मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

दो हजार पन्द्रह सोलह कला कान्ति दे सुख शान्ति दे।

नव किसलय नव वर्ष लहरे जन शिखा पर हरदम।गुरु गुरुतर ज्ञान मान धन धान्य भरे बन करदम।।1।।दो हजार पन्द्रह सोलह कला कान्ति दे सुख शान्ति दे।मन मलिनता तन कलुषता हटा हृदय दूरी पाट दे ।।2।।प्रण करना सहज कठिन है निभाना के संज्ञान से ।सद संकल्प नित निभाने की लालसा हो सम्मान से ।।3।।सहज बयर बिसराय राय मणि माणिक मुक्ता सी ।जन्म कर्म मुक्त ज्ञान रश्मि माहताब आफताब सी ।।4।।इच्छित रक्षित फ़लै फ़ुलै अनुराग वन मन में ।फैले प्रेम पराग सौदामिनी सा चमके जन जन में ।।5।।

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

महासंत

देव दनुज नर नाग करते भागम भाग !
सदा सदरत सुजन विरत हो जप जाग !!
घर में पा जाते दशरथ सा अपूर्व भाग !
विस्वामित्र सा जपी भी करता विराग !!१!!
आदि अद्य अंत आता अपना अरिहंत !
पर पर पर काटन से कौन कहाये संत !!
पतझड़ पर छा जाए जो बनकर बसंत !
नर नरेश वही जन पूजित जो महासंत !!२!!

रविवार, 9 मार्च 2014

हम

हम है कौन मौन सदा इस पर रहते !
हम है क्या मायामय मय मय करते !!
हम ऐसे वैसे नहीं कि जैसे तैसे कह देते !
हम हम है हम हरदम हम क्यों न रहते !!१!!
हम मै होकर अलग थलग हैं कर जाते !
जाति पाति के बंधन बध क्रंदन करते !!
बध एक माला में हम कैसे सहज जाते !
धर्म क्षेत्र भाषा पर जब सब एका हो पाते !!२!!
अनेक से एक हम तब जग जग भगाते !
सूर्य बन धरा से त्रास तिमिर तोड़ जाते !!
पर हम है कैसे जैसे होते यन्त्र मंत्र तंत्र !
स्ववश नहीं है परवश या हैं हम परतंत्र !!३!!
स्वतन्त्र देश वासी मक्का सेवे या काशी !
पर पर की इच्छा नाचे क्यों भारतवासी !!
रिमोट से क्यों हो जाते हैं हम संचालित !
वोट की राजनीति से क्यों हो हम बाधित !!
विकास वहाँ कहा नित नए घोटाले जहां !
पर्दानसीन कोई नहीं बे पर्दा हैं सब यहाँ !!४!!
किसको कहें क्यों कहें कैसे कहें क्या कहें !
जमीर बेच जरुरत छोड़ ख्वायिशो में बहे !!
सिगूफा छोड़ तोड़ ताड का मोड़ माड़ महे !
ताली पीट जन बीच कह कहे में रत रहे !!५!!  

शनिवार, 18 जनवरी 2014

मन

जग धारा में बहना सुख दुःख सहना रह अतृप्त !
काम कोह लोभ मोह चाहे-अनचाहे करे संलिप्त !!
बहाने बहाते सच को हो कर शत असत में लिप्त !
मन मार मार डाले चलाये कर को कर स्व लिप्त !!१!!
मन डोले तन डोले होले होले कदम डोले हो किंकर !
मन के दास-दासी बन नाचे जग का हर नारी-नर !!
मन राजा कृतदास सा मान हमें काटे हमारा पर !
मन का राजा बन हो जाय सफल पग पग पर !!२!! 
 

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

आप हरे संताप पाप ताप

निज सुख दुःख से हट देखे थोड़ा पर को !
सच बात  भारी भरकम माने  अपने को !!
 सुधरेगी सब जब मिटा देगे भय भूत को !
समरसता समानता से एक माने सब को !!१!!
का हे दुखी पर पाप से झेल रहा तू संताप !
निज कर्म धर्म के पाप का सहना तू ताप !!
जग जीवन दिने वाले रखते हर पल नाप !
शरनागत होते आप हरे संताप पाप ताप !!२!!  

सोमवार, 13 जनवरी 2014

भव भय त्राता

जानत तुम्ही मानत तुम्ही मनावत तुम्ही दिन राता !
सदा सन्दर्भ हो लायक जब जब हम तुम बनावे बाता !!
प्रेम कथा न बने व्यथा जब जहान जुड़ करे जग राता !
पद पद्मो में बन्दन दूर करो जग क्रंदन भव भय त्राता !!१!!  

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

पोषक

अब तबके तबके वाले करते कहते निराले !
फास गले की जैसे-तैसे झट दूजे में है डाले !!१!!
पोषक बन सदके सजदा करते सदा सबके !
कर्म-धर्म के पायक ही सायक होवे जनके !!२!!
खटकीरे सा लोहू अर्जित जनके धन गटके!
शोषक या तोषक पर मोचक दिखते सबके !!३!!
जाने माने पहचाने कुछ अनजाने भयसे !
शोषक को ही मोचक माने किस कारनसे !!४!!
पोषक-मोचक भाव भरे भय भव मन मे !
केचुली है छोड़,जोड़ हर मोड़ मिल तन में !!५!!      

