।।एकादशी व्रत विधान और योगिनी एकादशी।।
एकादशी को फलाहार कियाजाता है।एकादशी के दिन तुलसी सहित किसी भी पौधे या बृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित हैॐ नमो भगवते वासुदेवाय' ....इस द्वादश मंत्र का जाप करें।फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए। केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर ग्रहण करना चाहिए।एकादशी का व्रत पुण्य संचय करने में सहायक होता है। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना महत्त्व है।एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही एकादशी है।" कठिन तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेध आदि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, इन सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त होता है। एकादशी को 'ग्यारस या ग्यास' भी कहते हैं।एकादशी के स्वामी 'विश्वेदेवा' हैं। व्रतों में एकादशी व्रत श्रेष्ठ है। यह चारों वर्णों के लिये सदा ही पालनीय व्रत है।वर्ष के प्रत्येक मास के शुक्ल व कृष्ण पक्ष मे आनेवाले एकादशी तिथियों के नाम--वैदिक मास - देवता - कृष्ण पक्ष - शुक्लपक्ष चैत्र - विष्णु - पापमोचनी - कामदावैशाख - मधुसूदन - वरूथिनी - मोहिनी ज्येष्ठ - त्रिविक्रम - अपरा - निर्जला आषाढ़ - वामन - योगिनी - देवशयनी श्रावण -श्रीधर - कामिका - पवित्रा भाद्रपद -हृषीकेश - अजा - परिवर्तिनी आश्विन - पद्मनाभ - इन्द्रा - पापांकुशा कार्तिक - दामोदर - रमा - देवोत्थानी मार्गशीर्ष - केशव - उत्पन्ना - मोक्षदा पौष -नारायण - सफला - पुत्रदा माघ -माधव - षटतिला जयाफाल्गुन -गोविंद - विजया - आमलकी अधिक -पुरुषोत्तम - परमा -पद्मिनी षोडशोपचार भगवान विष्णु का पूजन करें।उपचारों के नाम ये हैं– आसन, वस्त्र, पाद्य, अर्घ्य, पुष्प, अनुलेपन, धूप, दीप, नैवेद्य, यज्ञोपवीत, आभूषण, गन्ध, स्नानीय पदार्थ, ताम्बूल, मधुपर्क और पुनराचमनीय जल।ध्यान------कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभनं।नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे. कंकणं॥सर्वांगे हरि चन्दनं सुललितं कंठे च मुक्तावली।गोपस्त्रीपरिवेष्टितो. विजयते गोपाल चूडामणि:॥नमोऽस्त्वनन्तायसहस्त्रमूर्तये।सहस्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते।सहस्रकोटीयुगधारिणे नम: ।। ऊं नमो नारायणाय पुरुषाय महात्मनेविशुद्धसत्वधीस्थाय महाहंसाय धीमहि।।एकादशी माता की आरतीॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै।।ॐ।।विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की।।ॐ ।।चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,नाम निर्जला सब सुख करनी,शुक्लपक्ष रखी।।ॐ।। योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की,परिवर्तिनी शुक्ला।इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में,व्रत से भवसागर निकला।।ॐ।पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी।।ॐ ।।जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।ॐ।।अथवा ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥जो ध्यावे फल पावे,दुःख बिनसे मन का,स्वामी दुःख बिनसे मन का ।सुख सम्पति घर आवे,सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं किसकी,स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।तुम बिन और न दूजा,तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी,स्वामी तुम अन्तर्यामी ।पारब्रह्म परमेश्वर,पारब्रह्म परमेश्वर,तुम सब के स्वामी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥तुम करुणा के सागर,तुम पालनकर्ता,स्वामी तुम पालनकर्ता ।मैं मूरख फलकामी,मैं सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति,स्वामी सबके प्राणपति ।किस विधि मिलूं दयामय,किस विधि मिलूं दयामय,तुमको मैं कुमति ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,ठाकुर तुम मेरे,स्वामी रक्षक तुम मेरे ।अपने हाथ उठाओ,अपने शरण लगाओ,द्वार पड़ा तेरे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा,स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,सन्तन की सेवा ॥ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।।भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥ॐ जय जगदीश हरे।।