शनिवार, 31 जनवरी 2015

मन

सोच का मन से सीधा सम्बन्ध है
मन का सोच पर गहरा प्रभाव है।
मन मार सोच-सागर में डूबना
मन मलिन कर मन बोझिल करना है।।
तन-मन,दिल-दिमाग के आइने में
देखना परखना सवारना फितरत है।
जद्दो जहद जबरन जहा में जुर्रत,
ताल-मेल का बैठाना मन की शहादत है।।
चाहे अनचाहे करना करवाना
कभी कभी हमारे मन की कई कसरत है।
मन में लड्डू फूटना या पकाना
सुख शान्ति हेतु जहा की जरुरत भी है।।
मन के हारे हार मन के जीते जीत
हौसला बुलंद जिसका उसका मन है मीत।
बजरंगी सा सीना चीर गाते है गीत
सम विसम असम में जो न होते भयभीत।।
पलायन हल नहीं विचार बल वही
सहसा साहस समझदारी सूझ बूझ सही।
मन मजबूत करे निज कर्म इस मही
हर हाल हल तलाशना जिदारत है सही।।
खिचना बिसय बिकारों का काम
सिचना सदाचारों से मन बगिया भव धाम।
निजात देगे हर हाल सुखधाम
मन मानस मार मारे माधव मनमोहन माम।

रविवार, 25 जनवरी 2015

अपना गणतन्त्र स्वतन्त्र हो गया

पैसठवी वर्षगाठ पे छाछठवा दिवस गणतंत्र हो गया।
इस बिच हमारे देश में महान लोकतंत्र जवा हो गया।।
वीर भगत सावरकर आजाद सुभाषका भाव होगया।
पानी बिजली फ़ोन यूरिया चीनी लोन शोर हो गया।।
हर्षद मेहता जैन वन्धु काला धनका कामन गेम हो गया।
चारा बेचारा टू जी त्रि जी फ़ोर  जी ट्वंटी फ़ोर हो गया।।
गाँधी का अहिंसा सत्याग्रह सत्य चकना चूर हो गया।
आईप़ीएल में सट्टेबाजी शान का सिम्बल हो गया।।
राजनीति में साम दाम दण्ड भेद का भारी मेल हो गया।
आतंक में आकंठ डूबना नियति का अनूठा खेल हो गया।।
पल पल पग पग पावर टावर सोर्स् फ़ोर्स शेर हो गया।
करप्शन हत्या रेप से भारतीय संस्कार ढेर हो गया।।
येन केन प्रकारेन अपना काम बनाना आम हो गया।
दीन दुखियो का यहाँ सारा मारग अब जाम हो गया।।
संविधान आत्मा गणतन्त्र का संशोधन धाम हो गया।
सर्वप्रभुतासम्पन्न देश में योग्य युवा निस काम हो गया।।
अब वापस नव क्रांति से भ्रान्ति मिटाना  इकरार हो गया।
क्षेत्रवाद से उबर भारतीय रहना गौरव गान हो गया।।
बुराई जमीदोज करना सदाचार फैलाना अनिवार्य हो गया।
मुहतोड़ जबाब देना दुश्मनोका अब अपरिहार्य हो गया।।
भेद भाव जाति धर्म भाषा क्षेत्र रूप रंग भंग माग़ हो गया। 
  जय हिन्द को सतत बुलंद रखना युग काम हो गया।।

बकवास

संसार-सिन्धु इन्सान-विन्दु
भटक रहा दर दर अपनी पहचान बनाने ।
पाने गवाने पकाने बुझाने दिखने दिखाने,
सवारने आजीवन किन्सुक सा सकुचाने।।
बकवास करने में ब्रह्मानन्द पाते ,
परमानन्द लेते हँसते हँसाते सुख पाते।
रातो रात जाने अनजाने को पाने,
जमीर बेच जानवरों से बदतर कर जाते।।
बकवास ही है तो सार्थक भी है,
प्रेम बकवास विश्वास बकवास आस है।
मान-अपमान,जान-पहचान है
सतधाम काम रत भी यहाँ भगवान है।।
बकवास वा यथार्थ  सोच हैं
किनारे बैठ निठल्ले आतुर सब पाने को।
बुजुर्गों की सभी बाते कोच हैं
आज आतुर हैं बिना खेले जित जाने को।।
राम कृष्ण को माने जाने सब
राम कृष्ण की बारी पर खेलेअपनी पारी।
युग काल धर्म अब तब जब
हर बात बना करारे करे बकवास भारी।।


