेल हो गया।
आतंक में आकंठ डूबना नियति का अनूठा खेल हो गया।।
पल पल पग पग पावर टावर सोर्स् फ़ोर्स शेर हो गया।
करप्शन हत्या रेप से भारतीय संस्कार ढेर हो गया।।
येन केन प्रकारेन अपना काम बनाना आम हो गया।
दीन दुखियो का यहाँ सारा मारग अब जाम हो गया।।
संविधान आत्मा गणतन्त्र का संशोधन धाम हो गया।
सर्वप्रभुतासम्पन्न देश में योग्य युवा निस काम हो गया।।
अब वापस नव क्रांति से भ्रान्ति मिटाना इकरार हो गया।
क्षेत्रवाद से उबर भारतीय रहना गौरव गान हो गया।।
बुराई जमीदोज करना सदाचार फैलाना अनिवार्य हो गया।
मुहतोड़ जबाब देना दुश्मनोका अब अपरिहार्य हो गया।।
भेद भाव जाति धर्म भाषा क्षेत्र रूप रंग भंग माग़ हो गया।
जय हिन्द को सतत बुलंद रखना युग काम हो गया।।
बकवास
संसार-सिन्धु इन्सान-विन्दु
भटक रहा दर दर अपनी पहचान बनाने ।
पाने गवाने पकाने बुझाने दिखने दिखाने,
सवारने आजीवन किन्सुक सा सकुचाने।।
बकवास करने में ब्रह्मानन्द पाते ,
परमानन्द लेते हँसते हँसाते सुख पाते।
रातो रात जाने अनजाने को पाने,
जमीर बेच जानवरों से बदतर कर जाते।।
बकवास ही है तो सार्थक भी है,
प्रेम बकवास विश्वास बकवास आस है।
मान-अपमान,जान-पहचान है
सतधाम काम रत भी यहाँ भगवान है।।
बकवास वा यथार्थ सोच हैं
किनारे बैठ निठल्ले आतुर सब पाने को।
बुजुर्गों की सभी बाते कोच हैं
आज आतुर हैं बिना खेले जित जाने को।।
राम कृष्ण को माने जाने सब
राम कृष्ण की बारी पर खेलेअपनी पारी।
युग काल धर्म अब तब जब
हर बात बना करारे करे बकवास भारी।।
मंगलवार, 20 जनवरी 2015
रहमत रोशनी-राज रचाय
राम-भरत की त्याग-तपस्या,
लखन का बलिदान।
शत्रुहन का विराग भीआया,
रखने अवध का मान।।
ऐसी भावना जिस घर राज्य-देश,
अ वध हो जा निर्भय।
हर गाथा पर व्यथा हरन कीभाय,
नाक से ऊची छबि बनाय।
रब राम रखे रमा रूप-राशि रस राय,
रहमत रोशनी-राज रचाय।।
सुबह शाम वन्दन चन्दन मन्द मन्द जहाँ,
क्रन्दन कष्ट झट कट वहाँ।
भर जाय भाय अरमान सभी झटपट तहाँ,
कृपाधाम धाम बनाये वहाँ।।
विचार
मन-मंदिर,तन-आगार भरे हैं,
नाना ज्ञाताज्ञात विचार।
एक दिन सहसा खूब उछले हैं,
बरसाती मेढ़क अपार।।
इन्सान हैवान या भगवान,
मानव है या जानवर।
गाते किस्मती या कर्मवान,
जीते भूत यहाँ बन मार।।
आते जाते गाते पाते हर स्थान,
इक दूजे को अंगुली उठाते।
लांछन लगाते खुद मान महान,
जंजीरी जमीर जू जगाते।।
फाड़ फाड़ मुह कोसते सब नार,
अवगुन खान नार बताते।
हक्का बक्का हो जाते अपनी बार,
दूजे पर ही प्रहार कराते।।
सड़ी मानसिकता चलते ज़हर उगलते,
बेटी बहना माँ दादी भूले।
इक कुकृत्य पेख जाति पे उंगली उठाते,
दल बदल हर झूला झूले।।
सब माने सब करते दूजे को कोसते,
चटकारें ले पर पर।
अपने पर आ तो दूजा तराजू तौलते,
क्यों गाज गिरे स्व पर।।
खैर विचार अपने अपने स्वतन्त्र हैं,
कथन करना धर्म है।
विचारी बेचारा इस जहां परतन्त्र हैं,
यही तो युग मर्म है।।
तोड़ो कारा जाति धर्म क्षेत्र भाषा की,
बनो इन्सान हर पल।
नर-नारी इन्सान हैं सूत्र इन्सानों की,
विचार बना होवे सबल।।
रविवार, 18 जनवरी 2015
अति अनुरागी
सब जगह एकसी न सही पर अनूठी होती।
सागर गागर रेगिस्तान मैदान सबमें मोती।
अति अनुरागी खोज लेते हैं अंधेरेमें जोती।
पिपासु जिज्ञासु की आस आस नहीं खोती।
अति अनुरागी पा जाते हैं अंधेरे में रोशनी।
एक बूँद गुनकारी जो दुःख दाघ विमोचनी।
चिंगारी जू फैलाये मान बन जहाँमें माननी।
जगाती जगमगाती भाग बना बड़ भागिनी।
अति अनुरागी दोजख़ दुःख दाह लीन हो।
ज़न्नत सा सँवारते बनाते रचाते स्थान हो।
तज सहज कटुता मृदुता लाते कामार हो। सिंधु थाह ले वीर चीर फाड़ दे पहाड़ हो।
ऐसी जो तमन्ना सबमें तो न बुरा काम हो।
शत्रु न उठाय नज़र जब एक आवाज हो।
अति अनुरागी देशहित त्यागे सर्वस्य हो।
परहित होते ही हो जाय स्वहित काम हो।
इंद्रा सा न हो लोभी कामी अति अनुरागी।
राम-भरत अनुरागी राज पाठ सब त्यागी।
बेड़ा गर्त हो जाने से पर्वू ही होजा विरागी।
तपी शिव से सीखे होना अनुरागी-विरागी।
अति अनुराग सिखावत जगावत पढ़ावत।
मिलावत सच्चा सुख प्रेम रंग मा डूबावत।
न्यौछावर स्व पर पर करा त्यागी बनावत।
स्व से ऐसे माँ भारती की आरती करावत।