।।सरस्वती स्तोत्र।।
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🪔वंशस्थ छंद:-
यह 💐जगती परिवार का 12×4 =
48 वर्णों का ♦️समवर्ण वृत्त छंद है।
इस परिवार को ♦️"जगतीजातीय"
भी कहते हैं। वंशस्थ छंद को
🌹वंशस्थविल छंद एवं 🌹वंशस्तनित
छंद भी कहते हैं
🪔लक्षण :-
⏯️जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ।
अर्थात् जतौ जरौ मतलब जगण,
तगण, जगण एवं रगण से युक्त
छंद वंशस्थ छंद होता है।
▶️परिभाषा:-
"वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में
क्रमश: जगण, तगण, जगण एवं
रगण के क्रम में 12 वर्ण होते हैं।
चार चरणों में 12×4 = 48 वर्ण
होते हैं। प्रत्येक चरण के अंत में
अर्थात् बारह वर्णों पर यति होता है।"
👍उदाहरण:-
I S I S S I I S I S I S
☑️1- गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
☑️2-प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्
तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे
सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥
☑️3-भवन्ति नम्रास्तरवो फलोद्गमैः
नवाम्बुभिर् दूरविलम्बिनो घनाः।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्॥
☑️4-सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं,
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम् ।
सहारवक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं,
नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ॥
🆔हिन्दी :-
हिन्दी में भी वंशस्थ छंद के लक्षण
और परिभाषा वही है,जो संस्कृत
में हैं। हिन्दी में इसके लक्षण देखे:
🪔"जताजरौ द्वादश वर्ण साजिये।
प्रसिद्ध ‘वंशस्थ’ सुछंद राचिये।।"
आइए उदाहरण देखते हैं :-
☑️1-बिना चले मंज़िल क्या कभी मिली।
बहार आई तब ही कली खिली।।
कशीश मानो दिल में कहीं पली।
जुबान की वो सच बात हो चली।।
उक्त सभी संस्कृत और हिन्दी के
उदाहरणों में आए प्रत्येक श्लोक/
पद्य के प्रत्येक चरणों में जगण,
तगण, जगण एवं रगण अर्थात
ISI SSI ISI SIS के क्रम में
वर्ण आए हैंऔर प्रत्येक चरण
के अंत में यति है अतः सबमें
वंशस्थ छंद है।
💐 ।। धन्यवाद।।💐
।।रथोद्धता छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
यह ♦️त्रिष्टुप परिवार का छंद है।
♈लक्षण:-संस्कृत में इसके निम्न
दो लक्षण बताये गये हैं:-
👉(1)रथोद्धता रनौ रलौ ग।
और
👉(2)रान्नराविह रथोद्धता लगौ।
यहाँ इन दोनों सूत्रों की व्याख्या देखें
प्रथम के☑️ रनौ र और दूसरे के
☑️रान्नरा का एक ही अर्थ है
👉रगण नगण रगण SIS III SIS
इसी प्रकार♦️ लौ ग और ♦️लगौ
इन दोनों का एक ही अर्थ है एक
👉लघु और एक गुरू IS, इस प्रकार
यह सिद्ध हुआ कि रथोद्धता छंद में
क्रमशः रगण नगण रगण तथा एक
लघु और एक गुरू के क्रम में कुल
ग्यारह वर्ण होते हैं और यति भी
ग्यारह वर्णों पर ही होता है।
इन दोनों सूत्रों के आधार पर
इस छंद की परिभाषा बनती है।
⏯️परिभाषा:-
"जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरणों में
रगण नगण रगण तथा एक लघु और एक
गुरू के क्रम में ग्यारह-ग्यारह वर्ण होते हैं,
उस श्लोक/पद्य में रथोद्धता छंद होता है।"
💐उदाहरण:-
SIS III SIS IS
🌹(1) कोसलेन्द्रपदकन्जमंजुलौ
कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ
चिन्तकस्य मनभृंगसंगिनौ॥
🌹(2) कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं
अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकन्जलोचनं
नौमि शंकरमनंगमोचनम्॥
उक्त दोनों श्लोकों के चारो चरणों
में प्रथम श्लोक के प्रथम चरण के
अनुसार ही रगण नगण रगण तथा
एक लघु और एक गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं। अतः दोनों
में रथोद्धता छंद है।
⏯️हिन्दी:-
ठीक इसी प्रकार हिन्दी में भी
इस छंद के लक्षण और परिभाषा
हैं। हिन्दी के उदाहरण देखते हैं:-
SIS III SIS IS
🌹(1) रौद्र रूप अब वीर धारिये।
मातृ भूमि पर प्राण वारिये।।
अस्त्र शस्त्र कर धार लीजिये।
मुंड काट रिपु ध्वस्त कीजिये।।
🌹(2) नेह प्रीत नयना निखार लो।
प्रेम मीत सजना सवार लो।।
गीत ताल तबला धमाल हो।
गान सोम महिमा कमाल हो।।
उक्त दोनों पद्यों के चारों चरणों
में प्रथम श्लोक के प्रथम चरण के
अनुसार ही रगण नगण रगण तथा
एक लघु और एक गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं। अतः दोनों
पद्यों में रथोद्धता छंद है।
☑️♈विशेष:
ध्यान देने योग्य बात यह है कि
त्रिष्टुप छंद 11×4 = 44 वर्ण वाले
सात छंद हैं जिनमें से " इंद्रवज्रा,
उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, शालिनी
और स्वागता " इन पाँच के अंत में
👍दो गुरू वर्ण आते हैं लेकिन
"भुजंगी और रथोद्धता" इन दो के
अंत में👍 लघु और गुरू वर्ण
आते हैं।
।।धन्यवाद।।
।।भुजंगी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
।।शालिनी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
यह त्रिष्टुप परिवार का समवर्ण वृत्त छंद है।
लक्षण:-
"मात्तौ गौ चेच्छालिनी वेेदलोकैैः"
व्याख्या:-
मात्तौ गौ अर्थात् एक मगण, दो तगण
तथा दो गुरू के क्रम में ग्यारह वर्ण
प्रत्येक पद/चरण में, वेेदलोकैैः अर्थात्
वेद है चार और लोक हैं सात, तो चार
और सात वर्णों पर यति युक्त छंद,
चेच्छालिनी को शालिनी कहते हैं।
परिभाषा:-
जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में एक
मगण, दो तगण तथा दो गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण होते हैं और चार तथा
सात वर्णों पर यति/विराम होता है,उस
श्लोक/पद्य में शालिनी छंद होता है।
उदाहरण:-
SSS SSI SSI SS
(1) माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ॥
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु: ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥
(2) एको देवः केशवो वा शिवो वा
एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
एको वासः पत्तने वा वने वा
एका नारी सुन्दरी वा दरी वा ।।
उक्त दोनों छंदों में प्रथम छंद के
प्रथम चरण के अनुसार ही सभी
चरणों में एक मगण, दो तगण तथा
दो गुरू के क्रम मेंग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं
तथा प्रत्येक चरणों में चार और सात वर्णों
पर यति भी है अतःइनमें शालिनी छंद है।
हिन्दी में शालिनी छंद:-
संस्कृत की ही तरह हिन्दी में
भी शालिनी छंद के लक्षण एवं
परिभाषा हैं। आइए उदाहरण
देखते हैं।
उदाहरण:-
माता रामो हैं पिता रामचंद्र।
स्वामी रामो हैं सखा रामचंद्र।।
हे देवो के देव मेरे दुलारे।
मैं तो जीऊ आप ही के सहारे।।
