रविवार, 17 नवंबर 2024

मानस चर्चानिर्मल मन जन सो मोहि पावा ।

मानस चर्चा
निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।।
प्रभु श्री राम जी कहते हैं: ~ जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल~छिद्र नहीं सुहाते। आइए हम इस संबंध में इस कथा का आनंद लेते हुवे राम कृपा प्राप्त करें।
एक सदना नाम का कसाई था, मांस बेचता था पर भगवत
भजन में बड़ी निष्ठा थी एक दिन एक नदी के किनारे से जा रहा था रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिल गया. उसे अच्छा लगा उसने सोचा बड़ा अच्छा पत्थर है क्यों ना में इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करू. उसे उठाकर ले आया. और मांस तौलने में प्रयोग करने लगा.
जब एक किलो तोलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तोलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार चाहे जितना भी तोलता हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम लेता जाता.
एक दिन की बात है उसी दूकान के सामने से एक ब्राह्मण
निकले ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे उनकी नजर जब उस
पत्थर पर पड़ी तो वे तुरंत उस सदना के पास आये और
गुस्से में बोले ये तुम क्या कर रहे हो क्या तुम जानते नहीं
जिसे पत्थर समझकर तुम तोलने में प्रयोग कर रहे हो वे
शालिग्राम भगवान है ।
इसे मुझे दो जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ
और वह बोला हे ब्राह्मण देव मुझे पता नहीं था कि ये
भगवान है मुझे क्षमा कर दीजिये. और शालिग्राम भगवान
को उसने ब्राह्मण को दे दिया |
ब्राह्मण शालिग्राम शिला को लेकर अपने घर आ गए और
गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमल के बिस्तर पर,
सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप, चन्दन से पूजा
की । जब रात हुई और वह ब्राह्मण सो गए तो सपने में भगवान आये और बोले ब्राह्मण मुझे तुम जहाँ से लाए हो वही छोड आओं मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा. इस पर ब्राह्मण बोले भगवान !
वो कसाई तो आपको तुला में रखता था जहाँ दूसरी और
मास तोलता था उस अपवित्र जगह में आप थे.
भगवान बोले - ब्रहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे
तराजू में तोलता था तो मानो हर पल मुझे अपने हाथो से
झूला झूल रहा हो जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था ।हर पल मेरा भजन करता था जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था वो आनंद यहाँ नहीं. इसलिए आप मुझे वही छोड आये । तब ब्राम्हण तुरंत उस सदना कसाई के पास गए  और बोले
मुझे माफ कर दीजिये । वास्तव में तो आप ही सच्ची भक्ति
करते हैं। ये अपने भगवान को संभालिए।
भाव~ भगवान बाहरी आडंबर से नहीं भक्त के
भाव से रिझते है। उन्हें तो बस भक्त का भाव ही
भाता है।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

