कृष्ण कथा की का कथा समुझै नित मन लाय!
मिट जाय जग की व्यथा ज्यो तृषा जल पाय!!१!!
राधा राधा की धार धोवै सब अघ सार !
पा कृपा तू एक बार कर लो बेरा पार!!२!!
मातु पिता राधेश्याम धर मातु पिता रुप!
पालन पोषण जगत का करते कर हर स्वरुप!!३!!
देश काल लोक हित में पाकर इनका वचन!
होगा नहि अप्रत्यासित कुकंटको का दमन!!४
हम सब सदा करते नमन इनको भज दिन रात!
भारत की सवरे दशा हो जाय करामात!!५!!
मंगलवार, 21 मई 2013
शुक्रवार, 17 मई 2013
जीवन-जनक
जीवन हो सकल सुख साधन सम्पन्न,हो रहा आज है नर इस हेतु अघ सरन!
जीवन ज्योति जग मे जगमगाती सर्वदा,एक एक कर भले ही हो सब योनि गमन!!
जीवन अमृत को पा नर क्यो नित भूलता,सुख दुख दिन रात सा न्ही इसमे चयन!
जीवन जहर कर स्वमेव ही नित नव,आपदा जंजीर का क्यो करता नित आलिंगन!!१!!
मत्स्यान्याय हो रहा सबकी नजर सर्वत्र,द्वापर कथा आज व्यथा द्रोपदी चिर-हरन!
बाहुबली हस्त स्व चिराग हित नित रत,पर जीवन ज्योति का कर रहा है शमन!!
जीवन न्याय हैजीवन काल मे ही पूरन,करना है हिसाब चाहे करो जितना जतन!
जिसकी लाठी उसकी भैस है प्यारा कथन,किसके लिये इस पथ करते न्याय दमन!!२!!
जीवन लाल बन जीवन दान की कसम,लेकर करते सुकर सा निज पेट भरन!
कह रहा श्वान आज घूम-घूम गली-गली,देखो दोस्तो मुझे नही मरना मानव-मरन!!
मरना मारना मर जाना हर जीवन के,नव जीवन पाने के क्रम का है सदा बरन!
लूटना लूटाना लूट जाना इस जगत में,छूटना है सब साथ जाता तो नही है कफन!!३!!
जीवन लालसा सा लगा गले सब सबको,पूजा पाथर की कर ज्ञाताज्ञात से ले सबक!
जीवन पथ हो सहज सरल सुवासित,त्रिपथगा सा ठान लो जन तारने की सनक!!
कलयुग ही है काल नही मानव मन का,मत भरमो इसमे ले गफलत की भनक!
काट छाट कर छोटा बडा मत बनो कभी,बनना ही है तो बनो जीवन मे जनक!!४!!
जीवन ज्योति जग मे जगमगाती सर्वदा,एक एक कर भले ही हो सब योनि गमन!!
जीवन अमृत को पा नर क्यो नित भूलता,सुख दुख दिन रात सा न्ही इसमे चयन!
जीवन जहर कर स्वमेव ही नित नव,आपदा जंजीर का क्यो करता नित आलिंगन!!१!!
मत्स्यान्याय हो रहा सबकी नजर सर्वत्र,द्वापर कथा आज व्यथा द्रोपदी चिर-हरन!
बाहुबली हस्त स्व चिराग हित नित रत,पर जीवन ज्योति का कर रहा है शमन!!
जीवन न्याय हैजीवन काल मे ही पूरन,करना है हिसाब चाहे करो जितना जतन!
जिसकी लाठी उसकी भैस है प्यारा कथन,किसके लिये इस पथ करते न्याय दमन!!२!!
जीवन लाल बन जीवन दान की कसम,लेकर करते सुकर सा निज पेट भरन!
कह रहा श्वान आज घूम-घूम गली-गली,देखो दोस्तो मुझे नही मरना मानव-मरन!!
मरना मारना मर जाना हर जीवन के,नव जीवन पाने के क्रम का है सदा बरन!
लूटना लूटाना लूट जाना इस जगत में,छूटना है सब साथ जाता तो नही है कफन!!३!!
जीवन लालसा सा लगा गले सब सबको,पूजा पाथर की कर ज्ञाताज्ञात से ले सबक!
जीवन पथ हो सहज सरल सुवासित,त्रिपथगा सा ठान लो जन तारने की सनक!!
कलयुग ही है काल नही मानव मन का,मत भरमो इसमे ले गफलत की भनक!
काट छाट कर छोटा बडा मत बनो कभी,बनना ही है तो बनो जीवन मे जनक!!४!!
