रविवार, 11 अक्तूबर 2015

स्वानुभूति गतांक से आगे||2||

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे,हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे!अष्टयाम हरि कीर्तन में पिताश्री के प्राण बसते।इसका आयोजन आस-पास,दूर-दराज चाहे कही भी हो उसकी जानकारी भर मिल जाय,पिताजी तन-मन से वहाँ हाजिर,आयोजक के यहाँ केवल चाय,देर -सबेर,रुखा-सूखा भोजन घर का।इसका लाभ पिताश्री को खूब हुआ,हमारे गाँव,टोले को जगत बाबा का टोला लोग कहने लगे सच तो लाभ सबको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मिल रहा था और अभी भी है पिताजी का दायरा सच कहे तो हम लोगो को जानने वालों की संख्या बेसुमार बढ़ती गयी।साल में लगभग एक बार पिताश्री ने भी अष्टयाम का आयोजन करना शुरू किया।गायकों में होड़,गवैयों की भीड़,गाने वालों के आने-जाने का तो ताता जी लगा रहता।हम सब उनकी आव-भगत,सेवा-सुश्रुवा,खान-पान,जर-जलपान की उचित व्यवस्था में लगे रहते।माता-पिता का यह धार्मिक प्रेम हमें  विरासत में मिला लेकिन उतना नहीँ,उस रूप में नहीं।पिताजी का साथ माँ ने वाखूबी निभाया।हम इन पर न्यौछावर हैं।इन्होंने अपना सब कुछ लगाकर मान-प्रतिष्ठा बचाकर हमारे जीवन को आगे बढ़ाया।माताजी दरवाजें पर आये जाने-अनजाने किसी भी जाति,धर्म,सम्प्रदाय के व्यक्ति को अपने सामने से खाली हाथ नहीं जाने देती मीठा पानी तो पिला कर ही छोड़ती।उस समय पक्की और सीधी सड़के नहीं थी लोग अक्सर पैदल ही यात्रा किया करते थे मेरा टोला एक बड़े बागीचे में है जहाँ गर्मी में छाया सर्व-सुलभ शीतल-मन्द हवा और खुले में मेरा दरवाजा तथा हैण्ड-पम्प जिसका पानी अति शीतल और ठंडा हर राहगीरों के लिए स्वमेव ही विश्राम स्थल उपलब्ध।मतवा भूखे-प्यासों के लिए गुड़ और रुखा-सूखा लेकर मीठे बोल के साथ हाजिर।मेरे दूसरे बड़े भाई साहब की शादी माताजी के इसी व्यवहार से स्वम तय हो गयी।हमारे गाँव जो हमारे टोले से लगभग एक किमी दूर है रेवली से दो देखनहरु किसी अच्छे घर-वर की तलाश में किसी निश्चित घर आये रहें जब उनके यहाँ उचित आव-भगत,भोजन-पानी नहीँ हो सका तब लड़की वाले दोनों वहाँ से आकर हमारे हैण्ड-पम्प पर पानी पीकर आपस में हमारे गाँव के उस परिवार के बारे में उल-जलूल बातें कर ही रहे थे की माताजी कही से उनकी बातें सुन आ गयी और उनको भूखा-प्यासा जानकर भोजन का प्रस्ताव रखी बस अंधे को क्या चाहिए बस दो आँखें उन लोगों ने पहले भूख मिटाया फिर बातों ही बातों में लड़की के भाई श्री राजेन्द्र मिश्र ने अपनी पूरी राम कहानी माताजी को सुना दी और माताजी से मेरे भाई साहब के बारे में जानकारी अनजान बनकर ले लिया,जब बाद में श्री राजेन्द्रजी अपनी बहन का रिश्ता भाई साहब के साथ करने की लिए आये और तय कर लेने के बाद यह सब माताजी को बताये तब माताजी को उस दिन की घटना का स्मरण हुवा।ये घटना भाई राजेन्द्र मिश्र ने स्वम् हमे सुनाया।आज-कल ऐसी बातों पर विश्वास  करना या होना या ऐसी बातों का मिलना दुष्कर है।भैया-भाभी सानन्द सफल जीवन जीते हुवे आज हमारे परिवार के ही क्यों हर जाने-अनजाने के लिये आदर्श और प्रेरणा-स्रोत है।उनका जीवन अनुकरणीय है और वे एक आदर्श-संयुक्त परिवार के प्रतिमान हैं।
                           क्रमशः

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