सोमवार, 29 जुलाई 2013

अन्तर है समानता है

बैल बैल में अन्तर है ,जैसे नन्दी और साड़ में !
अन्तर नहीं है सभी बैलो में ,
पर है प्रेमचंद के हीरा  मोती और आज के बैलो में !!
उपन्यास सम्राट ने आदमी को बैल और गधा कह डाला !
बैल और गधा की समानता दो बैलो की कथा में आदमी से कर डाला !!
वास्तव में समानता है ,अन्तर है ,
मानव मानव में ही महद अन्तर है !
कही कही तो बिल्कुल अन्तर नहीं है जानवरों और मानवों में !
समानता है आहार निद्रा भय मैथुन और दोनों की आक्रामकता में !!
धर्म धुरी धरा धारन हेतु ,सत्य श्रम निष्ठा कर्म पालन हेतु !
मानवता मानव को मानव बनाने हेतु ,दानव और पशु से अलग रखने हेतु !!
जब अन्तर नहीं प्रेमजी के जानवरों और मानवो में !
तो फिर अन्तर कैसे  जानवरों की प्रजातियों में !!
रीछ और भालू में है क्या अन्तर !
कहां है गधो और गदहो में अन्तर !!
कोई खच्चर है तो कोई टट्टू है ,कई मौलिक है तो कई वर्णशंकर है !
कोई गवई है तो कोई शहरी है ,कोई नगरी है तो कोई बाहरी है !!
कोई काला है तो कई धवरा है ,कोई अपना है तो कोई पराया है !
सच है  हम इस बात से घबराये है ,कि हम एक दूसरे के साए है !!
कोई दुबला है कोई पतला है ,कोई छोटा है कोई मोटा है !
कोई फेकू है कोई टेकू है ,कोई सुलझा है कोई उलझा है !!
कोई साफ़ है कोई गंदा है ,कोई आधा है कोई पूरा है !
कोई मानक है कोई पैमाना है ,कोई क्षणिक है तो कोई ज़माना है !!
कोई आज है कोई कल है ,कोई भूत है कोई वर्तमान  है !
कोई आस्था है कोई विश्वास है ,कोई ठग है कोई धोखेबाज है !!
कोई सच है कोई झूठ है ,कोई वर्तमान  कोई भविष्य है !
 कोई ज्ञात है कोई अज्ञात ,कोई पराया है कोई अपना है !!
कोई रात  है कोई दिन है ,कोई हकीकत है कोई सपना है !
कोई चरित्रवान है कोई चरित्रहीन है ,कोई पूर्ण है कोई अपूर्ण है !!
कोई लेता लेता है कोई देता देता है ,कोई लेता देता है कोई देता लेता है !
कोई लेता है तो देता नहीं है ,कोई देता है तो कोई लेता नहीं है !!
कोई जग जाहिर है कोई माहिर है ,कोई सर्पेंट है कोई सर्वेंट है !
कोई जानता है तब मानता है ,कोई मानकर ही जानता है !!
कोई सीमित अपनो तक तो कोई विस्तृत परायो तक !
कोई आशावादी है कोई निराशावादी ,कोई आस्तिक है कोई नास्तिक !!
कोई असली है कोई नकली ,कोई सदाचारी तो कोई कदाचारी !
कोई ज्ञानी है कोई अज्ञानी ,कोई मानी है कोई अभिमानी !!
कोई सब है अकेले यानि स्वयं में दोनों -------
नर हैं या हैं वे नारी उनको तुम चुनो !
इन सबमे समानता है या फिर अन्तर ,यह जानना ही है जंतर मंतर !!
कोई कहता है कोई सुनता है ,कोई चुनता है कोई गुनता है !
कोई जानता है कोई मानता है ,कोई पारखी है तो कोई परख है !
कोई बड़ा बड़ा है कोई छोटा छोटा ,कोई बड़ा ही छोटा है तो कोई छोटा ही बड़ा है !!
तो कोई छोटा बड़ा दोनों है ,पर है जरुर -----
तो फिर क्या अन्तर है हममे और तुममे --
अन्तर है तुम तुम हो हम हम हैं ,यह हमारा है वह तुम्हारा है ---
इसी का तो जबरदस्त रगडा है पर जो भी हो अन्तर नहीं है !!
समानता है -आये एक ढंग से जाए एक ढंग से ----
यहाँ का यही रह जाए सब जानते है सब मानते है !
अन्तर है -सर्व श्रेष्ठ और निकृष्ट में हार  और जीत में हानि व लाभ में,
जान बूझकर करने व अनजाने हो जाने में ठगने ठगाने पाने व गावाने में,
बनाने व बिगाड़ने में निर्माण व विनाश में !!
अन्तर है -कथनी और करनी में ----
धोखेबाजो की विश्वासघातियो की ठगों की लूटनेवालो की अन्यायियो की !
दोहरी चालवालो  की बेइमानो की झूठो की चोरो चिकारो की और नामर्दों की !!
अन्तर नहीं है -कथनी और करनी में ---
रसूक वालो की ईमानदारों की !
सच्चे और नेक आचरण वालो की !!
मर्दों की जुबान एक होती है -मिथक है -सच है -इसका वजूद है !
फिर भी सभी मर्द एक सा होते हैं क्या -या नहीं ,
अन्तर है मर्द मर्द में अन्तर नहीं है नामर्दों में !!
इसीलिए तो --
कोई हँसता है कोई रोता है ,कोई जगता है कोई सोता है !
कोई हँसाता है कोई रुलाता है ,कोई जगाता है कोई सुलाता है !!
क्या अन्तर है भूत वर्तमान भविष्य में -है भी -नहीं भी ----
मानव ही दानव था है और रहेगा पर सभी नहीं !
मानव ही मानव थे  है और रहेगे पर सभी नहीं !!
तो अन्तर कैसा और क्यों कहा कहा और कब कब ---
चौपाया और चारपाई में भाई और भाई में समानता है अन्तर है !
राम और भरत सा युधिष्ठिरऔर दुर्योधन सा अन्तर है !!
मानव और दानव में अन्तर तब तक !
मानवता आभूषण है मानव का जब तक !!
दानवता श्रृगार जब हमारी !
हम दानव से भी पड़ेगे भारी !!
समानता है जोड़ने और निर्माण में अन्तर है बिगाड़ने और विनाश में !
समानता है दौड़ने और दौडाने में अन्तर है भागने और भगाने में !!
जाति धर्म सम्प्रदाय भाषा भेष आदि में अन्तर है !
अन्तर नहीं है जब हम मानव है वसुंधरा ही कुटुम्ब है !!
अन्तर है तो इसे बनाए रखना भी है --क्योकि --
गागर गागर है और सागर सागर है हिम हिम है और हिमालय हिमालय है !
झूठ सच हार जीत हानि लाभ जीवन मरन जश अपयश दुःख सुख झेलना ही है !!
करिश्मा का इंतजार नहीं कर्म का करो सम्मान !
निश्चय ही अन्तर रहते ही बदा लोगे मान !!
अन्तर को पाटना समानता को लाना !
यही है सच्चे विकाश को बुलाना !!
इसके लिए स्व अनुशासन से मन पर विजय पाना !
समस्त अवगुणों को आवश्यक  स्व से दूर भगाना !!
पर को न देख स्व को देखे सच्चाई को पेखे !
कुछ भी नहीं रहा है पर सच्चाई रहेगी इसे ही सच लेखे !!
समानता है सच और सच्चाई में -अन्तर है झूठ और झुठाई में !
समानता है अच्छे और अच्छाई में अन्तर है बुरे और बुराई में !!        

रविवार, 28 जुलाई 2013

त्रिमातु की नव वन्दना



                      उमा रमा ब्रह्माणी अग जग रमनी सृष्टी सुहानी जग मातु कहासिन !
                      सुन्दर सहज सरल भासिन जो हैं  शिव विष्णु ब्रह्म बामांग सुवासिन !!
                      शक्ति धाम सर्व काम पूरिन जो है सदा दुःख दारिद सब कष्ट निवारिन !
                      वैष्णवन वैष्णवी शाक्तन शक्ति शैवन शिवा प्रभृत अभिधान धारिन !!१!!
                      जिनका रूप रूपसी सा देख खल सहज गरल रस पान कर धरा त्यागिन !
                      शुम्भ निशुम्भ चंड मुंड धूम्रलोचन रक्तबीज दुर्गा महिषासुर मर्दिन !!
                      नाम अनाम कुनाम सनाम धर असुर जग जब जब अत्याचार करिन !
                      सुवेष बनाय स्वाचरन से मानवता त्यागी का मातु तू है सर्व बिनासिन !!२!!
                      रमा समान रमा माँ सदा नारायण संग नारायणी पद्मांगी पद्मासिनी !
                      धन धान भरो मन मान भरो सुख शान्ति भरो जग जाग निस्तारिनी !!
                      सर्व मंगला मंगलकरनी भक्तो का हर हर कष्ट सुख भर सुमंगल दायिनी !
                      नित नवीन पद्मावाली सा सर्वांग सुवासित यश भरो हे मातु यशस्विनी !!३!!
                      ब्रह्माणी बर  बुद्धिदायिनी  विमला अमला कमला निर्मला  स्फटिक धारिनी !
                      सच है सदा नहीं कोई है तुझ सा जगत में  शुभ्र शुभ्रांगी शुभ्र हंसावाहिनी !!                    
                      शोषक शोषित ठग ठगाए पाए बिनाश धोखेबाज विश्वासघाती हे जग तारिनी !  
                      जन मन मंजू कर आसन सुधार धरा कर कर मति विमला हे मति दायिनी !!४!!
                      त्रिदेवी त्रिदेव प्रिया त्रिलोकी त्रिभुवन तारण तरन त्रय ताप तपन हरन !
                      त्रिपुर सुन्दरी त्रयलोक वन्दिता त्रिनिनादिनी त्रास हारिनी जग कारन करन !!
                      दिवाकर ज्यो हरे तम जगत का त्यों हे मातु तू हो जगत त्रास तारन !
                      त्रिमातु की नव वन्दना अर्पित त्रिपद कमल जेहि कर कमल सब दुःख समन !!५!!
                         

