।।मानव मात्र के आराध्य दाशरथि राम।।
मैथिलीशरणजी के शब्दों में रामजी का कथन--
संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
ऐसे राम निश्चित रुप से धरती को स्वर्ग बनाने वाले औऱ जन-जन के आराध्य हैं ही जिनके बारे में महर्षि वाल्मीकिजी ने ‘रामो सत्यैव नापर:’ अर्थात् राम स्वयं सत्य ही हैं कहाँ तो गोस्वामी तुलसीदासजी ने "रामु सत्यसंकल्प प्रभु" कहाँ और इनके गुणगान करने और सुनने वाले दोनों की सुन्दर वन्दना किया--
सीता-राम गुणग्राम-पुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर-कपीश्वरौ॥’’
यहाँ एक कवीश्वर हैं जिनके बारे में विख्यात है-
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥
और एक कपीश्वर हैं जिनके प्राण राम कथा में ही वसते हैं-
यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले ।
तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशय:।
यही नहीं--
यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् ।
भाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं
मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ।।
अब जब विशुद्ध विज्ञानी जन जिस सीता राम गुणग्राम के पुण्यारण्य में विहार कर रहे है वे सीता राम तो निश्चित रुप से हर नर-नारी के आदर्श और आराध्य हैं ही।हम ऐसे प्रभु सीता-राम और इनके चरित-कानन के विहारी महर्षि वाल्मीकि एवं प्रभु हनुमानजी की वन्दना करते हैं।
रामचरित का मानव मात्र में प्रचार-प्रसार महर्षि वाल्मीकिजी ,गोस्वामी तुलसीदासजी की देन है। भगवान राम इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए प्रकट हुए थे। जिज्ञासा जितनी बड़ी थी, उतनी ही बड़ी खोज थी। राम के जीवन की उदात्तता को देखकर आधुनिक कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था-
‘‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।’’
हम मानव मात्र के आराध्य राम और भाइयों की वन्दना करते हैं- कि वे समस्त मानव की मनोकामना पूर्ण करें-
राम भरत लछिमन ललित, सत्रु समन सुभ नाम।
सुमिरत दसरथ सुवन सब, पूजहिं सब मन काम॥
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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