मंगलवार, 20 जनवरी 2015

रहमत रोशनी-राज रचाय

राम-भरत की त्याग-तपस्या,
लखन का बलिदान।
शत्रुहन का विराग भीआया,
रखने अवध का मान।।
ऐसी भावना जिस घर राज्य-देश,
अ वध हो जा निर्भय।
हर गाथा पर व्यथा हरन कीभाय,
नाक से ऊची छबि बनाय।
रब राम रखे रमा रूप-राशि रस राय,
रहमत रोशनी-राज रचाय।।
सुबह शाम वन्दन चन्दन मन्द मन्द जहाँ,
क्रन्दन कष्ट झट कट वहाँ।
भर जाय भाय अरमान सभी झटपट तहाँ,
कृपाधाम धाम बनाये वहाँ।।

विचार

मन-मंदिर,तन-आगार भरे हैं,
नाना ज्ञाताज्ञात विचार।
एक दिन सहसा खूब उछले हैं,
बरसाती मेढ़क अपार।।
इन्सान हैवान या भगवान,
मानव है या जानवर।
गाते किस्मती या कर्मवान,
जीते भूत यहाँ बन मार।।
आते जाते गाते पाते  हर स्थान,
इक दूजे को अंगुली उठाते।
लांछन लगाते खुद  मान महान,
जंजीरी जमीर जू जगाते।।
फाड़ फाड़ मुह कोसते सब नार,
अवगुन खान नार बताते।
हक्का बक्का हो जाते अपनी बार,
दूजे पर ही प्रहार कराते।।
सड़ी मानसिकता चलते ज़हर उगलते,
बेटी बहना माँ दादी भूले।
इक कुकृत्य पेख जाति पे उंगली उठाते,
दल बदल हर झूला झूले।।
सब माने सब करते दूजे को कोसते,
चटकारें ले पर पर।
अपने पर आ तो दूजा तराजू तौलते,
क्यों गाज गिरे स्व पर।।
खैर विचार अपने अपने स्वतन्त्र हैं,
कथन करना धर्म है।
विचारी बेचारा इस जहां परतन्त्र हैं,
यही तो युग मर्म है।।
तोड़ो कारा जाति धर्म क्षेत्र भाषा की,
बनो इन्सान हर पल।
नर-नारी इन्सान हैं सूत्र इन्सानों की,
विचार बना होवे सबल।।

रविवार, 18 जनवरी 2015

अति अनुरागी

सब जगह एकसी न सही पर अनूठी होती।
सागर गागर रेगिस्तान मैदान सबमें मोती।
अति अनुरागी खोज लेते हैं अंधेरेमें जोती।
पिपासु जिज्ञासु की आस आस नहीं खोती।
अति अनुरागी पा जाते हैं अंधेरे में रोशनी।
एक बूँद गुनकारी जो दुःख दाघ विमोचनी।
चिंगारी जू फैलाये मान बन जहाँमें माननी।
जगाती जगमगाती भाग बना बड़ भागिनी।
अति अनुरागी दोजख़ दुःख दाह लीन हो।
ज़न्नत सा सँवारते बनाते रचाते स्थान हो।
तज सहज कटुता मृदुता लाते कामार हो। सिंधु थाह ले वीर चीर फाड़ दे पहाड़ हो।
ऐसी जो तमन्ना सबमें तो न बुरा काम हो।
शत्रु न उठाय नज़र जब एक आवाज हो।
अति अनुरागी देशहित त्यागे सर्वस्य हो।
परहित होते ही हो जाय स्वहित काम हो।
इंद्रा सा न हो लोभी कामी अति अनुरागी। 
राम-भरत अनुरागी राज पाठ सब त्यागी।
बेड़ा गर्त हो जाने से पर्वू ही होजा विरागी।
तपी शिव से सीखे होना अनुरागी-विरागी।
अति अनुराग सिखावत जगावत पढ़ावत।
मिलावत सच्चा सुख प्रेम  रंग मा डूबावत।
न्यौछावर स्व पर पर करा त्यागी बनावत।
स्व से ऐसे माँ भारती की आरती करावत।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

मनवा मोर मोहे मोहित मान मन मोहनी

प्रकृति पुरुष का है जग अद्भुत खेल।
नित नाच नचावे बात बनावे कर मेल।।
नख शिख शील वदन मयंक मन मोहे।
नियति नियत नर नारी नव नवल नोहे।।
रच बस माया मोह कोह काम लोभ में।
कुदरत करिश्मा कानन कदम कद में।।
अनुराग वाग नर माली सुमन सूल चुन।
मोह गीत दर्द मीत धागा जू उलझ सुन।।
पद्म पद कमल नाल सा कोमल तन-मन।
बिनु घरनी घर भूत का डेरा जू है रे जन।।
नारी नर बनावे घर बसावे सुख शांति से।
कुनारी काम कोह रत नसावे नवास से।।
मनवा मोर मोहे मोहित मान  मन मोहनी।
मधुर मधुर मित मिलन मम मदन मोरनी।।
सेविका स्वामिनी सखा सच सदा शेरनी।
सहज सुकुमारी सदा सत सत सौदामिनी।।
  