मानस चर्चा।तुम्हहिं छाडि गति दूसरि नाहीं ।

मानस चर्चा
तुम्हहिं छाडि गति दूसरि नाहीं ।
राम बसहु तिन्ह के मन माहीं । ।
दृष्टांत ~ एक राजा सायंकाल के समय महल की छत
पर टहल रहे थे। सहसा उनकी दृष्टि नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी। सन्त अपनी मस्ती में ऐसे चल रहे थे कि मानो उनकी दृष्टि में संसार है ही नहीं ।
राजा अच्छे संस्कार वाले पुरुष थे। उन्होंने अपने सेवकों को उन सन्तों को तत्काल ऊपर ले आने की आज्ञा दी। आज्ञा पाते ही राजसेवकों ने ऊपर से ही रस्सी लटकाकर उन सन्त को (रस्सी में फांसकर) ऊपर खींच लिया। इस कार्य के लिए राजा ने उन सन्त से क्षमा माँगी और कहा कि एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए ही मैंने आपको कष्ट दिया। प्रश्न यह है कि भगवान शीघ्र कैसे मिलें?
सन्त ने कहा~ "राजन्! इस बात को तुम जानते ही हो।"
राजा ने पूछा ~ कैसे? सन्त बोले~ यदि मेरे मनमें तुमसे मिलने का विचार आता तो कई अडचनें आती और बहुत देर लगती। पता नहीं मिलना सम्भव भी होता या नहीं। पर जब तुम्हारे मनमें मुझसे मिलने का विचार आया, तब कितनी देर लगी?राजन्! इसी प्रकार यदि भगवान के मन में हम से मिलने का विचार आ जाय तो फिर उनके मिलने में देर नहीं लगेगी। राजाने पूछा~ भगवान के मन में हमसे मिलनेका विचार कैसे आ जाय? सन्त बोले~ तुम्हारे मनमें मुझसे मिलने का विचार कैसे आया? राजाने कहा ~ जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं और सड़क, बाज़ार, दुकानें, मकान मनुष्य आदि किसीकी भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, तब मेरे मन में आपसे मिलनेका विचार आया। सन्त बोले~ राजन्! ऐसे ही तुम एक ही धुन में भगवान की तरफ लग जाओ, अन्य किसीकी भी तरफ मत देखो और भगवान के भजन-सुमिरन के बिना रह न सको, तो भगवान
के मनमें तुमसे मिलने का विचार आ जायेगा और वे तुरंत
मिल जायेंगे।
तुम्हहिं छाडि गति दूसरि नाहीं ।
राम बसहु तिन्ह के मन माहीं । ।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

मानस चर्चा।।मित्र कैसा नहीं होना चाहिए?

मानस चर्चा
मित्र कैसा नहीं होना चाहिए?
इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी
कहते हैं ~
आगें कह मृदु बचन बनाई।
पाछें अनहित मन कुटिलाई ||
जाकर चित अहि गति सम भाई |
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई ॥
जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ- पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई! (इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है।
एक बार उल्लू और बाज में दोस्ती हो जाती है। दोनों साथ
बैठकर खूब बातें करते हैं। बाज ने उल्लू से कहा कि अब
जब हम दोस्त बन ही गए हैं, तो मैं तुम्हारे बच्चों पर कभी
हमला नहीं करूंगा और न ही उन्हें मारकर खाऊंगा। लेकिन मेरी समस्या यह है कि मैं उन्हें पहचानूंगा कैसे कि ये तुम्हारे ही बच्चे हैं?
उल्लू ने कहा कि तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्त। मेरे
बच्चों को पहचानना कौन-सा मुश्किल है भला। वो बेहद
खूबसूरत है, उनके सुनहरे पंख हैं और उनकी आवाज़
एकदम मीठी-मधुर हैं। बाज ने कहा ठीक है दोस्त, मैं अब चला अपने लिए भोजन ढूंढ़ने । बाज उडते हुए एक पेड़ के पास गया। वहां उसने एक घोसले में चार बच्चे देखे। उनका रंग काला था, वो जोर-जोर से कर्कश आवाज में चिल्ला रहे थे। बाज ने सोचा न तो इनका रंग  न सुनहरा है , न पंख, न ही आवाज़ मीठी-मधुर, तो ये मेरे दोस्त उल्लू के बच्चे तो हो ही नहीं सकते। मैं इन्हें खा
लेता हूँ और बाज ने उन बच्चों को खा लिया।
इतने में ही उल्लू उड़ते हुए वहाँ पहुंचा और उसने कहा कि ये तुने क्या किया? ये तो मेरे बच्चे थे। बाज हैरान था कि उल्लू ने उससे झूठ बोलकर उसकी दोस्ती को भी धोखा दिया। वो वहाँ से चला गया।
उल्लू मातम मना रहा था कि तभी एक कौआ आया और
उसने कहा कि अब रोने से क्या फायदा, तुमने बाज से झूठ बोला, अपनी असली पहचान छिपाई और इसी की तुम्हें सज़ा मिली।
शिक्षा~ कभी भी अपनी असली पहचान छिपाने की भूल
न करें और मित्र से झूठ न बोले तभी तो गोस्वामीजी ने कहा हैं 
आगें कह मृदु बचन बनाई।
पाछें अनहित मन कुटिलाई ||
जाकर चित अहि गति सम भाई |
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई ॥
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

मानस चर्चा श्रीगोस्वामी जी एवं श्री हनुमानजी !

