शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्रेष्ठ मानव



नमस्कार उस श्रेष्ट को जो करता लालच सज्जन संगम का!
द्विजप्रेमी परगुणानन्दी विद्याभिरुचि स्वपत्नि अनुरक्ति का!!
रखता हो शिव में भक्ति दुर्जन त्यागकर संयम स्वयं का!
भय रखता लोकनिंदा का रुप हैंउत्तमोत्तम गुणों का!!

श्रेष्ठ जन धैर्य क्षमा रखते विपत्ति अभ्युदय में!
रखते हैं पटुता पराक्रम भाषण व युध्द में!!
अभ्यास व रुचि होती शास्त्राध्ययन यश विषय में!
स्वभाव में रहते सभी होते न कभी पर रुप में!!


असिधारा पर चलने की तरह रुपहैं साजते!
आये अतिथि क आदर छिप कर दान जो करते!!
गर्वहीनता धन सम्पत्ति में उपकार सभा का कहते!
निन्दारहित बात करते कर उपकार किसी का न कहते!!

बुधवार, 28 नवंबर 2012

कुर्सी, कंचन, कामिनी

कुर्सी कंचन कामिनी जन करे वाह वाह ।
ज्यो-ज्यो ये सब पास हो, टिकती नही निगाह।।

कुर्सी की यह लालसा ललक बढाऍ जोस ।
कट गया उस समाज से, जिन पर किया भरोस ।।

कन्चन से परेशानी ,रहे ना सदा पास ।
देता सुख-दुुःख सब यह, काहे का विश्वास ।।

कामिनी की कई बात, बढाती रहे चमक ।
कब कैसी ये हो जाय , दे ना कोई भनक ।।

गिरिजा शन्कर तिवारी

सरस्वती वन्दना

हे मां,हे मां, भारत-भारती हे मां, हे मां, भारत-भारती !
     अहनिशि तू चराचरो के भाग्य को सवारती !
तु पाणिनी की कौमुदी जो व्याकरण विन्यास करती!
     लोकत्रय कल्याण हेतु सूर्यचन्द्र सा दिन-रात जगती!
हाथ में तू वेदवीणा स्फटिक धर सुर स्वर सवारती सरस्वती!
     चन्द्रकान्ति चन्द्रिका चकोर को स्वाती सा तारती!!
बुद्यिदात्रि बुद्यि दे ज्ञान प्रकाश प्रकाशिनी!
     ब्रह्मचारिणि ब्रह्मविद्या भर सर सरोवर हंसावाहिनी!
दीन-दुःखी दारिद्र दूर दुर्भावना हरो हे वरदायिनी!
     तू सदा दे शुद्धाचरण व धर्म कर्म हे अवलम्बदायिनी!
मानवता भरो मानव मे इन्हें धरो धरा सी धरनी धारती!!
     वर दे वरदान दे मान दे सम्मान दे, दे स्वच्छता हे शारदा!
विजयविभूति विराट विश्व में भक्तों को दे सर्वदा!
     हर हर भक्तजनों की विपरीतता की विपदा!
भर हर मन की आस सुख स्नेह शुभ्र सुखदा!
     स्फटिकमणि वेद ले तू तार वीणा की झंकारती!!
भुवनत्रय त्रिगुण भर गुण संचार कर भुवनेश्वरी !
     भोग संयोग की हो न दासता वाक शक्ति भर वागीश्वरी!
जगत जाने माने पहचाने सत्कर्म से सराबोर कर जगदीश्वरी!
    सब सांस भर सद आस  को सांस रह्ते पुर्ण कर विश्वेश्वरी!
जन-जन संग झूम-झूम जग उतारे तेरी आरती !!