बुधवार, 15 मई 2013
हे रिद्धि सिद्धि के दाता
जय जय जय वर दायक गन नायक,मंगल दायक शुभ शोभित सुन्दर बदन!
गिरिजा सुवन गण बन्दन गज बदन,विघ्न हारक सुखकारक त्रिपुरारी नन्दन!!
जन रक्षक जय,जय हे मंगल करन,सदा विपत्ति विनाशाक जय हे गज करन!
मोदक जो चढावे सब सुख पावे तुरत, जय जय जय हे गनेश असरन सरन!!१!!
विद्या दाता ज्ञान विधाता भक्तो के दुखहर्ता,सुख सम्पति नाना विधि दाता हे स्कन्ध के भ्राता!
हेरम्ब मद मोद सार सब संकट हर्ता,मातु पिता के दुलारे हो तू तू भक्तन के त्राता!!
सेवत ही सुजन की कामना पूरन कर्ता,अष्टसिद्धि नवनिधि स्वामी तू तू धन के दाता!
मातु पिता भ्रातागण सब नित मोद भर्ता,रचना हो मंगलकारी हे रिद्धि सिद्धि के दाता!!२!
विनती सुनो हमारी हे त्रिपुरारी नन्दन,लोक सुवासित रचना हो जन मन रंजन!
नित नवीन नूतन नव आकृति बन्दन, शब्दार्थ रस भरो छन्द जैसे आखो में अंजन!!
मंगल रचना करे नित जगत नन्दन,दो शक्ति सदा इस जन को हे दुख विभंजन!
आतुर भय से जो जन करे सदा क्रन्दन,दूर करो सबका भय हे भव भय भंजन!!३!!
गिरिजा सुवन गण बन्दन गज बदन,विघ्न हारक सुखकारक त्रिपुरारी नन्दन!!
जन रक्षक जय,जय हे मंगल करन,सदा विपत्ति विनाशाक जय हे गज करन!
मोदक जो चढावे सब सुख पावे तुरत, जय जय जय हे गनेश असरन सरन!!१!!
विद्या दाता ज्ञान विधाता भक्तो के दुखहर्ता,सुख सम्पति नाना विधि दाता हे स्कन्ध के भ्राता!
हेरम्ब मद मोद सार सब संकट हर्ता,मातु पिता के दुलारे हो तू तू भक्तन के त्राता!!
सेवत ही सुजन की कामना पूरन कर्ता,अष्टसिद्धि नवनिधि स्वामी तू तू धन के दाता!
मातु पिता भ्रातागण सब नित मोद भर्ता,रचना हो मंगलकारी हे रिद्धि सिद्धि के दाता!!२!
विनती सुनो हमारी हे त्रिपुरारी नन्दन,लोक सुवासित रचना हो जन मन रंजन!
नित नवीन नूतन नव आकृति बन्दन, शब्दार्थ रस भरो छन्द जैसे आखो में अंजन!!
मंगल रचना करे नित जगत नन्दन,दो शक्ति सदा इस जन को हे दुख विभंजन!
आतुर भय से जो जन करे सदा क्रन्दन,दूर करो सबका भय हे भव भय भंजन!!३!!
गुरुवार, 9 मई 2013
ॠतु परिचर्चा
मधु-माधव माह महाराज माहन माहै,मोहै मालती मलयानिल मार मानव मन!
बासंती बयार बतावे बनावे बतकही,बरबश बुलावे बहलावे बहु बहु बन!!
फुलै फलै फूल फल फहरत फबिफात,फहरावे फर फेरि फेरि फनिक फन फन!
सोना सी सोहै सुधरा सुधर सुघर सर,सुरासुर सुर साजे सजावे सब सनासन!!१!!
जीवन जोत जगावे जगती जगमगावे,जाडा जावे जन जनावे जोरि जोरि जागरन!
जाड जड जोडि जुगल कर अनवरत,जावे पर बतावे गीता ज्ञान हो नन्दा शरन!!
आवे ग्रीष्म गरमी ले अगवानी वैशाख ले,अबार हाल इहै तो जेठ शुरु का का तपन!
जेठ की दुपहरी क दाघ निदाघ का करी,सोच सोच आकुल छाया भागत छाया शरन!!२!!
आषाढ माह गरमावे त बरसा बुलावे,झिमिर झिमिर झक झोरि झोरि रोज बरसै!
सावन भादो नाम बरसा रितु सब जाने,सावन की कजली बिरहिनी के जिया तरसै!!