मानस चर्चा 
श्रीगोस्वामी जी एवं श्री हनुमानजी !
सिय राम मय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।।
श्रीरामचरित मानस लिखने के दौरान
तुलसीदासजी ने लिखा-
सिय राम मय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।।
अर्थात 'सब में राम हैं और हमें उनको हाथ
जोड़कर प्रणाम करना चाहिए।'
यह लिखने के उपरांत तुलसीदासजी जब अपने गांव की
तरफ जा रहे थे तो किसी बच्चे ने आवाज दी- 'महात्माजी,
उधर से मत जाओ। बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र
भी पहन रखा है।'
तुलसीदासजी ने विचार किया कि हूं, कल का बच्चा हमें
उपदेश दे रहा है। अभी तो लिखा था कि सब में राम हैं। मैं
उस बैल को प्रणाम करूंगा और चला जाऊंगा।
पर जैसे ही वे आगे बढ़े, बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े।
किसी तरह से वे वापस वहां जा पहुंचे, जहां श्रीरामचरित
मानस लिख रहे थे। सीधे चौपाई पकड़ी और जैसे ही उसे
फाड़ने जा रहे थे कि श्री हनुमानजी ने प्रकट होकर कहा-
तुलसीदासजी, ये क्या कर रहे हो? तुलसीदासजी ने क्रोधपूर्वक कहा, यह चौपाई गलत है और उन्होंने सारा वृत्तांत कह सुनाया। हनुमानजी ने मुस्कराकर कहा- चौपाई तो एकदम सही है। आपने बैल में तो भगवान को देखा, पर बच्चे में क्यों नहीं? आखिर उसमें भी तो भगवान थे। वे तो आपको रोक रहे थे, पर आप ही नहीं माने। अब तुलसीदासजी पक्का आभास हो गया और अपनी बात पर दृढ़ हो गए
सिय राम मय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।।
तुलसीदास जी को एक बार और चित्रकूट पर श्रीराम के दर्शन कराने  के लिए तोता बन कर हनुमान जी ने दोहा पढ़ा था:
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़।
तुलसी दास चंदन घीसे तिलक करें रघुबीर।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

मानस चर्चा ।।सत्य वचन के साथ नियम पालन।।

मानस चर्चा ।।सत्य वचन के साथ नियम पालन।।
प्रगट चारि पद धर्म के 
धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं,
इनमें से किसी एक का पालन नियम पूर्वक सदा करते रहे तो हमें प्रभु राम की अहैतुकी कृपा प्राप्त होती ही है। आइए हम इस कहानी का आनंद लेते हुवे प्रभु कृपा के अधिकारी बने।
एक संत थे। वे एक गरीब किसान के घर गए। किसान ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम - जप करने का कुछ नियम ले लो।जाने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो।किसान ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं और ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मंदिर में है, कैसे करूँ? संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ  नियम ले लें।पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है? बाल-बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोडे ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ।संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है? किसान बोला कि पडोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी दोस्ती है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है,और घर भी पास -पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना।किसान ने इसे सत्य वचन कहकर  स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता। इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन किसान को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए उसकी पत्नी ने भोजन जल्दी तैयार कर लिया। किसान बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। किसान बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता।अब किसान उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह -तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी।उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह किसान आ गया। कुम्हार को देखते ही किसान  वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा। कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। किसान बोला कि बस देख लिया, देख लिया। कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। किसान वापस आया तो उसको धन मिल गया।उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मन चाहा सत्य नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का  पालन करू तो कितना लाभ है।ऐसा विचार करके वह किसान और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले,नियम ले लें कि चाहे जो हो जाये, हमें तो भगवान् की तरफ चलना है। भगवान् का भजन करना है। नियम बनाने की अपेक्षा नियम को पहचाने। नियम क्यों लिया गया है।धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं,।इनमें से किसी एक का पालन हम अवश्य करें। हमें प्रभु कृपा अवश्य ही मिलेगी।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

