✓मानस चर्चा।। सादर सुनहि ते तरहिं भव ।। आधार सुंदरकांड का यह मंगलमय अंतिम दोहा जिसे आप सब आदर के साथ सुनते और गाते हैं।
सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुन गान ॥
सादर सुनहिं ते तरहिं भव, सिंधु विना जलयान ॥
रघुनाथजी के गुणों का गाना सकल आनन्द मंगल का देने वाला है, लेकिन किनको वह भी बाबा यही कह देते ही कि उन्हीं को जो सादर पूर्वक सुनते हैं,जो राम कथा का गुन गान सादर सुनते हैं वे बिना ही जहाज के संसार सागर से पार हो जाते हैं ॥ हैं न अद्भुत बात।सादर।आदर तो हम चाहते हैं पर देने की बारी आते ही हमें पता नहीं क्या हो जाता है।अपने या अपने लोगों के दबाव में संसार के लिए लोगों के लिए लोकाचार निभाने के लिए हम राम गुन गान भी कर लेते है,करते है परंतु कैसे आइए इस बात को इस दृष्टांत के माध्यम से समझे और राम गुन गान करके भव सागर पार उतरने का मार्ग बनाए , परंतु ऐसे कथा कभी न सुने की मन घर के , बाहर के , अन्यत्र के, इधर उधर के कामों में लगा रहे और आप बैठे हो कथा में हैं। जैसे एक बजाज बहुत कहने सुनने से कथा में गये और राम राम करते पंडितजी की चौकी के पास ही बैठ गये, नींद आ गयी, स्वप्न देखने लगे कि बजाज जी दुकान में बैठे हैं।
ग्राहक बैठा है, लेन-देन का सौदा हो रहा है, अंत में आप बोले कि ले चालीस रुपए मीटर ले हमको तो,बेचना ही है। बजाज साहब नींद और सपने में थे संयोग से पंडित
जी का अंगरखा था उसका दामन सोते समय हाथमें आ गया, झट उसको फाड़ डाला, सब लोग बोले यह क्या किया ? लाला बहुत लज्जित हुए, अस्तु ऐसे सुनने से निस्तार नहीं होता। इससे हमें मन लगाकर ही कथा सुननी चाहिये और राम गुन गाना चाहिए ताकि हमबिना ही जहाज के संसार सागर से पार हो सकें ।
सादर मज्जन पान किये ते। मिटहि पाप परिताप हिये के॥
सादर सुमिरन जे नर करहीं। भव बारिधि गोपद इव तरहीं॥
सादर सिवहि नाइ अब माथा।
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