गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

प्रभु की ही माया

अब हम ऐसा करे व्यवहार ,जो जन- जन में जगाये उदगार !
धैर्य-सहन करे मजबूत सब ,कुछ भी नहीं होता है तार- तार !!
आ गए जब इस जग में तो,एडजेस्ट करे मत कभी कोसे इसे !
करना ही है तो वो करे जग हित,याद रखे हर पल जग जिसे !!
इस धरा पर अपना अपना तो, करने भरने में लगे रहते सब !
छोड़ दे ये विवेक से आनंद पाए,पराये हित स्व कार्य करे जब !!
ईमान से इन्सान इन्सान हित ,जब रखता है दिल हरदम रत !
कीचड में कमल बन जग सरोवर,मनोहर पराग भरे  शत-शत !!
उसकी -इसकी किसकी सबकी ,नहीं करे स्तुति -निंदा सर्वत्र !
थक जायेगे हार जायेगे मरेगे ,हम सब करते कराते ये विचित्र !!
एकतारा से स्वर निकालना ,गुर ज्ञान बिन दुष्कर संगीत संसार !
वैसे ही शिक्षा सिख श्रम बिन ,दुनिया का हर कार हर को  है भार !!
ऐतिहासिक तथ्यों स्व इतिहास से, रखना है हरदम तारतम्य !
बिन इनके वजूद स्व ज्ञान मान ,स्व सही हो जाय अगम्य !!
 

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

शिक्षा education hindi poem

रोजगार नाग दंस से है अर्धविछिप्त समाज !
गिर रहा प्रतिभा का सम्मान हर जगह आज !!
राजनीति कूटनीति से ये लेते निज रोटी सेक !
नित नवीन विकल्पों को देते बार-बार फेक !!
ये मद मस्त आतुर है करने को समाज पस्त !
जाति धर्म भाषा क्षेत्र में उलझा करे हमें त्रस्त !!
बेरोजगारी सुरसा बदाये नित निज भय आनन!
कोर्ट कचहरी क़ानून प्रहरी रोके भरती विधानन !!
कारण हो गया है सोचनीय दर्शनीय मंथनीय !
बद नीतियों से ही है बन रही दशा अकथनीय !!
शिक्षा की परीक्षा है या है यह परीक्षा की शिक्षा !
बिगाड़ दिए है खेल दे कर नाम इसे सर्व शिक्षा !!
अंगूठा टेक रहेना एक के नाम कर रहे साक्षर !
शिक्षित साक्षर बनो रहो भले शिक्षित निरक्षर !!
कूडा ढेर डिग्री बन रही है फाईलो में सज रही !
यूथो को कचरा मास्टर बनाने में लगी है सही !!
जो है शिक्षा सम्पन्न और सर्व ज्ञान के धारक !
वे ही हो सकते है हर समय यहाँ विद्या तारक !!
पर वाह कुसंग तू नसावे स्व साथ मिलावे कैसे !
नक कटी समाज नाक वाले की नाक कटावे जैसे !!
चले सत्रांक प्राप्तांक संयुक्तांक की भारी खेल !
पास होना तय हुआ मिटा अध्ययन का झमेल !!
आठवी तक तो किसी को नहीं करना है फेल !
शिक्षा स्तर सुधारने वाह रे सुन्दरतम खेल !!
शत प्रतिशत हो जायेगी भविष्य में साक्षरता !
भारत की गरिमा महिमा मंडित करे अक्षरता !!
साक्षर शिक्षित विलग विलग हैन्यारे इनके भाव !
असंख्य शिक्षितों का साक्षर सा बना देगे स्वभाव !!
शिक्षित सह शिक्षित साक्षर पा रहे है राज काज !
निश्चित ही समाज पर गिर रहा है यह गाज !!
मन मार कर रहा है आम आदमी जहर पान !
ऐसी क़ानून डालेगी कैसे देश हित  नव जान !!
शिक्षा स्तरीय या स्तरहीन विषय वस्तु युक्त !
स्तरीय बनाने को होते है नित नवाचार प्रयुक्त !!
शिक्षा प्रारम्भांत सबको मिल सुधारनी ही होगी !
नित नव ज्ञान विज्ञान से संचालित करानी होगी !!
तब जाकर गली गली अलख जगाएगी सद शिक्षा !
फहरे परचम भारत का सर्व सुलभ हो सद शिक्षा !!