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

पत्ता पत्ता

रचना रचयिता की सब,सबके लिए!रचना=सृष्टी ,काव्य !रचयिता =ईश्वर ,काव्यकार !
सम भाव भूषित भू भवन के लिए !
कमल सा सभीको खिलने के लिए !
जग वट घर है जू हर विहग के लिए!!१!!
यूं तो मानते अद्भुत वट पत्ता पत्ता !
खेल खिलाये अद्भुत सबको है सत्ता !
प्याज सा रुलाये छेड़ते ही हर छत्ता !
 नाच नचाये साच दिखाए ले लत्ता !!२!!
बट अन्यन यूनियन बनाना सिखाती !but,onion,union!
सघे शक्ति कलियुगे का पाठ पदाती !
आम को तरसाती ख़ास को हरषाती !
रचना अपनी हर हर को बात बताती !!३!!हर=प्रत्येक,ईश्वर !
पतझड़ हटा जीवन में ऋतुराज लाती !
पावन सलिला सा सब सुख भर जाती !
आते जाते मन मंदिर पावन कर जाती !
बरसा बन जीवन में हरियाली फैलाती !!४!!


   
  

रविवार, 5 जनवरी 2014

परत दर परत

समाज से सब,सब से  समाज संवेदना सारहीन तार-तार !
व्यवस्था- व्यथा को हादसा कह सहते पाते दर्द बार-बार  !! १ !!
संस्कार ,व्यवहार ,आहार ,विहार सब रो रहे बिफर-बिफर !
आचरण से जहा पूजे जाते  वही आचरण जब होवे  जहर !!२!!
सेवा मेवा को बहा कर सेवक-सुत सत सत बरसावे कहर !
दे वेदना नित अपनो को पाते खाते बरसाते फैलाते जहर !!३!!
बात मानव समाज की ,खोलो ज़रा इसकी परत दर परत !
अहिंसा के पुजारी यहाँ दिख रहे है हर गली हिंसा में ही रत !!४!!
त्रिभंगी ,त्रिपुरारि  पर पड़ते ये भारी कर करामात न्यारी !
सराफत -चादर में सिमट-लिपट झपट लूटन की तैयारी  !!५!!
 

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

सच है यहाँ गाते सब धर्म सब ग्रन्थ गीता हो जन हिता !

राम राम कहि कर्म बिचारही जल बिनु मीन सा हो मूक !
निज सोच समझ ज्ञान अज्ञान विवेक से हुई कहा चूक !!
कैसे कैसे दोस्त-दुश्मन दोगली चाल से बदतर करे लूक !
बिजली के नंगे तार सा नंगा हो झटके से सब करे टूक !!१!!
एक नहीं अनेक बार ,बार-बार हर बार करते तार-तार सब !
फिर भी क्यों आस है कि सुधर कर सुधार देगे बिगड़े फब !!
अब बात करामात की उचित ढंग से दंड देगे ही इन्हे रब !
डर नही भगवान का कुलकलंकी कापुरुष किंपुरुष को जब !!२!!
तैयार है हम सुधरने सुधारने को हर पल छोटी बड़ी भूल !
लालच बला सूल रहती तैयार खून सा निकालने को मूल !!
निसंतानी-बईमानी की सम्पत लिपट खिल रहे जो फूल !
चाटेगे धूल मिल मिट्टी जायेगे इनके सारे सपने स्थूल !!३!!
देर-अंधेर,न्याय-अन्याय बीच रब सच का झूठ का नहीं !
मान मर्दक मद मारक मारुति दुख निवारे सब का सही !!
दुर्गा दुर्ग साधिनी साधक साध्य साध संहारे दुष्ट है मही !
जिसका कोई नहीं उसका खुदा करे नीर क्षीर  हर कही !!४!!
विचारना सवारना भूल सुधारना सुधरने का मंत्र मूल !
बात बन जाय समाज में बिन जाय तो नहीं पकडे तूल !!
कथ्य अकथ्य वाद विवाद परिवाद संवाद असंवाद भूल !
पर पर काटक कष्ट कंटक राम दंड से फाँके सकूल धूल !!५!!
भूल अपनी सुधारे सुधरे मत जले स्वं ही चिन्ता-चिता !
हानि लाभ जीवन मरन यश अपयश देता है परम-पिता !!
खल संहारक सुजन तारक दे तुमको कृपा उसको रिता !
सच है यहाँ गाते सब धर्म सब ग्रन्थ गीता हो जन हिता !!६!!  

बुधवार, 1 जनवरी 2014

सकल परम गति के अधिकारी

कृत कर्म कृत काल में सभी माने सही !
काल काल है जाने जन पर माने नहीं !!
सत असत स्वभाव वश फैले हर कही !
दिखता दिन रात गुन दोष है इस मही !!१!!
निज करम धरम को ही मानते भारी !
पर खोट देखन में रत है दुनिया सारी !!
विरत धरम करम रत निनानवे झारी !
पाखंडी भी बन पंडित देवे ज्ञान भारी !!२!!
फैलावे जग जंजाल जगावे जुग जारी !
सरम त्याग बे सरम चाहते सुख सारी !!
बेवकूफ है इनकी नजर श्रम शर्म कारी !
गुन त्याग अवगुन गह की ये महामारी !!३!!
पूरब प्रतीक पिछड़े पन पुरातन पारी !
पाश्चात्य आग में लिपट सुखी  भारी !!
खुद जल जलावे सबै कपटी नर नारी !
पर है सकल परम गति के अधिकारी !!४!!