शांडिल्य कुलभूषण पर, रिझै प्रेम मुरारि।।1।।
हंस बंस अवतंश नर ,सोहै तीनो लोक।
जगत जननी कृपा रज, हर लें हर का शोक।।2।।
जगत तनय बन्दन माँ गिरिजा।कौशल किशोर प्रेरित सिरिजा।। दूधनाथ की अद्भुत कृपा।अक्षयवर है जहां कुलदीपा।।1 ।।सोहे सर तीर महिषमर्दिनी। विंध्यवासिनी जगत बंदिनी।। तिल अवली की पावनी धरा । फैलाती सुख शांति हरा भरा।।2।। अक्षय कुल भूषण श्रेष्ठ बंसा। प्रगटे क्षीर विवेकी हंसा।। तिनके तनय तीन जग भारी। रामाक्षु गुद्दर कालि तिवारी।।3।।काली कृपा कालिका कला। कुशल किशोर कुलदीपक भला।।आज जनक दुलारी दुलारें।नित राम रस सेवक सवारें।। 4।।राजेश रसराज रसिका का। काय मन बानी जु ध्यानी का।।बहु भाव भवन भव मह भावै।जब राम रसिक बानी गावै।।5।।हम धन्य धन्य हो ही जावै। जब कुल कुशल श्रीचरित गावै।।विंध्यवासिनी विन्ध्येश्वरी। रखें लाज नित नगरी डगरी।।6।। नहि हैं पावन गौतम नारी। किये है पावन हैं त्रिसिरारी।।अहिल्यापुर बने इक धामा।मम कुशल तह गाव जब रामा।।7।।पांचों अहिल्या मंदोदरी।कन्या तारा कुंती द्रोपदी।।राम कृष्ण संग संग आयीं।अद्भुत जश तिहु लोक पायीं।।8।।बिनववु तिनके पंकज-चरना।जानकि राधे-राधे कहना।।आजु धन्य मम कुल त्रिपुरारी।कुशल गावै जस त्रिसिरारी।।9।।करें पावन अपावन धामा।अरुप रुप लेवे जह विश्रामा।मैं मतिमंदा तू मति धामा।हर हर लो कुशल सब अज्ञाना।।10।।
गिरिजा करै हनु बन्दन, अवधेश के आँगन।
कुशल रह कौशल किशोर,जग करै नित बंदन।।1।।
जिनकी कृपा लवलेश,मिटै सबहीं कलेश।
इष्ट इष्ट दे अवधेश,दया करै विश्वेश।।2।।