।। परिकरांकुर अलंकार।।
परिकरांकुर अलंकार
जहाँ विशेष्य का प्रयोग अभिप्राय-सहित हो, वहाँ परिकरांकुर अलंकार होता है।
जहाँ परिकर में विशेषण का प्रयोग साभिप्राय होता है वहाँ परिकरांकुर में विशेष्य का प्रयोग साभिप्राय होता है।
1. सुनहु विनय मम विटप अशोका।
सत्य नाम करु, हर मम शोका॥
यहाँ शोक दूर करने का प्रसंग है। अत: अशोक वृक्ष के लिये अशोक (शोक रहित) नाम साभिप्राय है।
इन्हें भी देखें--
2.सब उपमा कबि रहे जुठारी।
केहि पटतरौ बिदेह कुमारी।।
3.बरबस रोकि बिलोचन बारी।
धरि धीरजु उर अवनि कुमारी।।
4.अहह तात दारूनि हठ ठानी।
समुझत नहि कछु लाभ न हानी।।
5.बिधि केहि भाँति धरौ उर धीरा।
सिरस सुमन कन बेधिय हीरा।।
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