एक कथा जय पराजय की सुख शान्ति तृप्ति तलाश की !
देवी दासी दायित्वों दुर्निवार दुस्वारियो दुखद दुर्विकल्पो की !!
पति पत्नि सखा सखी स्वामी स्वामिनी सेवक सेविका की !
सोच विचार संतुष्टि त्याग तपस्या प्रेम घृणा लगाव इश्क की !!१!!
बिना विचारे पथ त्यागे नासमझदारी को समझदारी समझ की !
पर विकार विकार स्व विकार स्वीकार से स्वयं श्रेष्ट मानने की !!
हम कदम राही को हम सफ़र बना लेने की लगन पर ललकने की !
अपना सब स्वेच्छया समर्पण कर पर पर प्रत्यारोप लगाने की !!२!!
स्वयं ही विवेक खो सत असत से दूर हो गलत को सही मानने की !
स्व अनुकूल जब तक सब रहे तब तक अपने आप पर इटलाने की !!
धोखा को विश्वास स्नेह ईमान समझ उस पर इतराते रहने की !
सब कुछ दिन सा साफ़ होने पर स्वं की करतूती पर पछताने की !!३!!
हो रहा ऐसा ही है आज कल हर शहर हर गली गली हर स्थली !
इश्क मुश्क में नहीं समझते फेयर अनफेयर नव भौरे नव कली !!
ये तो एवरीथिंग फेयर एवरीवेयर मान बैठे माने बुजर्गो को ठली !
पर आदतन भौरे बदलेगे ही कली की बात जब इन पर आ चली !!४!!
तब कथा प्रेम का रूप छोड़ बलात्कार व्यविचार देह शोषण है बनी !
ऐसी हमने ही नहीं सबने ही है भाति भाति से अनेक कथा है सुनी !!
जज जनता शासन सरकार सब सोचे ऐसो की जड़ कैसे है काटनी !
लालच लोभ मोह में गिर गिर गिरना है तो कैसे कोई इनका धनी !!५!!
कहते हम हम कदम को रहने दो, हम कदम नहीं चाहते देवी दासी !
देवी नैसर्गिक अधिकारों से परे इन्हें दिखती मुरझाये पुष्प सा बासी !!
दासी का अधिकार छीन जाए अधिकारहीन जीवन को कैसे सह जासी !
पति पत्नि सेवक स्वामी सखा एक दूसरे के यह इन्हें है कभी सुहासी !!६!!
देवी दासी दायित्वों दुर्निवार दुस्वारियो दुखद दुर्विकल्पो की !!
पति पत्नि सखा सखी स्वामी स्वामिनी सेवक सेविका की !
सोच विचार संतुष्टि त्याग तपस्या प्रेम घृणा लगाव इश्क की !!१!!
बिना विचारे पथ त्यागे नासमझदारी को समझदारी समझ की !
पर विकार विकार स्व विकार स्वीकार से स्वयं श्रेष्ट मानने की !!
हम कदम राही को हम सफ़र बना लेने की लगन पर ललकने की !
अपना सब स्वेच्छया समर्पण कर पर पर प्रत्यारोप लगाने की !!२!!
स्वयं ही विवेक खो सत असत से दूर हो गलत को सही मानने की !
स्व अनुकूल जब तक सब रहे तब तक अपने आप पर इटलाने की !!
धोखा को विश्वास स्नेह ईमान समझ उस पर इतराते रहने की !
सब कुछ दिन सा साफ़ होने पर स्वं की करतूती पर पछताने की !!३!!
हो रहा ऐसा ही है आज कल हर शहर हर गली गली हर स्थली !
इश्क मुश्क में नहीं समझते फेयर अनफेयर नव भौरे नव कली !!
ये तो एवरीथिंग फेयर एवरीवेयर मान बैठे माने बुजर्गो को ठली !
पर आदतन भौरे बदलेगे ही कली की बात जब इन पर आ चली !!४!!
तब कथा प्रेम का रूप छोड़ बलात्कार व्यविचार देह शोषण है बनी !
ऐसी हमने ही नहीं सबने ही है भाति भाति से अनेक कथा है सुनी !!
जज जनता शासन सरकार सब सोचे ऐसो की जड़ कैसे है काटनी !
लालच लोभ मोह में गिर गिर गिरना है तो कैसे कोई इनका धनी !!५!!
कहते हम हम कदम को रहने दो, हम कदम नहीं चाहते देवी दासी !
देवी नैसर्गिक अधिकारों से परे इन्हें दिखती मुरझाये पुष्प सा बासी !!
दासी का अधिकार छीन जाए अधिकारहीन जीवन को कैसे सह जासी !
पति पत्नि सेवक स्वामी सखा एक दूसरे के यह इन्हें है कभी सुहासी !!६!!
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