सिय बियोग में राम गति जाने जो जनावे,पपीहा नित चातक चातकी की बात करसै!
धरा धन्य धन धान ध्रुव धर धरोरुह,हरियाली हर हर मानव मानव हरसै!!३!!
क्वार माह खुशबू कातिक का बन गरम,टेर दे जन जन काम आई धरम करम !
नेह नित निबाहन नव राग बढावन,चतुरमास चहुदिसि होत पूरन परम!!
राग रोग भाग,भोग भागसु रजनी बढ,सुकरम हेतु बतावे गहनतम मरम!
तीज त्यौहार खुशियो को झूम कर मनावो,भूल जावो गम शरद सिखावे यह धरम!!४!!
पतझड पर प्रीति परम पावन पाय,अगहन पूस माह हेमन्त छाय जहा जाय!
कहनी का इनकी जोर दे पल प्रकृति की,धरोहर धरावे धरतीसुत से धाय धाय!!
भविष्य सुधर जाये हर उस जन का,सुधा सुधरम सुकरम का जो जो अपनाय!
भावी आवे ही आवे मेटि न जाय सब गावे,दुख सुख दिन रात जरा जवानी सु बताय!!५!!
शिशिर आगमन पूस के चरन धरन,माघ पूरा अपना हक छोड फागुन झलक!
कपावे तन मन पीपल पात सु सुबह,जम जाय जन जीवन प्रेमी प्रेयसी पलक!!
घर जवाई सु होय मान घटाय सूरज,राहत-रेवडी वास्ते लोग निहारे अपलक!
रहता नही दिन मान एक सा हरदम,रितुराज राजा सा पूर्ण करे जगायी ललक!!६!!
बासंती बयार बतावे बनावे बतकही,बरबश बुलावे बहलावे बहु बहु बन!!
फुलै फलै फूल फल फहरत फबिफात,फहरावे फर फेरि फेरि फनिक फन फन!
सोना सी सोहै सुधरा सुधर सुघर सर,सुरासुर सुर साजे सजावे सब सनासन!!१!!
जीवन जोत जगावे जगती जगमगावे,जाडा जावे जन जनावे जोरि जोरि जागरन!
जाड जड जोडि जुगल कर अनवरत,जावे पर बतावे गीता ज्ञान हो नन्दा शरन!!
आवे ग्रीष्म गरमी ले अगवानी वैशाख ले,अबार हाल इहै तो जेठ शुरु का का तपन!
जेठ की दुपहरी क दाघ निदाघ का करी,सोच सोच आकुल छाया भागत छाया शरन!!२!!
आषाढ माह गरमावे त बरसा बुलावे,झिमिर झिमिर झक झोरि झोरि रोज बरसै!
सावन भादो नाम बरसा रितु सब जाने,सावन की कजली बिरहिनी के जिया तरसै!!
सिय बियोग में राम गति जाने जो जनावे,पपीहा नित चातक चातकी की बात करसै!
धरा धन्य धन धान ध्रुव धर धरोरुह,हरियाली हर हर मानव मानव हरसै!!३!!
क्वार माह खुशबू कातिक का बन गरम,टेर दे जन जन काम आई धरम करम !
नेह नित निबाहन नव राग बढावन,चतुरमास चहुदिसि होत पूरन परम!!
राग रोग भाग,भोग भागसु रजनी बढ,सुकरम हेतु बतावे गहनतम मरम!
तीज त्यौहार खुशियो को झूम कर मनावो,भूल जावो गम शरद सिखावे यह धरम!!४!!
पतझड पर प्रीति परम पावन पाय,अगहन पूस माह हेमन्त छाय जहा जाय!
कहनी का इनकी जोर दे पल प्रकृति की,धरोहर धरावे धरतीसुत से धाय धाय!!
भविष्य सुधर जाये हर उस जन का,सुधा सुधरम सुकरम का जो जो अपनाय!
भावी आवे ही आवे मेटि न जाय सब गावे,दुख सुख दिन रात जरा जवानी सु बताय!!५!!
शिशिर आगमन पूस के चरन धरन,माघ पूरा अपना हक छोड फागुन झलक!
कपावे तन मन पीपल पात सु सुबह,जम जाय जन जीवन प्रेमी प्रेयसी पलक!!
घर जवाई सु होय मान घटाय सूरज,राहत-रेवडी वास्ते लोग निहारे अपलक!
रहता नही दिन मान एक सा हरदम,रितुराज राजा सा पूर्ण करे जगायी ललक!!६!!
बुधवार, 8 मई 2013
चिन्तन
चिन्तन से चिता में जात जन मन समझो,
आतुर दिन रात जिस हेतु मारन-मरन!