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

भक्तो में भरो नित न प्रकाश

जग मातु भारत भारती ,चराचरो की भाग्य है सवारती !
अमल-धवल निज सा, दे दो दान में हमें हे माँ सरस्वती !!१!!
जुग कर जोर नमन बन्दन,स्वर वीणा सा दो वीणावादिनी !
नव गति लय ताल छंद नव,जुग का दो ज्ञान ज्ञानदायिनी !!२!!
वेदधारिनी कमालासिनी ,हर चर-अचर में भर भुवन भाव !
सचर सत्वर आलोकित हो,किसलय सा हो  मन में  भाव !!३!!
स्फटिक मनका माला सा,एक हो माली हो मलय सुवास !
नवकंज लोचनी पाद्पद्मिनी,मन हो नव राग का आवास !!४!
वागेश्वरी परमेश्वरी ,परम सुर करे वाग में नित निवास !
जन मन विमल हो विमला ,भक्तो में हो नित नव प्रकाश !!५!!

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

एक रूपता हो जब

दूर दुर्विचार हो सदाचार प्रछन्न हो !नजर नरक नाक नव निर्माण में रत हो !!
कुत्सित मन मालिन्य मुक्त हो ! परस्पर प्रीति प्रेम पावन पवन प्रतिपल हो !!
पवन पाप ताप से तन रहित हो !मलयानिल सा सदा सत्कर्म रत तन हो !!
परहित दूषित भावना दूषण मुक्त हो !परकाज बाधा जन बधिक सा बध्य हो !!
पथिक को मंजिल कर्म धर्म सुलभ हो !निष्कर्म की कुकामाना कष्ट कंटक हो !!
पर दुःख सुखी का सुख दुःख रूप हो !पर सुख सुखी दुःख दुखी जग वन्दनीय हो !!
सोच सर्व हिताय कर्म का मिलन हो !दम्पत्ती सा कर्म कर्मी एक दूजे में रत हो !!
फल सुलभ श्रमसाध्य मनोनुकूल हो !दृष्टि सोच हाव भाव न पर प्रतिकूल हो !!
सत्कर्म धर्म आचरण न कलंकित हो !मिटे जिसकी भावना पर को मिटाती हो !!
राम राज्य हो अन्धेरपुर नगरी न हो !धर्म न्याय समानता हो विषमता न हो !!
एकरूपता हो जब मन मलिन न हो !धैर्य क्षमा दया करुणा जीवन आधार हो !!
सोच सार्थक निरर्थक बकवास न हो !तब हर थल नाक ,हर जन नाकपति हो !!

रविवार, 22 दिसंबर 2013

आदत

जन जन की लत पाती रहती गत ,
सुघर सुघरी सद्गती दायक मत !
काने खोरे कूबरे है अंगो से बिगरे ,
विरले अयबी भले अनभले  सिगरे !
श्वान पालित अपालित रक्षित अरक्षित ,
पूछ टेड़ी की टेड़ी हो भले यह संरक्षित !
आदत अलग -अलग पहचान बनाती है ,
रवि चन्द्र सा जग,जग जगाती है !
आदत ही है जो इन्सान को इन्सान बनाती है ,
लत डाल लिया जो जैसा उसे वैसा बनाती है !
विविध अभिधान आदत से आदती पाते है ,
ईमानदार बेईमान सहिष्णु असहिष्णु होते है !
आदत स्थायी है अस्थायी है बनती है बिगडती है ,
सुधरती है सुधारती है स्वयं ही स्वभाव बनाती है !
स्वभाव से सुन्दर अभाव दूर करे सबका ,
बिगाड़  दे बना काम जब स्वभाव हो कड़का !
आहार बिहार मानो शक्तिवर्धक है आदत का ,
संगति संगीत गीत झलकाती रंग दंग आदत का !
आदत और वाणी आधार स्तम्भ है ,
पाने गवाने बनाने बिगाड़ने की कसौटी  है !
पाते पान प्रतिपल प्रसाद प्रवीण आदती ,
खाते लात लत से सुधारे नहीं है जो लती !
ताकत प्रमाद प्रभुता का गली का शेर है बनाती ,
इनके मुक्त होते ही इनको रक्त का आँसू रुलाती !
आनन्द नन्द नन्द नन्दन का क्रंदन कारक कंस ,
आदत के वशीभूत गया,दिया जब अगनित दंस !
आज भी विभिन्न आदती झेलते है कष्ट ,
नहीं तैयार करने को अपनी आदत को नष्ट !
समय पर चेत रे जन चेत ,
नहीं तो हो ही जाओगे खेत !
नशा नाश है हर पल आ रहा पास है ,
ताश आश पाश सा जकड सर्वनाश है !
जैसे भी कैसे भी इनसे ले लो निजात ,
होगा भविष्य तुम्हारा नहीं खाओगे मात !
आदत तो अपने आप बनायी- बिनासायी जाती है ,
आदत इन्सान जानवर में तो न्यारी न्यारे होती है !
आदत से सुयोधन बन गया दुर्योधन है ,
करता कराता नाश धन मान मन है !
आदत रवि चन्द्र की कर्म धर्म को जताती है ,
गीता भी तो कर्म धर्म फर्ज पर मरना सिखाती है !
आदत मानव को दानव मानव देव बनाती है ,
बैल को नंदी बना शिव शिवा संग पुजाती है !
मान अपमान की जननी का करे सम्मान ,
साद कर्म रत साद आदत से ही बने महान !

