सोमवार, 28 जून 2021

प्रतिबिम्ब

*((((प्रतिबिम्ब))))*

         *एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा?मेरे कर्मचारी,मेरी पत्नी,मेरे बच्चे और सभी लोग मतलबी हैं।कोई भी सही नहीं हैं क्या करूं ?*
*गुरु थोडा मुस्कुराये और उसे एक कहानी सुनाई।*
*एक गाँव में एक विशेष कमरा था जिसमे 1000 शीशे लगे थे।एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी।उसने देखा 1000 बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं और वो उन प्रतिबिम्ब बच्चो के साथ खुश रहने लगी।जैसे ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते।उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है और यहां बार बार आना चाहेगी।*
*थोड़ी देर बाद इसी जगह पर एक उदास आदमी कहीं से आया।उसने अपने चारो तरफ हजारों दु:ख से भरे चेहरे देखे।वह बहुत दु:खी हुआ।उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाकर हटाना चाहा तो उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे है।उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है वह यहां दोबारा कभी नहीं आएगा और उसने वो जगह छोड़ दी।*
*इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है जिसमें हजारों शीशे लगे है।जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वो ही प्रकृति हमें लौटा देती है।अपने मन और दिल को साफ़ रखें तब यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग की तरह ही है।
   
        🌷🌷जय गुरु देव🌷🌷

✓।।यथासंख्य अलंकार।।

             यथासंख्य अलंकार
परिभाषा:-भिन्न धर्म वाले अनेक निर्दिष्ट अर्थों का अनुनिर्देश यथासंख्य अलंकार कहलाता है। यथासंख्य का अर्थ हैं संख्या(क्रम) के अनुसार। इसमें एक क्रम से कुछ पदार्थ पहले कहे जाते हैं, फिर उसी क्रम से दूसरे पदार्थों से अन्वय किया जाता है।यह वाक्य न्यायमूलक अलंकार है।
उदाहरण:-
1.नीचे जल था ऊपर हिम था,
एक तरल था एक सघन।।
2.मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। 
  अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
3.जाके बल  बिरंचि  हरि ईसा।
    पालत सृजत हरत दससीसा।।
4.सचिव बैद्य गुरु तीनि जौ प्रिय बोलहि भय आस।
  राज  धर्म  तन  तीनि  कर  होइ  बेगही  नास।।
एक अद्भुत उदाहरण
5.बंदौ नाम राम रघुबर को।
   हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
यहाँ राम  के तीन वर्ण र,अ और म क्रमशः कृसानु, भानु,और हिमकर  के हेतु  अद्भुत ढंग से यथासंख्य अलंकार  के माध्यम बताये गये हैं।

                 ।। धन्यवाद  ।।

।।अनुमान अलंकार।।

              अनुमान अलंकार
परिभाषा:-प्रत्यक्ष के आधार पर अप्रत्यक्ष की कल्पना या अनुमान करना ही अनुमान अलंकार 
होता  है,यह एक तर्क न्यायमूलक अलंकार है।
उदाहरण:-
1.चलत मार अस हृदय बिचारा।
    सिव बिरोध ध्रुव मरन हमारा।।
2.छुवत सिला भइ नारि सुहाई।
   पाहन ते न   काठ   कठिनाई।।
   तरनिउ मुनि घरनी होइ जाई।
    बाट  परे  मोरि  नाव  उड़ाई।।
          ।।   धन्यवाद  ।।

।।काव्यलिंग अलंकार।।

काव्यलिंग अलंकार:-

किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को 'काव्यलिंग अलंकार' कहते है। यहाँ किसी बात के समर्थन में कोई-न कोई युक्ति या कारण अवश्य दिया जाता है।यह एक तर्क न्यायमूलक अलंकार है।बिना ऐसा किये वाक्य की बातें अधूरी रह जायेंगी।

उदाहरण:-

कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाए बौरात नर, इहि पाए बौराय।
धतूरा खाने से नशा होता है, पर सुवर्ण पाने से ही नशा होता है।
यह एक अजीब बात है।
यहाँ इसी बात का समर्थन किया गया है कि सुवर्ण में धतूरे से अधिक मादकता है।
दोहे के उत्तरार्द्ध में इस कथन की युक्ति पुष्टि हुई है। धतूरा खाने से नशा चढ़ता है, किन्तु सुवर्ण पाने से ही मद की वृद्धि होती है, यह कारण देकर पूर्वार्द्ध की समर्थनीय बात की पुष्टि की गयी है।

उदाहरण:-

2.स्याम गौर किमि कहौ बखानी।

  गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।

3.सिय सोभा नहि जाइ बखानी।

जगदम्बिका रूप गुन खानी।।

4.प्रभु ताते उर हतै न तेही।

एहि के हृदय बसति बैदेही।।

     ।।       धन्यवाद        ।।


।।विषम अलंकार।।

               विषम अलंकार
परिभाषा:-जहाँ कार्य और कारण से सम्बद्ध गुणों अथवा क्रियाओं का परस्पर विरोध उत्पन्न हो वहाँ  विषम अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.कस कीन्ह बरू बौराह *बिधि* जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई?।
जो फलु चहिअ सुरतरूहि सो बरबस बबूरहिं लागई।।
2.कोउ कह संकर चाप कठोरा।
   ये स्यामल मृदु गात किसोरा।।
          ।।   धन्यवाद   ।।

रविवार, 27 जून 2021

।। असंगति अलंकार ।।

           ।। असंगति अलंकार  ।।
परिभाषा :- 
जहाँ कारण कहीं और कार्य कहीं होने का वर्णन किया जाय वहाँ 'असंगति' अलंकार होता है।
 कार्यकारणयोर्भित्रदेशतायामसंगति
 साहित्यदर्पण आचार्य विश्वनाथ
'असंगति' का अर्थ होता है- नहीं संगति।
जहाँ कारण होता है, कार्य वहीं होना चाहिए।
चोट पाँव में लगे, तो दर्द वहीं होना चाहिए।
कारण कहीं, कार्य कहीं; चोट पाँव में लगे और दर्द सर में हो, तो यह असंगति हुई।
उदाहरण :-
1. तुमने पैरों में लगाई मेंहदी मेरी आँखों में समाई मेंहदी।
-अज्ञात मेंहदी लगाने का काम पाँव में हुआ, किंतु उसका परिणाम आँखों में दृष्टिगत हो रहा है।
इसलिए यहाँ 'असंगति' अलंकार है।
उदाहरण:-
2 . मनि मानिक मुकुता छबि जैसी।
     अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
     नृप किरीट तरुनी तनु पाई। 
     लहहिं सकल सोभा अधिकाई।।
     तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं।
    उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं॥
3.सुखस्वरूप रघुबंसमनि मंगल मोद निधान।
ते सोवत कुस डासि महि बिधि गति अति बलवान॥
4.राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा। 
  कहेउ जान बन केहिं अपराधा॥
         ।।  धन्यवाद  ।।

।।अल्प अलंकार।।

           ।।   अल्प अलंकार  ।।
परिभाषा:-बृहद आधार को अल्प बताया जाना ही   अल्प अलंकार  होता है।
उदाहरण:-
गूलरि फल समान तव लंका
 बसहु मध्य तुम्ह जंतु असंका॥ ..
तेरी लंका गूलर के फल के समान है। तुम सब कीड़े उसके भीतर (अज्ञानवश) निडर होकर बस रहे हो।
 देखें कैसे लंका और रावण को अल्प बताया गया है।
           ।।धन्यवाद।।

।। व्याघात अलंकार।।

           ।।  व्याघात अलंकार  ।।
परिभाषा:-अन्य किसी कारण के विरोधी नहीं होने पर भी जहाँ कारण कार्य का उत्पादन नहीं करता वहाँ    व्याघात अलंकार होता है।
उदाहरण:-
नाम प्रभाव जान शिव नीको। 
कालकूट फल दीन्ह अमी को॥


             ।।नमोराघवाय।।

।।विशेष अलंकार।।

          ।।  विशेष अलंकार ।।
परिभाषा:-आधेय का आधारहीन होना,एक का अनेक गोचर होना तथा असम्भाभ्य वतस्यन्तर का निष्पादन होना विशेष अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.नख आयुध गिरि पादपधारी।
   चले गगन महि इच्छाचारी॥
2.सतीं दीख कौतुकु मग जाता।
    आगें रामु सहित श्री भ्राता॥
     फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। 
      सहित बंधु सिय सुंदर बेषा॥
     जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। 
     सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना॥
3.मूदहु नयन बिबर तजि जाहू। 
   पैहहु सीतहि जनि पछिताहू।।
   नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा।
    ठाढ़े सकल सिंधु कें तीरा।।
             ।। धन्यवाद।।