मानस चर्चा।। दान।।

मानस चर्चा
दान
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥
धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है आइए एक आने के उधार दानी और गंगा स्नानी कंजूस  दानी दानचंद जिससे भगवान भी हार गए उसकी  हास्य कहानी का आनंद लेते हैं और प्रभु कृपा प्राप्त करते हैं।
एक समय की बात है, एक बहुत ही कंजूस व्यक्ति था।
उस व्यक्ति का नाम दानचंद था। उसके पास धन तो
बहुत था, परंतु उसने कभी किसी को दान नहीं किया
था। उसने प्रण ले रखा था, की जीवन में कभी किसी
को कुछ भी दान नहीं करना है। उसके घर से कुछ
किलोमीटर दूर गंगा नदी बहती थी, परंतु वह कभी गंगा
स्नान करने नहीं गया, क्योंकि गंगा स्नान करने के बाद
पंडे-पुजारियों को कुछ दान दक्षिणा देनी होती है। गंगा
स्नान के बाद दान करना पड़ेगा इसी डर से वह कभी
गंगा स्नान करने ही नहीं गया।
उसकी पत्नी उसे दान पुण्य करने के लिए कहती थी,
परंतु वह कहता था, इतनी बड़ी दुनिया में हमारा छोटा
सा दान करने से क्या होगा। एक दिन उसकी पत्नी ने
कहा, अब तो आपका बुढ़ापा आ गया, आप दान पुण्य
तो कुछ करते नहीं, कम से कम एक बार जाकर गंगा
स्नान ही कर आओ। पत्नी की बात मानकर उसने गंगा
स्नान करने की हामी भरी। उसके घर से गंगा नदी 12
किलोमीटर दूर थी, रास्ते में कहीं पैसा खर्च ना हो जाए,
इसलिए वह 12 किलोमीटर पैदल ही चला गया।
जब दानचंद गंगा नदी के किनारे पहुंचा तो उसको लगा
के घाट पर जाएंगे तो पंडित दान दक्षिणा मांगेंगे।
इसलिए वह स्नान करने मुर्दा घाट चला गया, मुर्दा घाट
बिल्कुल सुनसान था, उसने इधर उधर देखा दूर-दूर तक
कोई नहीं था। उसने जल्दी से गंगा जी में एक
डूबकी लगाई। भगवान जो घट-घट के वासी हैं, वह
उसे यह सब करता देख रहे थे। भगवान को एक मजाक
सूझी, भगवान वहां पर एक पंडित का रूप बनाकर
प्रकट हो गए। जैसे ही दानचंद डूबकी लगाकर बाहर
निकला, पंडित रूपी भगवान बोले यजमान की जय
हो। पंडित को देखते ही दानचंद काँप गया। वह बोला यह
तो हद हो गई, यह पंडा तो मुर्दा घाट पर भी आ गया।
पंडित ने बताया कि मैं एक संतोषी ब्राह्मण हूं, और
एकांत में यहां मुर्दा घाट पर ही पड़ा रहता हूं। यहां पर
कभी-कभी आपके जैसा कोई यजमान आ जाता है,
और मेरा साल-भर का इंतजाम इकट्ठे ही कर देता है।
आज आप आए हैं, आपको मेरा एक वर्ष का इंतजाम
करना है।दानचंद बोला मैं इतना दान नहीं कर सकता। पंडित बोला दान तो अपनी श्रद्धा के ऊपर होता है, इसलिए आप 6 महीनों का इंतजाम कर दो। दानचंद बोला मैं 6 महीनों का इंतजाम भी नहीं कर सकता। पंडित बोला
तो तीन महीने, दानचंद बोला नहीं। पंडित बोलै 1
महीने का ही कर दो, दानचंद बोला मैं एक महीने का
तो क्या मैं एक दिन का भी इंतजाम नहीं कर सकता।
अब पंडित ने कहा आपको कुछ ना कुछ तो दान करना
ही पड़ेगा, नहीं तो हम आपको जल से निकलने नहीं
देंगे। थक हार कर दान चंद बोला, एक आने का दान
करूँगा वह भी उधार, मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है,
इसलिए मेरे घर आकर एक आना ले जाना। पंडित ने
दानचंद को एक आना दान करने का संकल्प दिलवा
दिया। दानचंद ने सोचा मेरा घर तो यहां से 12 किलोमीटर दूर है, यह पंडित एक आने के लिए इतनी दूर थोड़ी आएगा। इसलिए वह संकल्प लेकर अपने घर
आ गया। घर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी, वह इतनी दूर चल कर आया था, इसलिए थक गया था। वह सोने ही जा रहा था, तभी उसके दरवाजे पर उस पंडित ने दस्तक
दी।पंडित बोलै यजमान की जय हो, दानचंद की पत्नी
ने दरवाजा खोला, वह पंडित को देखकर लौटी और
दानचंद से पूछा, क्या किसी पंडित को कुछ देने की
कह कर आए हो ? दानचंद बोला, हां मैंने एक पंडा को
