जय श्री राम , मानस चर्चा में आपका स्वागत है, रामचरितमानस का पंचम सोपान सुंदरकांड, वह वट वृक्ष है जिसकी छाया में अनगिनत मानव अपने जीवन को धन्य कर रहे हैं । आइये हम आज सुन्दरकाण्ड के उस अद्भुत सौन्दर्य के बारे में विचार करें जिनके आधार पर मानस के पंचम सोपान का नाम सुंदरकांड रखा गया
हम सब इस प्रश्न का उत्तर अपने आप पर ही विचार करते हुवे प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, तो प्रथमतः पाते है कि--
आइये हम सुन्दरकाण्ड के सौंदर्य में चार चाँद लगाने वाले भगवान के सौन्दर्य को देखते हैं--
भगवान का पहला वर्ण भ --- भूमि, पृथ्वी, क्षिति, धरनी का स्पष्ट प्रतीक है।आप जानते ही हैं कि इस सोपान की भूमिका की शुरुआत करते समय जैसे ही जामवन्तजी ने हनुमानजी से कहा--राम काज लगि तव अवतारा।
वैसे ही हनुमानजी-- सुनतहिं भयउ पर्बताकारा ।।
कनक बरन तन तेज बिराजा।
मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा।
लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥
भूमि पर भूधर वह भी हेमशैलाभदेहं/स्वर्णशैलाभदेहं /कनक बरन तन तेज बिराजा।---मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा। इसका सुन्दर सा भाव यही तो है कि एक राजा ही है जो अपनी प्रजा की रक्षा कर सकता है अपनी प्रजा का सहयोग ले सकता है जैसे:-
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
राजा ही अपने मातहत जैसे स्वर्ण शैल मैनाक और स्वर्ण नगरी लंका के त्रिकूटाचाल को सुन्दर ढंग से आवश्यकतानुसार समझा सकता है। राजा ही तो प्रजा का बाजा बजा सकता है उसे मिट्टी में मिला सकता है तभी तो हनुमानजी कहते है-
सहित सहाय रावनहि मारी।
आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
इस प्रकार हम पाते है कि धरनीधर मैनाक और त्रिकूट
यहाँ प्रत्यक्ष हैं । त्रिकूट पर्वत की तीन चोटियाँ हैं-- सुबेल, नील और सुंदर अप्रत्यक्ष हैं।सुंदर वह त्रिकूट पर्वत की चोटी है जहां अशोक वाटिका है जहाँ मां श्री सीताजी और श्री हनुमानजी की भेंट हो रही है। अशोक बाटिका सुन्दर,अशोक वाटिका में माँ सीता और हनुमानजी का मिलन सुन्दर अर्थात भूमिका और भूमि सब सुन्दर हैं।इसीलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
भगवान का दूसरा वर्ण ग--गगन ,यहाँ आकाश ही वह है जो श्री हनुमानजी को मार्ग बनाने का, आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है और आकाश मार्ग वह मार्ग है जिस पर हनुमान जी चले। हनुमानजी का आकाश मार्ग से प्रस्थान सुन्दर। आकाश में सुरसा की परीक्षा में सफलता सुन्दर। आगे हम देखते है कि गगनचर तक को खा जाने वाले रावण के रडार सिंहिका का आकाश मार्ग से ही सुंदर संहार--
ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा।।
इसीलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
भगवान का तीसरा वर्ण व-- वायु, समीर ,हवा, पवन,
मारुत,मारुति नंदन श्रीहनुमान के हर सुन्दर कार्यो में सुन्दरतम भूमिका निभा रहे है ।आप लंका दहन का दृश्य याद करे तो आपको याद आ ही जायेगा--
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ी लाग अकास।
लंका के सुन्दर विनाश में वायु का सहयोग सुन्दर।
इसीलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
भगवान का चौथा वर्ण अ-- अनल, पावक, अग्नि का पूर्णतः सुन्दर समर्थन और सहयोग लंका दहन में हम सब देखते ही है और तो और लंका की जल कर हाल क्या हुई किसी से छिपा नहीं लेकिन हमारे हनुमान जी का एक बाल बांका भी नहीं हुआ क्योंकि बार-बार रघुवीर संभारी। हनुमान जी के बाल- बाल की रक्षा भगवान राम रघुवर कर रहे है यही नहीं अगर हम अरण्यकाण्ड के इस तथ्य को याद करें कि तुम पावक महुँ करउ निवासा तो पायेंगे कि माँ सीता अग्नि में रहकर श्री हनुमानजी की रक्षा कर रही है और हम पाते है कि इस भयंकर आग का कार्य भी सुन्दर है।इसीलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