।। अन्योन्य अलंकार ।।

        ।।       अन्योन्य अलंकार       ।।
परिभाषा:- दो पदार्थ यदि एक ही क्रिया परस्पर करें, तो अन्योन्य अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.राम तुम्हहि प्रिय तुम प्रिय रामही।
   यह निरजोसु दास बिधि बामही।।
2.भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै।
देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे॥
अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं।
दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं॥
              ।। धन्यवाद ।।

।।अधिक अलंकार।।

         ।।अधिक अलंकार।।
परिभाषा:- आधार और आधेय में किसी एक का आधिक्य वर्णन अधिक अलंकार कहलाता है।
उदाहरण:-
1.ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
  मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न    रहै।।
2.देखरावा मातही निज ,अद्धभुत रूप अखण्ड।  
    रोम -रोम प्रति लागे, कोटि- कोटि ब्रह्मांड।।
                    ।। धन्यवाद।।
 

।।विचित्र अलंकार।।

          ।। विचित्र अलंकार।।
परिभाषा:- अपने कारण से विपरीत फल की प्राप्ति के लिए प्रयत्न  विचित्र अलंकार है।
उदाहरण:-
1.जान आदिकबि नाम प्रतापू। 
  भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
2. मुनि हित कारन कृपानिधाना।
     दीन्ह कुरूप न जाइ बखाना।।
                   ।। धन्यवाद।।

।।सम अलंकार।।

        ।। सम अलंकार।।
परिभाषा:- दो वस्तुओं में योग्य रूप से सम्बन्ध वर्णन को  सम  अलंकार  कहते हैं।
उदाहरण:-
1.मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।
 अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥
2.भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
  सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु।।
                ।।    धन्यवाद     ।।

*जगत का पालनहार*

             *जगत का पालनहार*

किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे, उनके घर के नजदीक ही एक मंदिर था। एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आयी.... 
सुबह उन्होंने पुजारी जी को खूब डाँटा कि - यह सब क्या है?

पुजारी - एकादशी का जागरण कीर्तन चल रहा था...!! 

सेठजी - जागरण कीर्तन करते हो, तो क्या हमारी नींद हराम करोगे ? अच्छी नींद के बाद ही व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो पाता है, फिर कमाता है, तब खाता है।

पुजारी - सेठजी ! खिलाता तो वह खिलाने वाला ही है,

सेठजी - कौन खिलाता है ? क्या तुम्हारा भगवान खिलाने आयेगा ?

पुजारी - वही तो खिलाता है, 

सेठजी - क्या भगवान खिलाता है ? हम कमाते हैं, तब खाते हैं...

पुजारी - निमित्त होता है तुम्हारा कमाना, और पत्नी का रोटी बनाना, बाकी सब को खिलाने वाला, सब का पालनहार तो वह बिहारी ही है, 

सेठजी - क्या पालनहार-पालनहार लगा रखा है ! बाबा आदम के जमाने की बातें करते हो, क्या तुम्हारा पालने वाला एक - एक को आकर खिलाता है ? हम कमाते हैं, तभी तो खाते हैं, 

पुजारी - सभी को वही खिलाता है, 

सेठजी - हम नहीं खाते उसका दिया...

पुजारी - नहीं खाओ तो मारकर भी खिलाता है, 

सेठ - पुजारी जी ! अगर तुम्हारा भगवान मुझे चौबीस घंटों में नहीं खिला पाया तो फिर तुम्हें अपना यह भजन कीर्तन सदा के लिए बंद करना होगा, 

पुजारी -मैं जानता हूँ कि तुम्हारी पहुँच बहुत ऊपर तक है, लेकिन उसके हाथ बड़े लम्बे हैं, जब तक वह नहीं चाहता, तब तक किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता, आजमाकर देख लेना....

पुजारी की निष्ठा परखने के लिये सेठ जी घोर जंगल में चले गये और एक विशालकाय वृक्ष की ऊँची डाल पर ये सोचकर बैठ गये कि अब देखता हूँ, इधर कौन खिलाने आता है ? चौबीस घंटे बीत जायेंगे और पुजारी की हार हो जायेगी। सदा के लिए कीर्तन की झंझट मिट जायेगी...

तभी एक अजनबी आदमी वहाँ आया... उसने उसी वृक्ष के नीचे आराम किया, फिर अपना सामान उठाकर चल दिया, लेकिन अपना एक थैला वहीं भूल गया। भूल गया या छोड़ गया, ये ईश्वर ही जाने....

थोड़ी देर बाद पाँच डकैत वहाँ पहुँचे, उनमें से एक ने अपने सरदार से कहा, - उस्ताद ! यहाँ कोई थैला पड़ा है, 

क्या है ? जरा देखो ! खोल कर देखा, तो उसमें गरमा-गरम भोजन से भरा टिफिन था ! उस्ताद भूख लगी है, लगता है यह भोजन भगवान ने हमारे लिए ही भेजा है...

अरे ! तेरा भगवान यहाँ कैसे भोजन भेजेगा ? हम को पकड़ने या फँसाने के लिए किसी शत्रु ने ही जहर-वहर डालकर यह टिफिन यहाँ रखा होगा, अथवा पुलिस का कोई षडयंत्र होगा, इधर - उधर देखो जरा, कौन रखकर गया है... उन्होंने इधर-उधर देखा, लेकिन कोई भी आदमी नहीं दिखा, तब डाकुओं के मुखिया ने जोर से आवाज लगायी, कोई हो तो बताये कि यह थैला यहाँ कौन छोड़ गया है ?

सेठजी ऊपर बैठे-बैठे सोचने लगे कि अगर मैं कुछ बोलूँगा तो ये मेरे ही गले पड़ जायेंगे... वे तो चुप रहे,लेकिन जो सबके हृदय की धड़कनें चलाता है, भक्तवत्सल है, वह अपने भक्त का वचन पूरा किये बिना शान्त नहीं रह सकता...

उसने उन डकैतों को प्रेरित किया उनके मन में प्रेरणा दी कि .. 'ऊपर भी देखो, उन्होंने ऊपर देखा तो वृक्ष की डाल पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा, डकैत चिल्लाये - अरे ! नीचे उतर!

सेठजी बोले - मैं नहीं उतरता, 

डकैत - क्यों नहीं उतरता, यह भोजन तूने ही रखा होगा.

सेठजी - मैंने नहीं रखा, कोई यात्री अभी यहाँ आया था, वही इसे यहाँ भूलकर चला गया,

डकैत - नीचे उतर! तूने ही रखा होगा जहर मिलाकर, और अब बचने के लिए बहाने बना रहा है, अब तुझे ही यह भोजन खाना पड़ेगा.... 

सेठजी - मैं नीचे नहीं उतरूँगा और खाना तो मैं कतई नहीं खाऊँगा, 

डकैत - पक्का तूने खाने में जहर मिलाया है, अब नीचे उतर और ये तो तुझे खाना ही होगा, 

सेठजी - मैं नहीं खाऊँगा, नीचे भी नहीं उतरूँगा, 

अरे कैसे नहीं उतरेगा, सरदार ने एक आदमी को हुक्म दिया इसको जबरदस्ती नीचे उतारो... डकैत ने सेठ को पकड़कर नीचे उतारा... 

डकैत - ले खाना खा!

सेठ जी - मैं नहीं खाऊँगा, 

उस्ताद ने चटाक से उसके मुँह पर तमाचा जड़ दिया... सेठ को पुजारी जी की बात याद आ गयी कि - नहीं खाओगे तो, मारकर भी खिलायेगा....

सेठ फिर भी बोला - मैं नहीं खाऊँगा... 

डकैत - अरे कैसे नहीं खायेगा ! इसकी नाक दबाओ और मुँह खोलो, डकैतों ने सेठ की नाक दबायी, मुँह खुलवाया और जबरदस्ती खिलाने लगे, वे नहीं खा रहे थे, तो डकैत उन्हें पीटने लगे... 

तब सेठ जी ने सोचा कि ये पाँच हैं और मैं अकेला हूँ, नहीं खाऊँगा तो ये मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे, इसलिए 

चुपचाप खाने लगे और मन-ही-मन कहा - मान गये मेरे बाप ! मार कर भी खिलाता है!

डकैतों के रूप में आकर खिला, चाहे भक्तों के रूप में आकर खिला लेकिन खिलाने वाला तो तू ही है, आपने पुजारी की बात सत्य साबित कर दिखायी.... 

सेठजी के मन में भक्ति की धारा फूट पड़ी...उनको मार-पीट कर ... डकैत वहाँ से चले गये, तो सेठजी भागे और पुजारी जी के पास आकर बोले -

पुजारी जी ! मान गये आपकी बात... कि नहीं खायें तो वह मार कर भी खिलाता है....!!!

