शनिवार, 13 मई 2023

।।राम की श्री हैं माँ सीता।।

         ।।राम की श्री हैं माँ सीता।।
जब हम श्रीराम कहते हैं, तो उसमें श्री शब्द माँ सीता के लिए आता है,वह राम की शक्ति और शोभा हैं, पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और माँ के रूप में वह हर पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और माँ के लिए आदर्श हैं।भगवती सीता भगवान श्रीरामचंद्र की शक्ति और राम-कथा की प्राण हैं।तभी तो गोस्वामी तुलसीदासजी उनकी वन्दना इस प्रकार कर रहे हैं---
उद्भव- स्थिति-संहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥
संसार की उत्पत्ति, पालन, संहार करने वाली, समस्त क्लेशों को हरने वाली, सब प्रकार से कल्याण करने वाली, श्रीरामचंद्र की प्रियतमा सीताजी को मैं नमस्कार करता हूं।

सृष्टि को उत्पन्न करने का कार्य ब्रह्माजी का, पालन करने का काम विष्णुजी का तथा संहार करने का काम महाकाल (शंकरजी) का है, परंतु सीताजी में इन त्रिदेवों की शक्तियां समाहित हैं।

 मानस के बालकांड में उनके उद्भव रूप के दर्शन मिलते हैं, उनके विवाह तक संपूर्ण आकर्षण, सारी क्रियाएं सीता में समाविष्ट हैं जहाँ उनका ऐश्वर्य रूप प्रदर्शित होता है।

अयोध्या कांड से अरण्यकांड तक वह स्थितिकारिणी, करुणा की मूर्ति, क्षमा स्वरूपा हैं यहां तक कि जब जयंत उनके पांव पर चोट पहुंचाता है फिर भी वह उन्हें क्षमा कर देती हैं। 

लंकाकांड में आकर वह संहारकारिणी रूप में प्रकट होती हैं। यहाँ वह कालरात्रि बन जाती हैं तथा उचित अवसर आने पर रावण के संपूर्ण वंश के संहार की कारण बनती हैं। 

 किष्किंधाकांड एवं सुंदरकांड में क्लेशहारिणी, उत्तरकांड में सर्वश्रेयस्करीऔर प्रभु श्री राम वल्लभा रूप का दर्शन सर्वत्र होता है।

भगवान श्रीराम की तरह भगवती सीता भी षडैश्वर्य-संयुक्ता हैं। ।

 व्युत्पत्ति के आधार पर सीता— उद्भव-जगत की उत्पत्तिकर्ता-बह्मा(सूयते चराचर जगत),स्थिति- ऐश्वर्ययुक्त पालनकर्ता-विष्णु (सवति इति सीता),संहार- संहारकर्ता-महादेव (स्यति इति सीता ), क्लेशहारिणी-सर्वत्र गामिनी (श्यायते इति सीता)
सर्वश्रेयस्करी--सद्बुद्धि दात्री-सद्प्रेरक (सुवति इति सीता)रामवल्लभा-वशकारिणी (सिनोति इति सीता)हैं और यहाँ इनके इन छः रूपों की अद्भुत ढंग से वन्दना की गयी हैं।इसकी पुष्टि तो अनेक स्थानों पर की गई है-
1:-श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया     जानकी।
जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान 
की॥
2:-जासु अंस उपजहिं गुनखानी।
     अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी॥
    भृकुटि बिलास जासु जग होई। 
     राम बाम दिसि सीता सोई॥
भगवान राम जगत पिता तो माता जानकी जगत जननी हैं।हमारे शास्त्रों में--
मातृ देवो भव!पितृ देवो भव!आचार्य देवो भव!  के साथ ही साथ मातृमान, पितृमान, आचार्यवान् पुरुषों वेद कहा गया है।माता ही आदि गुरु हैं यह तो हम सब जानते ही हैं।पिता से माता का गौरव दसगुना कहा गया है:-
।।पितृदशगुणा माता गौरवेणातिरिच्यते।।
आइये हम निर्मल बुद्धि दायिनी रामवल्लभा का वन्दन  करें--
जनकसुता जग जननि जानकी। 
अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। 
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
     ।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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