भगवान का पाँचवा वर्ण न-- नीर, जल ,सागर, समुद्र,सिंधु का सुन्दर सहयोग --सिंधु तीर एक भूधर सुन्दर।और जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तभी तो आकाश मार्ग से जाते समय राक्षसी सिंहिका।
निसिचरि एक सिंधु मह रहही।
करि माया नभ के खग गहही।
जो समुद्र जल को दूषित कर रही थी उस समुद्री मायावी राक्षसी का सुन्दर अंत हुआ। हम सब जानते ही हैं कि सुंदरकांड का समापन भी सागर के प्रगट होने पर ही होता है जहां सागर लंका विजय का मार्ग प्रशस्त करते हैं और उनका समस्त कष्ट दूर होता है तथा वे अपने घर को प्रस्थान करते हैं । यही सुन्दरकाण्ड का महत्त्वपूर्ण भाव भी स्पष्ट हो जाता है कि सुन्दरकाण्ड की कथा मानव को संसार-सागर से पार उतार देती है--
सकल सुमंगलदायक रघुनायक गुनगान ।
सादर सुनहि ते तरहि भव सिंधु बिना जलजान।।
मानव जीवन में सब प्रकार से सुमंगल भरने वाला मंगल देने वाले इस सुन्दरकाण्ड का पाठ श्रवण कीर्तन भगवान की संपूर्ण प्रभविष्णुता से युक्त अति सुन्दर है।इसीलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
3- मानस के पंचम सोपान का नाम सुंदरकांड रखा गया क्योंकि-- इस कांड में वर्णित सब कुछ सुंदर ही है जैसा कि सुंदरकांड के बारे में कहा गया है--
सुंदरे-सुंदरो राम सुंदरे सुंदरी कथा।
सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किन्न सुंदरम_।
सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे सुंदरः कपि:।
सुंदरे सुंदरी वार्ता अतः सुंदर उच्यते।
इसलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
4- मानस के पंचम सोपान का नाम सुंदरकांड रखा गया क्योंकि--रामचरितमानस का यह सर्वश्रेष्ठ अंश है --- यही पांचवीं पुरी भी है-- कैसे ?
आप सब जानते ही हैं कि हमारे धर्म में सात पुरिया बताई गई है। जो हैं---
अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका,
पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।
अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार जिसको मायापुरी भी कहते हैं, काशी, कांची जिसे कांचीपुरम भी कहते हैं ,उज्जैन जिसे अवंतिका कहते हैं द्वारिका जिसे द्वारावती भी कहते हैं,ये सात पुरियाँ हैं। इनमें से पांचवी पुरी है कांचीपुरी इसके बारे में कहा गया है--
मनभावन कांची पुरी, हनुमत चरित ललाम।
सुंदर सानु कथा तथा, ताते सुंदर नाम।।
आप को ध्यान देना चाहिए कि पांचवी पुरी का नाम कांची पुरी है,इसके दो सोपान है शिवकांची और विष्णुकांची। जो सुंदरकांड में स्पष्ट दिख रहे हैं।सुन्दरकाण्ड में कुल साठ दोहे हैं जब हम इन्हें तीस-तीस कर दो भागों में बांटते है तो पाते हैं कि प्रथम तीस दोहे तक शिवचरित संकर स्वयं केसरी नन्दन अर्थात श्री हनुमानजी के चरित का चित्रण है। आगे के तीस दोहों में विष्णु चरित अर्थात श्री राम के चरित्र का स्पष्ट चित्रण है। इस प्रकार यह पंचम सोपान हरिहरात्मक काण्ड है। और जहाँ रामायण महामाला के रत्न श्री हनुमानजी के चरित्र का चित्रण हो वह सुन्दर काण्ड ही तो होगा।इसलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
5-मानस के पंचम सोपान का नाम सुंदरकांड रखा गया क्योंकि-- सुंदरकांड की विशेषता बताने के लिए जो श्लोक वर्णित है --
सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे सुंदरः कपि:।
सुंदरे सुंदरी वार्ता अतः सुंदर उच्यते।
और---
सुंदरे-सुंदरो राम सुंदरे सुंदरी कथा।
सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किन्न सुंदरम_।
इन सुंदरतम श्लोकों पर जब हम ध्यान देते है तो पाते है कि पहले श्लोक में सात बार सुन्दर शब्द का प्रयोग हुवा है और दूसरे श्लोक के आठ बार तथा श्री सीताजी का नाम दोनों में आया है ऐसा क्यों---- क्या सात बार सुन्दर शब्द आया है या आठ बार या फिर नौ बार अब ये सात, आठ या नौ सुन्दर शब्द सुन्दरकाण्ड में कहाँ-कहाँ आये है उन पर विचार करते हैं -
