रविवार, 15 दिसंबर 2013

परीक्षा

जीवन एक परीक्षा है ,
हर मोड़ पे सम्हलना ,नहीँ उलझना यह इसकी इक दीक्षा है !
चंदन सा स्वभाव, न दे अभाव ,
घिसे बढ़े ,माथे चढ़े ,रखे समभाव !
जातक जात जतन जननी जनन प्रभु ईच्छा है ,
प्रेमाम्बु पय पान प्रारम्भ मान मानव मानव ईच्छा है !
जनक जननी जन्म भूमि ,कार्य कारण कर्मभूमि !!
मागते हक़ हरदम हमसे ,हमसे हो हमारे हो !
फर्ज हमारा है इनके लिए कि तन-मन हमारा इनमे लगा हो !
भ्रम -जाल में उलझाने को बहुपथगामी यायावर ईच्छा !
कदम कदम पर चौराहों सा ,बाहे फैलाएं खड़ी परीक्षा !
पर ईच्छा से संचालित नियति नटी नित नाच नचाती !
है पल सुलझो नहीं तो उलझो की है यह शोर मचाती !
सिख सिखाती गुरुवर सा ,माता सा यह पालन करती !
तरुवर-सरवर सम्बन्धी दे ,सेवा करती सतत धरती !
धरती की प्रीति परीक्षा पेखो तपती तड़पती तनय ताप से !
इम्तिहान के हर दौर से गुजर करे इन्तहां मोहब्बत आप से !
शिक्षा शिक्षण संस्थान से ,सेवा सर्वदा शबरी अबला से !
मान ,स्वमन मान मर्दन से, सिख नित निज जीवन से !
परीक्षा तो जीवन में देना ही पड़ता है !
कभी-कभी अपने आप से लड़ना भी पड़ता है !
बिन मागें मिल जाता कब !
श्रम साधना कर्म आराधना हो जब !
बिनु श्रम ,कर्म रहित पोषित करे पाप !
बिनसे बिनासाए सब मूल से अपने आप !
परिवार घर समाज गाव ,फैलाए जब अपना पाँव !
चारो चारो ओर से लेते समरथ भर परख ठाव ठाव !
परखते पारखी पर चखते चखना सा चतुर !
शुद्ध सम्पन्न स्वर्ण सा जन होता न आतुर !
कर बुलन्द खुद को तैयार रहो !
भले ही जीवन क्यों न परीक्षा हो !
चरित्र परचम सा फहरे जिस जन का !
कीर्ति पराग सा सुवासित उस सुजन का !
हर परीक्षा उसकी स्व ईच्छा सा देती रहेगी फल !
श्रम साधना चरित्र आराधना जिसका जीवन जल !! 

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