शनिवार, 31 अगस्त 2013

जग मातु मंगले सर्व मंगल दायिनी








अनन्त कोटि नमन मातु सर्व अघ निवारिनी !
परम साध्वी सती शिव प्रिया सदा  शिव दायिनी !!
भव भय हारिनी तू  भव भय बन्धन काटिनी !
आद्या आर्या जया भवानी दुर्गा दुर्ग नाशिनी !!१!!
चामुंडा वाराही लक्ष्मी ज्ञाना क्रिया रत्ना रत्न दायिनी !
अपर्णा सर्वविद्या दक्षकन्या कर कमल कमलासिनी !!
देवमातु देवप्रिया देवी दुर्गभा दुर्गमा दुर्ग साधिनी !
दुर्गमगा दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमोहा दुरूह दुःख दामिनी !!२!!
भक्त सुलभा भक्त प्रिये भक्त निभे भक्त भक्ति दायिनी !
कलि कार्य सिद्धि साधन सर्वेश्वरी सर्व कार्य विधायिनी !!
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती महा मद मर्दिनी !
महामाया महामोहा महोदरी मुक्तकेशी मुक्ति दायिनी !!३!!
सर्वमंगला शंकरप्रिया शिवा शिवांगी शिवशक्ति साधिनी !
शरणार्थरक्षी शरनार्तभक्षी सर्वरूपा सर्वासाध्य साधिनी !!
सर्वमंत्रा सर्वयन्त्रा सर्वतंत्रा सर्वजन्त्रा सर्वयज्ञ यज्ञिनी !
सर्वदेशी सर्वज्ञा सर्वव्यापी सर्वगता सर्वदा सर्व नादिनी !!४!!
कुमारी कैशोरी युवती प्रौढा शस्त्रधरा शास्त्र धारिनी !
जल जाय जम जतन ज्वाला जू जात जग जामिनी !!
जयन्ती जयप्रदे स्वाहा दुःख हरे स्वधा सुख दायिनी !
जग मंगलं मंगला जग मातु मंगले सर्व मंगल दायिनी !!५!!
त्रिनेत्रा मन बोध भरे सर्व आश्रय दायिनी !
महातपी श्रम सत्य सखा सदानन्द रूपिनी !!
भव्या भाव्या अभव्या अनंता सुख साधिनी !
सत स्वरूपा सतहिते शूल पिनाक धारिनी !!६!!
अर्थ मिले सब साथ मिले जप दुर्गमार्थ स्वरुपिनी !
हर हर ताप हरसा हरसा जन चंड मुंड विनाशिनी !!
शत सुमन दुःख अर्पन तव कमल मंजीर रंजिनी !
नित नमन तव पाद पंकज दक्ष यज्ञ मद मर्दिनी !!७!!

रविवार, 18 अगस्त 2013

अन्धो में काना राजा

पाकर सुख क्षण भंगुर रहता है मद मत्त सदा !
कहता कहता करता न कुटिल काग सा  फ़िदा!!
सरदार सदा सबका सरदार सोचे सब युदा युदा !
ले दे कर चलते हैं  साथ है साथी सब मुदा मुदा !!१!!
काना ही सरदार जब साथी सारे सारे अंधे है!
संकीर्ण सोच स्वकेंद्रित सतासत सब धंधे हैं !!
बाजी जीत लक्ष्य शकुनी मामा सा ही कंधे हैं !
चरते भरते हैं बड़े ये तो बड़े काम के बन्दे हैं !!२!!
स्तर बड़ा अंधों का पर इनमें भी तो अन्तर है !
का सुनावे का दिखावे ये बड़े बड़े ही मंतर हैं !!
राजा का  रूप धर  कभी मदारी कभी बन्दर है !
घूट घूट घोट  घोटाला घोटू घोटक सारे अन्दर है !!३!!
प्रताड़ना पल पल पा पूजे पग परहेजी प्रजा !
यति सा समय पथ कंटक की मिले  सजा !!
काट छाट तोड़ फोड़ कर बजाते है ये बाजा !
जहां हैं सारे  अंधे होगा अंधों में काना राजा !!४!! 

