वीप्सा अलंकार
परिभाषा:
"आदर घृणा विस्मय शोक हर्ष युत शब्दों को दोहराये।
अथवा विस्मयादिबोधक चिह्नों से भाव जताये।
शब्द वा शब्द समूहों से विरक्ति घृणादि दर्शाये।
तह वीप्सा अलंकार बन जन जन को लुभाये।।"
अर्थात् जब काव्य में घृणा,विरक्ति, दुःख, आश्चर्य, आदर, हर्ष, शोक, इत्यादि विस्मयादिबोधक भावों को व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति की जाए तब वीप्सा अलंकार होता है।
वीप्सा का अर्थ होता है –दोहराना और पुनरुक्ति का भी अर्थ है द्विरुक्ति, आवृत्ति या दोहराना होता है इस भ्रम के कारण अनेक विद्वान दोनों को एक मान लेते हैं।लेकिन दोनो अलग-अलग हैं और दोनों में अन्तर है।
उल्लेखनीय है कि हिन्दी साहित्य में सर्वप्रथम भिखारीदास ने ‘वीप्सालङ्कार’ के नाम से इसे ग्रहण किया है।
वीप्सा द्वारा मन का आकस्मिक भाव स्पष्ट होता है।
हम अपने मनोभावों ( आश्चर्य,घृणा,हर्ष,शोक आदि) को व्यक्त करने के लिए विभिन्न तरह के शब्दों ( छि-छि , राम-राम शिव-शिव, चुप-चुप, हा-हा,ओह-ओह आदि) का प्रयोग करते है। अतः काव्य में जहाँ इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वहाँ वीप्सा अलंकार होता है। साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना है कि जब भी काव्य में किसी शब्द के बाद विस्मयादिबोधक चिह्न(!) पाया जाय वहाँ वीप्सा अलंकार होगा।
उदाहरण :-
1-चिता जलाकर पिता की, हाय-हाय मैं दीन!
नहा नर्मदा में हुआ, यादों में तल्लीन!
2-शिव शिव शिव कहते हो यह क्या!
ऐसा फिर मत कहना!
राम राम यह बात भूलकर,
मित्र कभी मत गहना!
3-राम राम यह कैसी दुनिया
कैसी तेरी माया!
जिसने पाया उसने खोया,
जिसने खोया पाया!
4-उठा लो ये दुनिया, जला दो ये दुनिया!
तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया!
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है!
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है!
5-मेरे मौला, प्यारे मौला, मेरे मौला!
मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे!
मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे!
6-अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो -बढ़े चलो !
7-हाय ! क्या तुमने खूब दिया मोहब्बत का सिला।
8-धिक ! जीवन को जो पाता ही आया विरोध।
धिक ! साधन जिसके लिए सदा ही किया सोध।
9-रीझि-रीझि रहसि-रहसि हँसी-हँसी उठे!
साँसे भरि आँसू भरि कहत दई-दई।।
उक्त उदाहरणों से एक और बात स्पष्ट होती है कि वीप्सा अलंकार में शब्दों के दोहराव से घृणा या वैराग्य के भावों की सघनता प्रगट होती है।
।।धन्यवाद।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें