मंगलवार, 31 अगस्त 2021

हनुमानजी की अद्भुत सेवा और उसका फल

            ।।#हनुमान कथा।।
      --#वर्ण दोष का भयंकर परिणाम-
#हनुमानजी की अद्भुत सेवा और उसका फल
#जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते।।
व्याकरण और उच्चारण के महत्त्व को बताने-समझाने के लिए यह श्लोक बहुत ही प्रसिध्द है।
#यद्यपि बहुनाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् ।
स्वजनः श्वजनः मा भूत् सकलः शकलः सकृत्छकृत् ।। अर्थात
बेटे, व्याकरण इसलिए भी पढ़ो कि उच्चारण में स और श का अंतर न जानने से ही अनर्थ हो सकता है। जैसे:
स्वजन – सम्बन्धी
श्वजन – कुत्ता

सकल – सम्पूर्ण
शकल – खण्ड

सकृत् – एक बार
शकृत_- विष्टा

          ।। धन्यवाद।।

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

√रामचरित मानस में दशावतार चित्रण

    ।।रामचरित मानस में दशावतार चित्रण।।
एक अनीह अरूप अनामा। 
अज सच्चिदानंद पर धामा॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥
1-एक=मत्स्यावतार ईश्वर एक ही पार ब्रह्म परमेश्वर है जो सर्वप्रथम मत्स्यावतार धारण किया।
2-अनीह=कच्छपावतारजिनकी कोई इच्छा नहीं है
3-अरूप=वाराह अवतारजिनका कोई रूप नहीं है
4-अनामा=नरसिंहावतार जो अनाम हैं
5-अज=वामनावतार जो अजन्मा हैं
6-सच्चिदानंद= परशुरामावतर जो सच्चिदानन्द हैं
7-परधामा= रामावतार जो परम धाम हैं
8-ब्यापक=कृष्णावतार जो व्यापक हैं
9-बिस्वरूप=बुद्धावतार जो विश्व रूप हैं
10-भगवाना=कल्कि अवतार जो भगवान हैं
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना उसी एक पार ब्रह्म परमेश्वर ने समय समय पर अनेक शरीर धारण कर  अनेक चरित (लीला) करते रहते हैं।
सो केवल भगतन हित लागी।
परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू।
जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥
1-सो केवल भगतन हित लागी वही पार ब्रह्म परमेश्वर केवल भक्तों के हित अर्थात संसार के हित के लिए एक अवतार लिया और वह हैं मत्स्यावतार।
2-परम कृपालअनीह=कच्छपावतार  जिनकी कोई इच्छा नहीं है
3-प्रनत अनुरागीअरूप=वाराह अवतार जिनका कोई रूप नहीं है
4-  जेहि जन पर ममता अति छोहू। अनामा=नरसिंहावतार जो अनाम हैं
5- जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू-अज=वामनावतार जो अजन्मा हैं
गई बहोर ग़रीब नेवाजू। 
सरल सबल साहिब रघुराजू॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी।
करहिं पुनीत सुफल निज बानी॥
6-गई बहोर गई हुई वस्तु को फिर प्राप्त कराने वाले
सच्चिदानंद= परशुरामावतर जो सच्चिदानन्द हैं
7-ग़रीब नेवाजू दीनबन्धु परधामा= रामावतार जो परम धाम हैं
8-सरल ब्यापक=कृष्णावतार जो व्यापक हैं
9-सबलबिस्वरूप=बुद्धावतार जो विश्व रूप हैं
10-साहिबभगवाना=कल्कि अवतार जो भगवान हैं
रघुराजू रघु अर्थात प्राणी मात्र, राजू अर्थात राजा अर्थात वही संसार के अचर-सचर के स्वामी हैं और यही समझकर बुद्धिमान लोग उन श्री हरि का यश वर्णन करके अपनी वाणी को पवित्र और उत्तम फल (मोक्ष और दुर्लभ भगवत्प्रेम) देने वाली बनाते हैं।
                 ।।    जय श्री राम    ।।

पार ब्रह्म परमेश्वर के अवतार की सूची
1. मत्स्य अवतार6. परशुराम अवतार
2. कूर्म अवतार7. राम अवतार
3. वराह अवतार8. कृष्ण अवतार
4. नृसिंह अवतार9. बुद्ध अवतार
5. वामन अवतार10. कल्कि अवतार

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कृष्णजन्माष्टमी

     ।।देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।।
कृष्ण. वह नाम है..जिस नाम में दिव्य आकर्षण  है  जो अनंत काल से जन मन मानस पर छाया है। कृष्ण चरित्र जितना मोहक है उतना ही रहस्यमय,जितना चंचल है उतना ही गंभीर, जितना सरल, उतना ही जटिल मानो प्रकृति का हर रूप  उनके व्यक्तित्व में समाहित है। जन्माष्टमी पर्व  हमें कृष्ण की मनोहारी लीलाओं का संस्मरण करवाते हुवे उन लीलाओं के गूढ़ अर्थ को समझने हेतु लालायित करता है।
यह पर्व कृष्ण के लोकनायक, संघर्ष शील, पुरुषार्थी, कर्मयोगी ,युगांधर और जगद्गुरु होने केमहत्त्व को प्रतिपादित करता है। विष्णु का सोलह कला युक्त कृष्ण अवतार अद्भुत है, सीमारहित है, व्याख्या से परे है।कृष्ण की विराटता, अनंतता और सर्व कालिक प्रासंगिकता ही कृष्ण तत्त्व के प्रति असीमित आकर्षण का कारण है। 
 श्रीकृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण जो विष्णु के आठवे अवतार है उनका जनमोत्सव है।भाद्रपद मास के कृष्ण  पक्ष की अष्टमी को इनका जन्म हुआ था इसलिए प्रत्येक वर्ष भाद्र कृष्ण अष्टमी को बहुत ही श्रद्धा भाव से श्रद्धालुजन भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से मनाते हैं।
जो जन्माष्टमी व्रत को  करते हैं वे सदैव स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करते हैं उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत को करने से  महान पुण्य राशि प्राप्त होती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। शास्त्रों में कहा गया है कि   भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्धरात्रि,  अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में चंद्रमा, इनके साथ सोमवार या बुधवार का होना श्रेष्ठतम फलदायक होता  है।  इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से तीन जन्मों के जाने-अनजाने  पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है। इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से व्रती प्रेत योनी में भटक रहे पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्त करवा देता है।जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप के पूजन का विधान है ऐसी मान्यता है कि
      देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
     देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।।
 मंत्र का जन्माष्टमी पर जाप करने से मन वांछित संतान की प्राप्ति  होती है।
  मैं भगवान श्री कृष्ण के बाल मुकुन्द और सच्चिदानंद स्वरूप की वंदना करते हुवे इस पावन
पर्व पर जगत कल्याण की कामना करता हूँ।
करारविन्देन पदारविन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥
   ॐ सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! 
    तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ।।
             ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
                   ।। धन्यवाद।।
              ।।श्री कृष्णाष्टकम्।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || १ ||
आतसीपुष्पसंकाशम् हारनूपुरशोभितम्
रत्नकण्कणकेयूरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || २ ||
कुटिलालकसंयुक्तं पूर्णचंद्रनिभाननम्
विलसत्कुण्डलधरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ३ ||
मंदारगन्धसंयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम्
बर्हिपिञ्छावचूडाङ्गं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ४ ||
उत्फुल्लपद्मपत्राक्षं नीलजीमूतसन्निभम्
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ५ ||
रुक्मिणीकेळिसंयुक्तं पीतांबरसुशोभितम्
अवाप्ततुलसीगन्धं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ६ ||
गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कितवक्षसम्
श्री निकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ७ ||
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं वनमालाविराजितम्
शङ्खचक्रधरं देवं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ८ ||
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् |
कोटिजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनष्यति ||
|| इति कृष्णाष्टकम् ||

॥ बालमुकुन्दाष्टकं ॥
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 1 ॥

संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 2 ॥

इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गम् इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् ।
सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 3 ॥

लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिम्बाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 4 ॥

शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 5 ॥

कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गेनटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 6 ॥

उलूखले बद्धमुदारशौर्यम् उत्तुङ्गयुग्मार्जुन भङ्गलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 7 ॥

आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 8 ॥



मंगलवार, 17 अगस्त 2021

कजली तीज

कजली या कजरी तीज

हमारे देश में मुख्यतः चार  तीज  धूम-धाम से मनाई जाती है-
  1. अखा तीज
  2. हरियाली तीज
  3. कजली तीज/ कजरी तीज/ बड़ी तीज/सातूड़ी तीज/ बूढ़ी तीज
  4. हरतालिका तीज

      भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कज्जली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं।धार्मिक मान्यता के अनुसार, महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती से सुखी वैवाहिक  जीवन की कामना करती हैं। ऐसी भी माना जाता है कि अगर किसी लड़की की शादी में कोई बाधा आ रही है तो इस व्रत को जरूर रखे। भगवान शिव और माता पार्वती की समर्पित इस व्रत को काफी लाभकारी माना गया है। इस दिन महिलाएं स्नान के बाद  भगवान शिव और माता गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं, या फिर बाजार से लाई मूर्ति का पूजा में उपयोग करती हैं। व्रती महिलाएं माता गौरी और भगवान शिव की मूर्ति को एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर स्थापित करती हैं। इसके बाद वे शिव-गौरी का विधि विधान से पूजन करती हैं, जिसमें वह माता गौरी को सुहाग के 16 सामग्री अर्पित करती हैं, वहीं भगवान शिव को बेल पत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा, भांग आदि चढ़ाती हैं। फिर धूप और दीप आदि जलाकर आरती करती हैं और शिव-गौरी की कथा सुनती हैं।इस दिन गाय की पूजा की जाती है। गाय को रोटी व गुड़ चना खिलाकर महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं।. यह व्रत तब तक पूरा नहीं माना जाता, जब तक कि इसकी व्रत कथा कही या पढ़ी न जाए। इस व्रत में सातुड़ी तीज की कहानी के अलावा नीमड़ी माता की कहानी , गणेश जी की कहानी और लपसी तपसी की कहानी भी सुनी जाती है।


व्रत कथायें निम्न हैं- 1-कजली तीज की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ। 

        रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा। आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे। 
        साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला।
          चांद निकल आया था ब्राह्मणी इंतजार ही कर रही थी।
          साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे... कजली माता की कृपा सब पर हो।
    2- एक दूसरी कथा है कि एक साहूकार था उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पाव से अपाहिज़ था।वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी।भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत के लिए सातु बनाये।छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला –  ” मुझे वेश्या के यहाँ छोड़ कर आ “हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी , लेकिन पति उस दिन बोलना भूल गया कि  तू जा। वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से आवाज़ आई-“आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय “आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए औऱ अपने घर आ गयी।उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को देकर उसे उसके घर छोड़कर सदा के लिए कही दूसरी जगह चली गई। पति ने  पत्नी को आवाज़ दी  – ” दरवाज़ा खोल ”उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी।उसने कहा कि अब में वापस कभी नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु  पासेगें।लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे।पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा।सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा-अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी।बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की कृपा हुई है। वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए।हे तीज माता !!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही सब पर प्रसन्न होना ,सब के दुःख दूर करना।तीज माता की …जय ! 
3-एक लपसी था, एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता था। लपसी रोजाना सवा सेर की लापसी बनाकर भगवान का भोग लगा कर जीम लेता था। एक दिन दोनों लड़ने लगे। तपसी बोला मैं रोज भगवान की तपस्या करता हूं इसलिए मै बड़ा हूं। लपसी बोला मैं रोज भगवान को सवा सेर लापसी का भोग लगाता हूं इसलिए मैं बड़ा।   नारद जी वहां से गुजर रहे थे। दोनों को लड़ता देखकर उनसे पूछा कि तुम क्यों लड़ रहे हो ?
       तपसी ने खुद के बड़ा होने का कारण बताया और लपसी ने अपना कारण बताया। नारद जी बोले तुम्हारा फैसला मैं कर दूंगा। दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा कर अपनी रोज की भक्ति करने आए तो नारद जी ने छुप कर सवा करोड़ की एक एक अंगूठी उन दोनों के आगे रख दी। तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो उसने चुपचाप अंगूठी उठा कर अपने नीचे दबा ली। लपसी की नजर अंगूठी पर पड़ी लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया भगवान को भोग लगाकर लापसी खाने लगा। नारद जी सामने आए तो दोनों ने पूछा कि कौन बड़ा तो नारद जी ने तपसी से खड़ा होने को कहा। वो खड़ा हुआ तो उसके नीचे दबी अंगूठी दिखाई पड़ी। 
      नारद जी ने तपसी से कहा तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई। इसलिए लपसी बड़ा है। और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का कोई फल भी नहीं मिलेगा। तपसी शर्मिंदा होकर माफी मांगने लगा। उसने नारद जी से पूछा मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा ? नारद जी ने कहा यदि कोई गाय और कुत्ते की रोटी नहीं बनाएगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई साड़ी के साथ ब्लाउज नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई दीये से दीया जलाएगा तो फल तुझे मिलेगा।
     यदि कोई सारी कहानी सुने लेकिन तुम्हारी कहानी नहीं सुने तो फल तुझे मिलेगा। उसी दिन से हर व्रत कथा कहानी के साथ लपसी तपसी की कहानी भी सुनी और कही जाती है।
4-एक शहर में एक सेठ- सेठानी रहते थे । वह बहुत धनवान थे लेकिन उनके पुत्र नहीं था। सेठानी ने भादौं की बड़ी तीज ( सातुड़ी तीज ) का व्रत करके कहा –

” हे नीमड़ी माता मेरे बेटा हो जायेगा , तो मै आपको सवा मण का सातु चढ़ाऊगी “।

माता की कृपा से सेठानी को नवें महीने लड़का हो गया। सेठानी ने सातु नहीं चढ़ाया। समय के साथ सेठानी को सात बेटे हो गए लेकिन सेठानी सातु चढ़ाना भूल गयी।

पहले बेटे का विवाह हो गया। सुहागरात के दिन सोया तो आधी रात को साँप ने आकर डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह उसके छः बेटो की विवाह उपरान्त मृत्यु हो गयी।

सातवें बेटे की सगाई आने लगी सेठ-सेठानी मना करने लगे तो गाँव वालो के बहुत कहने व समझाने पर सेठ-सेठानी बेटे की शादी के लिए तैयार हो गए। तब सेठानी ने कहा गाँव वाले नहीं मानते हैं तो इसकी सगाई दूर देश में करना।

सेठ जी सगाई करने के लिए घर से चले ओर बहुत दूर एक गाँव आये। वहाँ चार-पांच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिटटी का घर बनाकर तोड़ रही थी। उनमे से एक लड़की ने कहा में अपना घर नहीं तोडूंगी। 

सेठ जी को वह लड़की समझदार लगी। खेलकर जब लड़की वापस अपने घर जाने लगी तो सेठ जी भी  पीछे -पीछे उसके घर चले गए। सेठजी ने लड़की के माता पिता से बात करके अपने लड़के की सगाई व विवाह की बात पक्की कर दी।

घर आकर विवाह की तैयारी करके बेटे की बारात लेकर गया और बेटे की शादी सम्पन्न करवा दी। इस तरह सातवे बेटे की शादी हो गयी।

बारात विदा हुई लंबा सफर होने के कारण लड़की की माँ ने लड़की से कहा कि मै यह सातु व सीख डाल रही हूं। रास्ते में कहीं पर शाम को नीमड़ी माता की पूजा करना, नीमड़ी माता की कहानी सुनना , सातु पास लेना व कलपना निकालकर सासु जी को दे देना।

बारात धूमधाम से निकली। रास्ते में बड़ी तीज का दिन आया ससुर जी ने बहु को खाने का कहा। बहु बोली आज मेरे तीज का उपवास है , शाम को नीमड़ी माता का पूजन करके नीमड़ी माता की कहानी सुनकर ही भोजन करुँगी।

एक कुएं के पास नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी रोक दी। बहु नीमड़ी माता की पूजा करने लगी तो नीमड़ी  माता पीछे हट गयी। बहु ने पूछा – ” हे माता , आप पीछे क्यों हट रही हो ”

इस पर माता ने कहा तेरी सास ने कहा था पहला पुत्र होने पर सातु चढ़ाऊंगी और सात बेटे होने के बाद , उनकी शादी हो जाने के बाद भी अभी तक सातु नहीं चढ़ाया। वो भूल चुकी है।

बहु बोली हमारे परिवार की भूल को क्षमा कीजिये , सातु मैं चढ़ाऊंगी। कृपया मेरे सारे जेठ को वापस कर दो और मुझे पूजन करने दो। 

माता नववधू की भक्ति व श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो गई। बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया ,और चाँद को अर्ध्य दिया, सातु पास लिया और कलपना ससुर जी को दे दिया। प्रातः होने पर बारात अपने नगर लौट आई।

जैसे ही बहु से ससुराल में प्रवेश किया उसके छहों जेठ प्रकट हो गए। सभी बड़े खुश हुए उन सभी को गाजे बाजे से घर में लिया। सासु बहु के पैर पकड़ का धन्यवाद करने लगी तो बहु बोली सासु जी आप ये क्या करते हो , जो बोलवा करी है उसे याद कीजिये ।

सासु बोली ” मुझे तो याद नहीं तू ही बता दे ” बहु बोली आपने नीमड़ी माता के सातु चढाने का बोला था सो पूरा नहीं किया। तब सासू को याद आई।

बारह महीने बाद जब कजली तीज आई , सभी ने मिल कर कर सवा सात मण का सातु तीज माता को चढ़ाया।  श्रद्धा और भक्ति भाव से गाजे बाजे के साथ नीमड़ी माँ की पूजा की। बोलवा पूरी करी।

हे भगवान उनके आनंद हुआ वैसा सबके होवे। खोटी की खरी , अधूरी की पूरी।

बोलो नीमड़ी माता की ….जय !!!

5-एक बार गणेशजी ने पृथ्वी के मनुष्यों परीक्षा लेने का विचार किया. वे अबोध बालक बन कर पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे. उन्होंने  एक हाथ में एक चम्मच में दूध  ले लिया और दूसरे हाथ में एक चुटकी चावल ले लिए और गली-गली घूमने लगे, साथ ही साथ आवाज लगाते चल रहे थे, कोई मेरे लिए खीर बना देकोई मेरे लिए खीर बना दे…”. कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उनपर हँस रहे थे. वे लगातार एक गांव के बाददूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे.  पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था. सुबह से शाम हो गई गणेश जी लगातार घूमते रहे. एक बुढ़िया थी. शाम के वक्त अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई  थी, तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि कोई मेरी खीर बना देकोई मेरी खीर बना दे…..”बुढ़िया बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी. उसने कहा बेटा, मैं तेरी खीर बना देती हूं.  गणेश जी ने कहा, माई, अपने घर में से दूध और चावल लेने के लिए बर्तन ले आओ. बुढ़िया एक कटोरी लेकर जब झोपड़ी बाहर आई तो गणेश जी ने कहा अपने घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर आओ. बुढ़िया को थोड़ी झुंझलाहट हुई पर उसने कहा चलो ! बच्चे का मन रख लेती हूं और अंदर जाकर वह अपने घर सबसे बड़ा पतीला लेकर बाहर आई. गणेश जी ने चम्मच में से दूध पतीले में उडेलना शुरू किया तब, बुढ़िया के आश्चर्य की सीमा न रही, जब उसने देखा दूध से पूरा पतीला भर गया है. एक के बाद एक वह बर्तन झोपड़ी बाहर लाती गई और उसमें गणेश जी दूध भरते चले गए. इस तरह से घर के सारे बर्तन दूध से लबालब भर गए. गणेश भगवान ने बुढ़िया से कहा, मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो. मैं वापस आकर खाऊँगा.बुढ़िया ने पूछा, मैं इतनी सारी खीर का क्या करूंगी ?” इस पर गणपति जी बोले, सारे गांव को दावत दे दो. बुढ़िया ने बड़े प्यार से, मन लगाकर खीर बनाई. खीर की भीनी-भीनी, मीठी-मीठी खुशबू चारों दिशाओं में फैल गई. खीर बनाने के बाद वह हर घर में जाकर खीर खाने का न्योता देने लगी. लोग उस पर हँस रहे थे. बुढ़िया के घर में खाने को दाना नहीं और यह सारे गांव को खीर खाने की दावत दे रही है. लोगों को कुतूहल हुआ और खीर की खुशबू से लोग खिंचे चले आए. लो ! सारा गाँव बुढ़िया के घर में इकट्ठा हो गया.जब बुढ़िया कि बहू को दावत की बात मालूम हुई, तब वह सबसे पहले वहां पहुंच गई. उसने खीर से भरे पतीलों को जब देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया.  उसे बड़ी जोर से भूख लगी हुई थी. उसने एक कटोरी में खीर निकाली और दरवाजे  के पीछे बैठ कर खाने की तैयारी करने लगी. इसी बीच बालक गणेश वहाँ आ गए और खीर का एक छींटा  बालक गणेश के ऊपर गिर गया और गणपति जी को भोग लग गया और वो प्रसन्न हो गए.अब पूरे गांव को खाने की दावत देकर, बुढ़िया वापस अपने घर आई तो उसने देखा बालक वापस आ गया था. बुढ़िया ने कहा, बेटा खीर तैयार है, भोग लगा लो. .गणपति जी बोले, मां, भोग तो लग चुका है. मेरा पेट पूरी तरह से भर गया है. मैं तृप्त हूँ. अब तू खा, अपने परिवार और गाँव वालों को खिला. जब सारा गांव जी भर कर खा चुका तब भी ढेर सारी खीर बच गई. बुढ़िया ने कहा,  उस बची खीर का मैं क्या करूंगी. इस पर गणेश जी बोले उस बची खीर को रात में अपने घर के चारों कोनों में रख देना और बुढ़िया ने ऐसा ही किया. उसने बची खीर पात्रों में भरकर अपने घर के चारों तरफ रख दिया. सुबह उठकर उसने क्या देखा ? पतीलों में खीर के स्थान पर हीरे, जवाहरात और मोती भर गए हैं. वह बहुत खुश हूं. उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई और वह आराम से रहने लगी. उसने गणपति जी का एक भव्य मंदिर बनवाया और साथ में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया. इस तरह उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया.  उस जगह वार्षिक मेले लगने लगे. लोग गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए, उस स्थान पर पूजा करने  और मान्यताएं मानने के लिए आने लगे. गणेश जी सब की मनोकामनाएं पूरी करने लगे.  


सोमवार, 9 अगस्त 2021

शिव मानस पूजा

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
 
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥4

हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।
आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनुठी स्तुति है। यह स्तुति शिव भक्ति मार्ग के अतयंत सरल पर साथ ही एक अतयन्त गुढ रहस्य को समझाता है। शिव सिर्फ भक्ति द्वारा प्रापत्य हैं, आडम्बर ह्की कोई आवश्यकता नहीं है। इस स्तुति में हम प्रभू को भक्ति द्वारा मानसिक रूप से तैयार की हुई वस्तुएं समर्पित करते हैं।
                  ।। धन्यवाद ।।

पवित्रा एकादशी

पवित्रा एकादशी : तेजस्वी संतान और वायपेयी यज्ञ का फल देती है यह  एकादशी

वर्षभर की दो एकादशियों को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह है श्रावण और पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी, इन दोनों एकादशियों को पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवान! आपने कामिका एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि श्रावण शुक्ल एकादशी (Shravana shukal ekadashi) का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है। 
   मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल मिलता है।
      द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
     वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। 
   मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूं, इसका क्या कारण है?
   राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। 
   एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।
  सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो। 
      लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं।
     यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।
   राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।
   लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।
    इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इस कथा को पढ़ने तथा इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

               ।।धन्यवाद।।

पुत्रदा एकादशी

हिंदू धर्म में व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी का व्रत होता है। पौष मास में शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वालों की भगवान विष्णु सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को उत्तम माना जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह पति-पत्नी को साथ में भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। उन्हें पीले फल, तुलसी, पीले पुष्प और पंचामृत आदि अर्पित करना चाहिए। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के बाद पति-पत्नी को साथ में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी शैव्या थी। राजा के पास सबकुछ था, सिर्फ संतान नहीं थी। ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे। राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण लेने का मन बना लिया, हालांकि पाप के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का एक दिन मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर चला गया।

राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा आश्रम में गए और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि राजन आप अपनी इच्छा बताए। राजा ने अपने मन की चिंता मुनियों को बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी है। मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा वे उसी दिन से इस व्रत को रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया। इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।

जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं. जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

                    ।।धन्यवाद।।