रविवार, 11 अगस्त 2013

बेगम

प्रश्न विचार कर देखा है जब ,हमने पाया सवाल तो सवाल है तब !
रचना रचयिता की अद्भुत जब ,उसको भी घेरा है सवालों ने तब !!
देव दानव मानव अमानव सब ,नर मादा रूप धरना  ही होता जब !
नर सुख शांति सम्पन्न होता कब ,मादा हर लेती है  सारे गम जब !!१!!
स्त्री भार्या पत्नी अर्धांगिनी है ,बीबी प्रिया अति प्रिय बेगम भी है !
इनके रूप राशि कोटि काम कला पर ,हर पल न्यौछावर नर सदा है !!
सामने शत रूप धर रूपसी अरूप में,मर्द की मर्दागिनी तब बेदम है !
जो गम सारे दूर कर रूप रस डुबोकर ,वो रूपसी स्व नर की बेगम है !!२!!
पाथर सा पति पथ प्रस्तर पर गमन ,नहीं जो कभी भी होता सरल है !
पिघला पिघला निज प्रेम ताप सब ,करती रहती नित सब सुगम है !!
दर्द सब गर्व से सह सहगामिनी ,साथ साथ करती रहती सब सहन है !
हो योग्य ले लेने को गम शौहर ,तब तो वह नारी हो सकती बे गम है !!३!!
गम आँसू नहीं दिखे पी लेवे चुपचाप ,सिकवा शिकायत नहीं है पास !
जगमगाती ज्योति जू जहा जोहती ,जुमा जुमा जोग जोरू जर जास !!
कर्म पथ पग पड़े तब अड़े न ,चाहें आये कंटक दुःख द्वारे हर बार !
काट कष्ट कंटको को बिछा दे,सुख साधन सारे बेगम है बार बार !!४!!
परम पिता की परम कृति ,करती करम रचती नित नव नव रचना !
बेगम बीबी माता सेवक सखा सा ,हर गम   हरती हरि हर सा संरचना !!
सत सब सरल संसार में है,नहीं है पर है सुघर सरल बेगम बनना !
बेगम के होते न हो कोई गम ,शुरू करता वह मर्द तब बे गम रहना !!५!! 

शनिवार, 10 अगस्त 2013

भवन

भारती भारत भवन भुवन भर भरे भव भव भूषित भावना !
भस्मासुर भस्म भा भारतीय भारहीन भगत भक्ति भावना !!
नापाक पाक पर पड़ता  प्रगट पंच  पापी पाते पराजय प्रताड़ना !
बहु धर्म कर्म मर्म युक्त भारत भवन रहे भुवन भर सुहावना !!१!!
जिसने देखा सदन होकर मगन नित !
भवन घर मकान होम हाउस आवास हित !!
ईट भाटा गारा जहा लगा गजधर का चित !
लकड़ी लोहा काच ही से है मकान निर्मित !!२!!
गम सारा हरे सुख सारा सरे वो होता है घर !
पीड़ा दायक नहीं पीड़ा नाशक जो रखते सर !!
परम प्रेम पावन पूरित प्रीति पड़ती परस्पर !
बैर भाव त्यागी नेह गेह का ही हरदम है दर !!३!!
सुख सदन करे दुःख दमन प्यार पूर्ण परिवार मगन !
त्याग तप  तपस्या हरने  को आतुर  दूसरे का तपन !!
माता पिता भाई बहना करे  कृपा किंकर कर्म कथन !!
दुनिदारी दुःख दारिद दावानल दूर हो सदा शुभ सदन !!४!!
वास करते सुवास पद्म सा  पद्मावती सी घरनी जहां !
न्यौछावर हो सुख सारे दुःख निवरे  निश्चित ही  तहां !!
कोमल कमल कंठ कोकिल का कागा करकस का कहा !
वास पद्माकर का पद्मासिनी सह होता  हरदम वहा वहा !!५!!
शिव शिवा सदन है पुत्र करिवर वदन तात षडानन !
है सारे धूत अवधूत भभूत रमते पर सब है पावन !!
नन्दी सेवक स्वामी पशुपति धावन जहा दसानन !
साँप मूसक सस्नेह बसते बना भवन  मनभावन !!६!!

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

हर पग सफलताओं को चूमते

जिनके  हैं कर्म  -धर्म  साथ-साथ घूमते !
उनके हैं हर पग सफलताओं को चूमते  !!
बात है विचारना ,हर पल सवारना !
सपने अपने- अपने कर्म कथा को कहते !!
कल्पना के गहने ,पहन सदा सब रमते !
ये गहने गहने न हो हैं  सब इससे बचते !!
इन्हें छोड़ केचुली सा जो  निज पथ चलते !
यथार्थ पटरी रेल सा चल मंजिल टेशन उतरते !!
संभावनाये -कल्पनाये हैं अनन्त ,
स्वपनिल लोक सा इनमे भ्रमण करते !
मिलता न जीवन सफ़र का अंत ,
चाहें जहा जहा में हैं यायावर बनते !!
लक्ष्य पथ चुनकर ही हैं जब कदम बड़ते !
आखें न मुदकर सोच सोच हर पग रखते !!
सीता खोज लक्ष्य पा बाधा लंकिनी से न डरते !
विभीषण सहायक मिलें जब सत्कर्म हैं करते !!
निश्चित पथ पर निश्चित ढंग से जब हैं चलते !
तब बहुगामी पर हैं हर पग सफलताओं को चूमते !! 

सोमवार, 5 अगस्त 2013

करोडपति को देखा बनते खाकपति

देखा एक को नहीं अनेक को रोते गाते हँसते खेलते !
दुनिया दीवानी को अपनी अपनी कहानी पर तरसते !!
समय पर नहीं चेत दुःख दर्द पा सब कुछ गवा चेतते !
साम दाम दण्ड भेद से एकल फल अर्थ  फलित करते !!१!!
क करम करना धरम धरना को छोड़ होता करोड़पति !
धर्म त्याग न्यायान्याय से ही शीघ्र हो गया लक्ष्मीपति !!
रजनी का उल्लू दिन में डोल बोले हमी है कमलापति !
करे कुकर्म कुधर्म कदाचार  कामी कुटिल कुटिलपति !!२!!
बनाया सारा जहा अपना  सुख शान्ति रही हरदम सपना !
चार दिन की चादनी पर किया गुमान नहीं कोई कल्पना !!
घर ईट पाथर लौह लक्कड़ से बना कर लिया सुहावना !
पर घर में घरनी नही रही तो भूतो का डेरा ही पावना !!३!!
घरनी मरी पर है घर भरा पडा पूरन  है सब धन धान !
भाति भाति की सुविधा पर आती नही है किसी काम !!
पुत्र पुत्र बहु संग समय बना उनके लिए वृहद् सचान !
संचित सब संतान सम्हाले सुखी नहीं इनका जहान !!४!!  
जीवन ज्योति बूझ गयी नहीं मिला इनको आराम !
संतान सुखहीन  पुत्र गिर गया वशीभूत काम -धाम !!
ठगता ठगाता रहा दिन -रात खो दिया पूर्वजो का नाम !
एक एक  मिला ग्यारह करने में खुद भी रहा बदनाम !!५!!
भोला था भोला पति था पाया सब कुछ था किस्मत से !
पर नानी का धन जजमानी का धन नही रहता जतन से !!
तो पानी का धन बेईमानी का धन कैसे बचाए पतन से !
निसंतान  का धन विश्वासघात का धन डुबाये तन मन से !!६!!
सपना सजोये रचना करे मन में नित नूतन सृजन का !
पर नहीं था किस्मत में लाल यह विधान भगवन का !!
जो धन जैसे आत है सो धन तैसे जात सत्य कथन का !
समय होत बलवान लूट गया सब सामने अपने नयन का !!७!!
अपनो ने लूटा परायो ने लूटा लेकिन किसी के लिए नहीं छूटा !
जो छूटा वह सब अब परहित करने का बहाना बना कर छूटा !!
जिस जिस ने लूटा लूट गए सब नहीं हुआ उनमे  कोई मोटा !
समय दे सदगति सबको मैंने तो सबके हाथ में देखा सोटा !!८!!
रचना मायापति की मानव मन है माया के आधीन !
जो जैसा करम करे वैसा ही है फल सबको उसने दीन !!
अनजाने तो  क्षम्य जान बूझ का तो फल है मलीन !
कभी न करना ऐसा वैसा रे मन तभी रहोगे तू कुलीन !!९!!
ख़ाक पति था जो कभी जब ऐसे  बन जाय करोड़पति !
होना ही होगा उसे जमीदोज एकदिन बन कर रोडपति !!
खून आँसू रोते तब जब बिगड़ती है इनकी सब गति !
मैंने तो कई बार करोड़पति को देखा बनते खाकपति !!१०!!