उक्त पद्य में भी प्रथम चरण के
अनुसार ही सभी चरणों में
एक मगण, दो तगण तथा दो
गुरू के क्रम में ग्यारह-ग्यारह
वर्ण हैं तथा प्रत्येक चरणों में चार
और सात वर्णों पर यति भी है
अतः इसमे शालिनी छंद है।
विशेष:-
ध्यान देने योग्य बात यह है कि
त्रिष्टुप छंद11×4=44 वर्ण वाले
सात छंद हैं जिनमें से इंद्रवज्रा,
उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, शालिनी और
स्वागता इन पाँच के अंत में दो गुरू वर्ण
आते हैं लेकिन भुजंगी और रथोद्धता इन
दो के अंत में लघु और गुरू वर्ण आते हैं।
।। धन्यवाद।।
।।स्वागता छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
🪷विशेष:-
ध्यान देने योग्य बात यह है
कि त्रिष्टुप छंद 11×4= 44 वर्ण
वाले सात छंद हैं जिनमें से " इंद्रवज्रा,
उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, शालिनी और
स्वागता" इन पाँच के अंत में दो गुरू
वर्ण आते हैं लेकिन "भुजंगी और
रथोद्धता" इन दो के अंत में लघु
और गुरू वर्ण आते हैं।
।।उपेन्द्रवज्रा छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
उपेन्द्रवज्रा छन्द त्रिष्टुप परिवार का
सम वर्ण वृत्त छंद है।
लक्षण :-
“उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ ”
व्याख्या:-
जतजास्ततो गौ अर्थात् जगण ISI,
तगण SSI, जगण ISI और गौ अर्थात्
दो गुरु SS वर्ण से युक्त छंद उपेन्द्रवज्रा
होता है। इसमें ग्यारह वर्णों के बाद यति
अर्थात् विराम होता है और 11×4= 44
वर्ण होते हैं।
परिभाषा:-
जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में जगण
तगण जगण के बाद दो गुरू वर्ण के क्रम में
ग्यारह - ग्यारह वर्ण होते हैं उस श्लोक/पद्य
में उपेन्द्रवज्रा छन्द होता है।
उदाहरण :-
जगण तगण जगण गुरु गुरु
ISI SSI ISI S S
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
नोट: (ध्यान देने योग्य बात)
इस नियम के अनुसार प्रत्येक चरण का
अन्तिम वर्ण लघु होते हुए भी आवश्यकता
होने पर गुरु S माना जाता है :-
सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत्।
वर्ण: संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा।
इस श्लोक के पादान्तगोऽपि वा के अनुसार
यदि अंतिम वर्ण लघु हो और वहां गुरु वर्ण
की आवश्यकता हो तो अंतिम लघु वर्ण को
विकल्प से गुरू माना जाता है।
इस नियम के अनुसार ही उक्त उदाहरण के
प्रत्येक चरणों के अंतिम वर्णों के लघु होने के
बावजूद भी इन वर्णों को गुरू माना गया है
और यह श्लोक उपेंद्रवज्रा छंद का प्रसिद्ध
उदहारण भी है।
हिन्दी:-
हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण एवं परिभाषा
संस्कृत की तरह ही है । हिंदी के लिए भी उन्हीं
को ध्यान से समझ ले और याद कर ले ।
आइए उदाहरण देखते हैं:-
जगण तगण जगण गुरु गुरु
I S I S S I I S I S S
बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै ।
I S I S S I I S I SS
परंतु पूर्वा पर सोच लीजै ।।
I S I S S I I S I S S
बिना विचारे यदि काम होगा।
I S I S S I I S I S S
कभी न अच्छा परिणाम होगा।।
।।धन्यवाद।।
इन्द्रवज्रा छन्द त्रिष्टुप परिवार का
सम वर्ण वृत्त छंद है। इसके प्रत्येक
चरण में 11-11 वर्ण होते हैं।
इसका लक्षण इस प्रकार से है-