सार - सत्य यही है कि परमात्मा  ही जगत की व्यवस्था का कुशल संचालन करते हैं । अतः परमात्मा पर विश्वास ही नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास होना चाहिए.
साभार
                ।।   जय श्री राम     ।।

आत्म मूल्यांकन



                 *आत्म मूल्यांकन*

कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को  देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी। मौत आँखों में लिए वह फरियाद करने लगी-‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं। आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें। मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी। 

बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा। वह निर्लिप्त भाव से बोला-‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूँ। जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे, हर प्राणी को एक न एक दिन तो मरना ही है। समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है। यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा।

मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे, बकरी यह कहकर रोने लगी।

तुम मूर्ख हो, रोने से बेहतर है कि भगवान का नाम लिया जाए। याद रखें, मृत्यु नए जीवन का द्वार है। सांसारिक संबंध मोह का परिणाम हैं।" संत ने उपदेश दिया।

बकरी निराश हो गई।

पास में खड़े एक कुत्ता जो पूरे दृश्य से अवगत था, उसने पूछा- संन्यासी महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं?

लपककर संन्यासी ने जवाब दिया-‘बिलकुल, भरा-पूरा परिवार था मेरा। सुंदर पत्नी, सुशील भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-ताऊ, बेटा-बेटी। बेशुमार जमीन-जायदाद। मैं एक ही झटके में सब कुछ छोड़कर परमात्मा की शरण में चला आया। सांसारिक प्रलोभनों से बहुत ऊपर, सब कुछ छोड़ आया हूँ। मोह-माया का यह निरर्थक संसार छोड़ आया हूँ। जैसे कीचड़ में कमल संन्यासी डींग मारने लगा।

कुत्ते ने समझाया- आप चाहें तो बकरी की प्राणरक्षा कर सकते हैं। कसाई आपकी बात नहीं टालेगा। एक जीव की रक्षा हो जाए तो कितना उत्तम हो।

संन्यासी ने कुत्ते को जीवन का सार समझाना शुरू कर दिया- ‘मौत तो निश्चित ही है, आज नहीं तो कल, हर प्राणी को मरना है। इसकी चिंता में व्यर्थ स्वयं को कष्ट देता है जीव।' संन्यासी को लग रहा था कि वह उसे संसार के मोह-माया से मुक्त कर रहा है।

अभी संन्यासी अपना ज्ञान बघार ही रहा था कि तभी सामने एक काला भुजंग नाग फन फैलाए दिखाई पड़ा। वह संन्यासी पर न जाने क्यों कुपित था। मानों ठान रखा हो कि आज तो तूझे डंसूगा ही।

सांप को देखकर संन्यासी के पसीने छूटने लगे। मोह-मुक्ति का प्रवचन देने वाले संन्यासी ने कुत्ते की ओर मदद के लिए देखा। 

कुत्ते की हंसी छूट गई। ‘संन्यासी महोदय मृत्यु तो नए जीवन का द्वार है। उसको एक न एक दिन तो आना ही है, फिर चिंता क्या? कुत्ते ने संन्यासी के वचन दोहरा दिए।

‘इस नाग से मुझे बचाओ।’ अपना ही उपदेश भूलकर संन्यासी गिड़गिड़ाने लगा। मगर कुत्ते ने उसकी ओर ध्यान न दिया।

कुत्ते ने चुटकी ली- ‘आप अभी यमराज से बातें करें। जीना तो बकरी चाहती है। इससे पहले कि कसाई उसको लेकर दूर निकल जाए, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है।

इतना कहते हुए कुत्ता छलांग लगाकर नाग के दूसरी ओर पहुँच गया। फिर दौड़ते हुए कसाई के पास पहुँचा और उस पर टूट पड़ा।

आकस्मिक हमले से कसाई संभल नहीं पाया और घबराकर इधर-उधर भागने लगा। बकरी की पकड़ ढीली हुई तो वह जंगल में गायब हो गई।

कसाई से निपटने के बाद कुत्ते ने संन्यासी की ओर देखा। संन्यासी अभी भी ‘मौत’ के आगे कांप रहा था।

कुत्ते का मन हुआ कि संन्यासी को उसके हाल पर छोड़कर आगे बढ़ जाए लेकिन अंतरात्मा की आवाज नहीं मानी। वह दौड़कर विषधर के पीछे पहुँचा और पूंछ पकड़ कर झाड़ियों की ओर उछाल दिया।

संन्यासी की जान में जान आई। वह आभार से भरे नेत्रों से कुत्ते को देखने लगा।

कुत्ता बोला- ‘महाराज, जहाँ तक मैं समझता हूँ , मौत से वही ज्यादा डरते हैं, जो केवल अपने लिए जीते हैं।

एक इंसान और एक जानवर में क्या अंतर है जो केवल अपनी परवाह करता है? जानवर भी दूसरों का ख्याल रखते हैं

गेरुआ पहनकर निकल जाने या कंठी माला डालकर प्रभु नाम जपने से कोई प्रभु का प्रिय नहीं हो जाता। जिसके मन में दया और करूणा नहीं उनसे तो ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होते हैं।

धार्मिक प्रवचन केवल पापबोध से कुछ पल के लिए बचा लेते हैं परंतु जीने के लिए संघर्ष अपरिहार्य है और यही वास्तविकता है। मन में यदि करुणा-ममता न हों तो धार्मिक रीतियाँ भी आडंबर बन जाती हैं।
साभार
          ।।      जय श्री राम       ।।

     

।। सोलह सिंगार ।।

     ।।  सोलह सिंगार/षोडश श्रृंगार  ।।
    सोलह सिंगार/षोडश श्रृंगार को जानने से पहले हम रामचरितमानस के सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड के दोनों ग्यारहवें दोहों को देखते हैं।गोस्वामीजी ने दो दोहे देकर बहुजन हिताय बहुजन सुखाय राम राज्याभिषेक की बात किया जहाँ राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि। दोहों का आनन्द लेवें--
  सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ।
  दिब्य बसन बर भूषन अंग अंग   सजे   बनाइ।।
  राम बाम दिसि  सोभति  रमा रूप गुन खानि।
  देखि मातु सब हरषी जन्म सुफल निज जानि।।
       राज्याभिषेक समय दिव्य बसन बर भूषन ही तो सोलह सिंगार हैं जिनके बारे में किसी कवि ने कहा है-
     अंग शुचि  मंजन  बसन  माँग महावर  केश।
     तिलक भाल तिल चिबुकमें भूषण मेहँदी वेश।।
     मिस्सी  काजल  अर्गजा  बीरी  और सुगंध।
     पुष्पकलीयुत  होइ कर तब नवसप्त निबन्ध।।
कवि केशवदास के शव्दों में
प्रथम सकल सुचि मज्जन अमल वास
        जावक सुदेश किस पास को सम्हारिबो।
अंग राज भूषन विविध मुखबास-राग
        कज्जल ललित लोल लोचन निहारिबो।।
बोलन हँसन मृदु चलन चितौनि चारु
                पल पल पतिव्रत पन प्रतिपालिबो।
केसौदास सो विलास करहु कुँवरि राधे
            इहि बिधि सोरहौ सिंगारन सिंगारिबो।।
 अब इन्हें हम क्रम से गिनते हैं--
   उबटन,स्नान,वस्त्र,माँग भरना या माँग बनाना, महावर लगाना,बाल संवारना, तिलक लगाना,चिबुक अर्थात ठोड़ी पर तिल बनाना, बारह प्रकार के आभूषण धारण करना,मेहँदी लगाना,दाँतो में मिस्सी लगाना, आँखों में
काजल लगाना,अरगजा अर्थात सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग करना,बीरी अर्थात पान खाना, सुगन्ध अर्थात सुन्दर पुष्पों की माला धारण करना और सोलहवाँ पुष्पकलीयुत अर्थात नील कमल धारण करना। ये होते है सोरह सिंगार।
        आभूषण की बात है तो जान ले आभूषण चार प्रकार के हैं
             आवेध्य अर्थात छिद्र द्वारा पहने जाने वाले जैसे नाक-कान के आभूषण; बंधनीय अर्थात  बाँधकर पहने जाने वाले जैसे शिर,कमर और बाजू के आभूषण; क्षेप्यअर्थात अंग में डालकर पहने जाने वालेजैसे हाथ, अँगुली, पैर के आभूषण और आरोग्य  अर्थात अंगों में लटकाकर पहने जाने वाले जैसे गला आदि के आभूषण।
    केशवदासजी की पक्तियों को तो देख ही ले---

बिछिया अनौट बांके घुंघरू जराय जरी।
जेहरि छबीली छुद्रघंटिका की जालिका।।
 
मूंदरी  उदार  पौंउची  कंकन वलय चूरी।
कंठ   कंठमाल  हार  पहने   गुणालिका।।
 
बेणीफूल   सीसफूल  कर्णफूल मांगफूल।
खुटिला  तिलक नकमोती सोहै बालिका।
 
केसौदास नीलबास ज्योति  जगमग रही।
देह  धरे  स्याम संग  मानो  दीपमालिका।।
   इस प्रकार श्रृंगार कर जब जनकसुता जग जननी जानकी राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि तब राम राज्याभिषेक हुवा जिसकी प्रतीक्षा में जन-जन रहे और हम भी माताओं के साथ अपना-अपना जन्म सुफल करते हैं देखि मातु सब हरषि जन्म सुफल निज जानि। 
          ।।जय सियाराम जय जय हनुमान।।
  