ईश्वर की रचायी माया इनसे भगाये,
उलझाये संसारी विषय मे धरते चरन!!
राग पैदा कर तन- मन में रचाये इन्हें,
सेवन असेवन दोउ हाल में कर जतन!
मेरी हो जाय सारी भोग्या बस यही कामना,
नचाये कठपुतली सा और कारन कवन!!१!!
शुरुवात काम क्रोध लोभ ममता की यह,
कामी हो असफल बिचारने में सत- असत!
बाधा कामना की भडकावे क्रोध को,
कहे करे सब निकृष्ट जो इसमें बरत!!
लालच बनावे सुजन को भी ठग मानव,
सत असत धर्माधर्म भूल सबको ठगत!
मोह ममता का बिगाडे समभाव नर का,
करवावे पक्षपात बनावे बगुला भगत!!२!!
अभिमानी स्वरुप वय गुण गन गान का,
रज तम त्याग सनकी बन पावे सनक!
मारग अपनावे बिचलो सुख- शान्ति छोड,
बुलावे क्रोध नीति न्याय विरुद्ध राग की भनक!!
लोभी मोही कामी स्वार्थी सुखभोगी इन्सान,
अभिमान से ही क्रोधी बने तुनक तुनक!
मूरख सा याद नाश करे विनाश सबका,
पा पाकर अपने मोह माया की एक झलक!!३!!
कामी को पियारी नारी उसकी कामी कामना,
लोभ जब हो धन मान की तोड देती कमर!
विषयी विषय विकार विनाश कर नित,
मुक्त मृग-तृष्णा से ईश कृपा से तर बतर!!
चिन्तन चिता से मोड मुख चलो कर्म पथ,
प्रेममय सुमन शोभित सामने सरवर!
लगा डुबकी प्रेम-सरवर बन सबका,
जमकर जीत जावो जगत में हर समर!!४!!
आतुर दिन रात जिस हेतु मारन-मरन!
ईश्वर की रचायी माया इनसे भगाये,
उलझाये संसारी विषय मे धरते चरन!!
राग पैदा कर तन- मन में रचाये इन्हें,
सेवन असेवन दोउ हाल में कर जतन!
मेरी हो जाय सारी भोग्या बस यही कामना,
नचाये कठपुतली सा और कारन कवन!!१!!
शुरुवात काम क्रोध लोभ ममता की यह,
कामी हो असफल बिचारने में सत- असत!
बाधा कामना की भडकावे क्रोध को,
कहे करे सब निकृष्ट जो इसमें बरत!!
लालच बनावे सुजन को भी ठग मानव,
सत असत धर्माधर्म भूल सबको ठगत!
मोह ममता का बिगाडे समभाव नर का,
करवावे पक्षपात बनावे बगुला भगत!!२!!
अभिमानी स्वरुप वय गुण गन गान का,
रज तम त्याग सनकी बन पावे सनक!
मारग अपनावे बिचलो सुख- शान्ति छोड,
बुलावे क्रोध नीति न्याय विरुद्ध राग की भनक!!
लोभी मोही कामी स्वार्थी सुखभोगी इन्सान,
अभिमान से ही क्रोधी बने तुनक तुनक!
मूरख सा याद नाश करे विनाश सबका,
पा पाकर अपने मोह माया की एक झलक!!३!!
कामी को पियारी नारी उसकी कामी कामना,
लोभ जब हो धन मान की तोड देती कमर!
विषयी विषय विकार विनाश कर नित,
मुक्त मृग-तृष्णा से ईश कृपा से तर बतर!!
चिन्तन चिता से मोड मुख चलो कर्म पथ,
प्रेममय सुमन शोभित सामने सरवर!
लगा डुबकी प्रेम-सरवर बन सबका,
जमकर जीत जावो जगत में हर समर!!४!!
मंगलवार, 7 मई 2013
आज और कल
कहानी कल की यथार्थ आज का कल्पना करे कल की!
औरो की गाथा स्वं की व्यथा कथा आत्म प्रवंचना की!!
कंदुक राज्य त्रेता का द्वापर में अपनो का हडप लेने की!
आज अपनो की परायो की सबकी अपना कर लेने की!!१!!
माता बहन पुत्री की सीमा मर्यादा नर- नारी के बीच की!
जात एकान्त इन्द्रिय जात मारती मति मानव मन की!!
कल की कथनी, करनी आज की ,गली-गली आम जन की!
कल क्या होगा हाल सबसे बेहाल हमारे विद्वत जनो की!!२!!