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
अर्थात इंद्रवज्रा छंद वहां होता है
जहां श्लोक/पद्य में तौ अर्थात
दो तगण और जगौ गः अर्थात
जगण व दो गुरु वर्ण मिलकर
कुल ग्यारह-ग्यारह वर्ण प्रत्येक
चरणों में होते हैं।
इसका स्वरूप इस प्रकार है-
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः
S S I S S I I S I S S
तगण तगण जगण दो गुरु
उदाहरण-
1-हंसो यथा राजत पंजरस्थः
सिंहो यथा मन्दर कन्दरस्थः ।
वीरो यथा गर्वित कुंजरस्थ:
चंद्रोSपि बभ्राज तथाऽम्बरस्थः।
2-विद्येव पुंसो महिमेव राज्ञः
प्रज्ञेव वैद्यस्य दयेव साधोः।
लज्जेव शूरस्य मुजेव यूनो,
सम्भूषणं तस्य नृपस्य सैव॥
3- अर्थो हि कन्या परकीय एव
तामद्य सम्प्रेष्य परिग्रहीतुः।
जातो ममायं विशदः प्रकामं
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा॥
यहाँ प्रथम श्लोक के प्रत्येक
पंक्ति में श्लोक के प्रथम पंक्ति
वाले ही वर्णों का क्रम तगण तगण
जगण और दो गुरु है।
अतः 'इन्द्रवज्रा छन्द' है।
परन्तु दूसरे श्लोक के अंतिम चरण
का अंतिम वर्ण लघु है, इसी प्रकार
तृतीय श्लोक के प्रथम चरण के
अंत में लघु वर्ण है लेकिन
सानुस्वारश्च दीर्घश्च
विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च
तथा पादान्तगोऽपि वा।
नियम के पादान्तगोऽपि वा
के अनुसार इन सभी अंतिम
वर्णों को गुरू माना गया है
और इंद्रवज्रा छंद है।
यही परिभाषा और स्वरुप हिन्दी
में भी इंद्रवज्रा छंद के होते हैं,
आइए उदाहरणों से समझते हैं:
कान्हा कभी दर्शन तो कराओ।
भूले हमें, क्यों जबसे गये हो
बोलो यहाँ और किसे ठगे हो।।
2-नाते निभाना मत भूल जाना
वादा किया है करके निभाना।
तोड़ा भरोसा जुमला बताया
लोगों न कोसो खुद को गिराया।।
3-गंगा बहाना मन चाहता है
प्रेमी पुराना धुन चाहता है।
पूरी कहानी सुन लो जुबानी
यादें हमेशा रख लो पुरानी।।
।। धन्यवाद।।
इसके प्रथम एवं तृतीय (विषम)
चरणों में 12-12 मात्राएँ तथा
द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों
में 7-7 मात्राएँ होती हैं।
इसके सम चरणों के अंत में
जगण (ISI) अथवा तगण (SSI)
आकर छंद को सुरीला बना देते हैं।
बरवै ‘अवधी भाषा’ का व्यक्तिगत
छन्द है, जो प्रायः श्रृंगार रस के
लिए प्रयुक्त होता है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने
"बरवै रामायण" नामक ग्रंथ की
रचना सात कांडो और 69 बरबै
छन्दों में किया है।
उनमें से निम्न उदाहरण प्रस्तुत हैं -----
I I S I I S S I I, S I I S I (जगण)
अब जीवन कै है कपि, आस न कोय।
I I I I S S I I S, S I I S I (जगण)
कनगुरिया कै मुदरी, कंकन होय।।1।।
I I I I I I I I S I I, I I I I S I(जगण)
गरब करहु रघुनंदन,जनि मन माहँ।
S I I S I I S I I, I I S S I(तगण)
देखहु आपनि मूरति,सिय कै छाहँ॥2।।
S I I I I S I I I I, S I I S I(जगण)
स्वारथ परमारथ हित,एक उपाय।
S I S I I I I I S, S I I S I(जगण)
सीय राम पद तुलसी, प्रेम बढ़ाय॥3॥
।।।धन्यवाद।।
।।अधिकार के पर्यायवाची शब्द।।
दो दोहों में तेईस पर्यायवाची
सामर्थ्य स्वामित्व स्वत्व ,आधिपत्य अधिकार।
कब्जा मिल्कियत प्रभुत्व, वर्चस्व प्राधिकार।।1।।
शासन सत्ता शक्ति हक , चंगुल पकड़ गिरफ्त।
मुठ्ठी काबु पंजा वश, दावा औ हुकूमत।।2।।
।। अहंकार के पर्यायवाची शब्द।।