सोमवार, 22 जुलाई 2013

जटा कटाह युक्त देव



                                                   जटा कटाह युक्त देव ,भागिरथी धारिणी !
                                                   बाल चंद्रमा युक्त भाल ,हौ मोहि निस्तारिणी !!

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

धरती

धरा धरनी धरती  जन जन की चाहत भारती !
चौरासी लाख दृश्य अदृश्य योनि  पालन करती !!
सुख दुःख की अकूत विषमता स्व अंचल रखती !
सम भाव सदा आपदा बिपदा से परे रहती !!१!!
देश विदेश स्व या पर देश नर नरेश या नागेश !
केदार सार या बद्रीनाथ सबमे रखती सम भावेश !!
सनातन पुरातन परिवर्तन की इच्छा वृध्दि आदेश !
आवश्यकता धरा नित  पूरे अपूर्ण इच्छा रखे कामेश !!२!!
अन्न धन धान्य सदा भर जन जान प्राणी प्राण सेती !
जलचर नभचर थलचर उभयचर चराचर त्राण देती !!
सचर अचर  चर  को तार कर्मरत कर कर्म भाव भारती !
अनाचार कदाचार दुराचार व्यविचार से धाराशाही धरती !!३!!
चीटी से हाथी तक का पेट नित नवीन ढंग से भरती !
निज निर्धारित प्राकृतिक नियम पर घड़ी सा चलती !!
काल गति काल हो जब प्राकृतिक नियम चटकती !
आबाद आबादी का ह्रास क्षण में करती है धरती !!४!!
धरमशील तन मन धन से मिलते नहीं दिखावा करते !
सर सरिता सागर गागर बादल जल निज मार्ग करते !!
सुख संपति बिन बुलाये मेहमान बन धरमशील को धरते !
कर्मशील निज कर्मरत भाग्य विभव नव नव भरते !!५!!
करते दुष्कर्म वा सत्कर्म जननी सा हर हाल सदा सहती !
जग जननी जन जननी बन नवीनता संचार नित करती !!
आसन बसन बासन बन सुबासन सुबसन को सराहती !
दुर्व्यसन दुर्वासना को सहती पर नाश करती नित धरती !!६!!
  


सोमवार, 8 जुलाई 2013

मानव

मानव दानव सा करे जब आहार विहार !
हो जिस साधन से भरा उससे पाये हार !!१!!
रचता स्वयं नाश जाल होती ताकत पास !
सोचता विकास जिसको वही करता विनास !!२!!
समझ चतुर बन गया ठग ठग अपनो को रोज !
समय समेटे सकल सुख मिट जाये सब मौज !!३!!
स्व को सदा सम समझ जो असत से कर अर्जन !
भरे स्व स्वजनों का सब करे सबका तर्पन !!४!!
फूले फले जवास सा चूस चूस पर सार
पड़ते ही पावस बूद हो जाय तार तार !!५!!
दुहरी चाल पल पल चल चमक सकते कुछ पल!
दुधारी बन यह करनी करेगी विनास कल !!६!!
सुख शान्ति छिन जन स्वजन अपरजन या द्विजन !
मिले दुःख दैन्य व अशांति तुम्हे इसी जीवन !!७!!
लूट की ललक से लपक दे कोरा ही वचन
टूटे लुटे लाल लाल हो तेरा अधोपतन !!८!!
भक्षण इंसानियत का नित बन संसार से विरत !
जैसे भक्षण परिजन की करता बगुला भगत !!९!!
घात प्रतिघात है क्या विश्वासघात पाप !
सो कहते बचोगे रे आस्तीन का साप !!१०!!
कुपथ से विकास चाहत बनाती हे दानव!
सुपथ से सुदृढ़ ही सदा रहे हरदम मानव !!१०!!