।।काव्यलिंग अलंकार।।
काव्यलिंग अलंकार:-
किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को 'काव्यलिंग अलंकार' कहते है। यहाँ किसी बात के समर्थन में कोई-न कोई युक्ति या कारण अवश्य दिया जाता है।यह एक तर्क न्यायमूलक अलंकार है।बिना ऐसा किये वाक्य की बातें अधूरी रह जायेंगी।
उदाहरण:-
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाए बौरात नर, इहि पाए बौराय।
धतूरा खाने से नशा होता है, पर सुवर्ण पाने से ही नशा होता है।
यह एक अजीब बात है।
यहाँ इसी बात का समर्थन किया गया है कि सुवर्ण में धतूरे से अधिक मादकता है।
दोहे के उत्तरार्द्ध में इस कथन की युक्ति पुष्टि हुई है। धतूरा खाने से नशा चढ़ता है, किन्तु सुवर्ण पाने से ही मद की वृद्धि होती है, यह कारण देकर पूर्वार्द्ध की समर्थनीय बात की पुष्टि की गयी है।
उदाहरण:-
2.स्याम गौर किमि कहौ बखानी।
गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।
3.सिय सोभा नहि जाइ बखानी।
जगदम्बिका रूप गुन खानी।।
4.प्रभु ताते उर हतै न तेही।
एहि के हृदय बसति बैदेही।।
।। धन्यवाद ।।
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