रविवार, 17 फ़रवरी 2013

यह वसन्त

नवगति नवलय नव ताल छन्द ले आया नव वसन्त !
दिख रहा नव नव रूप रंग इस धरा का दिग दिगन्त !!
मावट खेले खेल खलनायक सा दिखे न इसका अन्त !
प्रान्त केंद्र की नीति अनन्त कैसा होगा अब  यह वसन्त !!१!!
हर हर जन का कठिन कष्ट कर कर को कर्मरत !
सुधरे सबकी सुरत सुलझे समस्याये सत सत !!
सुगम हो अगम जन हो निगम छूट जाय सब लत !
ऐसा कर दे यह वसन्त की हो कुमति सब सुमत !!२!!
दो हजार तेरह से मिट जाय जड़ से तेरह का चक्कर !
हो न इस जग में  किसी अन्धविश्वास का फिक्कर !!
सो न जाय जप जुगो का हो न जोगो का टक्कर !
यह वसन्त अन्नपूर्णा बन दे हर भूखो को टिक्कर!!३!!
बासन्ती फाग जगाये जन जन की भाग !
भगाये भारत से दुखद आतंक की आग !!
जल जाय होलिका सा दुष्कर्मियो का राग !
प्रहलाद बन यह वसन्त लाये नव जप जाग !!४!!
 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

जितेगा वही होगा सिकन्दर!!


क्रिकेट की कहानी, कहना न जुबानी!
खेल खेलने से ही ज्ञात हो इसकी जवानी!!
सिलसिला हार का जीतो मे बदलो तब तो करे बात!
पङो प्रतिपक्ष पर प्रबल तभी बनेगी यह बात!!
नही खेलना देशहित तो छोङ दो खेलना!
बार-बार हार देखने से अच्छाहै इससे नाता तोङना!!
खेलो देश या विदेश रखो शान मान!
तभी होगी ये खिलाङियो तेरी सच्ची पहचान!!
एक-दो की जैसी पारियो से कर लेते हो पक्का स्थान!
वैसा ही सभी पारियो मे खेलो तब बने सच्ची पहचान!!
जानते है सभी यह बात अन्दर-ान्दर!
कही भी जो जितेगा वही होगा सिकन्दर!!

लेखनी

लेखनी है तभी तो सारे साहित्यसेवी जी रहे है !
साहित्य -साधना से सभी बिधायो को सी रहे है !!
जर जर हो रही चेतना को संवेदना दे रहे है !
नीलकंठ सा इस जगत में असार -विष पी रहे है !!

चापलूसी

सच बोले की फस जावोगे ,जाति की कमी बताते ही नजर आवोगे !
अभिव्यक्ति स्वतन्त्र है ,पर लोक-तंत्र में चापलूसी से ही बच पावोगे !

,फेसबुक

खुद छिप ,जानना पर को 
पर पर काट ,सेफ स्व को !
ऐसी हरकत ,न भा मित्र को 
बदनाम कर ,फेसबुक को !!

होनी अनहोनी

होनी क्या होकर रहती हैया हो जाने के बाद को होनी कहते है !
अनहोनी जब होती नहीं तो उसे अनहोनी क्यों सब कहते है !!
विषय विचारे हम सब मिल फिर भावी किसको कह सकते है !
जब पूर्व नियोजित है सब तब निनानबे के फेर में हम क्यों पड़ते है !

सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!

हे केशव बृजबिहारी ,है आप सदा निष्काम !
भाल बिशाल अमिय ,मोहै देखी ललाम !!
मोरपंख शिर वैसे ,शशि सोहै जू शिवधाम !
सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!१!!
हे वंशीधर नंदलाल ,तेरी छबि वारे कोटि काम !
रक्षक हर पल ,करे भक्षको का काम तमाम !!
तन मन धन सब अर्पित ,हे जन के सुखधाम !
सुआस करो पूरी , हर जन की हे पूरनधाम !!२!!
हे माधव मदन मुरारी ,कहू क्या हे कान्तिधाम !
 जनम जनम सुख पावे ,जन  ले ले तेरा नाम !!
गल माल सुवासित ,बाजूबंद बिराजे बाजूधाम !
सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!३!!
हे मधुसूदन राधेश्याम ,हरे कृष्ण हरे राम !
हरते हर पापियों को,करते भक्त के हर काम !!
भक्त का कुछ हर न सके कोई ,हे त्राहि माम !
सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!४!!