रविवार, 4 अगस्त 2013

पागल

मैंने पाया सर्वत्र सदा खोया खोया खुद से रमता !
मद मस्त सदा किंकर्तव्यविमूढ़ सुकर सा दिखता !!
पाने को दाने खो होश इधर उधर गिरता पड़ता !
भूख मिटाने पाए नहीं दाने सड़क किनारे सड़ता !!१!!
वह और कोई नहीं है पागल हर कोई यही कहता !
पर सच और वह सब सम्पन्न कभी हुआ करता !!
उसका ठाट देख प्रतिभा पेख हर कोई तरसता !
दे दिया सब सबको अब इस अवस्था में रहता !!२!!
ज्ञानी ज्ञान शानी शान मानी मान शून्य हो जब !
विधि मार से समय चाल से हो जाय  संज्ञाहीन तब !!
लूटाया नहीं लूट लिया अपनो ही  ने जब उसका सब  !
लूट कर छोड़ दिया टूट कर बोल दिया उसे पागल तब !!३!!
पर हित पर  ब्रहम सा है न कोइ इस जहां !
पर जनहित रत नित जन अभी भी है यहाँ !!
स्व कर्मरत अडिग पथ पर रहता कौन कहां !
जब ईमानदार कर्तव्यपरायण पागल है यहाँ !!४!!
दूध की मख्खी सा भोजन के बाल सा जो स्वयं सदा !
पर को समाज संकट पथ कंटक बताने को है आमदा !!
जनतंत्र में जन शक्ति पा हो गया है आज वह विपदा !
कर रहा सब जगह सब नियंत्रण देखो पागल ही है सदा !!५!!   

शनिवार, 3 अगस्त 2013

अब पड़ रही पुरुष पर नारी भारी

प्रकृति पुरुष  का सपना !
यह विधि की अनुपम रचना !!
प्रकृति व नारी हैं पुरुष पर भारी !
युगों युगों तक ठेकेदारों से हारी !!
हारा नहीं हराया इसको ,मिलकर पुरुष संग नारी !
पर युग बदला समय बदला ,अब पड़ रही पुरुष पर नारी भारी !!
आने दो माँ मुझको ,दिखाउगी सबको कैसे अबला है भारी !
सह कर सब यातना मृद पात्र सा ,कह रही अब हमारी बारी !!
पुरुष रहा या रही  नारी सबने मिलकर गला घोटा है बारी बारी !
गर्भ में आयी तीसरी संतान भी जब हो गयी कन्या कुमारी !!
माँ के कष्ट पिता के ताने घर के उलाहने !
सभी परिस्थितियाँ लगी है तंग करने !!
कुमारी ने तब संभारी गर्भ में ही पारी !
माँ अब नहीं हारना हारेगी दुनिया सारी !!
अभिमन्यु ही नहीं मैंने भी पाया है गर्भ ज्ञान !
उससे भी बड़कर मै बनूगी है मेरा सपना महान !!
पिता सिख से चक्रव्यूह तोड़ा था अभिमनु !
ताना बाना से सिख ताना बाना तोड़ेगी मनु !!
माँ क्या समझाए माँ को समझाए मनु !
भूख प्यास दुःख दर्द देखा है जो तेरा तनु !!
आने दो अब मुझे आने दो हो गया सो जाने दो !
मै आ जाती हूँ तब होता है देखो हाथ दो दो !!
मेरा सामना  तो होगा माँ मै आउगी !
धैर्य धर दुःख झेल मै तेरा दुःख मिटाउगी !!
कन्या भ्रूण हत्यारों सहित उनके कुल को सबक सिखाउगी !
दहेज़ लोभी सुरसा का सब मान हरण करवाउगी !!
नहीं पायेगे साथ नारी का वे क्वारे कर जायेगे !
आने वाली नस्ल वे ट्यूब बेबी से ही बदायेगे !!
कहना केवल कहना है ,नारी पुरुष का गहना है !
माँ बेटी दादी नातिन पर सबसे भारी बहना है !!
भोग्या नहीं सुख आधार शिला !
जिस जिस ने मेरा जीवन लिला !!
उनके वंशज वंचित ,नहीं पाए सुख संचित !
पायेगे सब दुःख वे नहीं इसमे संसय किंचित !!
सब योगता होगी मेरे पर कृपाल !
बनेगी मेरी वही सर्वत्र महा ढाल !!
योग्यता का बन मिसाल मै ले लूगी सब पद विशाल !
राजनीति हो या हो कोई विभाग जन देखेगे मेरा भाल !!
सारे कामी क्रोधी कुटिल लालची को पग पग नाच नाचाउगी !
माँ आने दो मुझे आकर मै इनको इनकी औकात दिखाउगी !!
आज दुःख देख कल सब सुख तेरा !
माँ ले लो गर्भ से ही वचन मेरा !!
अभिमन्यु बन कर ये सब छिन्न -भिन्न !
यहाँ मनु तेरा लायेगी लायेगी युग नवीन !!
जानेगी तब तरस तरस दुनिया सारी !
अब पड़ रही पुरुष पर नारी भारी !!