यदि व्रत और उपवास करके कोई नींद ले ले तो उसे उस व्रत का आधा ही फल मिलता है; व्रती पहले और बाद की सात-सात पीढ़ियों का तथा अपना भी अवश्य ही उद्धार करता है। व्रती मनुष्य निश्चय ही माता, पिता, भाई, सास, ससुर, पुत्री, दामाद तथा भृत्य-वर्ग का भी उद्धार कर देता हैयोगिनी एकादयोगिनी एकादशी व्रत कथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को "योगनी" अथवा "शयनी" एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं।जब युधिष्ठिर आषाढकृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं।मेघदूत में महाकवि कालिदास जी ने किसी शापित यक्ष के विषय में उल्लेख किया है। मेघदूत में वह यक्ष मेघ को दूत स्वीकार कर उसके माध्यम से अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजता है, यह कथानक वहाँ प्राप्त होता है। कालिदास जी की वह मेघदूत की कथा इस कथा से प्रभावित हो सकती ।हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़।महीनेकेकृष्णपक्षकेदौरान,एकादशी तिथि, के दिन योगिनी एकादशी का शुभ अवसर मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के अनुसार, योगिनी एकादशी का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है, जिसका उल्लेख पद्म पुराण में भी किया गया है।ऐसा माना जाता है कि जो योगिनी एकादशी व्रत का पालन करता है, वह अपने अतीत और वर्तमान पापों से मुक्त हो जाता है।यह व्रत कई बीमारियों से राहत पाकर भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करता है।भक्त भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और दीर्घायु व कल्याण के साथ ही धन्य हो जाते हैं।भक्त मोक्ष का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं। योगिनी एकादशी के दिन व्रती को सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करना होता है। दृढ़ समर्पण और निष्ठा का होना आवश्यक है।भक्तों को योगिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए।भक्तों को भगवान की पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए।व्रत पूरा करने केलिए योगिनी एकादशी की कथा का पाठ करना आवश्यक है।भगवान की आरती की जानी चाहिए और फिर सभी को पवित्र भोजन (प्रसाद) वितरित करना चाहिए।भक्तों को भगवान विष्णु के मंदिर जाना चाहिए।योगिनी एकादशी व्रत की सभी रस्में पूरी करनी चाहिए।व्रत उस समय तक जारी रहता है जब तक एकादशी तिथि समाप्त होती है। विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ‘विष्णु सहस्रनाम’ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे आदि का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।योगिनी एकादशी की पूर्व संध्या पर दान करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, योगिनी एकादशी की कहानी बताती है कि एक बार हेममाली नामक एक माली था जो अपनी सुंदर पत्नी विशालाक्षी के साथ रहता था। हेममाली अलकापुरी राज्य में अपना कार्य करता था जिसका राजा कुवेर था।राजा, भगवान शिव का एक दृढ़ भक्त था और दैनिक रूप से भगवान शिव की पूजा और प्रार्थना करता था। भगवान शिव के लिए राजा को, माली मानसरोवर झील से ताजे फूल लाकर उन्हें भेंट करता था।हेममाली विशालाक्षी की सुंदरता के प्रति बहुत आकर्षित था और एक दिन अपने कर्तव्यों की उपेक्षा कर वह अपनी पत्नी के साथ रहने लगा। राजा कुवेर ने लंबे समय तक इंतजार करने के बाद हेममाली की अनुपस्थिति के कारण का पता लगाने के लिए अपने सिपाही भेजे।पहरेदारों ने राजा को सूचित किया कि हेममाली अपनी पत्नी के साथ समय बिताने में व्यस्त था और इस प्रकार उसने अपने कर्तव्यों की उपेक्षा की। क्रोध में राजा ने हेममाली को अपने दरबार में बुलाया और उसे कुष्ठ रोग से प्रभावित होने के साथ-साथ अपनी पत्नी से अलग होने का श्राप दे दिया।हेममाली को अलकापुरी छोड़कर जाना पड़ा। वह कुष्ठ रोग से भी प्रभावित था और लंबे समय तक जंगल में भटकता रहा। भटकते हुए एक दिन हेममाली ऋषि मार्कंडेय से मिला। हेममाली की कहानी सुनने के बाद, ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत रखने और क्षमा याचना के लिए भगवान विष्णु की पूजा करने का सुझाव दिया।जैसा कि ऋषि ने सुझाव दिया था, हेममाली ने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की और पूरी श्रद्धा व समर्पण के साथ योगिनी एकादशी व्रत का पालन किया। नतीजतन, हेममाली को श्राप से राहत मिली और अपनी प्राकृतिक उपस्थिति और स्वस्थ शरीर वापस पा लिया। तब अपनी पत्नी विशालाक्षी के साथ मिले और एक खुशहाल जीवन व्यतीत किया।
।।धन्यवाद।।
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