सिय राम मय सब जग जानी !
सुन्दर तथ्य तुलसी ज़ुबानी !!
राम से राम सिया से सिया !
इस धरा पर इनसा कथ जिया !!
किसको माने राम किसको सिया !
सारे कुए में है जब भांग दे दिया !!
नकारात्मक आकंठ दिखे प्रेम पिया !
सकारात्मक हेतु दिखाना है दिया !!
मर्द को राम नारी को कैसे माने सिया !
पर्दा बेपर्दा आदर्श-मर्यादा को है पिया !!
दीप दिखा दिनकर को खुद बदा लिया !
आस्तिक नास्तिक सा है काम किया !!
आस्था तोड़ सात्विक जीवन है जिया !
कबीर है जहा राम को भरतार किया !!
रैदास मीरा सूर आदि ने है गीत दिया !
शान्ताकार संसार को वाणी दे दिया !!
ईश्वर की अद्भुत रचना मानव रूप लिया !
देव-दनुज इस रूप हेतु तरसाते है जिया !!
देव भूमि तपो भूमि भूसुर जप जाग किया !
ज्ञाताज्ञात मनीषी देशहित लगाए है जिया !!
भारत-भारती सुसंस्कृत संस्कार है सिया !
धर्म पालन हेतु रामने एक पत्नी व्रत लिया !!
मोहन मन मोर, मन्मथ मान मर्दन किया !
संतो ने यहाँ परमहंस बन परम सुख लिया !!
पागल बेवकूफ कहलाने वाले सत्कर्मी है धरा !
पानी बिजली कोयला चीनी खेल चारा नहीं चरा !!
नमन नित नव नव रूप-नाम धारी राम सिया को !
त्यागी योगी यती तपी धारे सदा ही जो धर्म को !!
मानव -धर्म ही धर्म मानवता से प्रेम कर्म जहा !
दूषित मानसिकता निश्चित भस्मीभूत वहा !!
सिय राम मय बन जायेगे सब बाल-बाला !
करे प्रणाम सब सदा त्याग सब जंजाला !!
सुन्दर तथ्य तुलसी ज़ुबानी !!
राम से राम सिया से सिया !
इस धरा पर इनसा कथ जिया !!
किसको माने राम किसको सिया !
सारे कुए में है जब भांग दे दिया !!
नकारात्मक आकंठ दिखे प्रेम पिया !
सकारात्मक हेतु दिखाना है दिया !!
मर्द को राम नारी को कैसे माने सिया !
पर्दा बेपर्दा आदर्श-मर्यादा को है पिया !!
दीप दिखा दिनकर को खुद बदा लिया !
आस्तिक नास्तिक सा है काम किया !!
आस्था तोड़ सात्विक जीवन है जिया !
कबीर है जहा राम को भरतार किया !!
रैदास मीरा सूर आदि ने है गीत दिया !
शान्ताकार संसार को वाणी दे दिया !!
ईश्वर की अद्भुत रचना मानव रूप लिया !
देव-दनुज इस रूप हेतु तरसाते है जिया !!
देव भूमि तपो भूमि भूसुर जप जाग किया !
ज्ञाताज्ञात मनीषी देशहित लगाए है जिया !!
भारत-भारती सुसंस्कृत संस्कार है सिया !
धर्म पालन हेतु रामने एक पत्नी व्रत लिया !!
मोहन मन मोर, मन्मथ मान मर्दन किया !
संतो ने यहाँ परमहंस बन परम सुख लिया !!
पागल बेवकूफ कहलाने वाले सत्कर्मी है धरा !
पानी बिजली कोयला चीनी खेल चारा नहीं चरा !!
नमन नित नव नव रूप-नाम धारी राम सिया को !
त्यागी योगी यती तपी धारे सदा ही जो धर्म को !!
मानव -धर्म ही धर्म मानवता से प्रेम कर्म जहा !
दूषित मानसिकता निश्चित भस्मीभूत वहा !!
सिय राम मय बन जायेगे सब बाल-बाला !
करे प्रणाम सब सदा त्याग सब जंजाला !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'