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

श्रमेव जयते

परदे में सारा जहां सोहता है सदा।
बेपरदा भी निभाते नियम कायदा।।
जाओ जहां में जहाँ बन रहो मुदा।
लोक मानस मानस बसाओ सदा।।1।।
जूनून जगा मन उसमे बसा सतत।
लेबर इज विक्ट्री मन भृंग होवे रत।।
सूर्य चन्द्र सा करे स्वकर्म अनवरत।
पथ शूल फूल तप तप में जो तपत।।2।।
असत रत होत नत सत्यमेव जयते।
बिकल कल कल ले हो  नम नयते।।
जा जा भावे ता ता पावे संग सहृदते।
कोरी कल्पनात मानो श्रमेव जयते ।।3।

बुधवार, 14 जनवरी 2015

रचना

होती है सारी बात साथ कब।
पूछो देखो समझो जानो अब।
कैसे किसे कहाँ क्या कहू तब।
रचना अद्भुत कल्याणी सब।।1।।
मात-पिता पोषित पालित हम।
अचर सचर चर सब हम सम।
सादर सत चित आनंद वन्दन।
रचना कण कण केशर चन्दन।।2।।
नहीं हंस नर नीर क्षीर विवेकी।
नहीं नाहर नर नरेन्द्र मामेकी।
तमसावृत हटा हो आलोकित।
रचना सूर तम हार विमोचित ।।3।।
मम सम सब अन्यतम हैजानो।
अनूठा अनुपम हर कृति मानो।
उपयोगी बन उपासीन  सबके।
रचना प्रेम रमन रमा रे झटके।।4।।

रविवार, 11 जनवरी 2015

स्वामी विवेकानंद नरेन्द्र नाथ दत्त

स्वाभिमानी देशप्रेमी युवा नरेन्द्र नाथ दत्त।
वाकपटु भारतीय नव जागरण के अग्रदूत।
मीनक महान देदीप्यमान शशांक सदृश्य।
विधु सा प्रगटे बन माँ भुवनेश्वरी के सपूत।
वेगवान हिन्दू भारत भाल पे गौरव तिलक।
काम को लजा हर मन से भगाये भय भूत।
आनन आफ़ताब से अमेरिकी चकाचौध।
नयन विशाल देखे सफलआयाम नित नूत।
दया सागर सागर पार लहराये नव परचम।
नर नाहर थे विश्वनाथ जनक के प्रिय पूत।
दर दर दूर देश तक शाश्वत सत्य वाहक।
नाथ नाथ की खोज त्यागे कामना अकूत।
दत्त आनन्द देने को पाने से माने माकूल।
जन मान नव चेतन हित पहने केशर सूत।
मन्त्र कठोपनिषद का बना जीवन आधार।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत छूत।
अराइज अवेक एंड स्टाप नाट अन्टिल।
द गोल इज रिचड बोले अंग्रेजी में खूब।
उठो जागो और तब तक ना रुको तुम।
जब तक लक्ष्य ना पकड़ो अपना मजबूत।

जग जग जाग जाग जन जाना।

पग पग पाहन पीयूष पान पाते।
नित नेम नियम नम हो निभाते।।
जग जगत सुत मान नवल पाते।
बिसतंतु बन मानस हंस लुभाते।।
पग पग जरत रहत करम साना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।1।।
आस पे विश्वास नास हो जाता।
विश्वास डोर तोड़ सुख को पाता।।
सच सच ही है जो जग में भाता ।
तोड़ दे जग सदा असत से नाता।।
पाहन पय बना कर्मरती सुहाना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।2।।
देख दुःख दूसरे बिसरो न भाई।
आती काम काम की कर कमाई।।
अमल धवल हिम ने गाथा गाई।
पर हित रत पाते नित ही मिताई।।
पीयूष बन दे दुखियो को प्राना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।3।।
शोषक-तोषक वृत्ति बन आचरन।
पूजती पूजाती नित नव विधानन।।
कल्पनातीत दुःख सुख देवे धन।
मान मनीषी ले लेते ये माने मन ।।
पान पाते हर थल ले दिल स्थाना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।4।।

सोमवार, 5 जनवरी 2015

स्थान

दन्त नख केश सा छूटे मूल सब जाय। मणि माणिक मुक्ता सा छूटे मूल सब पाय ।।दुनिया की ही रीत गीत सी जब हो जाय। तब सब स्थान हर का घर हो जाय ।।