शनिवार, 26 जून 2021

Possessives Part 2nd

          ।।Possessives Part 2nd।।
नियम:-हिन्दी के अपना,अपनी,अपने इन तीन विशेषणों से जहाँ काम चल जाता है वही अंग्रेजी में इन तीनों के लिए सात my, our, your, his, her, its और their का प्रयोग होता है।
       इन सातों विशेषणों का प्रयोग करते समय ध्यान रखें कि किस पुरुष के लिए हिन्दी वाक्य में अपना, अपनी, अपने आये हैं फिर उस पुरूष के लिंग और वचन का ध्यान रख इनका प्रयोग करें।ध्यान रखें---
 I,we,you,he या एक पुरुष, she या एक स्त्री, it या एक छोटे जीव,निर्जीव, अन्य, they या अनेक स्त्री, पुरुष अन्य के साथ क्रमशः my,our,your,his,her,its और their का प्रयोग होगा।
      इसी प्रकार ध्यान रखें कि मेरा, मेरी, मेरे=my ; हमारा,हमारी,हमारे=our; तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे=your; उसका, उसकी, उसके(he, she, it के अनुसार)=his, her, its और उनका, उनकी ,उनके बहुवचन  = their का प्रयोग किया जाता है।
Example:-
1.I sleep in my room.
2.We love our country.
3.You respect your elders.
4.Ram/He loves his parents.
5.Sita/She loves her husband.
6.The bitch/It licks its pup.
7.People love their home.
विशेष:-
कभी- इनके साथ own का प्रयोग जोर देने के लिए किया जाता है, ध्यान रखे own का प्रयोग Possessive के साथ ही होगा अकेले नहीं।
जैसे:-
We love own  country.(wrong)
We love our own  country.( right)
          ।। Thanks  ।। 


Possessives Part 1st

       ||Possessives Part 1st||
सम्बन्ध कारक को possessive कहते हैं।possessive का प्रयोग noun/pronoun के साथ होता है।possessive के दो रूप होते हैं।प्रथम सर्वनाम होते हुवे भी विशेषण होते हैं जो विशेषणों की तरह संज्ञा से पहले आते हैं।द्वितीय पूर्णतः सर्वनाम  होते हैं और इनके बाद कभी कोई संज्ञा नहीं आती है।
इन्हें निम्न चार्ट से समझते हैं


     
Subj  ObjPossessive adjective Possessive pronoun
I me     my      mine
you you     your      yours
he him     his      his
she her     her      hers
it it      its      its
we us      our      ours
they them      their      theirs

 1.ऊपर  के सात Possessive adjectives जैसे-my,your,his,her,its,our और their ये शव्द सर्वनाम(pronoun) होते हुवे भी विशेषण(adjective) हैं,इनके बाद कोई न कोई संज्ञा(noun) अवश्य आती है।

Example:-

 Her husband is a graduate.

-It is your duty.

-They follow their faith.

2.ऊपर के सातPossessive pronouns जैसे-mine,yours,his hers,its,ours और theirs ये शव्द सर्वनाम ही हैं, अतः इनके बाद कोई संज्ञा( noun) नहीं आयेगी क्योकि सर्वनाम के बाद संज्ञा का प्रयोग नहीं होता है।

Note:-  Never use apostrophe 's' with  Possessive pronouns .

Example:-
-This book is mine.
-This fault is theirs.
               ।।।  Thanks  ।।।

बुधवार, 23 जून 2021

।। अलंकार सम्बन्धित प्रश्नोत्तर।।

     आइये आज हम  सभी क्लासेज एवं सभी कंपेटिशन्स के लिए मोस्ट इम्पॉर्टेन्ट अलंकार सम्बन्धित प्रश्नोत्तर को विस्तार से जानें और लाभ उठायें।

प्रश्न-1- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।वा खाए बौराय जग, वा पाए बौराय।। यहाँ कौन सा अंलकार हैं?

उत्तर- यमक 

प्रश्न-2- जहाँ बिना किसी कारण के कार्य का होना पाया जाय वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?

उत्तर-विभावना अलंकार

प्रश्न-3-   जहाँ उपमेय में अनेक उपमानों की शंका होती है वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?

उत्तर-सन्देह अलंकार

प्रश्न-4- दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही संध्या-सुन्दरी परी सी धीरे-धीरे-धीरे।  इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

उत्तर-मानवीकरण अंलकार

प्रश्न-5- तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं। इस पंक्ति में कौन सा अंलकार है?

उत्तर-यमक अलंकार

प्रश्न-6- रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारै करै, बढ़े अंधेरो होय। यहाँ कौन सा अंलकार है?

उत्तर- श्लेष अलंकार

प्रश्न-7- संदेसनि मधुवन कूप भरे यहाँ कौन सा अंलकार है?

उत्तर-अतिशयोक्ति अलंकार

प्रश्न-8- तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

उत्तर-अनुप्रास अलंकार

प्रश्न-9- पापी मनुज भी आज मुख से  राम नाम निकालते । इस  पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

उत्तर- विरोधाभास अलंकार

प्रश्न-10- खिली हुई हवा फिरकी सी आई चली गई।  इस पंक्ति में कौन साअलंकार है?

उत्तर- उपमा अलंकार

प्रश्न-11- उपमेय में उपमान का निषेध रहित आरोप हो  तो कौन सा अंलकार होता है?

उत्तर- रूपक अलंकार

प्रश्न-12-  सुबरन को खोजत फिरत कवि व्यभिचारी चोर। इस पंक्ति में कौन सा अंलकार है?

उत्तर- श्लेष अलंकार

प्रश्न-13-  सारंग ले सारंग चली कर सांरग की ओट,

              सारंग झीनो देखकर सारंग कर गयी चोट।।

            यहाँ कौन-सा अलंकार  है?

उत्तर-यमक अलंकार

प्रश्न-14-बढ़त-बढ़त संपति-सलिल, मन -सरोज बढ़ जाइ। घटत-घटत पुनि ना घटे,बरु समूल कुम्हलाइ।। इस पंक्ति में कौंन सा अलंकार है?

उत्तर-  रूपक अलंकार

प्रश्न-15- नवल सुन्दर श्याम शरीर में ।यहाँ कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- उल्लेखअलंकार

प्रश्न-16-पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय। प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- लाटानुप्रासअलंकार

प्रश्न-17- पानी बिच मीन प्यासी मोहि सुनि सुनि आवै हासी । यहाँ कौन सा अलंकार है?

उत्तर- विशेषोक्ति अलंकार

प्रश्न-18-  जब किसी सामान्य बात का विशेष बात से तथा विशेष बात का सामान्य बात से सर्मथन किया जाए,  तब वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?

उत्तर- अर्थान्तरन्यासअलंकार

प्रश्न-19- चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटों से। यहाँ कौन-सा अंलकार है?

उत्तर- अनुप्रास अंलकार

प्रश्न-20- चरन-कमल बन्दौ हरि राई। यहाँ कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- रूपक अंलकार

प्रश्न-21- उसी तपस्वी से लंबे थे, देवदार दो चार खड़े ।इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- प्रतीप अंलकार 

प्रश्न-22- अब अलि रही गुलाब में, अपत कटीली डार।कौन-सा अंलकार है?

उत्तर- अन्योक्ति अंलकार

प्रश्न-23- कुन्द इन्दु सम देह, उमा रमन करुनाअयन।यहाँ कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- उपमा अंलकार

प्रश्न-24- कबिरा सोई पीर है, जे जाने पर पीर।जो पर पीर न जानई, सो काफिर बे पीर।यहाँ कौन सा अलंकार है ?

उत्तर- यमक अंलकार

प्रश्न-25- पट-पीत मानहुँ तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरं। इस पक्ति में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- उत्प्रेक्षा अलंकार

प्रश्न-26- नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल ।अली कली ही सौं बिध्यौं, आगे कौन हवाल ।।यहाँ कौन सा अलंकार है ?

उत्तर- अन्योक्ति अंलकार

प्रश्न-27- ध्वनि-मयी कर के गिरि-कंदरा। कलित-कानन केलि निकुंज को । यहाँ कौन-सा अलंकार है ?

उत्तर-  अनुप्रास अलंकार

प्रश्न-28 -माली आवत देखकर,कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये,कालि हमारी बारि॥ यहाँ कौन सा अलंकार  है ?

उत्तर- अन्योक्ति अलंकार

प्रश्न- 29 - जब उपमेय तथा उपमान में पूर्ण रूपेण भ्रम हो जाए तब  वहाँ कौन सा अलंकार होता है?

उत्तर-भ्रांतिमान अलंकार

प्रश्न -30- पीपर पात सरिस मन डोला।यहाँ कौनसा अलंकार है?