एक आना देने का संकलप लिया है। पत्नी बोली वह
पंडित जी अपना एक आना लेने दरवाजे पर खड़े हैं।
दानचंद ने सोचा वो पंडित एक आने के लिए इतनी दूर
आ गया। दानचंद ने पत्नी से कहा, जाकर उस पंडित से
कह दो की यजमान बीमार है, इसलिए तीन-चार दिन
बाद आए। पत्नी बोली एक आने की ही तो बात है, दे
क्यों नहीं देते। दानचंद बोला मैं किसी को कुछ नहीं
देने वाला, जाकर उससे कह दो की यजमान बीमार है,
इसलिए कुछ दिन बाद आये। पत्नी ने दुखी जैसा मुंह बनाया और पंडित से बोली, महाराज मेरे पति आज इतनी दूर पैदल चलकर गए थे,इसलिए वे बहुत थक गए हैं, और बीमार है, इसलिएआप तीन-चार दिन बाद आना। पंडित बोला धन मिले या ना मिले, लेकिन वे हमारे यजमान है। यजमान बीमार है और पंडा चला जाए, ऐसा नहीं हो सकता। जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाते तब तक हम यही रहेंगे, हमारा यहाँ रहने का इंतजाम कर दो, हम यहीं परप्रसाद बनाएंगे और यहीं पर भजन करेंगे और यहीं पर
प्रसाद ग्रहण करेंगे।
पत्नी लौटकर गई और उसने दानचंद को सारी बात
बताई, कि वह पंडित कह रहा है, जब तक आप ठीक
नहीं हो जाते, वह यही रहेंगे। पत्नी बोली इससे तो
अच्छा उन्हें एक आना देकर रवाना करो। दानचंद बोला
एक आना क्या ऐसे ही आता है, मैं उस पंडित को कुछ
नहीं देने वाला। तुम जाकर उस पंडित से कह दो कि
यजमान मर गए, ध्यानचंद को योग का अभ्यास था,
इसलिए वह सांस रोककर पड़ गया। पत्नी गई, और
उसने रोकर पंडित से कहा, कि वो मर गए, अब तो
जाओ।
पंडित बोले, अरे राम राम यजमान चला गया, जब तक
उसका अंतिम संस्कार ना हो जाए, तब तक हम कैसे
जा सकते हैं। पंडित जी बोले, तुम महिला कहां-कहां
भटकती फिरोगी, हम सारे गांव में यजमान के मरने की
खबर किये देते हैं। पंडित जी सारे गांव में खबर कर आए
कि दानचंद जी मर गए। सारा गांव दानचंद के घर
इकट्ठा हो गया। लेकिन दानचंद ऐसा विचित्र आदमी,
एक आना बचाने के लिए सांस रोके पड़ा था। गांव के
लोगों ने दानचंद को मुर्दा समझ के बांध लिया।
अब उसकी पत्नी सही में रोने लगी, और रो-रो कर
बोली, यह मरे नहीं है। गांव वाले बोले, बहन यह तो
तुम्हारा मोह है, जाने वाला तो गया, इसलिए धीरज
रखो। पत्नी बोली, अरे किस बात का धीरज रखूं, यह
मरे ही नहीं है। गांव वाले दानचंद को बांध कर अंतिम
संस्कार के लिए ले गए, पत्नी बेचारी रोती रह गई।
लेकिन वह विचित्र आदमी इतना सब कुछ होने के
बाद भी सांसें रोके पड़ा था। सबके साथ पंडित बने
भगवान भी उनके पीछे-पीछे चल दिए।
भगवान ने सोचा हद हो गई, हम कहीं नहीं हारे, पर
आज तो इस दानचंद से हम भी हार गए। ऐसा गजब
का विचित्र आदमी हमने कहीं नहीं देखा। एक आना
बचाने के लिए यह आदमी बिना मरे मरा पड़ा है, और
चला जा रहा है। जब दानचंद को लकड़ियों पर रख
दिया गया और केवल अग्नि लगनी ही शेष थी। तब
पंडित रूपी भगवान बोले, कि यह हमारे यजमान थे,
हम इनकी मुक्ति के लिए इनके कान में कुछ मंत्र
बोलेंगे।
भगवान उसके कान के पास मुंह लेकर गए और बोले,
मैं भगवान विष्णु हूं, मैं वैकुंठ से तुमसे नाता जोड़ने
आया हूं। दानचंद ने जैसे ही सुना कि भगवान बोल रहे
हैं, उसने धीरे-धीरे आंखें खोली। लेकिन जैसे ही उसने
देखा की यह तो पंडित है, उसने फिर से आंखें बंद कर
ली। भगवान बोले हम हार गए, हम तुमसे कुछ नहीं
लेंगे, तुम ही हमसे कुछ मांग लो। दान चंद धीरे से
बोला, वह एक आना छोड़ दो बस। पंडित रूपी भगवान
तथास्तु कहकर वहां से चले गए, और दान चंद आंखें
खोल कर उठ बैठा।
कहानी हमें सिखाती है कि हमें इतना कंजूस कभी नहीं बनना चाहिए और समय समय पर दान अवश्य देना चाहिए।
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥
।। जय श्री राम जय हनुमान 

