कहानी कल की यथार्थ आज का कल्पना करे कल की!
औरो की गाथा स्वं की व्यथा कथा आत्म प्रवंचना की!!
कंदुक राज्य त्रेता का द्वापर में अपनो का हडप लेने की!
आज अपनो की परायो की सबकी अपना कर लेने की!!१!!
माता बहन पुत्री की सीमा मर्यादा नर- नारी के बीच की!
जात एकान्त इन्द्रिय जात मारती मति मानव मन की!!
कल की कथनी, करनी आज की ,गली-गली आम जन की!
कल क्या होगा हाल सबसे बेहाल हमारे विद्वत जनो की!!२!!
पिता भाई पुत्र के संबन्ध गरिमा समर्पण त्याग सम्मान की!
एक दूसरे के लिए जिनको परवाह नहीं तन मन व धन की!!
खटास ला संबन्ध में दरार डाले रिश्तो में स्थिति आज की!
टूटने को आतुर सारी बेडियां बिगाड देगी रिश्ता कल की!!३!!
सत्तासीन सत्तातुर सोच सुधारो सुधरो सुनो समझो समीचीन!
अपनाओ अपना बनाओ मिटा भेद स्व -पर का हो अर्वाचीन!!
भविष्य की गर्त में मत जाने दो सिख लो प्राचीन से नवीन!
बचेगा आज-कल दोनो जब न हो हमारा मन मलीन !!४!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें