चहु युग की व्यथा-कथा मिलती समान है।
जीव जन्तु जाति जमात जीता जू जहान है।।
रिश्तों की कलियां पुष्पित हो पाती मान है।
दुःख-बदली बाद ही होता सुख-बरसात है।।1
रिश्ता नैसर्गिक निष्कपट निश्छल निर्विकार।
अगनित अकूत अपेछित भावों का है सुमार।
पर हित पोषित लालसा-त्याग जहाँ भरमार।
सुख-शांति दिन-रात वहाँ करें स्वप्न साकार।।
जन्मजात रिश्ते परिवार-समाज के हैं आधार।
जननी-जन्मभूमि सत-असत सम्बन्ध सत्कार।
जगत सुत की कामना किंचित कहीं न दरार।
जग में आन-मान से भू-भाग भर भोगे भरमार।।
बनते-बिगड़ते इस जहां सम्बन्धअमिय-जहर।
प्रगाढ़ प्रेम विश्वास सूरज सा दे ज्योति लहर।
अनाम नाम अनगिनत सम्बन्ध हैं हर डगर पर।
जिनसे जीवन मंगल भागे भय सिहर सिहर।।
अब सोच समझ कर बनाये बने हिस्सेदार।
मैं हो शियार होते यहाँ रिश्ते में मैं हूँ सियार।
अपने वा अपना बन नहो गला घोटू रिश्तेदार।
अमर सम्बंध को नित नूतन बना हे धरा धार।।
रविवार, 13 दिसंबर 2015
दुःख-बदली बाद ही होता सुख-बरसात है।
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