उत्तर-उपमा अलंकार

प्रश्न -31-देखि सुदामा की दीन दशा करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुओ नहिं नयनन के जल सो पग धोये।।यहाँ कौनसा अलंकार है?उत्तर-अतिश्योक्ति अलंकार

प्रश्न- 32 - जहाँ समानता की बात संभावना के रूप में की जाए वहाँ कौन सा अलंकार होता है?

उत्तर- उत्प्रेक्षा अलंकार

प्रश्न -33 -रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए न उबरे, मोती मानुस चून।यहाँ  कौन सा अलंकार है?

उत्तर- श्लेष अलंकार
प्रश्न -34 - अलंकार का शाब्दिक अर्थ है-

उत्तर-आभूषण (ornament)

प्रश्न -35 - मेरी भव बाधा हरे राधा नागरि सोय।

              जा तन की झाई परे श्याम हरित दुति होय। यहाँ कौन सा अलंकार है?

उत्तर- श्लेष अलंकार

प्रश्न -36- ले चला साथ मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक। यहाँ कौन सा अलंकार है? 

उत्तर-उत्प्रेक्षा अलंकार

 प्रश्न - 37- पच्छी परछीने ऐसे परे पर छीने बीर।

                  तेरी बरछी ने बर छीने है खलन के।। 

यहाँ कौन सा अलंकार है? 

उत्तर- यमक अलंकार
प्रश्न -38-'वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे' में कौन सा अलंकार है? 

उत्तर-यमक अलंकार

 प्रश्न -  39- अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी। यहाँ कौन सा अलंकार है? 

उत्तर-रूपक  अलंकार

 प्रश्न - 40-काली घटा का घमंड घटा।यहाँ में कौन सा अलंकार है?

उत्तर- यमक अलंकार 

प्रश्न - 41- संतो-भाई आई ज्ञान की आंधी रे। यहाँ कौन सा अलंकार है? 

उत्तर-रूपक अलंकार
प्रश्न - 42- जेते तुम तारे, तेते नभ में न तारे ।यहाँ कौन सा अलंकार है?
उत्तर- यमक अलंकार 
प्रश्न-43-जब काव्य में एक ही शब्द के कई अर्थ होतें हैं तब  कौन सा अलंकार होता है?
उत्तर-श्लेष अलंकार
प्रश्न-44- जब एक ही शब्द का कम से कम दो बार या दो से अधिक बार भी भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हो तो वहाँ कौन सा अलंकार होता है?
उत्तर-यमक अलंकार
 प्रश्न-45- एक कबूतर देख हाथ में पूछा, कहाँ अपर है ?
उसने कहा, अपर कैसा ? वह तो उड़ गया सपर है। यहाँ कौन सा अलंकार है?
उत्तर- वक्रोक्ति अलंकार
 प्रश्न-46- जहाँ आदर,घृणा,हर्ष,शोक,विस्मय आदि भावों को प्रभावशाली रूप में व्यक्त करने के लिए किसी शब्द की आवृत्ति होती है,वहाँ  कौन सा अलंकार होता है?
उत्तर- विप्सा अलंकार
 प्रश्न-47-   जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तब  वहाँ कौन सा अलंकार होता है?
उत्तर- अनुप्रास अलंकार
 प्रश्न-48-झूम झूम मृदु गरज गरज घनघोर। यहाँ कौन सा अलंकार है?
उत्तर- पुनरुक्ति अलंकार
 प्रश्न-49-जहाँ उपमान(अप्रस्तुत,अप्रत्यक्ष) के वर्णन द्वारा उपमेय (प्रस्तुत,प्रत्यक्ष) की प्रतीति कराई जाती है, वहाँ  कौन सा अलंकार होता है?
उत्तर-अन्योक्ति अलंकार
 प्रश्न-50-शिव शिव शिव कहते हो यह क्या?
          ऐसा फिर मत कहना.
          राम राम यह बात भूलकर,
          मित्र कभी मत गहना। यहाँ कौन सा अलंकार है?
उत्तर- विप्सा अलंकार
प्रश्न-51-जिस शब्द से कहने वाले व्यक्ति के कथन का अभिप्रेत अर्थ ग्रहण न कर श्रोता अन्य ही कल्पित या चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे तब वहाँ कौन सा अलंकार होता है?
उत्तर- वक्रोक्ति अलंकार
 प्रश्न-52-कानन कठिन भयंकर भारी। घोर घाम  हिम बारि बयारी।यहाँ कौन सा अलंकार है?
उत्तर-अनुप्रास अलंकार
 प्रश्न-53-
कहअंगद सलज्ज जग माहीं।रावन तोहि समान कोउ नाहीं॥
कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी॥
यहाँ कौन सा अलंकार है?
उत्तर- वक्रोक्ति अलंकार
               ।।धन्यवाद।।

√।।मानवीकरण अलंकार Personification।।

।।मानवीकरण अलंकार  Personification।।

यह मूलतः English का अलङ्कार है।अतः हम English,हिन्दी दोनों में इसे समझते हैं।
अंग्रेजी परिभाषा:- 
  In personification inanimate objects and abstract ideas are spoken of as if they have life and intelligence.
हिन्दी परिभाषा :-
   जब निर्जीव वस्तुओं तथा भावनात्मक विचारों को सजीव मान लिया जाय तब वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
 दूसरे शब्दों में जब निर्जीव/अचेतन वस्तुओं (Lifeless/inanimate objects) तथा भावनात्मक/अमूर्त  विचारों (Emotional or Abstract Ideas) को सजीव/मनुष्य (Alive/human)जैसा व्यवहार करता  दिखाया जाय  तब वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।  
देखें कुछ अंग्रेजी के उदाहरण जिन्हें  हम हिन्दी में भी लिख सकते हैं।
(1)Love is blind.
प्यार अन्धा होता है।
(2) A lie has ni lags.
झूठ के पैर नहीं होते।
(3)Time and tide wait for none.
समय और ज्वार किसी का इंतजार नहीं करते।
 हिन्दी के उदाहरण
(1)मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
(2) फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।
(3)उषा सुनहरे तीर बरसती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।उधर पराजित कालरात्रि भी, जल में अंतर्निहित हुई । 
(4)दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही संध्या सुंदरी परी-सी  धीरे-धीरे-धीरे।
(5) बीती विभावरी जाग री,अम्बर पनघट में डुबो रही          तारा घट ऊषा नागरी।
(6)सैकत शैया पर दुग्ध धवल,
    तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल,
    लेटी है श्रान्त क्लान्त निश्चल।
यहाँ कवि ने गंगा को रेत की शैया पर थककर चुपचाप लेटी हुई दुबली नारी के रूप में चित्रित किया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।
इस प्रकार  मानवीकरण अलंकार अपनी विशेषताओं के कारण  हिन्दी की सभी कक्षाओं और सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्त्वपूर्ण अलंकार है। 