मानस चर्चा ।।हम बुराइयों से बच सकते हैं ।।

मानस चर्चा 
।।हम बुराइयों से बच सकते हैं ।।
उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध ।
निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध ।।
एक बार एक महात्मा जी के पास दो आदमी ज्ञान लेने के
लिए आए। महात्मा बहुत पहुंचे हुए थे। उन्होंने दोनों को
एक-एक चिडिया दे दी और कहा:- जाओ, इन चिडियाओं
को ऐसी जगह मार कर लाओ जहाँ कोई और आपको देखें नहीं। उनमें से एक तो तुरंत ही पेड़ की ओट में जाकर उस चिडिया को मार कर ले आया। जो दूसरा व्यक्ति था वह किसी सुनसान जगह पर चला गया।
जब वह उस चिडिया को मारने ही वाला था, वह अचानक
रुक गया और सोचने लगा- जब मैं इसे मारता हूँ तो यह मुझे देखती है और मैं भी इसे देखता हूँ। तब तो हम दो हो गये और तीसरा ईश्वर भी यह सब कुछ देख रहा है। महात्मा जी का आदेश है कि इस चिडिया को वहाँ मारना जहाँ कोई और न देखें।
कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाही ।।
आखिर यह सोचकर उस चिडिया को महात्मा जी के पास
जीवित ही ले आया और बोला- "महात्मा जी ! मुझे तो ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहां कोई नहीं देखता हो, क्योंकि ईश्वर हर जगह मौजूद है।"
महात्मा जी ने कहा:- "तुम ही ज्ञान के सही अधिकारी हो। मैं तुझे ज्ञान दूंगा।"
महात्मा जी ने उस दूसरे आदमी को वहां से डांट कर भगा
दिया और इस आदमी को सम्पूर्ण ज्ञान दिया।मानस में गोस्वामीजी तो हमें बताया ही है कि
देस काल दिसि विदिसहँ माँही ।
कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाही ।।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।