अमिय - गरल सु जग - जीवन


अमिय रूप भव- कूप सदा, बढायें महा मान !
जीवन तो नश्वर यहाँ ,अमर होय यश- गान !!१!!
कथनी- करनी जब एकै ,सुदृढ़ यश- भवन नीव !
अजर-अमर हो कर्म सब ,राम धाम वह जीव !!२!!
जगत- हलाहल में रहत ,करत धरत शुभ काम !
जगत- अमिय उस हित बनत ,नित नव रचना नाम !!३!!
जग- जहर वन्दनीय नित ,रत इस हित सब लोग !
मादकता में बहक चित ,सत सत भोगे भोग !!४!!
श्वेत- श्याम जु अमिय - गरल ,करत विलग ही काम !
सुबह सुखद जीवन करत ,चलत सकल दुःख शाम !!५!!
अमिय- गरल सु जग- जीवन ,कर्म रत है हर पल !
पय व रम सा सुखद- दुखद ,दे रहा सब को फल !!६!!

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

सिय राम मय सब जग जानी !

सिय राम मय सब जग जानी !
सुन्दर तथ्य तुलसी ज़ुबानी !!
राम से राम सिया से सिया !
इस धरा पर इनसा कथ जिया !!
किसको माने राम किसको सिया !
सारे कुए में है जब भांग दे दिया !!
नकारात्मक आकंठ दिखे प्रेम पिया !
सकारात्मक हेतु दिखाना है दिया !!
मर्द को राम नारी को कैसे माने सिया !
पर्दा बेपर्दा आदर्श-मर्यादा को है पिया !!
दीप दिखा दिनकर को खुद बदा लिया !
आस्तिक नास्तिक सा है काम किया !!
आस्था तोड़ सात्विक जीवन है जिया !
कबीर है जहा राम को भरतार किया !!
रैदास मीरा सूर आदि ने है गीत दिया !
शान्ताकार संसार को वाणी दे दिया !!
ईश्वर की अद्भुत रचना मानव रूप लिया !
देव-दनुज इस रूप हेतु तरसाते है जिया !!
देव भूमि तपो भूमि भूसुर जप जाग किया !
ज्ञाताज्ञात मनीषी देशहित लगाए है जिया !!
भारत-भारती सुसंस्कृत संस्कार है सिया !
धर्म पालन हेतु रामने एक पत्नी व्रत लिया !!
मोहन मन मोर, मन्मथ मान मर्दन किया !
संतो ने यहाँ परमहंस बन परम सुख लिया !!
पागल बेवकूफ कहलाने वाले सत्कर्मी है धरा !
पानी बिजली कोयला चीनी खेल चारा नहीं चरा !!
नमन नित नव नव रूप-नाम धारी राम सिया को !
त्यागी योगी यती तपी धारे सदा ही जो धर्म को !!
मानव -धर्म ही धर्म मानवता से प्रेम कर्म जहा !
दूषित मानसिकता निश्चित भस्मीभूत वहा !!
सिय राम मय बन जायेगे सब बाल-बाला !
करे प्रणाम सब सदा त्याग सब जंजाला !!