                   ।।   धन्यवाद   ।।b

मंगलवार, 22 जून 2021

।।एकादशी व्रत विधान और योगिनी एकादशी।।

एकादशी को फलाहार कियाजाता है।एकादशी के दिन तुलसी सहित किसी भी पौधे या बृक्ष  से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित हैॐ नमो भगवते वासुदेवाय' ....इस द्वादश मंत्र का जाप करें।फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए।  केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर ग्रहण करना चाहिए।एकादशी का व्रत पुण्य संचय करने में सहायक होता है। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना महत्त्व है।एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही एकादशी है।" कठिन तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेध आदि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, इन सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त होता है। एकादशी को 'ग्यारस या ग्यास' भी कहते हैं।एकादशी के स्वामी 'विश्वेदेवा' हैं। व्रतों में  एकादशी व्रत श्रेष्ठ है। यह चारों वर्णों के लिये सदा ही पालनीय व्रत है।वर्ष के प्रत्येक मास के शुक्ल व कृष्ण पक्ष मे आनेवाले एकादशी तिथियों के नाम--वैदिक मास  -  देवता  -  कृष्ण पक्ष   -   शुक्लपक्ष चैत्र            -   विष्णु  -  पापमोचनी   - कामदा
वैशाख       -  मधुसूदन  -  वरूथिनी    -  मोहिनी ज्येष्ठ          - त्रिविक्रम   -   अपरा      - निर्जला  आषाढ़       -  वामन -       योगिनी  -    देवशयनी  श्रावण        -श्रीधर    -     कामिका        -  पवित्रा भाद्रपद       -हृषीकेश  -    अजा     -   परिवर्तिनी  आश्विन      - पद्मनाभ    -  इन्द्रा    -     पापांकुशा  कार्तिक      - दामोदर    - रमा    -     देवोत्थानी मार्गशीर्ष     - केशव  -       उत्पन्ना   -     मोक्षदा    पौष             -नारायण   -  सफला   -    पुत्रदा माघ             -माधव    -    षटतिला   जया
फाल्गुन        -गोविंद -    विजया  - आमलकी अधिक         -पुरुषोत्तम  -   परमा         -पद्मिनी     षोडशोपचार भगवान विष्णु का पूजन करें।उपचारों के नाम ये हैं– आसन, वस्त्र, पाद्य, अर्घ्य, पुष्प, अनुलेपन, धूप, दीप, नैवेद्य, यज्ञोपवीत, आभूषण, गन्ध, स्नानीय पदार्थ, ताम्बूल, मधुपर्क और पुनराचमनीय जल।ध्यान------कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभनं।नासाग्रे  वरमौक्तिकं  करतले  वेणु:  करे.  कंकणं॥सर्वांगे  हरि  चन्दनं  सुललितं  कंठे  च   मुक्तावली।गोपस्त्रीपरिवेष्टितो.  विजयते    गोपाल चूडामणि:॥नमोऽस्‍त्‍वनन्‍तायसहस्‍त्रमूर्तये।सहस्‍त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते।सहस्रकोटीयुगधारिणे नम: ।। ऊं नमो नारायणाय पुरुषाय महात्‍मनेविशुद्धसत्‍वधीस्‍थाय महाहंसाय धीमहि।।एकादशी माता की आरतीॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै।।ॐ।।विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की।।ॐ ।।चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,नाम निर्जला सब सुख करनी,शुक्लपक्ष रखी।।ॐ।। योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की,परिवर्तिनी शुक्ला।इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में,व्रत से भवसागर निकला।।ॐ।पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी।।ॐ ।।जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।ॐ।।अथवा ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥जो ध्यावे फल पावे,दुःख बिनसे मन का,स्वामी दुःख बिनसे मन का ।सुख सम्पति घर आवे,सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं किसकी,स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।तुम बिन और न दूजा,तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी,स्वामी तुम अन्तर्यामी ।पारब्रह्म परमेश्वर,पारब्रह्म परमेश्वर,तुम सब के स्वामी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥तुम करुणा के सागर,तुम पालनकर्ता,स्वामी तुम पालनकर्ता ।मैं मूरख फलकामी,मैं सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति,स्वामी सबके प्राणपति ।किस विधि मिलूं दयामय,किस विधि मिलूं दयामय,तुमको मैं कुमति ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,ठाकुर तुम मेरे,स्वामी रक्षक तुम मेरे ।अपने हाथ उठाओ,अपने शरण लगाओ,द्वार पड़ा तेरे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा,स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,सन्तन की सेवा ॥ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।।भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥ॐ जय जगदीश हरे।।यदि व्रत और उपवास करके कोई नींद ले ले तो उसे उस व्रत का आधा ही फल मिलता है; व्रती पहले और बाद की सात-सात पीढ़ियों का तथा अपना भी अवश्य ही उद्धार करता है। व्रती मनुष्य निश्चय ही माता, पिता, भाई, सास, ससुर, पुत्री, दामाद तथा भृत्य-वर्ग का भी उद्धार कर देता हैयोगिनी एकादयोगिनी एकादशी व्रत कथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को "योगनी" अथवा "शयनी" एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं।जब युधिष्ठिर आषाढकृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं।मेघदूत में महाकवि कालिदास जी ने किसी शापित यक्ष के विषय में उल्लेख किया है। मेघदूत में वह यक्ष मेघ को  दूत स्वीकार कर उसके माध्यम से अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजता है, यह कथानक वहाँ प्राप्त होता है। कालिदास जी की वह मेघदूत की कथा इस कथा से प्रभावित हो सकती ।हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़।महीनेकेकृष्णपक्षकेदौरान,एकादशी तिथि, के दिन योगिनी एकादशी का शुभ अवसर मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के अनुसार, योगिनी एकादशी का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है, जिसका उल्लेख पद्म पुराण में भी किया गया है।ऐसा माना जाता है कि जो योगिनी एकादशी व्रत का पालन करता है, वह अपने अतीत और वर्तमान पापों से मुक्त हो जाता है।यह व्रत कई बीमारियों से राहत पाकर भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करता है।भक्त भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और दीर्घायु व कल्याण के साथ ही धन्य हो जाते हैं।भक्त मोक्ष का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं। योगिनी एकादशी के दिन व्रती को सुबह  जल्दी उठकर पवित्र स्नान करना होता है। दृढ़ समर्पण और निष्ठा का होना आवश्यक है।भक्तों को योगिनी  एकादशी का व्रत  करना चाहिए।भक्तों को भगवान की पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए।व्रत पूरा करने केलिए योगिनी एकादशी की कथा का पाठ करना आवश्यक है।भगवान की आरती की जानी चाहिए और फिर सभी को पवित्र भोजन (प्रसाद) वितरित करना चाहिए।भक्तों को भगवान विष्णु के मंदिर जाना चाहिए।योगिनी एकादशी व्रत की सभी रस्में पूरी करनी चाहिए।व्रत उस समय तक जारी रहता है जब तक एकादशी तिथि समाप्त होती है। विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ‘विष्णु सहस्रनाम’  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे आदि का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।योगिनी एकादशी की पूर्व संध्या पर दान करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, योगिनी एकादशी की कहानी बताती है कि एक बार हेममाली नामक एक माली था जो अपनी सुंदर पत्नी विशालाक्षी के साथ रहता था। हेममाली अलकापुरी राज्य में अपना कार्य करता था जिसका राजा कुवेर था।राजा, भगवान शिव का एक दृढ़ भक्त था और दैनिक रूप से भगवान शिव की पूजा और प्रार्थना करता था। भगवान शिव के लिए राजा को, माली मानसरोवर झील से ताजे फूल लाकर उन्हें भेंट करता था।हेममाली विशालाक्षी की सुंदरता के प्रति बहुत आकर्षित था और एक दिन अपने कर्तव्यों की उपेक्षा कर वह अपनी पत्नी के साथ रहने लगा। राजा कुवेर ने लंबे समय तक इंतजार करने के बाद हेममाली की अनुपस्थिति के कारण का पता लगाने के लिए अपने सिपाही भेजे।पहरेदारों ने राजा को सूचित किया कि हेममाली अपनी पत्नी के साथ समय बिताने में व्यस्त था और इस प्रकार उसने अपने कर्तव्यों की उपेक्षा की। क्रोध में राजा ने हेममाली को अपने दरबार में बुलाया और उसे कुष्ठ रोग से प्रभावित होने के साथ-साथ अपनी पत्नी से अलग होने का श्राप दे दिया।हेममाली को अलकापुरी छोड़कर जाना पड़ा। वह कुष्ठ रोग से भी प्रभावित था और लंबे समय तक जंगल में भटकता रहा। भटकते हुए एक दिन हेममाली ऋषि मार्कंडेय से मिला। हेममाली की कहानी सुनने के बाद, ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत रखने और क्षमा याचना के लिए भगवान विष्णु की पूजा करने का सुझाव दिया।जैसा कि ऋषि ने सुझाव दिया था, हेममाली ने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की और पूरी श्रद्धा व समर्पण के साथ योगिनी एकादशी व्रत का पालन किया। नतीजतन, हेममाली को श्राप से राहत मिली और अपनी प्राकृतिक उपस्थिति और स्वस्थ शरीर वापस पा लिया। तब अपनी पत्नी विशालाक्षी के साथ मिले और एक खुशहाल जीवन व्यतीत किया।

                       ।।धन्यवाद।।

शुक्रवार, 11 जून 2021

।।विशेषोक्ति अलंकार-Peculiar Allegation।।

विशेषोक्ति अलंकार-Peculiar Allegation
                (विलक्षण आरोप)
परिभाषा:-
सति हेतौफलाभाव:विशेषोक्तिर्निगद्यते- 
आचार्य विश्वनाथ : साहित्य-दर्पण।
अर्थात जहाँ कारण के रहने पर भी कार्य  नहीं हो   वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
कार्य-कारण का विश्वव्यापी प्रसिद्ध नियम है कि बिना कारण के कार्य नहीं होता किन्तु विशेषोक्ति अलंकार में प्रसिद्ध कारण होने पर भी कार्य सम्पन्न नहीं होता।
उदाहरण:-
1:-  सखि! दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
       नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझासी।।
2:-  चतुर सखीं लखि कहा बुझाई।
       पहिरावहु   जयमाल    सुहाई॥
       सुनत  जुगल  कर माल उठाई।
       प्रेम  बिबस  पहिराइ  न  जाई॥
3-नेताजी की सम्पत्ति कुबेर के समान बढ़ी।
  किन्तु वह चुनाव में विनम्र ही बने रहे।
4-लिखन बैठि जाकी सबिहिं गहि-गहि गरब गरूर।
  भये ने केते जगत के चतुर चितेरे कूर॥
5-बरसत रहत अछोह वै, नैन वारि की धार।।
  नेकहु मिटति न है तऊ, तव वियोग की झार ॥
6:-नेह न नैननि को कछू उपजी बड़ी बलाय।
 नीर भरे नित प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाय॥
नित्यप्रति जल पूर्ण रहने पर भी प्यास न बुझने में विशेषोक्ति अलंकार है। जल का अभाव नहीं है किन्तु प्यास नहीं बुझ रही।
(6) एक विसास की टेक गहें लगि, आस रहे बसि प्रान-बटोही।
हौं घन आनन्द जीवन मूल दई कित प्यासनि मारत मोही॥         
      
