मेरी यह मनुजा कथा, गूँजे सब संसार।।1।।
।। कविता ।।
श्रद्धा विश्वास से बन जाये सत काव्य।
सत चित आंनद का फैले सर्वत्र राज्य।।
भूमिजा जग जननी गंगा पाप हारिणी।
दुर्गा दुर्गमांगी दानव दुर्गति कारिणी।।1।।
नारी श्रद्धा दया माया ममता मन घोलें।
बेटी मंजरी परिवार बाग़ खिले हौले-हौले।।
बेटा राम पितु पन हित परन कुटी में सोले।
रावन बेटा भाँति-भाँति कुकर्म द्वार खोले।।2।।
भूमिजा अनुजा मनुजा तनुजा हैं हमारी बेटी।
बेटी-बहन सहन करना रीति बहुत है मोटी।।
इन्सान वही जग में जिनकी नियत न खोटी।
मानव वही मानव जो मानव छोटी छोटी।।3।।
तृन समान पर धन-धान मान त्यागिनी।
पितु गृह कबहु कबहु ससुराल वासिनी।।
जीवन-ज्वाला नित नव-नव रुप धारिणी।
कविता-कामिनी मह मुहुर्मुहुः रस वारिणी।।4।।
महाभारत-रामायण में भी नारियाँ हैं।
अबला निर्बला नहीं सबला शक्तियॉं हैं।।
आज-कल भी कमतर नहीं बेटियाँ हैं।
काल के गाल पर लिखती ये पक्तियाँ हैं।।5।।
माता सा न हुवा कोई नर पूजित।
बहना सा न हुवा कोई नर रंक्षित।।
कन्या सा न हुवा कोई नर वंदित।
बिटिया सा न हुवा कोई नर मुंचित।।6।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
बेटी ही है यहाँ परम सनेही।।
त्याग-तपस्या की है गेही।
सम्बन्ध धरा पर यह है अति नेही।।7।।
बेटी है हमारे घर-बगिया की अद्भुत प्रसून।
मान है मर्यादा है आभा है प्रभा है हर जून।।
नाक है स्थान हर पल हर भोजन ज्यो नून।
बिनु बेटी परिवार है ज्यो रजनी बिनु मून।।8।।
मनुजा वही जो पायी मनुज से जन्म है।
तनुजा वही जो तन का अभिन्न अंग है।।
अनुजा वही जो मौन करे अग्रज रंग है।
अग्रजा वही जो अनुज को रखे चंग है।।9।।
बेटी बहन माता पिता भाई बेटा पावन।
पत्नी प्रेमिका प्रेयशी प्रियतमा मन भावन।।
हृदय के उद्गार हैं ये बसन्त सा सदा सुहावन।
सम्बन्ध और मर्यादा हैं यहाँ भदाव -सावन।।10।।
इन्सान-हैवान मानव-दानव एक ही है।
भेद भाषा का समझ का अद्भुत ही है।।
सब भाँति सब बात नियति की सद है।
नियति नारी गति मति प्रकृति एक है।।11।।
नारी पर रख कुदृष्टि सब कुछ खो देते हैं।
सु दृष्टि जिनकी इन पर वे सब पा लेते हहैं।।
को रोना का का रोना जो इनसे ज्ञान लेते हैं।
आइसोलेसन प्रकृतिप्रदत्त को जो मान देते है।।12।।
दोहा:-कभी कहीं कुछ किंपुरुष,कर के कुत्सित कर्म।
कायनात कर कलंकित,कालिख पोते धर्म।।2।।
।।इति।।