गोस्वामी तुलसीदासजी ने सुंदर काण्ड की पहली ही चौपाई की शुरुआत ही सुंदर वचनों से किया है – जामवंत के वचन सुहाए।
सुनि हुनुमंत हृदय अति भाए। औऱ वही आगे पहली बार एक पर्वत के प्रसंग में सुन्दर शब्द का प्रयोग किया जा रहा है--
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता उपर।।
दूसरी बार जब हनुमान जी लंका पुरी में प्रवेश करते हैं वहां का चित्रण करते हुए सुन्दर शब्द का प्रयोग किया गया है---
कनक कोट विचित्र मनि कृत सुन्दरायता घना।
चहु हट्ट हट्ट सुबट्ट बीथि चारु पुर बहु बिधि बना।।
तीसरी बार जब रावण मां सीता के समक्ष अपना प्रणय प्रसंग व्यक्त करता है उसी समय माँ सीताजी उसको ललकारते हुए भगवान श्री राम की भुजाओं की सुंदरता का चित्रण करती हैं--
स्याम सरोज धाम सम सुंदर।
प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।।
हम चौथी बार देखते हैं कि जब हनुमानजी श्रीरामजी द्वारा दी गई मुद्रिका को मां सीताजी के समक्ष डालते हैं, गिराते हैं तो उस मुद्रिका को देखकर के सीता जी कहती है
तब देखी मुद्रिका मनोहर ।
राम नाम अंकित अति सुंदर। यह है सुंदरे-सुंदरो राम।।
पांचवीं बार जब श्रीसीताजी से श्रीहनुमानजी अजर-अमर होने का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं तब उनसे अनुमति मांगते हैं कि माँ मुझे भूख लगी है अगर आप अनुमति दे तो मैं अशोकवाटिका से कुछ पल खा लूँ –
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।
लागि देखि सुंदर फल रूखा।
आगे छठीं बार जब श्रीरामजी और श्री हनुमानजी की कथा को भगवान शंकर मां पार्वती को सुना रहे हैं तथा सुनाते-सुनाते भगवान महादेव मगन हो जाते हैं तब वे कहते हैं--
सावधान मन करि पुनि शंकर।
लागे कहन कथा अति सुन्दर।।यह है सुंदरे सुंदरी कथा।।
सातवीं बार जब प्रभु श्रीराम लंका के लिए प्रस्थान करते हैं तब --
हरषि राम तब किन्ह पयाना।
सगुन भये सुन्दर सुभ नाना।।
आठवीं बार सुंदर शब्द का प्रयोग बड़े ही सुंदर ढंग से स्वयं प्रभु श्री राम ने किया है और संसार को ज्ञान भी दिया है--
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती।
सहज कृपन सन सुन्दर नीती।।
इस प्रकार हमने देखा कि आठ बार सुंदर शब्द सुन्दरकाण्ड में मिलता है अगर किसी हमारे साथी विद्वान को इससे अधिक बार मिले तो कृपया मुझे भी बताने का कष्ट करेंगे।
हां एक सुंदर वर्णन और भी है जिसे सुन्दर शब्द की आवश्यकता ही नहीं है। हम उसे नवां सुन्दर शब्द कह सकते हैं, नहीं कह सकते है क्या? वह क्या है? वह यह है कि साक्षात सौंदर्य ही सुंदरतम ढंग से जगत जननी श्रीसीतामाता का स्वरुप धारण कर लंका में विराजमान हैं ।इस सौन्दर्य के बारे में गोस्वामी जी ने लिखा है कि -
सुंदरता कहुँ सुंदर करई।
छबिगृहँ दीपसिखा जनु बरई॥
सब उपमा कबि रहे जुठारी।
केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी॥
आगे सीताजी की सुंदरता में गोस्वामी जी कहते है--
जौं छबि सुधा पयोनिधि होई।
परम रूपमय कच्छपु सोई॥
सोभा रजु मंदरु सिंगारू।
मथै पानि पंकज निज मारू॥
एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल।
तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल॥
इस प्रकार हम पाते है कि सुंदरे सुंदरी सीता साक्षात सुंदरतासुखमूल, सुन्दराचल के सुंदर उपवन अशोक वाटिका में आनन्दकन्द, सुखराशि,सुखधाम राम का ध्यान कर विराज रही है,जिसके कारण सुन्दरकाण्ड का सौन्दर्य ,सुन्दरकाण्ड की कथा,सुन्दरकाण्ड का स्मरण-सुन्दरकाण्ड का श्रवण , सुन्दरकाण्ड का पाठ दिन-रात कण-कण को सुंदर बना रहा है और भक्तों का कल्याण कर रहा है।इसीलिए इस पंचम सोपान का नाम सुन्दरकाण्ड है।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।