पिता भाई पुत्र के संबन्ध गरिमा समर्पण त्याग सम्मान की!
एक दूसरे के लिए जिनको परवाह नहीं तन मन व धन की!!
खटास ला संबन्ध में दरार डाले रिश्तो में स्थिति आज की!
टूटने को आतुर सारी बेडियां बिगाड देगी रिश्ता कल की!!३!!
सत्तासीन सत्तातुर सोच सुधारो सुधरो सुनो समझो समीचीन!
अपनाओ अपना बनाओ मिटा भेद स्व -पर का हो अर्वाचीन!!
भविष्य की गर्त में मत जाने दो सिख लो प्राचीन से नवीन!
बचेगा आज-कल दोनो जब न हो हमारा मन मलीन !!४!!
औरो की गाथा स्वं की व्यथा कथा आत्म प्रवंचना की!!
कंदुक राज्य त्रेता का द्वापर में अपनो का हडप लेने की!
आज अपनो की परायो की सबकी अपना कर लेने की!!१!!
माता बहन पुत्री की सीमा मर्यादा नर- नारी के बीच की!
जात एकान्त इन्द्रिय जात मारती मति मानव मन की!!
कल की कथनी, करनी आज की ,गली-गली आम जन की!
कल क्या होगा हाल सबसे बेहाल हमारे विद्वत जनो की!!२!!
पिता भाई पुत्र के संबन्ध गरिमा समर्पण त्याग सम्मान की!
एक दूसरे के लिए जिनको परवाह नहीं तन मन व धन की!!
खटास ला संबन्ध में दरार डाले रिश्तो में स्थिति आज की!
टूटने को आतुर सारी बेडियां बिगाड देगी रिश्ता कल की!!३!!
सत्तासीन सत्तातुर सोच सुधारो सुधरो सुनो समझो समीचीन!
अपनाओ अपना बनाओ मिटा भेद स्व -पर का हो अर्वाचीन!!
भविष्य की गर्त में मत जाने दो सिख लो प्राचीन से नवीन!
बचेगा आज-कल दोनो जब न हो हमारा मन मलीन !!४!!
रविवार, 5 मई 2013
प्यास
अपनी अपनी कथनी करनी,अपनी अपनी प्यास!
आप चाहो तो करो पूरा केवल अपनी ही आस!!
इमली सी रंग स्वाद में निकालते सब भडास!
ईख शरबत भेली शक्कर दे हर हाल में मिठास!!१!!
प्यास पीने पाने मिटाने मरने मारने जमाने की!
सीमित असीमित दमित पालित इच्छित अनिच्छ्त की!!
निभाने-निभने,पालने-पलने व टालने-टलने की!
रखो यही जग में निरन्तर कुछ कर गुजरने की !!२!!
प्यास होगी धरा पर पूरी उडे भले आसमान !
मिले अन्न धरा पर ही चिडिया उडे सारे जहान!!
भूल भुलैया में भैया फस जाये सशरीर जुबान!
काम केन्द्रित कामी,खो देते सब मान सम्मान!!३!!
प्यास मित से अमित व जोगी से भोगी बनाता!
रोगी भोगी कामी बन क्यो ठगता और ठगाता!!
अतृप्त लालसा के चक्कर में क्यो फसताऔर फसाता!
सुकर्म पथी मजबूत आचरण से ही इसे बूझाता!!४!!
आप चाहो तो करो पूरा केवल अपनी ही आस!!
इमली सी रंग स्वाद में निकालते सब भडास!
ईख शरबत भेली शक्कर दे हर हाल में मिठास!!१!!
प्यास पीने पाने मिटाने मरने मारने जमाने की!
सीमित असीमित दमित पालित इच्छित अनिच्छ्त की!!
निभाने-निभने,पालने-पलने व टालने-टलने की!
रखो यही जग में निरन्तर कुछ कर गुजरने की !!२!!
प्यास होगी धरा पर पूरी उडे भले आसमान !
मिले अन्न धरा पर ही चिडिया उडे सारे जहान!!
भूल भुलैया में भैया फस जाये सशरीर जुबान!
काम केन्द्रित कामी,खो देते सब मान सम्मान!!३!!
प्यास मित से अमित व जोगी से भोगी बनाता!
रोगी भोगी कामी बन क्यो ठगता और ठगाता!!
अतृप्त लालसा के चक्कर में क्यो फसताऔर फसाता!
सुकर्म पथी मजबूत आचरण से ही इसे बूझाता!!४!!
सदस्यता लें
संदेश (Atom)