रविवार, 18 मार्च 2018

।।मंगलमय हो विलम्बी संवत्सर।।

सत शत नमन है विलम्बी संवत्सर।
बत्तीसवॉ स्थान हैं स्वामी विश्वेश्वर ।।
सोलह कलाएं भरे जग में हरि हर ।
नित नव रस दे दो हजार पचहत्तर ।।
जन जन के जीवन में आ के बहार।
सुख-शान्ति से भरे हर आँगन द्वार।।
गिरिजा शंकर की कामना बार बार।
दुःख-दर्द हो दूर खुशियॉ हो हजार।।

बुधवार, 7 मार्च 2018

।।एक का न था न रहा न रहेगा भी।।nothing was same or will be same

बहुत बीत  गया बहुत बीतेगा अभी।
आओ विचारे आज हम सब सभी।।
क्या कैसे कब कहते कभी-कभी।
सबकी करे सब बात सत-सत सभी।। 1।।
शहर की आबोहवा में गवईपन भी।
गाँव की गली-गली शहरीपन  भी।।
सत शिव सुन्दर सरग-नरक भी।
हैं दुःख-दर्द जहाँ सुख मरहम भी।। 2।।
प्राची प्रदीची उदीची अवाची भी।
आग्नेय नैऋत्य वायव्य ईशान भी।।
उर्ध्व-अधः मध्य सर्व ज्ञाताज्ञात भी।
ईश वायु-प्राणाधार वायुनन्दन भी।। 3।।
राम-कृष्ण बुद्ध-महावीर अन्य भी।
भारत वेद पुरान गीता कुरान भी।।
सिख ईसाई हिन्दू मुसलमान भी।
भारत बाग में खिले नर पुष्प भी।। 4।।
एक का न था न रहा न रहेगा भी।
एक सा न था न रहा न रहेगा भी।।
बाग था बाग सदा बाग रहेगा भी।
युगों से आबाद आबाद रहेगा भी।। 5।।