 ।।विभावना  अलंकार-Peculiar Causation।।
         (विलक्षण हेतु अर्थात करणीय सम्बन्ध)
परिभाषा:-
विभावना विना हेतुर्कार्योत्पत्तिर्यदुच्यते।।
आचार्य विश्वनाथ : साहित्य-दर्पण।
        अर्थात जहाँ बिना कारण  ही कार्य  हो  जाता है वहाँ विभावना अलंकार  होता है।
आचार्य केशव ने भी विभावना अलंकार को स्पष्ट करते हुए लिखा है।
कारज को बिनु कारणहि उदौ होत जेहि ठौर।
तासो  कहत  विभावना केशवकवि शिर मौर।।
हिन्दी और संस्कृत विद्वानों ने विभावना अलंकार  के निम्न छः भेद माना है-
1:-जहाँ कारण के बिना कार्य की सिद्धि हो-
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रसभोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
2:-जहाँअपूर्ण कारण से ही कार्य की सिद्धि हो-
काम कुसुम-धनु-सायक लीन्हें।
सकल भुवन अपने बस कीन्हें।।
3:-जहाँ प्रतिबंधक होने पर भी कार्य की सिद्धि हो-
रखवारे हति बिपिन उजारा।
देखत तोहि अक्ष जेहि मारा।।
रखवारे और तुम्हारे (रावण) जैसे प्रतिबंधक के होते हुवे हनुमानजी  ने अक्षय कुमार को मार डाला।
4:-जहाँ मूल कारण के अभाव में दूसरे कारणों से कार्य की सिद्धि हो-
हँसत बाल के बदन में, यों छबि कछू अतूल।
फूली  चंपक-बेलि  तें,  झरत  चमेली   फूल।।
5:-जहाँ विपरीत एवं विरोधी कारण से कार्य की सिद्धि हो-
खल परिहास होइ हित मोरा।
काक कहहि कल कंठ कठोरा।।
6:-जहाँ कल्पित कारण से कार्य की सिद्धि हो-
और नदी-नदन तें, कोकनद होत हैं।
तेरी कर कोकनद नदी-नद प्रगटत है।
कोकनद=कमल
इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया है कि जहाँ कारण के रहते हुवे भी कार्य नहीं होता है वहाँ विशेषोक्ति अलंकार और जहाँ बिना कारण कार्य हो जाता है वहाँ विभावना अलंकार होता है।
                        ।। धन्यवाद।।


।। विभावना अलंकार-Peculiar Causation।।

   ।।विभावना  अलंकार-Peculiar Causation।।

       (विलक्षण हेतु अर्थात करणीय सम्बन्ध)
   वि=विशिष्ट, भावना=भावना, कल्पना।
       सामान्यतः जबतक कोई कारण नहीं हो तब तक कार्य नहीं होता लेकिन बिना कारण के कार्य होना विशिष्ट कल्पना नहीं तो और क्या है? 
इस प्रकार जहाँ बिना कारण कार्य का होना पाया जाता है वहाँ विभावना अलंकार  होता है।
यह विशेषोक्ति अलंकार के विपरीत है। विशेषोक्ति में कारण होने पर भी कार्य नहीं होता किन्तु विभावना में कारण नहीं होती और तब भी कार्य हो जाता है।
आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रन्थ  साहित्यदर्पण में कहा है कि
विभावना विना हेतुं कार्योत्पत्तिर्यदुच्यते।।
आचार्य केशव ने भी विभावना अलंकार को स्पष्ट करते हुए लिखा है:-
“कारज के बिनु कार जहिं उदौ होत जेहिं ठौर।
तासों कहत विभावना, केशवकवि सिरमौर।।”
उदाहरण:-
(1) बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
 कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।
 आनन रहित सकल रसभोगी।
 बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
(2) क्यों न उत्पात होहिं बैरिन के झुंड में।
  कारे घन उमड़ि अंगारे बरसत हैं।
(3)नाचि अचानक ही उठे बिनु पावस बन मोर।।
   जानति हों नन्दित करी यह दिशि नंदकिशोर ॥
(4)रावण अधर्मरत भी अपना।
(5)निन्दक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय ।
    बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय ।।
विभावना अलंकार  के छः भेद माने गये हैं-
1-प्रथम विभावना:-जहाँ कारण के बिना कार्य की सिद्धि हो।उदाहरण:- 
 बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
 कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।
 आनन रहित सकल रसभोगी।
  बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
2-द्वितीय विभावना:-जहाँअपूर्ण कारण से ही कार्य की सिद्धि हो।उदाहरण:-
तो सों को जेहि दो सौ आदमी सों जीत्यौ
जंग सरदार सौ हज़ार असवार को॥
यहाँ शिवाजी के पराक्रम का वर्णन है। उन्होंने दो सौ सैनिकों को साथ लेकर एक लाख घुड़सवार योद्धाओं वाली सेना को जीत लिया है। युद्ध जीतने का कारण दो सौ सैनिकों का होना अपर्याप्त कारण है।एक उदाहरण और देखें-
काम कुसुम-धनु-सायक लीन्हें।
सकल भुवन अपने बस कीन्हें।।”
3-तृतीय विभावना:- जहाँ प्रतिबंधक होने पर भी कार्य की सिद्धि हो जाय।उदाहरण:- 
रखवारे हति बिपिन उजारा। 
देखत तोहि अक्ष जेहि मारा।।
रखवारे और तुम्हारे (रावण) जैसे प्रतिबंधक के होते हुवे हनुमानजी  ने अक्षय कुमार को मार डाला। 
4-चतुर्थ विभावना:-जहाँ मूल कारण के अभाव में दूसरे कारणों से कार्य की सिद्धि हो।उदाहरण :-
क्यों न उत्पात होहिं बैरिन के झुंड में।
कारे घन उमड़ि अंगारे बरसत हैं।
यहाँ युद्ध क्षेत्र में शत्रु सेना में उत्पात होने का कारण काले बादलों द्वारा अंगारों की वर्षा होना बताया गया है। यहाँ कारण (बादलों द्वारा अंगारे बरसाना) वास्तविक कारण नहीं है। वास्तविक कारण न होने पर भी किसी अन्य कल्पित कारण द्वारा कार्य होने का वर्णन होने से विभावना अलंकार है।एक उदाहरण और देखें-
हँसत बाल के बदन में, यों छबि कछू अतूल।
फूली चंपक-बेलि तें, झरत चमेली फूल।। 
5-पंचम विभावना:-जहाँ विपरीत एवं विरोधी कारण से कार्य की सिद्धि हो।उदाहरण:-
खल परिहास होइ हित मोरा।
काक कहहि कल कंठ कठोरा।। 
6-षष्टम विभावना:-जहाँ कल्पित कारण से कार्य की सिद्धि हो।उदाहरण :-
और नदी-नदन तें, कोकनद होत हैं।
तेरी कर कोकनद नदी-नद प्रगटत है।
कोकनद=कमल
            ।।Thanks।।

गुरुवार, 3 जून 2021

Never lose heart

       Never lose heart
 हार न माने सफलता मिलेगी।
      राजा के गले के ताबीज  यह भी बीत जाएगा।
और मकड़ी कथा।

""गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले""

।।विरोधाभासअलंकार-Contradiction।।

     ।।विरोधाभास अलंकार -Contradiction।।
                  (OXYMORON)

      विरोधाभास’ शब्द ’विरोध+आभास’ के योग से बना है।इस प्रकार  जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास हो वहाँ 'विरोधाभास अलंकार' होता है।

        विरोधाभास अलंकार के अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण :-

"मोहब्बत एक मीठा ज़हर है"

      इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार है।

सुधि आये सुधि जाय

मीठी लगै अँखियान लुनाई

बुधवार, 2 जून 2021

।।आक्षेप अलंकार।।

               आक्षेप अलंकार

    आक्षेप करने का सामान्य अर्थ है दोषारोपण करना। परन्तु साहित्य में आक्षेप एक अलंकार है जिसका अर्थ है निषेध। इस अर्थालंकार में लेखक या कवि अपने इष्टार्थ को निषेध से वर्णित करता है परन्तु वह भी विधिरूप में परिणत हो जाता है। यह वास्तव में निषेध नहीं परन्तु निषेधाभास होता है।

      स्वयं कथित बात का किसी कारण विशेष को सोचकर प्रतिषेध सा किया जाना आक्षेप अलंकार है।
 इसके अनेक भेद बताये गये हैं जिनमे से तीन मुख्य हैं--

