।। सोलह सिंगार ।।
।। सोलह सिंगार/षोडश श्रृंगार ।।
सोलह सिंगार/षोडश श्रृंगार को जानने से पहले हम रामचरितमानस के सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड के दोनों ग्यारहवें दोहों को देखते हैं।गोस्वामीजी ने दो दोहे देकर बहुजन हिताय बहुजन सुखाय राम राज्याभिषेक की बात किया जहाँ राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि। दोहों का आनन्द लेवें--
सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ।
दिब्य बसन बर भूषन अंग अंग सजे बनाइ।।
राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि।
देखि मातु सब हरषी जन्म सुफल निज जानि।।
राज्याभिषेक समय दिव्य बसन बर भूषन ही तो सोलह सिंगार हैं जिनके बारे में किसी कवि ने कहा है-
अंग शुचि मंजन बसन माँग महावर केश।
तिलक भाल तिल चिबुकमें भूषण मेहँदी वेश।।
मिस्सी काजल अर्गजा बीरी और सुगंध।
पुष्पकलीयुत होइ कर तब नवसप्त निबन्ध।।
कवि केशवदास के शव्दों में
प्रथम सकल सुचि मज्जन अमल वास
जावक सुदेश किस पास को सम्हारिबो।
अंग राज भूषन विविध मुखबास-राग
कज्जल ललित लोल लोचन निहारिबो।।
बोलन हँसन मृदु चलन चितौनि चारु
पल पल पतिव्रत पन प्रतिपालिबो।
केसौदास सो विलास करहु कुँवरि राधे
इहि बिधि सोरहौ सिंगारन सिंगारिबो।।
अब इन्हें हम क्रम से गिनते हैं--
उबटन,स्नान,वस्त्र,माँग भरना या माँग बनाना, महावर लगाना,बाल संवारना, तिलक लगाना,चिबुक अर्थात ठोड़ी पर तिल बनाना, बारह प्रकार के आभूषण धारण करना,मेहँदी लगाना,दाँतो में मिस्सी लगाना, आँखों में
काजल लगाना,अरगजा अर्थात सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग करना,बीरी अर्थात पान खाना, सुगन्ध अर्थात सुन्दर पुष्पों की माला धारण करना और सोलहवाँ पुष्पकलीयुत अर्थात नील कमल धारण करना। ये होते है सोरह सिंगार।
आभूषण की बात है तो जान ले आभूषण चार प्रकार के हैं
आवेध्य अर्थात छिद्र द्वारा पहने जाने वाले जैसे नाक-कान के आभूषण; बंधनीय अर्थात बाँधकर पहने जाने वाले जैसे शिर,कमर और बाजू के आभूषण; क्षेप्यअर्थात अंग में डालकर पहने जाने वालेजैसे हाथ, अँगुली, पैर के आभूषण और आरोग्य अर्थात अंगों में लटकाकर पहने जाने वाले जैसे गला आदि के आभूषण।
केशवदासजी की पक्तियों को तो देख ही ले---
बिछिया अनौट बांके घुंघरू जराय जरी।
जेहरि छबीली छुद्रघंटिका की जालिका।।
मूंदरी उदार पौंउची कंकन वलय चूरी।
कंठ कंठमाल हार पहने गुणालिका।।
बेणीफूल सीसफूल कर्णफूल मांगफूल।
खुटिला तिलक नकमोती सोहै बालिका।
केसौदास नीलबास ज्योति जगमग रही।
देह धरे स्याम संग मानो दीपमालिका।।
इस प्रकार श्रृंगार कर जब जनकसुता जग जननी जानकी राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि तब राम राज्याभिषेक हुवा जिसकी प्रतीक्षा में जन-जन रहे और हम भी माताओं के साथ अपना-अपना जन्म सुफल करते हैं देखि मातु सब हरषि जन्म सुफल निज जानि।
।।जय सियाराम जय जय हनुमान।।
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