1.उक्ताक्षेप:- 
अपने पूर्व कहीं हुई बात का वक्ता स्वयं निषेध समझे--
 उमा प्रस्न तव सहज सुहाई।
 सुखद संतसंमत मोहि भाई॥
 एक बात नहिं मोहि सोहानी।
 जदपि मोह बस कहेहु भवानी।।

2.निषेधाक्षेप:-
पहले निषेध करके फिर दृष्टार्थ को व्यक्त किया जाय--
 भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
 सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल       
 बिबेक॥

3.व्यक्ताक्षेप:-
प्रगट रूप में जहाँ स्वीकारात्मक हो वहाँ निषेध किया जाय---
राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु।
तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु॥


                    धन्यवाद

  अन्य उदाहरण भी देखें---
1.चलन चहत बन जीवननाथू।
  केहि सुकृती सन होइहि साथू॥
  की तनु प्रान कि केवल प्राना।
  बिधि करतबु कछु जाइ न जाना॥
2.फिरिहि दसा बिधि बहुरि कि मोरी। 
 देखिहउँ नयन मनोहर जोरी।
 सुदिन सुघरी तात कब होइहि।
 जननी जिअत बदन बिधु जोइहि॥
              ।। धन्यवाद ।।

।।ब्याजस्तुति अलंकार एवं ब्याजनिंन्दा अलंकार।।

ब्याजस्तुति अलंकार एवं ब्याजनिन्दा अलंकार

1.ब्याजस्तुति अलंकार :-

  काव्य में जब निंदा के बहाने       प्रशंसा किया जाता है , तो वहाँ   ब्याजस्तुति  अलंकार होता है ।

 उदाहरण :- 

 निर्गुन निलज कुबेष कपाली।   अकुल अगेह दिगंबर ब्याली।।   कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ।   भल भूलिहु ठग के बौराएँ॥


2.ब्याजनिंन्दा अलंकार :-
काव्य में जब प्रशंसा के बहाने निंदा किया जाता है , तो वहाँ ब्याजनिंदा अलंकार होता है । 

उदाहरण:-
1.राम साधु तुम साधु सयाने | 
राम मातु भलि मैं पहिचाने || 

 यहाँ पर ऐसा प्रतीत होता है कि कैकेयी राजा दशरथ की  प्रशंसा  कर रही हैं , किन्तु ऐसा नहीं है, वह प्रशंसा की आड़ में निंदा कर रही हैं। 

2.नाक कान बिन भगिनी निहारी।
  क्षमा कीन्ह तुम धरम विचारी।।
        यहाँ पर सुनने या पढ़ने में ऐसा लगता है कि अंगद रावण की प्रशंसा कर रहेहैं,किन्तु यहां निन्दा की जा रही है। 

         ।।   धन्यवाद   ।।

।।पर्यायोक्ति अलंकार।।

            ।।   पर्यायोक्ति अलंकार   ।।
अभीष्ट अर्थ का स्पष्ट कथन न कर अभ्यंतर से कथन करना पर्यायोक्ति होता है। इस अलंकार में कवि अपना वक्तव्य घूमा-फिराकर प्रगट करता है।
पर्यायोक्ति के दो भेद हैं .
1. जहाँ किसी बात को सीधे-सीधे न कहकर        चतुराईपूर्वक घुमा-फिराकर कहा जाये
उदाहरण:-
1.बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
   बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ॥

2.सीता हरन तात जनि, कहिय पिता सन जाय.
   जो मैं राम तो कुल सहित, कहिहि दसानन आय..
2. जहाँ किसी कार्य को किसी अन्य बहाने से साधा जाता है..
उदाहरण:
1.देखन मिस मृग बिहंग तरु, फिरत बहोरि-बहोरि.
  निरखि-निरखि रघुबीर छबि, बड़ी प्रीति न थोरि.

2. मागी नाव न केवटु आना। 
    कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
    चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। 
    मानुष करनि मूरि कछु अहई।।
    छुअत सिला भइ नारि सुहाई। 
    पाहन तें न काठ कठिनाई॥
    तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। 
    बाट परइ मोरि नाव उड़ाई॥
    एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू।
    नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥
    जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। 
    मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥
          ।।    धन्यवाद    ।।

।।अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार --Indirect description (a figure of speech)।।

       अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार

 Indirect description a figure of speech
अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार :- 

  जहाँ अप्रस्तुत के वर्णन में प्रस्तुत की प्रतीति हो, वहाँ 'अप्रस्तुतप्रशंसा' अलंकार होता है ।
अप्रस्तुतात् प्रस्तुत-प्रतीति: अप्रस्तुतप्रशंसो।
अप्रस्तुत प्रशंसा का अर्थ है- अप्रस्तुत कथन।
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत, सरल हो।
यहाँ अपस्तुत सर्प के विशेष वर्णन से सामान्य अर्थ की प्रतीति होती है कि शक्तिशाली पुरुष को ही क्षमादान शोभता है। यहाँ ' अप्रस्तुतप्रशंसा' है।

  यह अप्रस्तुत प्रशंसा 5 प्रकार से होती है--

1.कारण निबन्धना

 कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा।

 सार भाग ससि कर हरि लीन्हा॥

  छिद्र सो प्रगट इंदु उर माहीं।

 तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं॥

2.कार्य निबंधना 

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।

गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

3.विशेष निबन्धना

 बार बार अस कहइ कृपाला।

 नहिं गजारि जसु बधें सृकाला॥

  मन महुँ समुझि बचन प्रभु केरे। 

 सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे॥

4.सामान्य निबन्धना

कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी। 

बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी॥

एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ। 

कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ।।

5.सारूप्य निबन्धना(अन्योक्ति)

  मानस सलिल सुधाँ प्रतिपाली।

 जिअइ कि लवन पयोधि मराली॥

 नव रसाल बन बिहरनसीला।

 सोह कि कोकिल बिपिन करीला ॥

    मानसरोवर के अमृत के समान जल से पाली हुई हंसिनी कहीं खारे समुद्र में जी सकती है।नवीन आम के वन में विहार करने वाली कोयल क्या करील के जंगल में शोभा पाती है।

यहाँ सारूप्य निबन्धना के माध्यम से सीता का चित्रण किया गया है।


                    ।। धन्यवाद ।।

           
 




।। परिकरांकुर अलंकार।।

परिकरांकुर अलंकार

जहाँ विशेष्य का प्रयोग अभिप्राय-सहित हो, वहाँ परिकरांकुर अलंकार होता है।
जहाँ परिकर में विशेषण का प्रयोग साभिप्राय होता है वहाँ परिकरांकुर में विशेष्य  का प्रयोग साभिप्राय होता है।
1. सुनहु विनय मम विटप अशोका।
 सत्य नाम करु, हर मम शोका॥
      यहाँ शोक दूर करने का प्रसंग है। अत: अशोक वृक्ष के लिये अशोक (शोक रहित) नाम साभिप्राय है।
इन्हें भी देखें--
2.सब उपमा कबि रहे जुठारी।
केहि पटतरौ बिदेह कुमारी।।
3.बरबस रोकि बिलोचन बारी।
धरि धीरजु उर अवनि कुमारी।।
4.अहह  तात  दारूनि हठ ठानी।
समुझत नहि कछु लाभ न हानी।।
5.बिधि केहि   भाँति धरौ उर धीरा।
  सिरस सुमन कन बेधिय हीरा।।
                   धन्यवाद

मंगलवार, 1 जून 2021

।।परिकर अलंकार।।


परिकर अलंकार

             जब विशेष्य के साथ किसी विशेषण का साभिप्राय प्रयोग हो, तब परिकर अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.सोच हिमालय के अधिवासी, यह लज्जा की बात हाय।
अपने ताप तपे तापों से, तू न तनिक भी शान्ति पाय॥
                  यहाँ शान्ति न पाना क्रिया के प्रसंग में, 'हिमालय के अधिवासी' यह विशेषण साभिप्राय है। जो शीतल हिमालय का अधिवासी है, वही अपने ही तापों से सन्तप्त रहे तो वस्तुत: लज्जा की बात है।
2-देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं॥
                  इस विशेषण द्वारा कैकेयी राजा को अपने वाग्जाल में घेर लेती है।
3.गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि।
   सुरमाया बस बैरिनिहि सुहृद जानि पतिआनि॥
                इस विशेषण के द्वारा कैकेयी का मंथरा के मायाजाल में उलझ जाने का वातावरण निर्मित किया गया है।
4. प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें॥
जौं कछु कहौं कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही॥3॥
                  इस विशेषण द्वारा कैकेयी के कोपन स्वभाव की ओर इंगित किया गया है।
              इस तरह साभिप्राय विशेषण का प्रयोग परिकर अलंकार की विशेषता और पहचान है।
                    धन्यवाद